आधुनिक भारतीय चित्रकला के शीर्ष स्तंभों में से एक और जानेमाने पेंटर सैयद हैदर रजा का 94 साल की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया.
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रजा आधुनिक भारतीय कला त्रयी के अनिवार्य बिंदु थे. उस त्रयी के अन्य दो बिंदुओं में मकबूल फिदा हुसेन और फ्रांसिस न्यूटन सूजा को रखा जाता है. अपनी कला में रजा बिंदु के ही रचनाकार थे. जैसे वो अपनी एक जगह हमेशा के लिए भरी हुई छोड़ गए हों. उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता.
जीवन के करीब साठ दशक फ्रांस की राजधानी पेरिस में बिताने वाले रजा का भारतीय मिट्टी से मोह इतना गहरा था कि वो 90 पार की उम्र के बाद देश लौटे. दिल्ली को अपना ठिकाना बनाया. और मृत्यु तक वहीं रहे लेकिन अपनी आखिरी इच्छा बताना नहीं भूले कि दफनाना वहीं जहां उनके पिता दफनाए गए थे- मध्यप्रदेश के बाबरिया गांव में, जहां उनका जन्म हुआ था. नर्मदा नदी उनके बचपन की नदी थी. और उनके रचनाकर्म में उस नदी के प्रवाह का बड़ा अहम रोल था. ये भी एक संयोग है कि कमोबेश पूरी उम्र बाहर रहने वाले रजा आखिरी समय में अपनी मिट्टी के पास थे वहीं पूरी उम्र अपनी मिट्टी में रचबसकर पेटिंग करने वाले मकबूल फिदा हुसेन को उम्र के आखिरी पड़ाव में देश छोड़ना पड़ा और वो अंत तक अपनी मिट्टी के लिए कलपते रहे.
देखिए, ये इंसान हैं
बॉडी पेंटिंग के जबरदस्त नमूने
कला भी बदलती है और बेहद नए और हैरान करने वाले रूपों में सामने आती है. इन दिनों बॉडी पेंटिंग कला जगत को हैरान कर रही है. कुछ कलाकार तो भ्रम की इस कला में माहिर हो चुके हैं. एक नजर उनके काम पर.
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ऑक्टोपस या इंसान
पहली नजर में यह आठ भुजाओं वाला समुद्री जीव ऑक्टोपस लगता है. लेकिन जरा गौर से देखिये, ये इंसान हैं. ये बॉडी पेंटिंग एमा फे ने बनाई है. एमा की गिनती दिग्गज बॉडी पेंटिंग आर्टिस्टों में होती है.
तस्वीर: DW/M. Foster
सौर ऊर्जा का संदेश
जर्मन पेंटर योर्ग डुस्टरवाल्ड और उनके साथी फोटोग्राफर चिपोनिक स्कूपिन भी अपने काम के जरिये भ्रम पैदा करने में माहिर हैं. 2008 में जर्मन बॉडी पेंटिंग का खिताब जीतने वाले डुस्टरवाल्ड अपने काम को कैलेंडरों के जरिये भी पेश करते हैं.
तस्वीर: picture alliance/Geisler-Fotopress/Tschiponnique Skupin
कामुकता के पार
अपने कैलेंडर के लिए डुस्टरवाल्ड ने भ्रम भी रचा. लोहे के छोटे से कारखाने में उन्होंने एक निर्वस्त्र मॉडल को ऐसा पेंट किया किया कि वो भी लकड़ी का औजार सा लगने लगी. नग्न शरीर पर होने वाली बॉडी पेंटिंग की एक खूबसूरती यह भी है वो नग्नता या कामुकता को कहीं पीछे छोड़ देती है.
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बढ़िया सा हुनर या बॉडी पेंटिंग
ये काम भी योर्ग डुस्टरवाल्ड का है. एक मॉडल को उन्होंने हूबहू लकड़ी जैसा बना दिया. बढ़ई के वर्कशॉप में तैयार की गई इस बॉडी पेंटिंग को देखकर ऐसा लगता है जैसे बढ़ई ने काठ की जबरदस्त मूर्ति बनाई हो.
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कितनी खूबसूरत धरती
धरती की खूबसूरती भी शरीर पर समेटी जा सकती है. इतालवी कलाकार फिलिपो लोको ने थाइलैंड में यह बॉडी पेंटिंग पेश की. इस पेंटिंग में उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद जीवन की सुंदरता को दिखाया.
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क्या कर रहा है इंसान
जीवन की खूबसूरती दिखाने के बाद फिलिपो ने इंसानी हरकतों की ओर भी ध्यान दिलाया. इस बार उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद जीवन के ऊपर प्लास्टिक की बोतलें रख दी. फिलिपो दिखाना चाहते थे कि कैसे प्लास्टिक सुंदरता को दबा रहा है.
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भीतर का झंझावात
ऑस्ट्रिया में जून-जुलाई में होने वाले वर्ल्ड बॉडी पेंटिंग फेस्टिवल में इस साल एक कलाकार ने इंसान के भीतर जारी कसमकस को इस अंदाज में पेश किया. एक तरफ प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने वाले शांत इंसान है तो दूसरी तरफ अपनी दुनिया में उलझा बेचैन इंसान.
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जबरदस्त भ्रम
अंगूर के बागान के बीच बॉडी पेंटिंग का एक जबरदस्त नमूना. गौर से देखने के बावजूद पता नहीं चलता कि यह मूर्ति है या असली इंसान या फिर सिर्फ एक तस्वीर.
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ऐसे होती है बॉडी पेंटिंग
अमेरिकी शहर अटलांटा में हुई चैंपियनशिप में भाग लेने इटली के पेंटर जोहानेस स्टोएटर भी पहुंचे. उन्होंने मॉडल जोन लियोनार्दो के शरीर के ऊपरी हिस्से को पेंट करना शुरू किया है. आखिरकार बॉडी पेंटिंग कैसी बनी, देखने के लिए अगली तस्वीर पर जाएं.
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शहर में खोया इंसान
पेंटिंग पूरी करने के बाद जोहानेस स्टोएटर ने मॉडल लियोनार्दो को एक खास जगह पर खड़ा किया. इस तरह उन्होंने शहरी जिंदगी में फंसे इंसान और उसके सपनों को खूबसूरती से सामने रख दिया.
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पद्मविभूषण से नवाजे गए, रजा ने अपनी कला में बिंदु के रूप में एक दार्शनिक आख्यान की रचना की. ये एक शून्य भी था और एक बीज भी. समस्त संरचनाओं का एक विलोप भी वहां होता था और वहीं से सरंचनाए जन्म भी लेती थीं. वह शून्य भी था और अपनी शून्यता के भीतर उसमें ब्रह्मांड की विराटता का बीज भी छिपा था. रजा के बनाए बिंदु में हम रंगों की अद्भुत छटा देखते थे. अमूर्तन का जो संसार- बिंदुओं और उसके इर्दगिर्द त्रिकोणों, चौकोरों, आयातों और विकर्णों से वो सजाते थे उसकी कुछ ट्रेनिंग उन्हें यूरोप के महान कलाकारों को देखकर भी मिली थी. सिजाने, गॉगिन, पॉल क्ली के अलावा अमूर्तन के मास्टर के रूप में विख्यात जर्मन कलाकार कांडिस्की से भी रजा की कला प्रेरित और प्रभावित थी. लेकिन अस्सी का दशक आते आते रजा ने अपने लिए नई प्रेरणाएं विकसित कीं. वो भारत दौरे पर आए. देश भर में घूमे. लोकबिंबों का अध्ययन किया और फिर हुआ कला में शून्य का आविष्कार. रजा ने अपने ज्यामितीय अमूर्तन में एक विशिष्ट आंतरिकता उकेर दी. उनमें रंगों की छटाएं थीं और भारतीय दर्शन के कुछ सूत्र रेखाओं और बिंदुओं में निहित कर दिए गए थे. उनकी कुछ पेंटिग्स प्रकृति और पुरुष के तादात्म्य की अनोखी कृतियां हैं.
देखिए, पेंटिंग्स जो ईरान देख नहीं पाया
पेंटिंग्स जो ईरान देख नहीं पाया
तेहरान की कलाकार होमा अरकानी की कला ईरानी औरतों की जिंदगी दिखाती है. अरकानी ने औरतों का अक्स कुछ ऐसे पेश किया कि लोगों को दिक्कत होने लगी. आप भी देखिए...
तस्वीर: Homa Arkani
प्लास्टिक सर्जरी की दीवानगी
ईरान में महिलाओं में प्लास्टिक सर्जरी को लेकर क्रेज बढ़ा है. हर साल 60 हजार से ज्यादा महिलाएं नाक की सर्जरी कराती हैं.
तस्वीर: Homa Arkani
परंपरा और आधुनिकता में कैद
आधे चेहरे पर जोकर दिखाता है कि महिलाएं बीच में फंसी हुई हैं. वे न परंपराओं में कैद रह पा रही हैं न आधुनिकता की उड़ान भर पा रही हैं.
तस्वीर: Homa Arkani
लापता
ईरान की एक युवती की उम्मीदें और डर. दोनों के बीच उनका वजूद लापता होता जा रहा है.
तस्वीर: Homa Arkani
जकड़न
शहरों में लड़कियां फैशन करना चाहती हैं पर नियम नहीं करने देते. नियम और इच्छा के बीच की जकड़न है.
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पश्चिम की पूजा
ईरान की महिलाएं जो सैटेलाइट टेलीविजन पर देखती हैं, उस पश्चिम की चाह उन्हें खींचती है. वैसा ही हो जाने की इच्छा जगती है.
तस्वीर: Homa Arkani
सुपरमॉडल
पश्चिमी सुपरमॉडल जैसा हो जाने की चाह ईरानी लड़कियों के भीतर करवटें लेती रहती है. मोबाइल फोन और इंटरनेट उनकी चाह को पंख देते हैं.
तस्वीर: Homa Arkani
खुश लेकिन उदास
अरकानी फोटोग्राफर भी हैं. उन्होंने फैशन फोटोग्राफी की है. बताती हैं कि फोटो खिंचाते हुए लड़कियां मुस्कुराती हैं पर अंदर से उदास होती हैं.
तस्वीर: Homa Arkani
बंद करनी पड़ी प्रदर्शनी
अरकानी की प्रदर्शनी बंद करनी पड़ी क्योंकि उन्हें धमकियां मिलने लगी थीं. अब वह अपनी निजी प्रदर्शनी ही करती हैं.
तस्वीर: Homa Arkani
पहचान का संकट
अपनी पेंटिंग्स में अरकानी नई पीढ़ी के संकट को दिखाती हैं. नई पीढ़ी पहचान के संकट से गुजर रही है. खुद की पहचान को लेकर निश्चित नहीं हो पा रही है.
तस्वीर: Homa Arkani
अंतर्विरोध
अरकानी इस्लामिक रिपब्लिक के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में मौजूद अंतर्विरोधों को दिखाती हैं. और उनका मुख्य विषय है युवाओं का मन.
तस्वीर: Homa Arkani
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रजा ही थे जिन्होंने देश के आजाद होते साथ ही 1947 में प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप की स्थापना की थी. उनके साथ सह संस्थापकों में सूजा, हुसेन, केएच आरा और सदानंद बाकरे जैसे उस्ताद कलाकार शामिल थे. ये आधुनिक भारतीय कला के नींव के पत्थर थे. इन्हीं लोगों ने भारतीय कला के आख्यानात्मक और आकृतिमूलक चित्र शैलियों की जगह एक विशुद्ध भारतीय जनमानस केंद्रित लोक-अमूर्तन का संसार रचा था.
1950 में रजा का पेरिस जाना हुआ. वहां एक हलचल भरी सांस्कृतिक बौद्धिक और कला बिरादरी से वो रूबरू हुए. वहीं उनकी मुलाकात साथी कलाकार जनी मोजिला से हुई जो उनकी पहले प्रेयसी और फिर पत्नी हुईं. रजा ने यूरोप के दिग्गजों का अमूर्तन अपनी भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में ढाला, रंगों की विविधता वाला एक अलग और असाधारण ज्यामितीय अमूर्तन उनकी पहचान बन गया. जल्द ही रजा की कृतियां महंगे दामों में बिकने लगीं और वो देखते ही देखते कलाकारों की उस अंतरराष्ट्रीय जमात में शामिल हो गए जिनके काम की अलग से बोलियां लगाई जाती हैं. रजा देश विदेश की कला दीर्घाओं में उच्चतम स्तर के कलाकार के तौर पर स्थापित हुए. फ्रांस का सबसे आला नागरिक सम्मान भी रजा को मिला है.
देखिए, दीवारों की मजबूती को उकेरता चित्रकार
जोआन मिरो : दीवारों की मजबूती उकेरता चित्रकार
स्पेन के मशहूर कलाकार जोआन मिरो पेंटिंग की समझ को पूरी तरह बदल देना चाहते थे. उन्होंने पारंपरिक फ्रेम के बंधनों से बाहर निकल समूची दीवारों को रंगना शुरू किया. देखिए उनके रचनाकर्म को समझाती प्रदर्शनी की एक झलक.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
दीवार पर लेखनी
बच्चों की तरह मिरो ने सीधे दीवारों को रंगा. 1967 की इस तस्वीर में मिरो पाल्मा डे मायोर्का में अपने स्टूडियो ''यॉन बाटेर'' में दिखाई दे रहे हैं. इन दीवारों को रंगने के लिए उन्होंने कार्बन पेंसिल का इस्तेमाल किया है. 1973 में मिरो ने पेरिस में वर्ल्ड एक्सपो के लिए पिकासो के साथ मिलकर एक बेहद विशाल दीवार की पेंटिंग की.
तस्वीर: Fotoarchiv F. Català-Roca – Arxiu Fotogràfic del Col·legi d’Arquitectes de Catalunya
दीवार का कैनवास
जोआन मिरो (1893-1983) लगातार खुद को अभिव्यक्त करने के नए नए तरीके ढूंढते रहे और इसी क्रम में उन्होंने दीवारों को रंगना शुरू किया. उन्होंने चित्रकारों को असामान्य किस्म की निर्माण सामग्री का कैनवास की तरह इस्तेमाल करने की प्रेरणा दी. मसलन वे दीवारों के टैक्सचर का कैनवास, टार पेपर या सेंडपेपर आदि में इस्तेमाल करके पेंटिंग किया करते थे.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
भ्रमों का खेल
''दि फार्म'' नाम की ये पेटिंग मिरो की शुरूआती पेंटिंग्स में से एक है. अपने पुश्तैनी घर की 1921-22 में बनाई इस पेंटिंग में उन्होंने स्थिर दीवारों को तफसील से दिखाने के लिए उसके सारे दागों, दरारों और टेक्सचर का इस्तेमाल किया है. उन्होंने चित्र को ऐसे बनाने की कोशिश की है कि वो जितना संभव हो वास्तविक लग सके.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
चित्र की मौत
1930 में मिरो की ये घोषणा काफी मशहूर हुई कि वे 'चित्र को मार देना' चाहते हैं. इसमें वे उन कला परंपराओं का जिक्र कर रहे थे जिन्हें वे तुच्छ मानते थे. उन्होंने चित्रों की एक ऐसी भाषा विकसित की जो पूंजीपति वर्ग की अपेक्षाओं का विरोध करती थी. इस पेंटिंग 'ब्लू I/II" में कलाकार ने नीले रंग को आसमान के बतौर दिखाया है.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
रंगों का असामान्य चुनाव
जोआन मिरो के काम में आम तौर पर चमकदार रंगों का इस्तेमाल होता है. लेकिन अपने सामान्य रंग बिरंगे चित्रों के इतर 1973-74 में उन्होंने यह ब्लैक एंड व्हाइट पेंटिंग बनाई. इस पेंटिंग में एक विशाल बंजर दीवार को दिखाया गया है.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
फ्रेम से बाहर
चित्र के फलक को और फैलाने के मकसद से मिरो ने अपने चित्रों को ऐसे दर्शाया कि वे पूरी दीवार की तरह दिखाई देती हैं. दीवारों के प्रति उनका आकर्षण बाद में उन्हें स्मारकीय त्रिफलक बनाने और चीनी मिट्टी की उनकी कलाकारी की ओर ले गया. यह पेंटिंग 'बर्डस्' उनकी एक और बड़े फलक वाली पेंटिंग है.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
मिरो के ग्रैफिटी जैसे चित्र
1920 के आस पास मिरो ने कैनवास पर रंग छिड़ककर पेंटिंग बनानी शुरू की. यह चित्र ''दि स्पैनिश फ्लैग'' उन्होंने 1925 में रचा. चिड़िया मिरो की सबसे प्रिय प्रतीक रही है. भूरे रंग की पृष्ठभूमि का इस्तेमाल दीवार के बतौर किया गया है.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
जादुई जगहें
यह चित्र 'दि मैजिक ऑफ कलर' मिरो के सबसे महत्वपूर्ण रचनाकर्म में से एक है. 1930 में बने इस चित्र में उन्होंने लाल और पीले रंग के दो बड़े आकार सफेद पृष्ठभूमि में रंगे. ये उड़ते हुए से महसूस होते हैं. इस चित्र में सफेद पृष्ठभूमि बार्सिलोना के नजदीक एक फार्महाउस की साधारण सी दीवार को दर्शाती है जहां मिरो बड़े हुए.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
कला सबके लिए
अपने पूरे जीवन में जोआन मिरो की सारी कोशिश इसे लेकर थी कि उनकी कला सबके लिए उपलब्ध हो. 1957 में उन्होंने पेरिस में यूनेस्को के मुख्यालय के लिए 'मून वॉल' और 'सन वॉल' नाम के दो चित्र बनाए. इन चित्रों में मिरो ने फिर से दीवार के टैक्सचर को अपने चित्र में शामिल किया है.
तस्वीर: Successió Miró/VG Bild-Kunst, Bonn 2016
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लेकिन अपने जीवन में रजा एक साधारण मनुष्य थे. वो एक साधारण जीवन के पक्ष में थे और सादे ढंग से रहते थे. उनकी सादगी और मनुष्यता की एक मिसाल उनके नाम पर बना रजा फाउंडेशन है जिसके जरिए जरूरतमंद और बीमार रचनाकर्मियों से लेकर प्रतिभासंपन्न और वरिष्ठ रचनाकर्मियों को सम्मानित किया जाता है. और इसका फलक बहुत बड़ा है. कला साहित्य संगीत और संस्कृति के हल्कों तक फैला हुआ.
रजा दरअसल उस भारतीय अध्यात्म और दर्शन के सच्चे जानकार और उसे उद्घाटित करने वाले पेंटर थे जिसके नाम पर इन दिनों हम कैसा भीषण, अश्लील और हिंसक शोरशराबा और धक्कामुक्की देख रहे हैं. सैयद हैदर रजा के बनाए शून्य से मानो ये विध्वंसकारी समय अंजान बना हुआ है.