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समाजभारत

महंगा टमाटर: रसोई कैसे चला रही हैं भारतीय महिलाएं

आमिर अंसारी
९ अगस्त २०२३

टमाटर भारतीय रसोई का अहम हिस्सा है और भारतीय खानों में इसका खूब इस्तेमाल होता है लेकिन इसके बढ़ते दाम ने ना केवल खाने का जायका खराब किया है बल्कि बजट भी बिगाड़ा है.

टमाटर
महंगे टमाटर से परेशान भारतीय उपभोक्तातस्वीर: Aamir Ansari/DW

नोएडा की एक हाउसिंग सोसायटी में घरेलू सहायिका का काम करने वाली काजल कुमारी जब सब्जी खरीदने जाती हैं तो टमाटर की तरफ देखती भी नहीं है. कारण है इसकी ऊंची कीमत. काजल कहती हैं, "हम जैसे गरीब लोग 200 रुपये किलो बिकने वाला टमाटर नहीं खरीद सकते हैं और अगर टमाटर खरीद लेंगे तो कोई और सब्जी नहीं खरीद पाएंगे."

काजल के पति नोएडा की एक कपड़ा फैक्ट्री में सुपरवाइजर है और उनका एक बेटा है. काजल तीन घरों में काम करती है और महीने में करीब नौ हजार रुपये कमाती हैं. वह कहती हैं, "मैं और मेरे पति दोनों मिलकर काम नहीं करेंगे तो घर चलाना मुश्किल होगा. घर का किराया, स्कूल की फीस, दवा और राशन भी इसी पैसे से आते हैं. ऊपर से बढ़ती महंगाई हमें बहुत परेशान करती है. एक समय था जब टमाटर और प्याज की चटनी बनाकर खुशी खुशी दाल चावल के साथ खा लिया करते थे. अब वह भी मुश्किल है."

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टमाटर नहीं तो कुछ और सही

पिछले छह से आठ हफ्तों से भारत के कई शहरों में टमाटर की कीमतें लगातर बढ़ रही हैं और अधिकांश शहरों में लोग 250 से 300 रुपये प्रति किलो टमाटर खरीद रहे हैं. हालांकि कीमतों में अब थोड़ी नरमी आई है. लोग अब किलो की जगह ढाई सौ ग्राम खरीद कर किसी तरह से काम चला रहे हैं.

कुछ महिलाओं ने खाने में टमाटर का इस्तेमाल बंद कर दिया है और अन्य विकल्पों का सहारा लिया है, जैसे कि टमैटो प्यूरी और दही. दिल्ली की रहने वाली गृहिणी नीना चावला कहती हैं कि उन्हें महंगे टमाटर से कोई परेशानी नहीं है क्योंकि उन्होंने उसे खरीदना ही बंद कर दिया है. नीना कहती हैं, "मैं करी बनाने के लिए अब टमाटर का इस्तेमाल नहीं करती इसके बजाय मैं दही डालती हूं. खाने का स्वाद लगभग वही रहता है."

खुदरा बाजार में टमाटर के दाम तेजी से बढ़ेतस्वीर: Aamir Ansari/DW

क्यों बढ़े टमाटर के दाम

टमाटर के दाम आमतौर पर जुलाई से लेकर अगस्त और अक्टूबर-नवंबर के दौरान बढ़ जाते हैं क्योंकि ये कम उत्पादन वाले महीने होते हैं. रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह कहते हैं जब टमाटर की फसल फरवरी-मार्च में आई तो किसान को दाम बहुत कम मिला, कई जगह किसानों को चार से छह रुपये प्रति किलो दाम मिल रहा था, उस समय बहुत जगहों पर किसानों ने खेत से टमाटर को उठाना छोड़ दिया.

हरवीर सिंह डीडब्ल्यू से कहते हैं, "टमाटर को खेत से उठाने का काम हाथों से होता है और यह एक खर्चीला काम है, उसके बाद इसे मंडी में ले जाया जाता है, उसका किराया अलग होता है. किसानों को वहां दाम नहीं मिल रहा था. कई जगह मंडियों में एक कैरट की कीमत 200 रुपये तक जा रही थी. उस समय किसानों ने टमाटर को खेत में ही छोड़ दिया, जिस वजह से टमाटर की सप्लाई कम हो गई."

हरवीर सिंह बताते हैं कि दक्षिण के राज्य कर्नाटक के कोल्लार में भी टमाटर की पैदावर अच्छी होती है लेकिन वहां इस बार बारिश नहीं हुई और जब जुलाई में बहुत ज्यादा बारिश हुई तो वहां ठीक से धूप नहीं आई. इस वजह से फसल को नुकसान हुआ. वहीं पहाड़ी इलाकों में जो जुलाई में बारिश हुई उससे फसल को नुकसान पहुंचा और सप्लाई भी प्रभावित हुई.

टमाटर के दाम बढ़ने के लिए हरवीर सिंह जमाखोरी को भी जिम्मेदार बताते हैं. उनका कहना है, "आढ़तियों ने जमकर जमाखोरी की और दाम बढ़ा दिए."

मंडी में दाम नहीं मिलने से किसानों ने टमाटर को खेत से उठाना बंद कर दिया, जिससे सप्लाई कम हुई और दाम बढ़ गएतस्वीर: Aamir Ansari/DW

फूड प्रोसेसिंग से समस्या का हल

एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में कुल टमाटर पैदावार का 11 फीसदी भारत में पैदा होता है. पैदावार के मामले में भारत दुनिया में चीन के बाद नंबर दो पर है. जबकि टमाटर की खपत में भारत सबसे आगे है. दूसरी तरफ टमाटर प्रोसेस करने की जब बात आती है तो भारत बहुत पीछे है. अगर किसान कंपनियों के साथ करार कर लेता है तो उसकी फसल के दाम भी सही मिलेंगे और नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.

भारत में भी ऐसी कई कंपनियां हैं जो टमाटर से केचप, चटनी और टैमटो प्यूरी जैसे उत्पाद बनाकर बेचती हैं. प्रोसेसिंग यूनिट में सही और साफ तरीके से ये उत्पाद बनाये जाते हैं और बोतलों में भरकर बाजार में बेचे जाते हैं. ये उत्पाद लंबे समय तक चलाए जा सकते हैं. इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा होती है और आम उपभोक्ता इसे खरीदने से बचता है.

हरवीर सिंह कहते हैं कि अगर प्रोसेसिंग का स्तर 15 से 25 फीसदी तक हो जाता है तो यह लंबी अवधि के लिए समाधान हो सकता है. वे बताते हैं, "इससे यह होगा कि किसान को एक निश्चित बाजार मिलेगा, अगर कुल उत्पादन का 20 फीसदी भी प्रोसेसिंग यूनिट में चला जाता है तो किसान निश्चिंत हो जाएगा कि उसकी फसल की सही कीमत मिल रही है और बाजार में भी कीमत में स्थिरता बनी रहेगी."

भारत में कई निजी कंपनियां टमाटर की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी करवाती हैं और किसानों से निर्धारित मानकों के आधार पर उपज खरीदती है.

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