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मीडिया

जब भीड़ ने जर्मन पत्रकार को घेर लिया

३० जुलाई २०२१

चीन में बाढ़ आपदा की रिपोर्टिंग करने गए विदेशी पत्रकारों को अपना काम नहीं करने दिया गया. आम लोगों ने ही उनके काम में बाधाएं पहुंचाईं. उन्हें लगता था कि वे पत्रकार, उनके देश की छवि को तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं.

तस्वीर: Str/AFP

चीन के बाढ़ग्रस्त इलाकों से डीडब्लू और दूसरे प्रसारको के लिए रिपोर्टिंग कर रहे जर्मन पत्रकार माथियास ब्योलिन्जर से सड़क पर गुजरते एक शख्स ने पूछा, "क्या तुम बीबीसी से हो?” जबसे बीबीसी ने कोरानावायरस महामारी के स्रोत को लेकर एक खोजी टीवी रिपोर्ट की है- जिसे चीन सरकार "मनगढ़ंत” बताती है- तबसे चीन में बीबीसी उतना भरोसेमंद नहीं रहा. वहां बीबीसी "चीन विरोधी गैरभरोसेमंद विदेशी मीडिया” बन चुका है. आधिकारिक नजरिया तो ये है कि बीबीसी के रिपोर्टर "चीन के बारे में सिर्फ झूठ” फैलाते हैं.

चीन में पत्रकारिता के लिए विदेश मंत्रालय से अधिकृत और मान्यता प्राप्त पत्रकार ब्योलिन्जर, बीबीसी के लिए काम नहीं करते हैं लेकिन वह चीनी सोशल मीडिया मे चल रही अजीबोगरीब बहस के केंद्र में अनचाहे ही आ गए.

रिपोर्टर को घेरने वाली गुस्सैल भीड़

धाराप्रवाह चीनी बोलने वाले ब्योलिन्जर का कहना है कि हेनान प्रांत की राजधानी चेंगचाऊ में 24 जुलाई को डीडब्लू के साथ एक लाइव अंग्रेजी भाषी इंटरव्यू के दौरान राहगीरों ने अपने मोबाइल फोनों पर उनके वीडियो उतारे. उनके मुताबिक बाद में कुछ लोग उनसे मिले और कहा कि वे वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं कर सकते हैं. जल्द ही भीड़ जमा हो गई. किसी ने फोटो निकाला और मुझे पूछा, क्या ये तुम हो?” वो फोटो बीबीसी संवाददाता रॉबिन ब्रांट की थी.  

उनसे पूछा गया कि तमाम रिपोर्टर आखिर क्यों चीन की हर चीज की बुराई करते हैं और वे झूठ क्यों फैलाते हैं. चीन की वाईबो माइक्रोब्लॉगिंग सेवा में एक वीडियो पोस्ट किया गया और उसे बाद ट्विटर पर ब्योलिन्जर ने भी पोस्ट किया जिसमें एक आक्रोशित भीड़ नजर आती है और एक शख्स ब्योलिन्जर के मोबाइल फोन को झपटने की कोशिश करता दिखता है.

बीबीसी रिपोर्टर समझ लिया

बाद में पता चला कि लोग जर्मन पत्रकार को बीबीसी रिपोर्टर समझ बैठे थे. वो भी शहर में ही थे और जिनके बारे में चीनियों को लगता था कि वे फर्जी खबर चला रहे हैं और चीनी अधिकारियों के बयान तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन ने उनकी फोटो ऑनलाइन पोस्ट कर दी और साथ में आगाह भी किया कि उनके कथित इंटरव्यू के झांसे में कोई न आए. चेतावनी में कहा गया कि, "जिस किसी को उनका पता चले, वो उनकी लोकेशन बता दे.”

तस्वीरों मेंः यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा

ब्योलिन्जर का कहना है कि गलतफहमी दूर होने के बाद मामला शांत पड़ गया. भीड़ पीछे हट गई और आखिर में, पत्रकार ब्योलिन्जर के मुताबिक, "लोगों ने उनकी तारीफ़ की और एक आदमी ने उन्हें ‘सॉरी' कहा.”

पश्चिम का ‘बुरा मीडिया'

इस खास घटना के बारे में विभिन्न वीडियो इंटरनेट पर तेजी से फैल गए. कई यूजरों ने निराशाजनक टिप्पणी किए. लिखा कि "ये उम्मीद करना बेकार है कि पश्चिमी मीडिया चीन के बारे में वस्तुनिष्ठ और संतुलित रिपोर्टिंग करेगा.” वैसे, एक यूजर का कहना था, "चीन में इस किस्म के मीडिया की कमी है जो सामाजिक समस्याओं की छानबीन कर पाए और अपनी सरकार से सवाल पूछ सके.”

बीजिंग से प्रकाशित होने वाले दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने अपनी राय देते हुए लिखा कि "पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टिंग से नाराज होना स्वाभाविक है.” अखबार के मुताबिक ऐसी रिपोर्टो से पश्चिम में चीन की एक विकृत छवि बनती है. लेकिन अखबार के टिप्पणीकार ने ये सलाह भी दी कि "विदेशी पत्रकारों को घेर लेने और उन्हें काम के समय तंग करने से” बाज आना चाहिए. उनके मुताबिक इससे पश्चिमी मीडिया को चीन की आलोचना करने लिए और मसाला ही मिलेगा. 

माथियास ब्योलिन्जर का कहना है कि उन्हें इस मामले का इतना तूल पकड़ लेने की उम्मीद नहीं थी. चीन में विदेशी संवाददाता के रूप में, वह कहते हैं, लगातार निगरानी, निरीक्षण, परेशानी और टकराव के साए में रहने की उन्हें आदत पड़ चुकी है. हालांकि उनके मुातबिक इस बार मामला अलग था. उन्हें ट्विटर पर बहुत से हेट मेसेज मिले जिनका उन्होंने जवाब नहीं दिया. वह कहते हैं कि चीन की आलोचना की कथित एकतरफा रिपोर्टिंग के अपने ऊपर लगे आरोप उन्हे कुबूल नहीं हैं.

ब्योलिन्जर कहते हैं, "मैंने अपनी रिपोर्टों में सच से इतर, कभी कोई दावा नहीं किया है.”

रिपोर्टः काओ हाई, फांग वान

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