राजस्थान के बाद अब गुजरात में भी बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं. गुजरात सरकार का कहना है कि आंकड़ा शिशु मृत्युदर के नीचे है और सरकार इसमें और कमी लाने के प्रयास कर रही है. एक साल में 8.80 लाख बच्चों की मौत हुई है
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राजस्थान के बाद गुजरात में भी बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं. केवल राजस्थान में ही दिसंबर महीने की शुरुआत से अब तक 109 बच्चों की मौत सरकारी अस्पताल में हो चुकी है. वहीं गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद के सिविल अस्पतालों में पिछले एक महीने में ही करीब 200 बच्चों की मौत हो चुकी है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में पांच साल से कम उम्र के 8.80 लाख बच्चों की मौत भारत में हुई है. इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि चार करोड़ बच्चे या तो कुपोषित हैं या मोटापे से पीड़ित हैं.
राजस्थान के कोटा के जेके लोन अस्पताल में 36 दिन में 109 की बच्चों की मौत हो चुकी है. सरकारी अस्पतालों में बच्चों की मौत के बाद ऐसी रिपोर्टें आईं हैं जिनमें अस्पताल में 50 फीसदी जीवन रक्षा यंत्र को खराब पड़ा बताया गया है. साथ ही यह खुलासा भी हुआ कि अस्पताल में कर्मचारियों की बहुत कमी है. राजस्थान और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में बच्चों की मौत से देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय हालत पर सवाल खडे़ हो रहे हैं.
राजस्थान में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की किरकिरी हो रही है. विपक्षी पार्टी सरकार पर लापरवाही के आरोप लगा रही है. पिछले दिनों बीजेपी सांसदों के एक दल ने कोटा के जेके लोन अस्पताल का दौरा किया था. टीम में शामिल सांसद लॉकेट चटर्जी ने डीडब्ल्यू से कहा, "राजस्थान सरकार असंवेदनशील है, अस्पताल के हालात बेहद खराब और चिंताजनक है, अस्पताल के अंदर जाना भी मुश्किल है. हमने देखा वहां हर तरफ गंदगी फैली हुई थी. हर तरफ सुअर घूम रहे थे. एक-एक बेड पर चार-चार बच्चे पड़े हुए थे."
मृत बच्चे के माता पिता से मुलाकात के बाद चटर्जी ने कहा, "बच्चे के माता-पिता ने हमें बताया कि अस्पताल में डॉक्टरों, नर्सों और दवा की बेहद कमी है." चटर्जी ने सवाल किया कि ऐसे हालात में बच्चे किस तरह से स्वस्थ होंगे और जीवित बचेंगे. दूसरी ओर अशोक गहलोत उस बयान को लेकर भी घिर गए हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके कार्यकाल में मौतों की संख्या वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल से कम है. दूसरी ओर जेके लोन अस्पताल का दौरा करने के बाद उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने माना कि कहीं कोई कमी रह गई तभी यह सब हुआ और अब जिम्मेदारी तय होनी चाहिए.
जेके लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर एससी दुलारा के मुताबिक अस्पताल में अब तक 109 बच्चों की मौत हो चुकी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तीन सदस्यीय टीम मौतों की जांच कर रही है और जल्द ही अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपेगी. जेके लोन अस्पताल में एक तिहाई मौत नवजात गहन चिकित्सा इकाई में हुई है. जानकारों का कहना है कि अस्पतालों में गंदगी और सुविधाओं की कमी भी मौत का कारण हो सकते हैं. इसी के साथ दिसंबर महीने में पूरा उत्तर भारत कड़ाके की ठंड की चपेट था और मीडिया में बच्चों की मौत की खबरें आने के बाद अस्पताल में भर्ती मरीज के रिश्तेदारों का कहना है कि अब अस्पताल प्रशासन मरीजों को कंबल और रूम हीटर मुहैया करा रहा है.
गुजरात में भी बच्चों की मौत
राजस्थान के बाद गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद में बच्चों की मौत की खबरें आ रही हैं. दिसंबर के महीने में राजकोट के सरकारी अस्पताल में जहां 111 नवजातों की मौत हुई वहीं अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल में 88 बच्चों की मौत हुई है. गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने नवजातों की मौतों को दुर्भाग्य बताया साथ ही कहा कि राज्य में शिशु मृत्यु दर के नीचे है. उनके मुताबिक गुजरात में नवजात बच्चों की मौत के कुल मामलों में कमी आई है. पटेल के मुताबिक नवजात शिशुओं के कम वजन, अस्वस्थ माता, अनुचित गर्भावस्था प्रथा, मां और शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी मौतों का कारण हो सकते हैं. साथ ही पटेल ने दावा किया कि गुजरात सरकार बाल मृत्युदर और नवजात शिशुओं की चिकित्सा सुविधा पर पहले से ही विशेष ध्यान दे रही है और यही कारण है कि राज्य में मृत्युदर में कमी आई है.
नवजात शिशुओं के लिए 12 टिप्स
जीवन का पहला साल बच्चे के विकास के लिए बेहद अहम होता है. बच्चे अपने आस पास की चीजों को समझना और पहले शब्द बोलना सीखते हैं. इस दौरान माता पिता कई सवालों से गुजरते हैं. यदि आप भी उनमें से हैं, तो इन टिप्स का फायदा उठाएं.
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मालिश करें
भारत में बच्चों की मालिश का चलन नया नहीं है. लेकिन माता पिता अक्सर इस परेशानी से गुजरते हैं कि बच्चे की मालिश कब और कैसे की जाए. शिशु को दूध पिलाने के बाद या उससे पहले मालिश ना करें. घी या बादाम तेल को हल्के हाथ से बच्चे के पूरे शरीर पर मलें. नहलाने से पहले मालिश करना अच्छा होता है.
ध्यान से नहलाएं
नवजात शिशुओं की त्वचा बेहद नाजुक होती है. बहुत ज्यादा देर तक पानी में रहने से वह सूख सकती है. ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गर्म ना हो. शुरुआती तीन हफ्ते में गीले कपड़े से बदन पोंछना काफी है. अगर आप बेबी शैंपू का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हाथ से बच्चे की आंखों को ढक लें. नहाने के बाद बच्चे बेहतर नींद सो पाते हैं.
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आराम से सुलाएं
ब्रिटेन की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉन केली बताती हैं कि माता पिता बच्चों को सुलाने से पहले उन्हें कपड़ों की कई परतें पहना देते हैं, "खास कर रात को, वे उन्हें बेबी बैग में भी डाल देते हैं और उसके ऊपर से कंबल भी ओढ़ा देते हैं." केली बताती हैं कि इस सब की कोई जरूरत नहीं. बहुत ज्यादा गर्मी बच्चे के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.
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रोने से घबराएं नहीं
बच्चे रोते हैं और इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है. जच्चा बच्चा सेहत पर किताब लिख चुकी अमेरिका की जेनिफर वॉकर कहती हैं, "बच्चे रोने के लिए प्रोग्राम्ड होते हैं. उनके रोने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं, बल्कि यह उनका आपसे बात करने का तरीका है." मुंह में पैसिफायर लगा हो, तो बच्चे कम रोते हैं.
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दांतों की देखभाल
न्यूयॉर्क स्थित डेंटिस्ट सॉल प्रेसनर कहती हैं कि कई बार मां बाप बहुत देर में बच्चों के हाथ में ब्रश थमाते हैं. दूध के दांत बहुत नाजुक होते हैं और इन्हें बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. प्रेसनर का कहना है कि जब दांत आने लगें, तो बच्चे को ठीक सोने से पहले दूध पिलाना बंद कर दें. अगर ब्रश कराना शुरू नहीं किया है, तो दूध पिलाने के बाद गीले कपड़े से दांत साफ करें.
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कुदरत के साथ
बच्चों को जितना हो सके कुदरत के साथ जोड़ें. आज के हाई टेक जमाने में माता पिता बच्चों को मोबाइल, टेबलेट और टीवी के साथ ही बढ़ा करने लगे हैं. अमेरिका की अकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स का कहना है कि कम से कम दो साल की उम्र तक बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहिए.
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रंगों के बीच
बच्चों के आसपास रंग होना अच्छा है. आठ से नौ महीने के होने पर बच्चे अलग अलग तरह के रंग, सुगंध, शोर और स्पर्श को पहचानने लगते हैं. यही उन्हें सिखाने का सही समय भी है.
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खेल खेल में
बच्चे खेल खेल में नई चीजें सीखते हैं. सिर्फ वस्तुओं को पहचानना ही नहीं, बल्कि खुशी और गुस्से जैसे भावों को भी समझने लगते हैं. बच्चों से बात करते हुए मुस्कुराएं और उनकी आंखों से संपर्क बना कर रखें. याद रखें कि बच्चे बोल नहीं सकते, इसलिए आंखों के जरिए संवाद करते हैं.
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मम्मी के साथ पढ़ाई
बच्चे के साथ बातें करें. जब वह कोई आवाजें निकाले, तो उन्हें दोहराएं और उसके साथ कुछ शब्द जोड़ दें. इस तरह बच्चे का जल्द ही भाषा के साथ जुड़ाव बन सकेगा. किताबों से पढ़ कर कहानियां सुनाने के लिए बच्चे के स्कूल पहुंचने का इंतजार ना करें. छोटे बच्चे इन कहानियों के जरिए नई आवाजें और शब्द सीखते हैं.
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पापा के साथ ब्रश
बच्चों को नई नई चीजें सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है उनके साथ वही चीज करना. बच्चे देख कर वही चीज दोहराते हैं. इसी तरह से आप उन्हें कसरत करना भी सिखा सकते हैं. शुरुआत में ध्यान लगने में वक्त लग सकता है लेकिन बाद में बच्चे नई चीजें करने में आनंद लेने लगते हैं.
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पहले कदम
जब तक बच्चे चलना नहीं सीख लेते उन्हें जूतों की जरूरत नहीं होती. इन दिनों फैशन के चलते माता पिता नवजात शिशुओं के लिए भी जूते खरीदने लगे हैं. शिशुओं के लिए मोजे ही काफी हैं. ये उनके लिए आरामदेह भी होते हैं.
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पहला जन्मदिन
बच्चे वयस्कों की तरह पार्टी नहीं कर सकते. वे जल्दी थक जाते हैं और भीड़ से ऊब भी जाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए अपने बच्चे की पहली बर्थडे पार्टी को एक से दो घंटे तक ही सीमित रखें ताकि पार्टी बच्चे की मुस्कराहट का कारण बने, आंसुओं का नहीं.