अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार में उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफी के नेतृत्व वाले उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को भारत सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात की.
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भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश मंत्रालय में पाक-अफगानिस्तान-ईरान प्रभाग के जॉइंट सेक्रेटरी जेपी सिंह कर रहे हैं. यह दल मॉस्को में हो रहे अफगानिस्तान सम्मेलन के दौरान रूस की सरकार के विशेष न्योते पर वहां गया है.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक संक्षिप्त बयान में कहा कि सम्मेलन से इतर दोनों प्रतिनिधिमंडलों की मुलाकात हुई. भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
देखिएः ऐसी है अब अफगान जिंदगी
तालिबान राज में कुछ ऐसी है आम जिंदगी
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की स्थापना के बाद लोगों को कट्टरपंथी मिलिशिया के तहत जीवन में वापस लौटना पड़ा है. लोगों के लिए बहुत कुछ बदल गया है, खासकर महिलाओं के लिए.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बुर्के में जिंदगी
अभी तक महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कई महिलाएं कार्रवाई के डर से ऐसा करती हैं. इस तस्वीर में दो महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में पुराने कपड़े खरीद रही हैं. देश छोड़कर भागे हजारों लोग अपने पुराने कपड़े पीछे छोड़ गए हैं, जो अब ऐसे बाजारों में बिक रहे हैं.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
गलियों और बाजारों में तालिबानी लड़ाके
पुराने शहर के बाजारों में चहल-पहल है, लेकिन सड़कों पर तालिबान लड़ाकों का भी दबदबा है. वे गलियों में सब कुछ नियंत्रित करते हैं और उनके विचारों या नियमों के खिलाफ कुछ होने पर तुरंत दखल देते हैं.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
दाढ़ी बनाने पर रोक
तालिबान ने नाइयों को दाढ़ी काटने और शेव करने से मना किया है. यह आदेश अभी हाल ही में हेलमंद प्रांत में लागू किया गया है. यह अभी साफ नहीं है कि इसे देश भर में लागू किया जाएगा या नहीं. 1996 से 2001 तक पिछले तालिबान शासन के दौरान पुरुषों की दाढ़ी काटने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.
तस्वीर: APTN
महिलाओं के चेहरे मिटाए जा रहे
ब्यूटी पार्लर के बाहर तस्वीरें हों या विज्ञापन तालिबान महिलाओं की ऐसी तस्वीरों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता है. ऐसी तस्वीरें हटा दी गईं या फिर उन्हें छुपा दिया गया.
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लड़कियों को अपनी शिक्षा का डर
तालिबान ने लड़कियों को प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने की इजाजत दी है, लेकिन लड़कियों ने अभी तक माध्यमिक विद्यालयों में जाना शुरू नहीं किया है. यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग बैठने को कहा गया है.
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क्रिकेट का खेल
क्रिकेट खेलने के लिए काबुल के चमन-ए-होजरी पार्क में युवकों का एक समूह इकट्ठा हुआ है. जबकि महिलाओं को अब कोई खेल खेलने की इजाजत नहीं है. क्रिकेट अफगानिस्तान में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है.
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बढ़ती बेरोजगारी
अफगानिस्तान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विदेशी सहायता रुकने से वित्त संकट खड़ा हो गया है. इस तस्वीर में ये दिहाड़ी मजदूर बेकार बैठे हैं.
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नमाज भी जरूरी
जुमे की नमाज के लिए लोग इकट्ठा हुए हैं. मुसलमानों के लिए शुक्रवार का दिन अहम होता है और जुमे की नमाज का भी खास महत्व होता है. इस तस्वीर में एक लड़की भी दिख रही है जो जूते पॉलिश कर रोजी-रोटी कमाती है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
आम नागरिक परेशान, तालिबान खुश
अफगान नागरिक एक अजीब संघर्ष में जिंदगी बिता रहे हैं, लेकिन तालिबान अक्सर इसका आनंद लेते दिखते हैं. इस तस्वीर में तालिबान के लड़ाके स्पीडबोट की सवारी का मजा ले रहे हैं.
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भारत पहले भी तालिबान के प्रतिनिधियों से औपचारिक बातचीत कर चुका है. पिछली बार ऐसी मुलाकात दोहा में हुई थी जब 31 अगस्त को कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से भारतीय दूतावास में ही मुलाकात की थी.
तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था, "आज कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. तालिबान के आग्रह पर यह बैठक भारत के दूतावास में हुई.”
सरकारी स्तर पर पहला संपर्क
बुधवार को मॉस्को में हुई मुलाकात अफगानि्सतान में अंतरिम कैबिनेट के गठन के बाद दोनों पक्षों के बीच पहला औपचारिक संपर्क है. अफगानिस्तान के समाचार चैनल टोलो न्यूज ने मुजाहिद के हवाले से बताया कि भारत युद्ध पीड़ित देश को मानवीय सहायता देने को तैयार है.
मुजाहिद के मुताबिक दोनों पक्षों ने एक दूसरे की चिंताओं पर ध्यान देने और कूटनीतिक व आर्थिक रिश्ते सुधारने पर भी जोर दिया.
मॉस्को में अफगानिस्तान पर यह सम्मेलन 2017 में स्थापित किया गया था. इस सम्मेलन में छह पक्षों को अफगानिस्तान पर अपनी राय व्यक्त करने और एक दूसरे से सलाह मश्विरा करने का मौका मिलता है. इन पक्षों में रूस के अलावा अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन और पाकिस्तान शामिल हैं. 2017 के बाद से ये देश कई बार इस मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं.
तस्वीरों मेंः नए अफगानिस्तान की झलक
नये अफगानिस्तान की झलक
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान, इसकी एक झलक इन चंद तस्वीरों में मिल सकती है. देखिए...
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
नया अफगानिस्तान
नया अफगानिस्तान कैसा होगा अभी स्पष्ट नहीं है. फिलहाल जो तस्वीरें आ रही हैं वे ढकी छिपी हैं. पर्दे से क्या निकलेगा, उसकी बस झलक मिल रही है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
मर्दों की दुनिया
अफगानिस्तान से जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं उनमें दिख रहा है जन-जीवन सामान्य हो रहा है. हेरात के इस रेस्तरां में ग्राहकों को भोजन का आनंद लेते देखा जा सकता है. लेकिन एक चीज पहले से अलग है. ग्राहकों में कोई महिला नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
पर्दे की दीवार
कॉलेजों से ऐसी तस्वीरें लगातार आ रही हैं जिनमें लड़के और लड़कियों के बीच एक पर्दे की दीवार खींच दी गई है. यह अब आधिकारिक नीति है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI AFP via Getty Images
आजादी का सवाल
हेरात में ये महिलाएं मस्जिद जा रही हैं. लेकिन बाकी कहीं जाने के लिए उनके पास आजादी कम ही है. जैसे कि देश के संस्कृति आयोग के उपाध्यक्ष अहमदुल्लाह वासिक ने कहा है कि महिलाओं के लिए खेलों की दुनिया में अब जगह नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
संघर्ष भी जारी
कुछ लोगों ने संघर्ष जारी रखा है. कई शहरों में महिलाएं विरोध प्रदर्शन करती दिख रही हैं.
तस्वीर: REUTERS
दूसरा रुख
कुछ महिलाएं कहती हैं कि वे तालिबान के राज में खुश हैं. पिछले दिनों ऐसी महिलाओं ने भी एक मार्च निकाला. इस मार्च तो तालिबानी बंदूकाधारियों की सुरक्षा मिली थी.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
जगह जगह जांच
तालिबान के बंदूकधारी जगह जगह नाके लगाए खड़े दिखते हैं. पश्चिमी कपड़े और जीवनशैली धीरे-धीरे गायब होती जा रही है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
काम की तलाश
काबुल में ये मजदूर काम का इंतजार कर रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बद से बदतर हो रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. 98 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं, जो फिलहाल 72 फीसदी पर है.
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
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तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सरकार बना लिए जाने के बाद यह पहला सम्मेलन है, जिसमें दस देशों के प्रतिनिधि आमंत्रित हैं. तालिबान ने 15 अगस्त को तब काबुल पर कब्जा कर लिया था जब अमेरिकी सेना के नेतृत्व वाली नाटो फौजें दो दशक लंबे अभियान के बाद वहां से जाने के अंतिम चरण में थीं.
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मदद की अपील
मॉस्को फॉर्मैट में अफगान उप प्रधानमंत्री हनाफी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि उनकी अंतरिम सरकार को मान्यता दे. इस सरकार में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट में हैं.
अफगान समाचार एजेंसी खाम प्रेस के मुताबिक हनाफी ने कहा, "अफगानिस्तान को अलग-थलग कर देना किसी के भी हित में नहीं है. यह पहले भी साबित हो चुका है.” हनाफी ने अमेरिका से आग्रह किया कि देश के सेंट्रल बैंक की संपत्ति पर लगी पाबंदियां हटाए. ये संपत्तियां करीब 9.4 अरब अमेरिकी डॉलर की हैं.
जेल जहां अब कैदी बन गए जेलर
काबुल की जेल में अब कैदी बन गए जेलर
काबुल की यह पुल ए चरखी जेल अब खाली बियाबान पड़ी है. कभी यहां हजारों तालिबान कैद थे, जिन्हें रिहा कर दिया गया है.
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कैदी बन गए जेलर
जो तालिबान इस जेल में कभी कैदी थे, आज वही इसके प्रशासक हैं. 15 अगस्त को काबुल में घुसने के बाद तालिबान ने इन कैदियों को रिहा कर दिया था.
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उनका कुछ सामान
जेल के खाली कमरों में कैदियों का सामान अब भी पड़ा दिखाई देता है. कहीं पुराने जूते पड़े हैं तो कहीं कपड़े.
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उकेरा गया इतिहास
दीवारों पर बनीं ये तस्वीरें उस वक्त की गवाह हैं जब तालिबान कैदी के रूप में यहां बंद थे और आजादी उनके लिए सपना हुआ करती थी.
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यातनाओं के निशान
पुल ए चरखी का लंबा और काफी हिंसक इतिहास रहा है. कभी यहां बड़े पैमाने पर कत्ल हुए और यातनाएं दी गईं.
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बुरी हालत
जेल में 1970 और 1980 के दशक के समय की कई सामूहिक कब्रें भी मिली थीं. जब देश में अमेरिका समर्थित सरकार थी तो जेल की हालत काफी खराब थी और इसमें भारी भीड़ थी.
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हमेशा भीड़ रही
जेल के 11 विशाल कमरों में 5,000 कैदियों के लिए जगह बनाई गई थी लेकिन अक्सर यहां 10 हजार से ज्यादा कैदी रहते थे.
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दंगे भी हुए
उन्हीं कैदियों में तालिबान भी शामिल थे जो यातनाएं दिये जाने की शिकायत करते थे. जेल में अक्सर दंगे हो जाते थे.
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तालिबान का संघर्ष
तालिबान कैदियों ने मिलकर सामूहिक संघर्ष भी किया और अपने लिए कई सहूलियतें हासिल कीं जैसे मोबाइल फोन की सुविधा या फिर कमरों से बाहर ज्यादा समय बिताना.
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पलट गया पासा
अब इस जेल की सुरक्षा तालिबान बंदूकधारी करते हैं और प्रशासन का जिम्मा पूर्व कैदियों के हाथ में दे दिया गया है.
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फिर आने लगे हैं कैदी
जेल में अब भी एक हिस्सा है जहां पिछले कुछ हफ्तों में गिरफ्तार किए गए करीब 60 लोगों को रखा गया है. इनमें से ज्यादातर कैदी नशे के आदि हैं.
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सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने अमेरिका के सम्मेलन में हिस्सा ना लेने पर अफसोस जाहिर किया. उन्होंने कहा, "हमें अमेरिका के ना आने का अफसोस है. उम्मीद है ऐसा कि उसूली समस्या के कारण नहीं हुआ और वजह बस यही हो कि अफगानिस्तान में अमेरिका का विशेष दूत बदल गया है.”
लावरोव ने कहा कि अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान को वित्तीय, आर्थिक और मानवीय सहायता दे ताकि मानवीय संकट और बड़े पैमाने पर विस्थापन को टाला जा सके.