उम्मीदों और चिंताओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध देश को समर्पित किया. जहां बांध से फायदे की उम्मीद है वहीं डूब क्षेत्र के विस्थापितों को लेकर चिंताएं भी हैं.
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सरदार सरोवर नर्मदा बांध से बिजली उत्पादन और सिंचाई का रकबा बढ़ाये जाने में मदद मिलेगी. यह बांध नर्मदा पर बनने वाले 30 बांधों में से एक है. नर्मदा के पानी से गुजरात की प्यास बुझाने की परियोजना आजादी के बाद से ही एक महत्वाकांक्षी योजना रही है किन्तु तमाम आशंकाओं, विरोध, और अदालती हस्तक्षेप के चलते इसका काम बार बार अटकता रहा. 56 साल पहले नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध की नींव देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 को रखी थी. 1987 में इसके निर्माण का काम शुरू हुआ और लगभग 30 साल में पूरा हुआ. निर्माण के समानांतर इसके खिलाफ निरंतर संघर्ष भी चलता रहा है.
लम्बा सफर
बांधों को आधुनिक भारत के नये मंदिर के रूप में प्रचारित किया गया. क्षेत्र के बहुमुखी विकास में बांधों का महत्व है भी. मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पड़ने वाली नर्मदा घाटी में 30 बड़े, 135 मझोले बांध बनाये गये हैं. सरदार सरोवर को राष्ट्र को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "यह बांध आधुनिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय होगा, साथ ही यह देश की ताकत का प्रतीक भी बनेगा." नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में से सरदार सरोवर सबसे बड़ी बांध परियोजना है.
इस परियोजना का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है. सरदार सरोवर पूरा भर जाने पर गुजरात की पीने के पानी और सिंचाई की जरूरतें छह साल तक पूरी हो सकेंगी. सरदार सरोवर बांध से छह हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी जो कि गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को दी जाएगी.
समाधि ले चुकी बस्तियां
प्राकृतिक आपदाएं और बांध कई कस्बों को निगल जाते हैं. लेकिन कुछ जिद्दी ढांचे ऐसे भी होते हैं जो देर सबेर बाहर आ ही जाते हैं.
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टिहरी, भारत
1815 में गंगा नदी के किनारे बसाया गया शहर टिहरी, 200 साल बाद जलमग्न हो गया. भारत के सबसे ऊंचे बांध ने भागीरथी नदी को 260 मीटर ऊंची दीवार से रोक दिया. पीछे एक विशाल झील बनी और टिहरी उसमें समा गया.
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आजेल ब्रिज, जर्मनी
जर्मनी के हेसे प्रांत में जब बांध बनाया जा रहा था तो तीन गांव खाली कराये गये. पूरा इलाका पानी में डूब गया. तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि एक दिन डूबा पुल फिर से बाहर आ जायेगा. लेकिन सूखे के चलते अब यह पुल बीच बीच में बाहर निकल आता है.
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चर्च टावर, इटली
इटली में बाढ़ ने 14वीं शताब्दी के एक गांव को डुबो दिया. 1950 की उस बाढ़ के चलते लोग ऊपरी इलाकों में बस गये. लेकिन आज भी सेंट काथेरीन्स पैरिस चर्च का टावर नीचे डूबे ग्राउन गांव की याद दिलाता है.
मध्य मेक्सिको में बना मालपासो बांध देश की बड़ी आबादी की प्यास बुझाता है. इससे बिजली भी मिलती है. लेकिन 1950 के दशक में बने इस बांध के चलते हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा. 2002 और 2015 में बहुत ज्यादा सूखा पड़ने पर चार सौ साल पुराने मंदिर के अवशेष फिर से नजर आये.
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गेअमाना गांव, रोमानिया
1000 से ज्यादा बाशिंदो वाला गेआमाना गांव तांबे के खनन के चलते उजड़ गया. खनन उद्योग के मलबे के पानी में घुलने से पूरे गांव में गाद भर गयी. अब गांव की सिर्फ एक इमारत का सिर ही नजर आता है.
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फायोन गांव, स्पेन
चर्च का टावर गवाही देता है कि पानी के नीचे बहुत कुछ दबा हुआ है. 1960 के दशक में बार्सिलोना शहर को बिजली और पानी मुहैया कराने के लिए तीन बांध बनाए गए. इन बांधों ने भी गांव डुबोये. आज गांव के ऊपर मछुआरे नाव लेकर पहुंचते हैं. वहां काफी मछलियां मिलती हैं.
तस्वीर: Imago/Chromorange
साक्सोनी अनहाल्ट, जर्मनी
कभी जर्मनी की औद्योगिक क्रांति का इंजन माने जाने वाले इस इलाके में अब सन्नाटा है. ज्यादातर खदानें बंद हो चुकी हैं. खनन के चलते जमीन काफी कमजोर भी हो चुकी है. 1928 से अब तक यहां के बांशिदें अपना घर 1500 मीटर पीछे खिसका चुके हैं. इलाके में अक्सर भूस्खलन की घटनाएं होती रहती है.
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काल्याजिन, रूस
मॉस्को से 150 किलोमीटर दूर वोल्गा नदीं पर 140 किलोमीटर लंबा और चार किलोमीटर चौड़ा पानी का भंडार बनाया गया है. 100 मीटर गहराई वाले बांध के चलते 1940 में काल्याजिन इलाका डूब गया. अब वहां सिर्फ 1801 में बनाये गये एक चर्च का घंटाघर दिखता है.
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अन्यायपूर्ण बंटवारा
अपनी पूरी 1312 किलोमीटर की यात्रा में नर्मदा नदी अधिकतर समय मध्य प्रदेश में ही बहती है. केवल लगभग 160 किमी गुजरात में बहती है. नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र का लगभग 85 फीसदी मध्य प्रदेश में है. बांध बनने का सबसे ज्यादा खामियाजा भी मध्य प्रदेश को झेलना पड़ेगा. नर्मदा घाटी स्थित धार, बड़वानी, सहित अन्य इलाकों के 190 से अधिक गावों और एक नगर का डूब में आना तय माना जा रहा है.
मध्य प्रदेश सरकार, 60 के दशक से ही, राज्य के लिए नर्मदा के जल के न्यायपूर्ण आबंटन की वकालत करती रही है, राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी के चलते वह अपनी मांगों को मनवा पाने में विफल रही. बांध से सबसे अधिक फायदा गुजरात को हो रहा है. इससे यहां के 15 जिलों के 3137 गांव की 18.45 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई की जा सकेगी. पैदा होने वाली बिजली में मध्य प्रदेश को थोड़ी राहत जरूर है. उसे सबसे अधिक 57 फीसदी बिजली मिलेगी. महाराष्ट्र को 27 फीसदी और गुजरात के हिस्से 16 फीसदी बिजली आयेगी. राजस्थान को सिर्फ पानी मिलेगा.
क्यों खतरे में पड़ते हैं विशालकाय बांध
विशाल बांध बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना हैं. लेकिन अमेरिका में सामने आए संकट ने अब दुनिया भर के इंजीनियरों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है.
तस्वीर: Reuters/California Department of Water Resources/William Croyle
सोचा भी नहीं था ऐसा संकट
विशाल बांध अच्छा खासा भूकंप सह सकते हैं लेकिन इंजीनियरों ने यह नहीं सोचा था कि कभी रिलीजिंग कैपिसिटी से भी बहुत ज्यादा पानी जमा हो सकता है.
तस्वीर: Reuters/California Department of Water Resources/William Croyle
280 मीटर की ऊंचाई ने दी ताकत
ओरोविल बांध के लबालब होने के बाद पानी बांध के ऊपर से बहने लगा. 280 मीटर की ऊंचाई से गिरते पानी ने नींव को काटना शुरू कर दिया. जहां हल्की कमजोरी दिखी वहीं उफनते पानी ने दरार डाली.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/California Department of Water Resources/A. Madrid
हालत खराब
जलस्तर को कम करने के लिए अधिकारियों ने बांध के सारे गेट खोल दिये. इस दौरान निकले तेज रफ्तार पानी ने गेट के नीचे की मिट्टी काटनी शुरू कर दी और संकट ज्यादा भयावह हो गया.
तस्वीर: Reuters/California Department of Water Resources/William Croyle
कैसे बिगड़े हालात
आमतौर पर ओरोविल बांध में कम ही पानी रहता था. बांध के ऊपर बनी सड़क तक पानी कभी नहीं पहुंचता था. लेकिन इस साल हुई भयंकर बारिश और बर्फबारी ने जलस्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया.
तस्वीर: Reuters/M. Whittaker
कंक्रीट भी साफ
पानी की ताकत को नींव का कंक्रीट भी नहीं सह पाया. कंक्रीट के कई बड़े हिस्से बह गये. अब हेलीकॉप्टरों के जरिये वहां पत्थर भरे जा रहे हैं. बोल्डर जल कटाव के खिलाफ हमेशा कारगर माने जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Office of Assemblyman Brian Dahle/Josh F.W. Cook
दुनिया भर के लिए चेतावनी
अब तक माना जाता था कि बांधों को ऊपर से बहने वाले पानी से खास खतरा नहीं होता. लेकिन मौसम के बदलते मिजाज से अगर बहुत ज्यादा पानी जमा हो जाए तो ऐसी स्थिति कहीं भी सामने आ सकती है.
तस्वीर: Reuters/M. Whittaker
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पर्यावरण की चिंता
इस परियोजना का दूसरा पहलू भी है, जिसके प्रति अक्सर सरकार आंख मूंद लेती है. बांध बनाने में भारी मात्रा में कंक्रीट लगा है जिसे पर्यावरण कार्यकर्ता ठीक नहीं मानते. पर्यावरण संतुलन बिगड़ने और विस्थापन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक ढाई लाख लोग पुनर्वास के अभाव में बाढ़ और तबाही का सामना करेंगे. इसमें अधिकतर आबादी आदिवासी समुदाय की है.
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े राहुल यादव कहते हैं कि सरकार के तमाम वादों और दावों के बाद भी विस्थापितों का अभी तक पुनर्वास नहीं हो पाया है, जिनका पुनर्वास हुआ भी है, तो वह संतोषजनक नहीं है. मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन का प्रमुख चेहरा रही हैं. उनका कहना है कि सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले ग्रामीणों का अभी तक पूरी तरह पुनर्वास नहीं हुआ है. मेधा पाटकर का कहना है कि पूर्ण पुनर्वास के बिना डूब लाना और बांध में पानी भरना अनुचित और अन्याय पूर्ण है.