सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को "लव जिहाद" कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. इस मामले पर कोर्ट ने कानून पर तुरंत रोक लगाने से इनकार किया है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया.
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उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश लाकर प्रदेश में तथाकथित "लव जिहाद" को रोकने के लिए कानून बनाया था. इस कानून के बनने के बाद ही गैरकानूनी रूप से धर्मांतरण का आरोप लगाकर कई लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. एक दो मामले में तो हाईकोर्ट धर्म बदलकर शादी करने वाले जोड़ों को राहत दे चुकी है.
बुधवार 6 जनवरी को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विवाह के लिए धर्म परिवर्तन के खिलाफ बनाए गए "लव जिहाद "कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने कुछ याचिकाकर्ताओं और एक एनजीओ सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कानून पर तो रोक नहीं लगाई लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को नोटिस जारी किया है. अंतरधार्मिक विवाह के कारण होने वाले धर्मांतरण के खिलाफ बने कानून की उसने समीक्षा पर सहमति व्यक्त की है.
बेंच ने हालांकि उन कानूनों के प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया जिनके लिए विवाह के लिए धर्म परिवर्तन की पहले से इजाजत जरूरी होती है, सुप्रीम कोर्ट अब कानूनों की संवैधानिकता को परखेगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग किसी को भी गलत तरीके से फंसाने के लिए किया जा सकता है. लाइव लॉ के मुताबिक सीजेपी की ओर से पेश वकील चंद्र उदय सिंह ने कहा कि विवाह के लिए धर्म परिवर्तन की पूर्व इजाजत "दमनकारी" है और विवाह करने की पूर्व अनुमति बिल्कुल "अप्रिय" है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि कानून लागू होने के बाद यूपी पुलिस ने कई बेगुनाह को गिरफ्तार किया है.
हालांकि सुनवाई के शुरुआत में ही बेंच ने याचिकाकर्ताओं से राज्यों के हाई कोर्ट में जाने को कहा था. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट पहले से ही सुनवाई कर रहा है.
सख्त कानून
उत्तराखंड में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 कानून लागू है. इसके तहत लालच, छल-कपट, बल, खरीद-फरोख्त या अन्य किसी प्रभाव से शादी के लिए जबरन धर्मांतरण के खिलाफ प्रावधान हैं. अधिनियम की धारा 6 के मुताबिक धर्म परिवर्तन के एकमात्र उद्देश्य के लिए की कई शादी किसी भी पक्ष की तरफ से दायर याचिका पर शून्य घोषित की जा सकती है. वहीं बात उत्तर प्रदेश के कानून की जाए तो वहां शादी के लिए लालच, धोखा या जबरन धर्म बदलवाने पर 10 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. यूपी सरकार की दलील है कि इस कानून का मकसद महिलाओं को सुरक्षा देना है, लेकिन कानून के आलोचक इसे संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की आजादी के तहत निजता के अधिकार में अतिक्रमण बताते हैं.
बीजेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश में पिछले साल दिसंबर में तथाकथित लव जिहाद पर कानून बनाया गया है. कर्नाटक, हरियाणा और असम ने अंतरधार्मिक विवाह को रोकने के लिए इसी तरह का कानून बनाने का फैसला किया है.
"लव जिहाद" पर राज्यों में सख्त से सख्त कानून बनाने की होड़!
अंतरधार्मिक शादियों के खिलाफ बीजेपी शासित राज्य सख्त से सख्त कानून बना रही हैं. उनका कहना है कि लड़की पर जबरन दबाव डालकर शादी कर ली जाती है और फिर उसका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है.
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"लव जिहाद" क्या वाकई होता है?
4 फरवरी 2020 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा को बताया कि "लव जिहाद" शब्द मौजूदा कानूनों के तहत परिभाषित नहीं है. साथ ही उन्होंने संसद को बताया कि इससे जुड़ा कोई भी मामला केंद्रीय एजेंसियों के संज्ञान में नहीं आया. रेड्डी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 25 किसी भी धर्म को स्वीकारने, उसका पालन करने और उसका प्रचार-प्रसार करने की आजादी देता है.
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बीजेपी के एजेंडे पर "लव जिहाद"!
भले ही केंद्र सरकार कहे कि "लव जिहाद" कानून में परिभाषित नहीं है लेकिन बीजेपी के नेताओं, मंत्रियों और सरकारों ने अंतरधार्मिक प्रेम और शादियों के खिलाफ पिछले कुछ समय में कड़ा रुख अपनाया है. नेता बयान दे रहे हैं और उन पर समाज में नफरत का माहौल बनाने के आरोप लग रहे हैं. वहीं बीजेपी शासित राज्य सरकारें जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कानून बना रही हैं.
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यूपी में कितना सख्त है कानून?
यूपी में धर्मांतरण रोधी कानून को लागू हुए एक महीना पूरा हो चुका है. 27 नवंबर 2020 को राज्यपाल ने "विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020" को मंजूरी दी थी जिसके बाद यह कानून बन गया. इस कानून में कड़े प्रावधान बनाए गए हैं. धर्म परिवर्तन के साथ अंतरधार्मिक शादी करने वाले को साबित करना होगा कि उसने इस कानून को नहीं तोड़ा है, लड़की का धर्म बदलकर की गई शादी को शादी नहीं माना जाएगा.
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यूपी में एक महीने में क्या हुआ?
यूपी में धर्मांतरण रोधी कानून को लागू होने के एक महीने के भीतर पुलिस ने प्रदेश में इसके तहत 14 मामले दर्ज किए. पुलिस ने 51 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें 49 लोग जेल में बंद किए गए. इन मामलों में 13 मामले कथित तौर पर हिंदू महिलाओं से जुड़े हैं और आरोप लगाया कि उन पर इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया गया. सिर्फ दो ही मामले में महिला खुद शिकायतकर्ता है.
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हाईकोर्ट का सहारा
यूपी में लागू कानून के आलोचकों का कहना है कि यह व्यक्तिगत आजादी, निजता और मानवीय गरिमा जैसे मौलिक अधिकारों का हनन है. इस कानून को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह वाले युवक युवती को साथ रहने की इजाजत दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था, "महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है और वह किसी भी तीसरे पक्ष के दखल के बिना रहने को आजाद है."
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मध्य प्रदेश में भी "लव जिहाद"?
मध्य प्रदेश की कैबिनेट ने मंगलवार 29 दिसंबर 2020 को "धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश 2020" को मंजूरी दी है. प्रदेश में जो कानून बनने जा रहा है उसके मुताबिक जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कर शादी करने वालों को अधिकतम 10 साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया जाएगा.
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किस राज्य का कानून ज्यादा सख्त?
अध्यादेश के मुताबिक मध्य प्रदेश में प्रलोभन, धमकी, शादी या किसी अन्य कपट पूर्ण तरीके द्वारा धर्म परिवर्तन कराने वाले या फिर उसकी कोशिश या साजिश करने वाले को पांच साल के कारावास के दंड और 25,000 रुपये से कम जुर्माना नहीं होगा. वहीं यूपी ने इसके लिए 15,000 के जुर्माने का प्रावधान रखा है लेकिन वहां भी सजा का प्रावधान अधिकतम पांच साल तक है.
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हिमाचल प्रदेश
प्रदेश में 2007 से ही जबरन या फिर छल-कपट से धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून लागू है. कुछ दिनों पहले धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया गया था. इसके तहत किसी भी शख्स को धर्म परिवर्तन करने से पहले प्रशासन को इसकी सूचना देनी होगी. ऐसा ही कानून जब 2012 में कांग्रेस की सरकार लेकर आई थी तब हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों के हनन वाला बताया था.
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