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सिंधु जल संधि में संशोधन पर पाकिस्तान को भारत का नोटिस

आमिर अंसारी
२७ जनवरी २०२३

भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है. दिल्ली का दावा है कि पाकिस्तान की हरकतों से समझौते के प्रावधानों और उसके क्रियान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

Indien Pakistan Kaschmir Flusstal Zanskar und Indus River
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Karel

भारतीय मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यह नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रुख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है. संधि में "संशोधन के लिए नोटिस" संधि के आयुक्तों ने 25 जनवरी को दिया था. नोटिस को दोनों पक्षों के सिंधु जल के आयुक्तों के माध्यम से जारी किया गया. पाकिस्तान को यह नोटिस 1960 की जल संधि  के अनुच्छेद XII (3) के मुताबिक जारी किया गया है. नई दिल्ली का दावा है कि पाकिस्तान की हरकतों से समझौते के प्रावधानों और उसके क्रियान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, इसलिए यह कदम उठाया गया है.

भारत और पाकिस्तान ने नौ साल की बातचीत के बाद सितंबर 1960 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. विश्व बैंक भी इस समझौते का एक वादी है और इस समझौते का एक हस्ताक्षरकर्ता भी है.

क्या है भारत का तर्क

भारतीय मीडिया में कहा जा रहा है कि भारत ने समझौते के उल्लंघन को सही करने के लिए पाकिस्तान को अगले 90 दिनों के भीतर अंतर-सरकारी वार्ता में शामिल होने का अवसर देने के उद्देश्य से समझौते में संशोधन का नोटिस जारी किया है. इसमें यह भी कहा गया है कि पिछले 62 वर्षों में इस प्रक्रिया से सीखे गए सबक को भी सिंधु जल संधि में शामिल किया जाना चाहिए और अपडेट किया जाना चाहिए.

दिल्ली का यह भी आरोप है कि भारत की कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान पिछले पांच सालों से किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर बातचीत और मुद्दे को हल करने से इनकार कर रहा है, इसलिए संशोधन नोटिस जारी किया गया है. हालांकि पाकिस्तान की ओर से नोटिस पर अब तक कोई बयान नहीं जारी किया गया है.

पाकिस्तान की कार्रवाईयों ने मजबूर किया-भारत

भारत का दावा है कि वह सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन के पक्ष में रहा है, "हालांकि, पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, इसलिए भारत को संधि में संशोधन के लिए नोटिस जारी करना पड़ा."

गौरतलब है कि पाकिस्तान ने 2015 में भारत की किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर अपनी तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की मांग की थी. हालांकि भारत का दावा है कि 2016 में पाकिस्तान ने एकतरफा अनुरोध वापस ले लिया और सुझाव दिया कि एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण उसकी आपत्तियों पर फैसला करे.

भारत का कहना है कि यह पाकिस्तान की ओर से की गई एकतरफा कार्रवाई थी, जो समझौते का उल्लंघन है. हालांकि, इस संबंध में भारत ने एक अलग अनुरोध भी किया कि इस मामले को एक निष्पक्ष विशेषज्ञ के पास भेजा जाए.

क्या है सिंधु जल संधि

सिंधु जल समझौते में इस बात पर सहमति बनी थी कि "सिंधु बेसिन" की छह नदियों और उनकी सहायक नदियों के पानी का उपयोग कौन से देश और कैसे करेंगे. इन छह नदियों में से तीन पाकिस्तान के अंतर्गत आती हैं जबकि शेष तीन भारत के अंतर्गत आती हैं.

इन नदियों को पूर्व और पश्चिम की नदियां भी कहा जाता है. सिंधु, झेलम और चिनाब पश्चिमी नदियां हैं जिन पर पाकिस्तान का पानी का अधिकार है. रावी, ब्यास और सतलज नदियां पूर्वी नदियां हैं जिनके पानी पर भारत दावा करता है.

सिंधु जल संधि 1960 में हुई थी जब भारत में जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और पाकिस्तान में फील्ड मार्शल अयूब खान राष्ट्रपति थे. इसे विश्व बैंक के तत्वावधान में संपन्न किया गया था और विवाद होने पर विश्व बैंक ही उसे सुलझाने के लिए मध्यस्थता करता है.

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