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वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत की खराब रैंकिंग क्यों आती है

पेटर हीले
२१ अक्टूबर २०२२

आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहे भारत ने गरीबी और भूख मिटाने में काफी प्रगति की है. हाल ही में वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत के खराब प्रदर्शन पर बहुत शोर मचा. यह इंडेक्स बनता कैसे है और भारत की रैंकिंग क्यों खराब है.

Indien | Mittagessen für Schulkinder
तस्वीर: Noah Seelam/AFP/Getty Images

एक प्लेट में चावल, दाल और थोड़ी सी सब्जी. सरकार के मुताबिक भारत के करीब 12 करोड़ स्कूली बच्चों को रोज दोपहर में यह ताजा खाना मिलता है. 2001 से ही हर सरकारी स्कूल में सभी बच्चों को "दोपहर को भोजन" अनिवार्य रूप से दिया जाता है.

इसी महीने भारत के महिला और बाल विकास मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, "सरकार दुनिया में सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को चला रही है." इसमें सरकार की तरफ से गरीब परिवारों को हर महीने दिये जा रहे मुफ्त अनाज का भी जिक्र किया गया है.

 साल दर साल ज्यादा कैलोरी

मंत्रालय ने बताया है कि कृषि उत्पादन में सुधारों की वजह से भी भारत में प्रति व्यक्ति कैलोरी की सप्लाई साल दर साल बढ़ रही है. सरकार का कहना है, "देश में कुपोषण क्यों बढ़ा है इसका निश्चित रूप से इसका कोई कारण मौजूद नहीं है."

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भारत सरकार ने यह बयान 2022 के वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के जवाब में जारी किया है. वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत को पोषण की स्थिति को "गंभीर" माना गया है और 29.1 अंक के साथ वह 121 देशों की सूची में 107 नंबर के निचले स्थान पर है. दुनिया में आर्थिक तौर पर उभरता भारत अपने पड़ोसियों भारत और पाकिस्तान से भी नीचे है और इस वजह से देश में हैरानी हो रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी खासतौर से इसे देश के सम्मान पर पश्चिमी देशों के हमले के रूप में देखती है. महिला और बाल विकास मंत्रालय का कहना है, "एक बार फिर भारत की गरिमा को ठेस पहुंचाने की कोशिश की गई है." मंत्रालय के मुताबिक इंडेक्स तैयार करने में भूख को मापने के गलत पैमाने इस्तेमाल किये गये हैं और इसके तौर तरीके में गंभीर समस्याएं हैं.

तस्वीर: Faisal Khan/AA/picture alliance

भूख- एक जटिल समस्या

वेल्टहुंगरहिल्फे की लॉरा राइनर का कहना है "निश्चित रूप से भूख को मापने के अलग अलग तरीके हैं." जर्मनी की वेल्टहुंगरहिल्फे, आयरलैंड के गैर सरकारी संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड के साथ मिल कर हर साल वर्ल्ड हंगर इंडेक्स जारी करती है. वेल्टहुंगरहिल्फे एक सहायता एजेंसी है जिसे सरकार और निजी कोष से खर्चे के लिए धन मिलता है. डीडब्ल्यू से बातचीत में राइनर ने कहा, "हमारे लिए यह जरूरी है कि हम भूख की समस्या को इसकी जटिलता के साथ मापें."

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राइनर ने बताया कि भूख को मापने के लिए चार सूचकों को मिलाया जाता है. एक है फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेश (एफएओ) की कुपोषण के लिए दी गई वैल्यू. यह वैल्यू बताती है कि क्या आबादी के लिए पर्याप्त कैलोरी उपलब्ध है. राइनर ने कहा, "यह कैलोरी मुमकिन है कि कहीं गोदामों में भरी हुई हो और लोगों तक ना पहुंचे."

बचपन में कमी का दीर्घकालीन असर

इसके साथ ही प्रोटीन और जरूरी खनिजों की कमी से स्वास्थ्य की समस्याएं होती है. ज्यादा विस्तृत तस्वीर हासिल करने के लिए यह देखना होगा कि देश में कितने बच्चे लंबाई में पर्याप्त रूप से नहीं बढ़े या फिर लंबाई के हिसाब से उनका वजन उचित नहीं है जिसे दुर्बलता कहा जाता है. ये आंकड़े भारत सरकार के विभाग जुटाते हैं. वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में नवजात शिशु के मृत्यु दर को शामिल किया गया है.

राइनर ने बताया, "बीते दशकों में ऐसी कई स्टडी हुई हैं और विशेषज्ञों के बीच इन्हें मान्यता दी गई कि बाल कुपोषण और मृत्युदर इस बात के बहुत संवेदी सूचक हैं कि पूरी आबादी पोषण के मामले में किस हाल में है. इसके साथ ही जब कुपोषण की बारी आती है तो बच्चों पर नजर रखना बहुत मायने रखता है क्योंकि बचपन में जो कुपोषण शुरू हो जाता है उसे युवावस्था में पाटना मुश्किल है." व्यक्ति और समाज दोनों के लिए इसके दीर्घकालीन और गंभीर नतीजे होते हैं.

हर पांच में एक बच्चे का वजन कम

भारत के महिला और बाल विकास मंत्रालय का कहना है कि किसी बच्चे के स्वास्थ्य के आधार पर भूख को मापना ना तो वैज्ञानिक है और ना ही उचित. बाल मृत्यु, दुर्बलता और विकास में कमी सिर्फ भूख की वजह से नहीं बल्कि, "पीने के पानी, सफाई, जेनेटिक्स और पर्यावरण जैसे कारकों के जटिल मेल का नतीजा है."

वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत के हर पांचवां बच्चा दुर्बलता से पीड़ित है. इसका मतलब है कि उनका वजन उनकी लंबाई के लिहाज से कम है. जितने देशों का सर्वेक्षण किया गया है उसमें यह दर सबसे खराब है. राइनर का कहना है, "इसके लिए आप इस बात को भी जिम्मेदार मान सकते हैं कि भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है. महिलाएं जितनी बेहतर स्थिति में होती हैं बच्चों के शुरुआती पांच सालों में पोषण की स्थिति उतनी ही अच्छी होती है."

लॉरा राइनरतस्वीर: Welthungerhilfe

भूख होनी ही नहीं होना चाहिए

राइनर का कहना है कि वयस्क लोगों में कुपोषण की दर भारत में खासतौर से उतनी ऊंची नहीं है. भारत ने भूख से लड़ने में साल 2000 के बाद काफी प्रगति की है. राइनर ने कहा, "भारत के सामने बड़ी संख्या में कुपोषण के लिहाज से भूखे और कुपोषित बच्चों की समस्या है."

खुद भारत में भी वर्ल्ड हंगर इंडेक्स को लेकर जो चर्चा हो रही है वो पार्टियों में बंटी है. विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने ट्वीटर पर लिखा है कि सत्ताधारी पार्टी लोगों को धोखा देकर भारत को कमजोर कर रही है.

भूरणनीतिक लिहाज से भारत एक उभरता हुआ देश है. डिजिटलाइजेशन जैसे क्षेत्रों में भारत अगुआ है. भोजन उत्पादन के मामले में भी यह एक प्रमुख देश है और कई देशों को भोजन की सप्लाई देता है. हालांकि राइनर का कहना है, "कोई देश चाहे जितनी बड़ी महत्वाकांक्षा रखे लेकिन उसे कुछ भी पीछे नहीं छोड़ना चाहिए. खासतौर से उन्हें जो सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं और वे हैं भूखे बच्चे."

राइनर के मुताबिक एक देश तभी विकास में अच्छा कर सकता है जब वो किसी को भी पीछे ना रहने दे. भारत के लिए इसका मतलब है यह सुनिश्चित करना कि छोटे से छोटे बच्चे को भी पर्याप्त मात्रा में जरूरी पोषक तत्व मिले. सही राजनीतिक प्राथमिकताओं के साथ भूख ऐसी समस्या है जिसका समाधान हो सकता है, भारत में और दुनिया में भी.

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