हिमालय की करीब 200 ग्लेशियल झीलों में अत्याधुनिक चेतावनी सिस्टम लगाए जा रहे हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इन झीलों में बाढ़ का खतरा बहुत ज्यादा है.
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भारत हिमालय के करीब 200 ग्लेशियर झीलों में अत्याधुनिक चेतावनी सिस्टम लगा रहा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इन झीलों में बाढ़ का खतरा और भी बढ़ गया है. आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि ये चेतावनी सिस्टम बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए बेहद जरूरी हैं.
भारत के हिमालय में कम से कम 7,500 ग्लेशियर झीलें हैं, जिनमें से कई खतरनाक फ्लैश फ्लड्स का जोखिम पैदा करती हैं. भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की टीमें 190 ऊंचाई पर स्थित झीलों को सुरक्षित बनाने के मिशन पर काम कर रहा है. यह मिशन तीन साल में पूरा किया जाना है.
पांच लाख रुपये में गांव वालों ने बनाया 12 मीटर ऊंचा ग्लेशियर
किरगिस्तान की तियान-शान पहाड़ियों में गांव वालों ने एक कृत्रिम हिमखंड बना डाला. इस तरह उन्होंने सूखे को भी टाल दिया. देखिए, कैसे बनाया गया यह हिमखंड.
तस्वीर: Vyacheslav Oseledko/AFP/Getty Images
अपना खुद का ग्लेशियर
किरगिस्तान की तियान-शान पहाड़ियों में गांव वालों ने एक कृत्रिम हिमखंड बना डाला. इस तरह उन्होंने सूखे को भी टाल दिया.
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12 मीटर ऊंचा
गर्मी में यह ग्लेशियर पांच मीटर ऊंचा और 20 मीटर लंबा रह गया है लेकिन सर्दियों में इसकी ऊंचाई 12 मीटर थी.
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दो हफ्ते लगे
ग्रामीणों ने इसे दो हफ्ते में ही बना लिया था. इसके लिए उन्होंने 4,000 मीटर ऊंची तियान-शान चोटी से पानी लिया और उसे इस ग्लेशियर की जगह की तरफ मोड़ दिया.
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सूखा भी टल गया
इस तरह गांव वालों ने पानी की गंभीर समस्या को सुलझा लिया और गर्मियों में उन्हें पानी की जरा भी किल्लत नहीं हुई. ग्लेशियर के पिघलने से उन्हें भरपूर पानी मिला.
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सिर्फ पांच लाख रुपये
लगभग 8,400 ग्रामीणों की जिंदगी बदलने वाले इस ग्लेशियर को बनाने में कुल 5,50,000 सोम यानी लगभग पांच लाख भारतीय रुपये का खर्च आया.
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आसान सा तरीका
ग्लेशियर बनाने का तरीका भी बहुत साधारण था. पानी को पाइपों के जरिए तीन किलोमीटर दूर से पहाड़ी के तल में लाया गया. वहां सर्दी में कम तापमान के कारण पाइप से निकलते ही पानी जम गया.
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भारत से हुई शुरुआत
कृत्रिम ग्लेशियर सबसे पहले 2014 में भारत में बनाए गए थे. हिमालय में मिली कामयाबी को अब पूरी दुनिया में दोहराया जा रहा है. चिली और स्विट्जरलैंड में भी ऐसे ग्लेशियर बनाए जा रहे हैं.
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एनडीएमए के वरिष्ठ अधिकारी सफी अहसान रिजवी इस मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने एएफपी को बताया, "हमने खतरों को कम करने में पहले ही महत्वपूर्ण प्रगति की है."
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) अचानक आया पानी का बहाव होता है, जो प्राचीन ग्लेशियरों के स्थान पर बनी झीलों से होता है. ये झीलें ग्लेशियरों के पिघलने से बनती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से बढ़ रहा है.
एक अभियान वर्तमान में पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम में अत्यधिक खतरे वाली छह झीलों के आसपास प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित कर रहा है, जहां अक्टूबर 2023 में ऐसी ही एक बाढ़ में कम से कम 77 लोगों की मौत हो गई थी.
पिघलते ग्लेशियर: पहाड़ के इन गांवों को भविष्य की चिंता
दुनिया भर में डेढ़ करोड़ लोगों पर ग्लेशियर झीलों में बाढ़ का खतरा मंडर रहा है, जिनमें से 20 लाख लोग पाकिस्तान में रहते हैं. पाकिस्तान के काराकोरम पहाड़ों के पास रहने वाले लोग पिघलते ग्लेशियर को लेकर चिंतिंत हैं.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
काराकोरम पहाड़ों के पास स्थित हसनाबाद गांव में करीब 200 लोग रहते हैं. पिघलते ग्लेशियर के कारण गांव के आसपास झीलें बन रही हैं और ये झीलें वहां रहने वाले समुदायों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं.
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भविष्य की लड़ाई
51 साल के तारिक जमील ने शिस्पर ग्लेशियर के पास सेंसर और कैमरे लगाए हैं जिनकी मदद से वो बर्फ में होने वाली हलचल पर नजर रखते हैं. जमील काराकोरम पहाड़ों में हुंजा घाटी के हसनाबाद गांव में समुदाय आधारित आपदा जोखिम प्रबंधन केंद्र के अध्यक्ष हैं.
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अचानक बाढ़ आने का खतरा
जब झीलें भर जाती हैं तो वे फट जाती हैं, जिससे घातक बाढ़ आती है और भारी तबाही मचती है. बाढ़ के कारण पुल और इमारतें बह जाती हैं. उत्तरी पाकिस्तान में मिलने वाली हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला, काराकोरम और हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में उपजाऊ भूमि भी बाढ़ के कारण बर्बाद हो जाती है.
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गांववालों की भूमिका अहम
तारिक जमील कहते हैं कि सभी सेंसर लगने के बाद गांव के प्रतिनिधि अपने मोबाइल फोन के जरिए डाटा पर नजर रख सकेंगे. जमील ने कहा, "स्थानीय ज्ञान बहुत जरूरी है. हम यहां के मुख्य पर्यवेक्षक हैं. हमने बहुत सी चीजें देखी हैं."
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खतरे में हिमालय के ग्लेशियर
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक सदी के अंत तक हिंदुकुश ग्लेशियर अपना 75 फीसदी हिस्सा खो सकते हैं, यानी ग्लेशियर पिघल जाएंगे. रिपोर्ट में इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग को बताया गया.
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खतरे की घंटी
पाकिस्तान में करीब 7,000 ग्लेशियर हैं और ध्रुवीय इलाकों को छोड़ दें तो यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जलवायु परिवर्तन बहुत तेजी से इन ग्लेशियरों को निगलता जा रहा है. ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से यह बड़ी झीलों में जमा हो रहा है और इसे संभाल पाना उनकी क्षमता से बाहर है. यही वजह है कि पानी किनारों को तोड़ कर नीचे के इलाकों के लिए भयानक बाढ़ की शक्ल ले लेता है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
क्या होती है ग्लेशियल झील
ग्लेशियर बर्फ के बड़े बड़े टुकड़े होते हैं जो अक्सर नदियों के उद्गम स्थल पर होते हैं. इन्हें हिमनदी या बर्फ की नदी भी कहा जाता है, लेकिन ये बनते हैं जमीन पर. इनका आकार बदलता रहता है और इनकी बर्फ भी पिघलती रहती है. ग्लेशियर बनते समय जमीन को काट कर उसमें गड्ढे बन जाते हैं और पिघलती हुई बर्फ जब इन गड्ढों में गिरती है तो उससे ग्लेशियल झीलें बनती हैं.
तस्वीर: Saadeqa Khan
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रिजवी ने कहा, "हमने अब तक 20 झीलों पर काम पूरा कर लिया है और इस गर्मी में 40 और झीलों का काम पूरा करेंगे." इस परियोजना में झीलों के जल स्तर को कम करना भी शामिल है, जिससे पानी और बर्फ के स्लश को नियंत्रित किया जा सके.
50 फीसदी बढ़ गई झीलें
इस टीम में सेना और कई सरकारी एजेंसियों के विशेषज्ञ शामिल हैं, जिनमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों के अलावा भूविज्ञानी, जलविज्ञानी, कंप्यूटर इंजीनियर और मौसम विशेषज्ञ भी हैं. भारत की वायुसेना भी इस मिशन में बाद में शामिल होगी, जो दूरदराज के क्षेत्रों में भारी उपकरण पहुंचाएगी.
यह मिशन भारत के हिमालयी क्षेत्रों को कवर करेगा, जिसमें उत्तर में कश्मीर और लद्दाख से लेकर पूर्वोत्तर में चीन की सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश तक के क्षेत्र शामिल हैं.
सैलानियों की भीड़ के साथ बढ़ रहा है हिमालय में खतरा
अमेरिकी पर्वतारोही हिलेरी नेल्सन की मौत ने इस ओर ध्यान खींचा है कि हिमालय पर चढ़ाई गुजरे सालों में खतरनाक होती गई है. गाइड और एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा लोगों के यहां जाने को भी इसकी वजह बताते हैं.
अमेरिकी पर्वतारोही हिलेरी नेल्सन की मौत ने इस ओर ध्यान खींचा है कि हिमालय पर चढ़ाई गुजरे सालों में खतरनाक होती गई है. गाइड और एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा लोगों के यहां जाने को भी इसकी वजह बताते हैं.
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
हिलेरी नेल्सन की मौत
49 साल की नेल्सन मनासलू की 8,163 मीटर ऊंची चोटी के पास ही थीं कि फिसल गईं और उनकी जान चली गई. दुनिया की आठवीं सबसे ऊंची चोटी पर वो अपने पार्टनर के साथ स्की करते हुए नीचे आना चाहती थीं.
तस्वीर: Niranjan Shrestha/dpa/picture alliance
हिमालय की चोटियों के लिये मशहूर नेपाल
हिमालय की मशहूर चोटियों का घर नेपाल में है. 1950 से 2021 के बीच यहां कुल 1,042 लोगों की मौत हुई जिनमें से 405 तो इसी सदी में मरे. हिमालय की ज्यादातर चोटियों पर चढ़ाई का रास्ता नेपाल से हो कर जाता है. नेपाल के गाइड और पिट्ठुओं ने तो पर्वतों की चोटियों पर चढ़ाई के रिकॉर्ड बनाये हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/XinHua
जानलेवा हिमस्खलन
हिमालय के डाटाबेस के मुताबिक इनमें से एक तिहाई मौतों के पीछे हिमस्खलन जिम्मेदार था और एक तिहाई पर्वतारोही फिसल कर गिरने से मारे गये. इसके अलावा बहुत से लोगों की मौत माउंटेन सिकनेस और इसी तरह के दूसरी परेशानियों से हुई.
तस्वीर: Jogn Mcconnico/AP Photo/picture alliance
सबसे खतरनाक रास्ते
8,091 मीटर ऊंचा अन्नपूर्णा मासिफ इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक है. 1950 से अब तक 365 चढ़ाइयों में कुल 72 लोगों की मौत हुई है यानी हर पांच सफल अभियान के लिये एक आदमी ने जान गंवाई मौत. धौलागिरी और कंचनजंघा दोनों में मौत की दर 10 फीसदी है.
खड़ी ढाल वाले दर्रों और हिमस्खलनों ने पाकिस्तान के के2 को भी कुख्यात बना दिया है. 1947 से अब तक कम से कम 70 लोगों की मौत हुई है. सबसे ज्यादा मौत एवरेस्ट पर होती है लेकिन पर्वतारोहियों की ज्यादा संख्या के कारण मौत की दर 2.84 फीसदी है. 1950 से 2021 के बीच एवरेस्ट में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है.
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पिघलते ग्लेशियर
2019 की एक स्टडी में चेतावनी दी गई कि हिमालय के ग्लेशियर पिछली सदी की तुलना में दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं. इस साल एक स्टडी से पता ने चला कि एवरेस्ट की चोटी के पास मौजूद बर्फ 2000 साल पुरानी हैं. यानि ग्लेशियर को बनने में जितना समय लगा था उससे 80 गुना ज्यादा तेजी से यह पिघल रहा है.
तस्वीर: RTS
जलवायु परिवर्तन और मौत
जलवायु परिवर्तन और लोगों की मौत के संबंध के बारे में विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है लेकिन पर्वतारोहियों का कहना है कि हिम दरारें चौड़ी हो रही हैं, पहले जहां बर्फ होती थी वहां पानी बह रहा है और ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली झीलों की संख्या बढ़ रही है. इन सबके कारण खतरा बढ़ रहा है.
तस्वीर: Lakpa Sherpa/AFP/Getty Images
हिमस्खलनों का बढ़ता खतरा
ग्लेशियर अप्रत्याशित हो गये हैं जिससे हिमस्खलनों का खतरा बढ़ सकता है. 2014 में भारी संख्या में बर्फ और चट्टानों के सरकने से 16 नेपाली गाइडों की मौत हो गई. यह हादसा खुंभु आइसफॉल में हुआ और हिमालय में अब तक हुए सबसे बड़े हादसों में एक है.
तस्वीर: Christoph Mohr/picture alliance
बढ़ती भीड़ भी जिम्मेदार
विशेषज्ञों का कहना है कि मौत के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है कम अनुभवी और कम तैयारी के साथ यहां आ रहे पर्वतारोही सैलानी. रोमांच की चाहत में हर साल सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग नेपाल, पाकिस्तान और तिब्बत पहुंच रहे हैं. बढ़ती संख्या ने कंपनियों के बीच प्रतियोगिता बढ़ा दी है और इस चक्कर में सुरक्षा से समझौता हो रहा है.
तस्वीर: RTS
एवरेस्ट में ट्रैफिक जाम
नेपाल ने इस साल मनासलू की चोटी के लिए 404 और पाकिस्तान ने के2 के लिये 200 परमिट दिये ये दोनों संख्या सामान्य से दोगुनी हैं. 2019 में तो एवरेस्ट में ऐसी भीड़ पहुंची कि ट्रैफिक जाम लग गया और लोग जमाने वाली सर्दी में फंस गये. ऑक्सीजन का लेवल घटने से कई लोग रास्ते में ही बीमार हो गये. हर साल 11 में से कम से कम चार मौतों के लिये भीड़ जिम्मेदार होती है.
तस्वीर: Rizza Alee/AP/dpa/picture alliance
बचाव के उपाय
बहुत सी टूर कंपनियां ड्रोन का इस्तेमाल कर जोखिम का अंदाजा लगाती हैं, वो पर्वतारोहियों के वाइटल डाटा पर रियल टाइम में नजर रखती हैं और बहुत से पर्वतारोही तो जीपीएस ट्रैकर भी पहनते हैं. यात्रा का इंतजाम करने वालों ने ज्यादा ऑक्सीजन की व्यवस्था रखनी शुरू की है और मौसम समाचार की स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है. हालांकि इन सबके बावजूद खतरा बढ़ रहा है.
तस्वीर: Prakash Mathema/AFP/Getty Images
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जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना जारी है, और वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि अगर तापमान को औद्योगिक युग से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक सीमित कर भी दिया जाए, तब भी इस सदी के अंत तक पृथ्वी के 2,15,000 ग्लेशियरों में से आधे पिघल जाएंगे.
उपग्रह डेटा पर आधारित एक 2020 के अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियरों से बनी झीलों की मात्रा 30 वर्षों में 50 प्रतिशत बढ़ गई है. ‘‘नेचर कम्युनिकेशंस’ में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग डेढ़ करोड़ ग्लेशियल झीलें 50 किलोमीटर के दायरे में रहती हैं और झीलों के एक किलोमीटर के दायरे में बाढ़ का खतरा है.
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एशिया में सबसे ज्यादा खतरा
यह जोखिम "हाई माउंटेंस एशिया" क्षेत्र में सबसे अधिक है, जिसमें भारत, पाकिस्तान, चीन और नेपाल सहित 12 देश शामिल हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस क्षेत्र में दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में ग्लेशियल झीलों के करीब सबसे ज्यादा लोग रहते हैं. इस कारण चेतावनी का समय और भी कम हो जाता है.
पिछले महीने, नेपाल के एवरेस्ट क्षेत्र में एक ग्लेशियल झील के टूटने से ठंडे पानी की विनाशकारी बाढ़ आई, जिसने थामे गांव को बहा दिया. हालांकि, निवासियों को पहले ही चेतावनी दे दी गई थी, इसलिए कोई हताहत नहीं हुआ.
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने कहा कि यह घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि बढ़ते वैश्विक तापमान का उन लोगों पर कितना "विनाशकारी प्रभाव" पड़ रहा है, जिन्होंने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे कम योगदान दिया है.