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खुद का वर्ल्ड-क्लास एआई मॉडल बनाने के करीब पहुंचा भारत

मुरली कृष्णन
६ जून २०२५

भारत में हजारों एआई स्टार्टअप्स उभरे हैं. इसके बावजूद, देश ने अभी तक अपना खुद का प्रीमियम एआई इंजन नहीं बनाया है. आखिर डीपसीक या चैटजीपीटी जैसा कोई भारतीय एआई मॉडल क्यों नहीं है?

मोबाइल की स्क्रीन पर चैटजीपीटी, एआई और ग्रोक के आइकन
अमेरिका और चीन ने अपना एआई मॉडल लॉन्च कर तहलका मचा दिया हैतस्वीर: David Talukdar/ZUMA Press Wire/picture alliance

भारत में 50 लाख से ज्यादा आईटी कर्मचारी हैं. शिक्षा में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर जोर दिया जा रहा है. ऐसे में भारत एआई तकनीक की वैश्विक दौड़ में सबसे अच्छी स्थिति में नजर आता है. इसके बावजूद, भारत का अपना कोई एआई मॉडल नहीं है.

2023 में अमेरिका ने चैटजीपीटी को लॉन्च करके एआई में एक नया मानदंड स्थापित कर दिया था. कुछ ही समय बाद चीन ने भी अपने दमदार चैटबॉट डीपसीक को लॉन्च करके तेजी से यह दूरी मिटा दी, पर भारत ने अब तक इस तरह का एक भी लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) नहीं बनाया है जो इंसानी बातचीत की हूबहू नकल कर सके.

भारत में महत्वाकांक्षा की कमी नहीं है. मार्केट इंटेलिजेंस फर्म ‘ट्रैक्सन' के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय एआई सेक्टर में 7,114 स्टार्टअप हैं, जिन्होंने अब तक कुल 23 अरब डॉलर की फंडिंग हासिल की है. पिछले साल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने "इंडियाएआई मिशन” को मंजूरी दी थी, जिसके लिए करीब 1.21 अरब डॉलर का बजट रखा गया है. इसका उद्देश्य है कि भारत में ही विकसित किए गए लार्ज मल्टीमोडल मॉडल (एलएमएम) और खास क्षेत्रों के हिसाब से एआई तकनीकों को विकसित और लागू किया जाए.

डीपसीक ने मचाया पूरी दुनिया में तहलका, भारत भी नहीं बचा

इस हफ्ते, इंडियाएआई मिशन के सीईओ अभिषेक सिंह ने कहा कि भारतीय स्टार्टअप्स को अब सिर्फ अपने देश तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि वैश्विक कंपनियों से मुकाबला करने और जीतने के लिए उन्हें वैश्विक स्तर पर सोचना होगा.

सिंह ने बेंगलुरु में एक्सेल एआई शिखर सम्मेलन में कहा, "भारतीय एआई स्टार्टअप्स को अंततः दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों से मुकाबला करना होगा. शुरुआत में शायद सरकार से मदद मिले, लेकिन लंबे समय तक सिर्फ उसी के भरोसे वे नहीं टिक पाएंगे. मॉडल को प्रशिक्षित करते समय, उन्हें वैश्विक दृष्टिकोण अपनाना होगा.”

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एआई विकसित करने के लिए उद्योग, सरकार और शिक्षाविदों की जरूरत

भारत के 283 अरब डॉलर के विशाल तकनीकी उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ‘नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज' (नैसकॉम) के प्रतिनिधियों का कहना है कि वैश्विक स्तर का एआई मॉडल तैयार करना बेहद मुश्किल और खर्चीला काम है.

नैसकॉम के संचार प्रबंधक सात्यकी मैत्रा ने डीडब्ल्यू से कहा, "बहस इस बात पर नहीं है कि भारत एआई की दौड़ में बराबरी कर पाएगा या नहीं, बल्कि इस पर है कि क्या हम इतनी तेजी से आगे बढ़ सकते हैं कि एआई के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना सकें.”

पिछले हफ्ते, इंडियाएआई मिशन ने एक बड़ी घोषणा करते हुए बताया कि वे 15,916 नए जीपीयू (ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट) जोड़ रहे हैं. ये जीपीयू एआई रिसर्च के लिए बहुत जरूरी हैं क्योंकि ये एक साथ कई गणनाएं कर सकते हैं. इस नई बढ़ोतरी से, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए देश की कुल एआई कंप्यूटिंग क्षमता बढ़कर 34,333 जीपीयू हो जाएगी.

कितनी बिजली पानी चूसते हैं चैटजीपीटी जैसे एआई

इंडियाएआई मिशन के सहयोग से गण एआई, ज्ञान एआई, सर्वमएआई और सोकेट एआई जैसे स्टार्टअप भारत की जरूरतों के हिसाब से एआई मॉडल तैयार कर रहे हैं. वहीं, सर्वम एआई, फ्रैक्टल और कोरोवर एआई जैसी कंपनियां एआई में नए-नए आविष्कार पर पूरा ध्यान दे रही हैं.

मैत्रा ने कहा, "सिर्फ नए-नए आविष्कार से एआई के क्षेत्र में कामयाबी नहीं मिल सकती है. इसके लिए, सरकार, उद्योग और शिक्षाविदों को साथ मिलकर काम करना होगा. ऐसा होने पर ही कंप्यूटर और डेटा को संभालने से लेकर मॉडल को प्रशिक्षित करने और असल दुनिया में इस्तेमाल करने तक की पूरी श्रृंखला तैयार की जा सकेगी.”

भारत का एआई क्षेत्र आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा है?

देश के जाने-माने साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत को उच्च गुणवत्ता वाले एआई हार्डवेयर की कमी, आधुनिक जीपीयू तक सीमित पहुंच, और पर्याप्त क्लाउड कंप्यूटिंग संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जो बड़े पैमाने पर एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए जरूरी हैं.

दुग्गल ने बताया, "वैश्विक स्तर पर देखें, तो भारत में एआई क्षेत्र में निवेश अभी भी काफी कम है. भारतीय एआई स्टार्टअप्स में वेंचर कैपिटल निवेश बढ़ा जरूर है, लेकिन यह अमेरिका या चीन में होने वाले भारी निवेश के मुकाबले बहुत कम है. 2014 से 2023 तक, अमेरिका ने वेंचर और स्टार्टअप्स में 2.34 ट्रिलियन डॉलर और चीन ने 832 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जबकि इसी अवधि में भारत ने 145 बिलियन डॉलर का निवेश किया.”

दुग्गल का मानना है कि भारत पहले से ही अपना खुद का एआई मॉडल बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन यहां अभी भी बुनियादी ढांचे, निवेश, कुशल लोग, डेटा और नियम-कानूनों जैसी बड़ी चुनौतियों को हल करना होगा.

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भारत में प्रतिभा की कमी नहीं

भारतीय इंजीनियरों के लिए एक और बड़ी चुनौती भारत की भाषाओं की विविधता है. दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले इस देश में अंग्रेजी सिर्फ 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है. वहीं, देश में बोली जाने वाली 1,600 से ज्यादा भाषाओं में आधिकारिक भाषाएं तो बस गिनती की हैं.

कस्टम सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनी ‘मोमेंटम 91' के यश शाह ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारतीय एलएलएम तभी कारगर साबित होगा जब वह हमारी कई भाषाओं में काम कर पाए. फिलहाल, यह मुश्किल है, क्योंकि ज्यादातर भारतीय भाषाओं में एआई मॉडल्स को प्रशिक्षित करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले डेटा की भारी कमी है. अंग्रेजी भाषा के लिए लार्ज लैंग्वेज मॉडल के क्षेत्र में, कुछ कंपनियां और देश हमसे काफी आगे निकल चुके हैं और संभावना है कि वे आगे भी इसी तरह बने रहेंगे.”

हालांकि, ग्लोबल टेक्नोलॉजी होल्डिंग कंपनी ‘अपस्क्वेयर टेक्नोलॉजीज' के उत्पल वैष्णव कहते हैं कि भारत में एआई के रास्ते की असली रुकावटें ‘निवेशकों का जोखिम से बचना, डेटा से जुड़े आधे-अधूरे नियम, और जीपीयू की कमी' है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "भारत में टैलेंट यानी प्रतिभा की कमी नहीं है. जीपीयू की कमी जल्द ही दूर होने वाली है. हमारा कई भाषाओं का डेटा भी तैयार है, बस उसे सही रूप देना है. अगर इस प्रतिभा को सही समय पर सही निवेश और स्पष्ट लक्ष्य मिलें, तो सिर्फ दो-तीन साल में ही एक शानदार और विश्वस्तरीय एलएलएम लॉन्च किया जा सकता है.”

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