चीन को रोकने के लिए भूटान में भारी निवेश कर रहा है भारत
शिवांगी सक्सेना
१९ नवम्बर २०२५
भारतीय प्रधानमंत्री ने पिछले हफ्ते भूटान का दौरा किया था. चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने और भूटान के साथ अपने मजबूत संबंध बनाए रखने के लिए भारत ने वहां कई घोषणाएं की.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते पड़ोसी देश भूटान का दौरा कियातस्वीर: Press Information Bureau/REUTERS
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते पड़ोसी देश भूटान का दौरा किया. इस दौरान पीएम मोदी ने भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक से राजधानी थिंपू में मुलाकात की. बैठक में दोनों देशों ने ऊर्जा, कनेक्टिविटी और सांस्कृतिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए. यह वर्ष 2014 के बाद से पीएम मोदी का इस हिमालयी देश का चौथा दौरा था. भूटान भारत के लिए बेहद अहम देश है. खासकर तब जब चीन अपना क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ा रहा है.
दरअसल भूटान की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए चीन से सुरक्षा के दृष्टिकोण से जरुरी है. भूटान पूर्वी हिमालय में भारत और चीन के बीच स्थित है. भूटान, भारत और चीन की सीमाओं पर स्थित डोकलाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी में अहम भूमिका निभाता है. डोकलाम दक्षिण तिब्बत, भूटान और सिक्किम के बीच है. चीन इस इलाके पर दावा करता है. जबकि भूटान इसे अपना क्षेत्र मानता है. यदि चीन इस क्षेत्र में सड़क या सैन्य गतिविधियां बढ़ाता है, तो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. इसी कारण वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच यहां तनाव भी देखा गया था.
हाल के वर्षों में चीन भूटान में व्यापार, परिवहन, टेलीकॉम और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. अगर भूटान में चीन का प्रभाव और बढ़ता है, तो यह सीधे भारत की सुरक्षा और रणनीतिक हितों के लिए चुनौती बन सकता है.
कई महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर हुए हस्ताक्षर
भारतीय प्रधानमंत्री का दो दिवसीय दौरा कई मायनों में अहम रहा. इस दौरान भारत और भूटान सरकार के बीच कुल तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. नरेंद्र मोदी ने भूटान के वर्तमान राजा के पिता और पूर्व राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक की 70वीं जन्मदिन की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया. मोदी ने इस दौरान भी कई घोषणाएं की.
क्या है रेअर अर्थ, जिसकी चाबी चीन के पास है
डॉनल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात पर दुनियाभर की नजरें थीं. मीटिंग के सबसे अहम एजेंडा में रेअर अर्थ भी शामिल था. क्या है रेअर अर्थ? दुनिया को इसकी इतनी ज्यादा जरूरत क्यों है, और सप्लाई की चाबी चीन के पास क्यों है?
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17 धातुओं का एक समूह है रेअर अर्थ
डॉनल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की ताजा मुलाकात से दो चर्चित हासिल निकले. एक, टैरिफ घटाने का एलान. और दूसरा, रेअर अर्थ देने पर चीन की रजामंदी. रेअर अर्थ, या दुर्लभ खनिज संपदा 17 एलिमेंट्स का एक समूह है. इनमें ज्यादातर हैवी-मैटल हैं.
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सभी 17 रेअर अर्थ एलिमेंट्स के नाम
पीरियॉडिक टेबल के क्रम अनुसार इन तत्वों के नाम हैं: स्कैंडियम, इट्रियम, लैंथनम, सेरियम, प्रेजियोडिमियम, नियोडिमियम, प्रॉमीथियम, समैरियम, यूरोपियम, गैडोलिनियम, टेर्बियम, डिस्प्रोजियम, होल्मियम, एर्बियम, थूलियम, इटैर्बियम और लूटीशियम.
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कहां मिलता है ये?
हमारी पृथ्वी की तीन परतें हैं: क्रस्ट, मैंटल और कोर. क्रस्ट सबसे बाहरी परत है. ये सख्त चट्टानों और खनिजों से बनी है. रेअर अर्थ इसी हिस्से में पाया जाता है. यूनाइटेड स्टेट्स जिओलॉजिकल सर्वे का अनुमान है कि हमारी दुनिया में तकरीबन 110 मिलियन मीट्रिक टन रेअर अर्थ का भंडार है. इसमें से 44 मिलियन मीट्रिक टन अकेले चीन के पास है. वही इसका सबसे बड़ा उत्पादक है.
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इतना बड़ा भंडार, फिर रेअर क्यों कहते हैं
आमतौर पर ऐसा कुछ जो बहुत कम या असामान्य हो, दुर्लभ कहलाता है. रेअर अर्थ इस आशय में रेअर नहीं हैं. लेकिन, ये पृथ्वी के क्रस्ट में छोटी-छोटी मात्रा में फैले हैं. ऊपर से, ये दूसरे खनिजों के साथ मिले होते हैं. ऐसे में, कोयले की तरह एक जगह पर इनका विशाल भंडार मिलना मुश्किल है. नतीजतन, इसकी माइनिंग महंगी पड़ती है.
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किन चीजों में जरूरत पड़ती है?
रेअर अर्थ या उनसे बने रेअर अर्थ मैग्नेट, जरूरत की ऐसी ढेरों चीजों के लिए चाहिए जो बड़ी जरूरी हैं. इनमें रोजमर्रा की जरूरत की चीजें भी हैं, जैसे कि आईफोन, वॉशिंग मशीन, इलेक्ट्रिक गाड़ियां.
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इनकी सप्लाई ना मिले, तो क्या होगा?
काफी उन्नत उपकरण और मशीनरी में भी इनकी जरूरत है. जैसे कि मिसाइल, रेडार सिस्टम, मेडिकल उपकरण, तेल की रिफाइनिंग. इनकी उपलब्धता ना हो, तो सप्लाई चेन रुक जाएगी. मसलन, इस साल अप्रैल में जब चीन ने इनके निर्यात पर मुट्ठी बंद की, तो कई कार निर्माताओं को अपना उत्पादन रोकना पड़ा.
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कब से हो रही है इनकी माइनिंग?
दिलचस्प है कि रेअर अर्थ्स को बाकी खनिजों से अलग करने और उनसे अशुद्धियां-मिलावट दूर करने की प्रक्रिया विकसित करने में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मदद की. ये बात है 1950 के दशक की. लेकिन, 1980 के दशक से ही चीन का इस इंडस्ट्री में दबदबा बनने लगा. इसकी कई वजहें थीं. जैसे कि कम लागत, पर्यावरण संबंधी कमजोर नियम और सरकारी मदद.
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रेअर अर्थ्स की माइनिंग से पर्यावरण पर क्या असर?
रेअर अर्थ्स की प्रॉसेसिंग में अक्सर बहुत भारी रसायन इस्तेमाल होते हैं. इनसे निकला विषैला कचरा मिट्टी, पानी और आबोहवा को प्रदूषित कर सकता है. अब ज्यादा ईको-फ्रेंडली तकनीकें विकसित की जा रही हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल बहुत कम ही होता है. प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण कई देशों में इस सेक्टर को विकसित करने की राह में पर्यावरण कानूनों की अड़चन आती है.
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अभी बना रहेगा चीन का दबदबा
आज दुनिया में खनन के हिसाब से जितना उत्पादन होता है, उसका 60 फीसदी हिस्सा चीन में होता है. रिफाइन्ड प्रॉडक्शन और रेअर अर्थ मैग्नेट उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है. वैकल्पिक सप्लाई चेन विकसित करने के लिए अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में नई परियोजनाएं चल रही हैं. लेकिन इन्हें संतोषजनक उत्पादन शुरू करने में कई साल लगेंगे. और, इस वजह से रेअर अर्थ में अभी चीन का दबदबा बरकरार रहेगा.
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भारत ने असम के हतीसर में एक नया इमिग्रेशन चेक‑पॉइंट बनाने का निर्णय लिया है. इस चेक‑पॉइंट से भूटान के नजदीकी शहर गेलेफू तक जाने वाले यात्रियों की यात्रा आसान और तेज हो जाएगी. भारत दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी स्थापित करने के लिए कई कदम उठा रहा है. इस वर्ष सितंबर में भारत ने ट्रेन परियोजनाओं की घोषणा की थी. भूटान अब भारत के रेल नेटवर्क से सीधे जुड़ जाएगा.
कोकराझार‑गेलेफू लाइन भारत के असम राज्य को भूटान के दक्षिणी जिले गेलेफू से जोड़ेगी. वहीं दूसरी रेलवे लाइन पश्चिम बंगाल के बनारहाट से भूटान के दक्षिण पश्चिमी जिले समत्से तक जाएगी.
भारत बढ़ाएगा भूटान में निवेश
भारत सरकार ने भूटान की पंचवर्षीय योजना के लिए दस हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा की है. भारत ने भूटान को ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए चार हजार करोड़ रूपए की रियायती क्रेडिट लाइन या ऋण सहायता देने का भी वादा किया है.
इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने 1020 मेगावॉट पुनात्सांगछू‑II हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना का उद्घाटन किया. इसे बनाने में भारत ने सहयोग किया है. साथ ही पुनात्सांगछू हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना-I का फिर से निर्माण शुरू होगा.
भारत की निजी कंपनियों टाटा पॉवर, अडानी ग्रुप और रिलायंस पॉवर ने भी भूटान की ड्रंक ग्रीन पॉवर कॉर्पोरेशन के साथ समझौते किए हैं. इन समझौतों के तहत आने वाले वर्षों में भूटान में और हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं का विकास किया जाएगा. साथ ही गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी बनाने के लिए भारत ने सहयोग देने की घोषणा की है. इसके अलावा भारत भूटानी समुदाय के लिए वाराणसी में मंदिर और अतिथि गृह बनवाएगा.
दुनिया के सबसे इनोवेटिव देश, चीन पहली बार टॉप 10 में
संयुक्त राष्ट्र ने इनोवेटिव देशों की अपनी सालाना रैंकिंग जारी की है. इस रैंकिंग में चीन पहली बार टॉप 10 देशों में शामिल हुआ है और जर्मनी बाहर हो गया है.
तस्वीर: Lian Yi/Xinhua/IMAGO
स्विट्जरलैंड, सबसे इनोवेटिव देश
स्विट्जरलैंड लगातार 15वें साल दुनिया का सबसे इनोवेटिव देश बना रहा है. हालांकि पूरी दुनिया में इनोवेशन का स्तर 15 साल में सबसे नीचे पहुंच गया है.
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स्वीडन
दूसरे नंबर पर स्थिर, छोटे देश के बावजूद रिसर्च में मजबूत स्वीडन ने पिछले साल की अपनी रैंकिंग बरकार रखी है और वह दुनिया का दूसरा सबसे इनोवेटिव देश आंका गया है.
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अमेरिका
तीसरे नंबर पर अमेरिका है जिसकी रफ्तार को जेनरेटिव एआई और मेगा-डील्स ने गति दी है. पिछले साल भी अमेरिका तीसरे नंबर पर था.
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दक्षिण कोरिया
टेक और सेमीकंडक्टर में मजबूत स्थिति के साथ दक्षिण कोरिया को इस साल भी दुनिया का चौथा सबसे इनोवेटिव देश आंका गया है.
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सिंगापुर
सिंगापुर ने इनोवेशन को लेकर नीतियां बनाने और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में काफी गंभीरता दिखाई है. इसके चलते वह इस साल भी पांचवें नंबर पर कायम है.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन ने रिसर्च संस्थानों को मजबूत करने पर काफी काम किया है जिसके चलते इनोवेशन के नतीजे नजर आए हैं और वह छठे नंबर पर है.
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फिनलैंड
फिनलैंड ने शिक्षा पर काफी जोर दिया है और वह दुनिया का सातवां सबसे इनोवेटिव देश बना हुआ है.
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नीदरलैंड्स
शोध और हाई-टेक एक्सपोर्ट में अगुआ नीदरलैंड्स को इनोवेटिव तकनीकों और प्रॉडक्ट्स के लिए काफी नाम मिला है और वह आठवें नंबर पर है.
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डेनमार्क
डेनमार्क ने पर्यावरण के अनुकूल तकनीक के विकास और रिसर्च के क्षेत्र को बेहतर बनाया है. इसके आधार पर वह नौवें नंबर पर है.
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चीन, पहली बार टॉप 10 में
इनोवेटिव देशों की सूची में चीन पहली बार टॉप 10 में पहुंच गया है. उसने जर्मनी को पीछे छोड़ा है जो अब 11वें नंबर पर खिसक गया है.
तस्वीर: Odd Andersen/AFP
भारत
भारत इस सूची में 38वें नंबर पर है. हालांकि लोअर मिडल इनकम ग्रुप और मध्य और दक्षिण एशिया ग्रुप में उसे पहला नंबर मिला है.
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भूटान को चीन के हाथों नहीं जाने देना चाहता भारत
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्पेशल सेंटर फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित सिंह भूटान और भारत के संबंधों में चीन के साथ सीमा विवाद को अहम कड़ी के तौर पर देखते हैं. वर्ष 2017 में डोकलाम में तनाव पैदा हुआ था. अमित सिंह कहते हैं कि भूटान चीन के साथ सीधे संघर्ष में नहीं जाना चाहता. भूटान हमेशा चाहता है कि सीमा विवाद को बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से हल किया जाए. इसी वजह से भूटान वर्ष 2023 से चीन के साथ बातचीत करने का प्रयास कर रहा है.
इस बीच चीन ने भूटान में अपने निवेश को बढ़ाया है. दोनों देशों के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है. वर्ष 2023 में भूटान का चीन से कुल आयात लगभग 83.32 मिलियन डॉलर था.
डॉ. अमित सिंह बताते हैं कि भारत भूटान के साथ कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स का इस्तेमाल अपनी रणनीतिक सुरक्षा और स्थिति मजबूत करने के लिए कर सकता है. वह कहते हैं, "भारत यह बिल्कुल नहीं चाहता कि भूटान चीन की ओर झुके. इसलिए भारत ने भूटान के साथ विभिन्न परियोजनाओं की शुरुआत की है. ट्रेन कनेक्टिविटी आने से दोनों देशों के बीच व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा भारत और भूटान के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध भी गहरे हैं. भूटान समझता है कि चीन की छवि अच्छी नहीं है. चीन को विस्तारवादी राष्ट्र के रूप में देखा जाता है और वह स्थिरता बनाए रखने में विश्वास नहीं रखता. ऐसे में भारत की दिशा सही है और भूटान भी चाहता है कि भारत उसे इस मामले में समर्थन करे."
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भारत के पूर्वी पड़ोसी देशों में भूटान पहले से अहम
भूटान अपनी कुल आय का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा हाइड्रोइलेक्ट्रिक बिजली उत्पादन और उसके निर्यात से कमाता है. इसका बहुत सारा हिस्सा भारत को निर्यात किया जा रहा है. भारत इसका इस्तेमाल अपने पूर्वी राज्यों के विकास के लिए करता है. भूटान की मुद्रा की कीमत भारतीय रुपये के बराबर है. भूटान आम तौर पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के पक्ष में खड़ा रहता है.
ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर एलिजाबेथ रोश भूटान से नजदीकी की वजह भारत के पड़ोसी देशों में जारी अस्थिरता को मानती हैंतस्वीर: Elizabeth Roche
ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में एसोसिएट प्रोफेसर एलिजाबेथ रोश ने कहा कि पीएम मोदी की यात्रा का संदर्भ समझना जरुरी है. वो कहती हैं, "वर्ष 2000 के शुरुआती वर्षों में भूटानी सेना ने वहां के राजा के कहने पर भारतीय विद्रोही समूहों (इंसर्जेंट्स) के खिलाफ भारत की मदद की. इस समय भारत के पूर्व में देशों की स्थिति अस्थिर है. बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता पूरी तरह से कायम नहीं है. भविष्य में उसकी भारत के साथ सहयोग की दिशा भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही. म्यांमार में गृहयुद्ध और आंतरिक संघर्ष जारी है. ऐसे में भारत की नजर भूटान की ओर है."
भारत पड़ोसी देशों के साथ अपनी रणनीति में बदलाव ला रहा है. भारत और भूटान के बीच लंबे समय से घनिष्ठ आर्थिक और सुरक्षा संबंध रहे हैं. भारत इन संबंधों को आगे बढ़ाना चाहता है.