चीन में बाढ़ आपदा की रिपोर्टिंग करने गए विदेशी पत्रकारों को अपना काम नहीं करने दिया गया. आम लोगों ने ही उनके काम में बाधाएं पहुंचाईं. उन्हें लगता था कि वे पत्रकार, उनके देश की छवि को तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं.
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चीन के बाढ़ग्रस्त इलाकों से डीडब्लू और दूसरे प्रसारको के लिए रिपोर्टिंग कर रहे जर्मन पत्रकार माथियास ब्योलिन्जर से सड़क पर गुजरते एक शख्स ने पूछा, "क्या तुम बीबीसी से हो?” जबसे बीबीसी ने कोरानावायरस महामारी के स्रोत को लेकर एक खोजी टीवी रिपोर्ट की है- जिसे चीन सरकार "मनगढ़ंत” बताती है- तबसे चीन में बीबीसी उतना भरोसेमंद नहीं रहा. वहां बीबीसी "चीन विरोधी गैरभरोसेमंद विदेशी मीडिया” बन चुका है. आधिकारिक नजरिया तो ये है कि बीबीसी के रिपोर्टर "चीन के बारे में सिर्फ झूठ” फैलाते हैं.
चीन में पत्रकारिता के लिए विदेश मंत्रालय से अधिकृत और मान्यता प्राप्त पत्रकार ब्योलिन्जर, बीबीसी के लिए काम नहीं करते हैं लेकिन वह चीनी सोशल मीडिया मे चल रही अजीबोगरीब बहस के केंद्र में अनचाहे ही आ गए.
रिपोर्टर को घेरने वाली गुस्सैल भीड़
धाराप्रवाह चीनी बोलने वाले ब्योलिन्जर का कहना है कि हेनान प्रांत की राजधानी चेंगचाऊ में 24 जुलाई को डीडब्लू के साथ एक लाइव अंग्रेजी भाषी इंटरव्यू के दौरान राहगीरों ने अपने मोबाइल फोनों पर उनके वीडियो उतारे. उनके मुताबिक बाद में कुछ लोग उनसे मिले और कहा कि वे वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं कर सकते हैं. जल्द ही भीड़ जमा हो गई. किसी ने फोटो निकाला और मुझे पूछा, क्या ये तुम हो?” वो फोटो बीबीसी संवाददाता रॉबिन ब्रांट की थी.
उनसे पूछा गया कि तमाम रिपोर्टर आखिर क्यों चीन की हर चीज की बुराई करते हैं और वे झूठ क्यों फैलाते हैं. चीन की वाईबो माइक्रोब्लॉगिंग सेवा में एक वीडियो पोस्ट किया गया और उसे बाद ट्विटर पर ब्योलिन्जर ने भी पोस्ट किया जिसमें एक आक्रोशित भीड़ नजर आती है और एक शख्स ब्योलिन्जर के मोबाइल फोन को झपटने की कोशिश करता दिखता है.
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बीबीसी रिपोर्टर समझ लिया
बाद में पता चला कि लोग जर्मन पत्रकार को बीबीसी रिपोर्टर समझ बैठे थे. वो भी शहर में ही थे और जिनके बारे में चीनियों को लगता था कि वे फर्जी खबर चला रहे हैं और चीनी अधिकारियों के बयान तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन ने उनकी फोटो ऑनलाइन पोस्ट कर दी और साथ में आगाह भी किया कि उनके कथित इंटरव्यू के झांसे में कोई न आए. चेतावनी में कहा गया कि, "जिस किसी को उनका पता चले, वो उनकी लोकेशन बता दे.”
तस्वीरों मेंः यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
डच पत्रकार पेटर आर दे विरीज पर जानलेवा हमले ने यूरोप में लोग सदमें में हैं. प्रेस की आजादी को लेकर यूरोपीय देशों की अच्छी छवि के बावजूद, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के कई उदाहरण हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Stringer
सदमें में एम्सटर्डम
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित जुर्म की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. कई घंटों बाद दो लोगों को हिरासत में लिया गया.
तस्वीर: Evert Elzinga/ANP/picture alliance
एक दमदार पत्रकार
दे विरीज ने अपने देश में संगठित जुर्म पर कई सालों से रिपोर्टिंग की है. इस हमले से पहले वो एक कुख्यात जुर्म सरगना के खिलाफ बयान देने वाले एक सरकारी गवाह के निजी सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे. इस व्यक्ति के भाई और वकील की कई सालों पहले हत्या हो गई थी. आज दे विरीज अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं.
तस्वीर: ANP/imago images
उम्मीद और डर
दे विरीज पर हमले के बाद देश के कई लोगों की प्रतिक्रिया थी, "ऐसा यूरोप के बीचो बीच नहीं हो सकता!" कई लोगों ने हमले के स्थल पर जा कर वहां घायल पत्रकार के लिए शुभकामनाओं के साथ फूल चढ़ाए हैं. दुख की बात यह है कि दे विरीज जानलेवा हमला झेलने वाले पहली यूरोपीय पत्रकार नहीं हैं.
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लोकतंत्र का जन्म-स्थल
यूनानी क्राइम रिपोर्टर गिओर्गोस करइवाज की एथेंस में नौ अप्रैल को हत्या कर दी गई थी. मुखौटे पहने मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने करइवाज पर 10 बार गोलियां चलाईं. करइवाज ने देश के नौकरशाहों के भ्रष्टाचार और संगठित जुर्म के गिरोहों पर कई खबरें की थीं.
माल्टा की खोजी पत्रकार डैफ्ने कारूआना गालिजिया ने देश के राजनीतिक और व्यापारिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को काफी कवर किया है. लेकिन 19 अक्टूबर 2017 को 53 वर्षीय डैफ्नै की गाड़ी में एक बम धमाका कर उनकी हत्या कर दी गई. इस मामले में एक व्यक्ति के जुर्म कबूलने के बाद उसे 15 साल जेल की सजा दे दी गई. मुख्य आरोपी एक जाना माना व्यवसायी है जिसके खिलाफ सुनवाई अभी चल ही रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Klimkeit
घर पर ही हत्या
21 फरवरी 2018 को स्लोवाकिया के खोजी पत्रकार यान कुशियाक और उनकी मंगेतर की भाड़े के हत्यारों ने गोली मार कर हत्या कर दी. 28-वर्षीय कुशियाक संगठित जुर्म के गिरोहों, टैक्स चोरी और देश के राजनेताओं और कुलीन लोगों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते थे. उनकी हत्याओं के बाद पूरे यूरोप में इतना विरोध हुआ कि प्रधानमंत्री रोबर्ट फीको को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: Mikula Martin/dpa/picture alliance
पोलैंड का हाल
2015 में पोलैंड के एक पत्रकार लुकास मासियाक की एक बॉलिंग क्लब में पीट- पीटकर हत्या कर दी गई थी. मासियाक भ्रष्टाचार, गैर कानूनी नशीली पदार्थों का व्यापार और मनमानी गिरफ्तारियों पर खबरें किया करते थे. पोलैंड की सरकार पर आज भी कई तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Attila Husejnow/SOPA Images/ZUMAPRESS.com/picture alliance
'मैं हूं शार्ली'
जनवरी 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर किए गए एक हमले में 12 लोग मारे गए थे. तब पूरी दुनिया में सैकड़ों लोगों ने अभिव्यक्ति और प्रेस की आजादी के लिए "मैं हूं शार्ली" हैशटैग के साथ विरोध प्रदर्शन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में तुर्क पत्रकार पर हमला
सात जुलाई 2021 को बर्लिन-स्थित तुर्क पत्रकार एर्क अकारेर पर उनके अपार्टमेंट में तीन लोगों ने हमला कर दिया. एर्क तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन के कड़े आलोचक हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "मुझ पर बर्लिन में मेरे घर के अंदर चाकुओं और मुक्कों से हमला किया गया." तीनों संदिग्धों ने उन्हें धमकी भी दी कि अगर उन्होंने रिपोर्टिंग बंद नहीं की तो वे वापस आएंगे.
तस्वीर: twitter/eacarer
प्रेस के काम में बाधा
ऐसा नहीं है कि पत्रकारों को हमेशा उनकी जान की चिंता ही लगी रहती है. लेकिन उनके काम की रास्ते में अड़चनें डालने का चलन बढ़ता का रहा है, चाहे ये काम प्रदर्शनकारी करें, पुलिस करे या सुरक्षाबल करें. इस तस्वीर में फ्रांस की दंगा-विरोधी पुलिस नए सुरक्षा कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक पत्रकार से भिड़ रही है. (बुराक उनवेरेन)
तस्वीर: Siegfried Modola/Getty Images
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ब्योलिन्जर का कहना है कि गलतफहमी दूर होने के बाद मामला शांत पड़ गया. भीड़ पीछे हट गई और आखिर में, पत्रकार ब्योलिन्जर के मुताबिक, "लोगों ने उनकी तारीफ़ की और एक आदमी ने उन्हें ‘सॉरी' कहा.”
पश्चिम का ‘बुरा मीडिया'
इस खास घटना के बारे में विभिन्न वीडियो इंटरनेट पर तेजी से फैल गए. कई यूजरों ने निराशाजनक टिप्पणी किए. लिखा कि "ये उम्मीद करना बेकार है कि पश्चिमी मीडिया चीन के बारे में वस्तुनिष्ठ और संतुलित रिपोर्टिंग करेगा.” वैसे, एक यूजर का कहना था, "चीन में इस किस्म के मीडिया की कमी है जो सामाजिक समस्याओं की छानबीन कर पाए और अपनी सरकार से सवाल पूछ सके.”
बीजिंग से प्रकाशित होने वाले दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने अपनी राय देते हुए लिखा कि "पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टिंग से नाराज होना स्वाभाविक है.” अखबार के मुताबिक ऐसी रिपोर्टो से पश्चिम में चीन की एक विकृत छवि बनती है. लेकिन अखबार के टिप्पणीकार ने ये सलाह भी दी कि "विदेशी पत्रकारों को घेर लेने और उन्हें काम के समय तंग करने से” बाज आना चाहिए. उनके मुताबिक इससे पश्चिमी मीडिया को चीन की आलोचना करने लिए और मसाला ही मिलेगा.
माथियास ब्योलिन्जर का कहना है कि उन्हें इस मामले का इतना तूल पकड़ लेने की उम्मीद नहीं थी. चीन में विदेशी संवाददाता के रूप में, वह कहते हैं, लगातार निगरानी, निरीक्षण, परेशानी और टकराव के साए में रहने की उन्हें आदत पड़ चुकी है. हालांकि उनके मुातबिक इस बार मामला अलग था. उन्हें ट्विटर पर बहुत से हेट मेसेज मिले जिनका उन्होंने जवाब नहीं दिया. वह कहते हैं कि चीन की आलोचना की कथित एकतरफा रिपोर्टिंग के अपने ऊपर लगे आरोप उन्हे कुबूल नहीं हैं.
ब्योलिन्जर कहते हैं, "मैंने अपनी रिपोर्टों में सच से इतर, कभी कोई दावा नहीं किया है.”
रिपोर्टः काओ हाई, फांग वान
देखिएः मीडिया पर हमलावरों में मोदी भी
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.