एचएसबीसी बैंक की तरफ से जारी एक रैकिंग में भारत को जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा बताया गया है. इसके बाद रैंकिंग में पाकिस्तान, फिलीपींस और बांग्लादेश का नाम आता है.
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बैंक ने 67 विकसित और उभरते देशों पर जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले संभावित असर का मूल्यांकन किया है. मौसमी आपदाओं के लिए संवेदनशीलता, ऊर्जा उत्पादन में होने वाले बदलावों के जोखिम और जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता को इस मूल्यांकन का आधार बनाया गया है.
इन 67 देशों में दुनिया के लगभग एक तिहाई देश, विश्व की 80 फीसदी जनसंख्या और दुनिया की डीजीपी का 94 प्रतिशत हिस्सा आता है. एचएसबीसी ने सभी क्षेत्रों के मूल्यांकन के आधार पर यह रैंकिंग बनाई है. कई देश कुछ क्षेत्रों में सबसे ज्यादातर खतरे का सामना कर रहे हैं तो अन्य क्षेत्रों में उन्हें ज्यादा समस्या नहीं है.
जिन चार देशों को एचएसबीसी ने जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा बताया है, उनमें से भारत के बारे में उसका कहना है कि कृषि से होने वाली आमदनी घट सकती है. बढ़ते तापमान और कम होती बारिश से वे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है.
कैसी है हमारी धरती की तबीयत
पहले से खस्ताहाल जलवायु पर बेपरवाही की दोहरी मार पड़ रही है. एक बार नजर डालते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती ग्लोबल वॉर्मिंग के कितने गंभीर खतरे में पड़ी हुई है.
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तापमान
धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है. 1880 से इसके आंकड़े जमा किए जा रहे हैं. 21वीं सदी के अब तक के 16 सालों में रिकॉर्ड तापमान दर्ज हुए हैं. विश्व के कुछ बड़े शहरों में सन 2100 तक तापमान आठ डिग्री सेल्सियस तक और बढ़ जाने का अनुमान है.
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बर्फ की चादर
आर्कटिक पर बर्फ की चादर सिमटती जा रही है और 2030 की गर्मियों तक आर्कटिक सागर से बर्फ खत्म होने का अनुमान है. दूसरे छोर पर, अंटार्कटिक में भी समुद्री बर्फ में भारी कमी दर्ज हुई है. लगातार 36 सालों से ग्लेशियरों का इलाका भी घटता जा रहा है.
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ग्रीनहाउस गैसें
2016 में कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी अहम ग्रीनहाउस गैसों की वातावरण में मात्रा उच्चतम रही. पेरिस समझौते में इनको 450 पीपीएम पर सीमित करने का लक्ष्य है. जिससे वैश्विक तापमान को 2 डिग्री की सीमा पर रोका जा सके.
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फॉसिल फ्यूल
इन ईंधनों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. बीते तीन सालों में अर्थव्यवस्था में विकास के बावजूद इनका स्तर स्थिर बना हुआ है. लेकिन मीथेन का स्तर बढ़ा है, जो कि वातावरण को CO2 से भी ज्यादा गर्म करता है. मीथेन के बढ़ने का कारण पता नहीं चल पाया है.
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समुद्री स्तर
बर्फ का पिघलना और पानी का गर्म होकर फैलना तेज हो गया है. 2005 से 2015 के बीच समुद्रस्तर उसके पहले के दशक के मुकाबले 30 फीसदी तेजी से ऊपर गया. यह दर और तेज होने की संभावना है, जिससे दुनिया के निचले इलाके डूब सकते हैं.
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प्राकृतिक आपदा
इंसानी गतिविधियों से जलवायु में आते बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं के बीच संबंध स्थापित हो चुका है. 1990 से आपदाएं दोगुनी हो चुकी है. विश्व बैंक बताता है कि हर साल इन आपदाओं के कारण करीब ढाई करोड़ लोग गरीबी में धकेले जा रहे हैं.
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जैव विविधता
आईयूसीएन की रेड लिस्ट में "खतरे में" दर्ज जानवरों और पौधों की 8,688 प्रजातियों में से करीब 19 फीसदी पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर पड़ा है. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ, जो कि अब कभी ब्लीचिंग के बुरे असर से उबर नहीं पाएगी. आरपी/एमजे (एएफपी)
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वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश और फिलीपींस में भी मौसम में हो रहे बदलाव के कारण तूफानों और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा. एचएसबीसी का कहना है कि जलवायु से जुड़े जोखिमों से निपटने में पाकिस्तान की तैयारी सबसे कमजोर है. जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले टॉप10 देशों में आधे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं. इन 10 देशों में ओमान, श्रीलंका, कोलंबिया, मेक्सिको, केन्या और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं.
पांच देश जिन पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों का खतरा सबसे कम है, उनमें फिनलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, एस्टोनिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. एचएसबीसी ने अपनी 2016 की रैंकिंग में जलवायु परिवर्तन के खतरों के मद्देनजर सिर्फ जी20 देशों का मूल्यांकन किया था.
एके/एमजे (रॉयटर्स)
फिजी: खतरे में एक स्वर्ग
कभी फिजी को ट्रॉपिकल पैरेडाइज यानि उष्णकटिबंधीय स्वर्ग कहा जाता था. लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग और खतरनाक तूफानों से इसके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. फिजी में जन्मे फोटोग्राफर आरोन मार्च की तस्वीरों में देखिए इसकी खूबसूरती.
तस्वीर: DW/A. March
ड्रीम डेस्टिनेशन
पानी के साथ अठखेलियों के शौकीन लोगों के लिए फिजी के मामानुका द्वीप का कोरल रीफ एक ड्रीम डेस्टिनेशन है. लेकिन इन नीले पानी में गोता लगाकर मछलियों के साथ तैरना अब यहां मुश्किल होता जा रहा है. सागर के बढ़ते तापमान के कारण फिजी के कोरल रीफ दम तोड़ रहे हैं.
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तटों का कटाव
यह फिजी के द्वीप विती लेवु के दक्षिण इलाके की तस्वीर है जो दिखाती है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर और तूफानों से किस तरह तटों का कटाव हो रहा है. पृथ्वी के कटाव को रोकने में मदद करने वाले ताड़ के पेड़ अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं.
तस्वीर: DW/A. March
लोगों के प्रयास
बढ़ते जलस्तर और तटों के कटाव को देखते हुए नामाटाकुला गांव के लोगों ने कमर कसी. 2017 में उन्होंने जलवायु परिवर्तन के मुताबिक खुद को ढालने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया. ये लोग तटों की सफाई और पेड़ लगाकर स्थिति को बेहतर बनाने में जुटे हैं.
तस्वीर: DW/A. March
तबाह हुआ गांव
फरवरी 2016 में विंस्टन तूफान फिजी के दूसरे सबसे बड़े द्वीप पर वुनिसावीसावी गांव के ज्यादातर मकानों को अपने साथ बहा कर ले गया. जो कुछ भी बचा, बहुत से लोग उसे छोड़कर ऊंचे इलाकों पर रहने चले गये.
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नहीं छोड़ा गांव
सेपेसा किलिमो वुनिसावीसावी गांव के उन लोगों में हैं जो अब भी यहीं रहते हैं. उनके परिवार के सदस्य जा चुके हैं. वह कहते है कि दूसरी जगह घर तो मिल जाएगा लेकिन समंदर से दूर हो जाएंगे जिससे मछलियों से होने वाली उनकी आमदनी बंद हो जाएगी.
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मुश्किल फैसला
वुनिसावीसावी के बहुत से बुजुर्गों ने गांव छोड़ कर जाने से इनकार कर दिया है. वे कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने इस जमीन की रक्षा की जिम्मेदारी उनके कंधों पर सौंपी थी. लेकिन 85 साल की मारिया लोलोयू ने सुरक्षित जगह पर जाने का फैसला किया.
तस्वीर: DW/A. March
पर्यटन पर मार
फिजी कभी दुनिया भर के सैलानियों की पसंदीदा मंजिल था. लेकिन अब उसका यह आकर्षण भी घट रहा है. इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि पानी के बढ़ते तापमान से जब कोरल ही खत्म हो जाएंगे तो लोग फिजी नहीं आएंगे.
तस्वीर: DW/A. March
फैंटेसी आइलैंड
कुछ लोग पर्यटन से होने वाली आमदनी को बनाये रखने के तरीके तलाश रहे हैं. इन्हीं में से एक है कृत्रिम द्वीप बनाना. फैंटेसी आइलैंड समंदर जमीन हासिल करना का सबसे बड़ा उदाहरण है. इस प्रोजेक्ट ने कई फाइव स्टार रिसॉर्ट्स का ध्यान खींचा है.