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प्याज किसान क्यों कह रहे हैं "हमें चुनाव से डर लगता है"

आमिर अंसारी
३१ मई २०२४

लोकसभा चुनाव के दौरान भारत सरकार ने प्याज निर्यात पर लगी रोक हटा तो ली लेकिन कई किसान अब भी परेशान हैं.

महाराष्ट्र के प्याज किसान
महाराष्ट्र के प्याज किसानतस्वीर: Getty Images/Afp/I. Mukherjee

करीब 6 महीने तक प्याज निर्यात पर सरकार की रोक रही और केंद्र सरकार ने मई की शुरुआत में इसके निर्यात को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी. दरअसल प्याज और उससे जुड़ी राजनीति किसी भी दल के लिए फायदे का सौदा है. प्याज कभी सत्ता दिला देती है या फिर सत्ता से बेदखल भी कर देती है.

केंद्र सरकार ने प्याज किसानों को खुश करने के लिए 4 मई को एक नोटिफिकेशन जारी कर निर्यात पर लगी रोक हटाई थी. लेकिन इसमें दो शर्तें भी जोड़ी गईं जिनके मुताबिक प्याज का निर्यात 550 डॉलर प्रति टन से कम रेट पर नहीं होगा और निर्यात पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगेगी.

ऐसा कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र के प्याज किसानों को खुश करने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का फैसला किया गया. पिछले 6 महीने से निर्यात पर लगी रोक के कारण प्याज उत्पादकों और व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा.

क्या कहते हैं किसान 

नासिक के प्याज किसान कान्हा विष्णु गुलावे कहते हैं, "सरकारें हमारे बारे में बहुत बातें करती हैं. लेकिन उनकी हरकतें सिर्फ हमें नुकसान पहुंचाती हैं. सरकार शहरी लोगों को खुश करने के लिए हमारी उपज को सस्ता कर देती है."

28 साल के गुलावे महाराष्ट्र के नासिक के रहने वाले हैं. महाराष्ट्र देशभर में लगभग 40 प्रतिशत प्याज का उत्पादन करता है. दिसंबर में अचानक निर्यात प्रतिबंध लगने के बाद जब कीमतें गिर गईं तो गुलावे ठगा हुआ महसूस करने लगे.

महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भारत दिघोले कहते हैं, "हमें चुनावों से डर लगता है. सबसे मूर्खतापूर्ण हस्तक्षेप मतदान के समय होता है." दिघोले ने बताया कि प्रतिबंध के बाद प्याज की कीमतें एक तिहाई तक जा गिरीं. प्याज के दाम गिरने पर महाराष्ट्र में छोटे-छोटे विरोध प्रदर्शन भी हुए.

दिघोले कहते हैं, "सभी चुनाव किसानों के नाम पर लड़े जाते हैं, लेकिन सरकार की नीति स्पष्ट रूप से उपभोक्ताओं के पक्ष में होती है."

लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में 1 जून को मतदान होना है. छह हफ्तों तक चला चुनावी अभियान सबसे लंबा और थकाऊ रहा. भारत की 1.4 अरब आबादी में से दो-तिहाई लोग अपनी आजीविका कृषि से हासिल करते हैं, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग पांचवां हिस्सा है.

जब प्याज ने गिराई सरकार

भारत में प्याज किसी सरकार की लोकप्रियता का पैमाना हो सकता है. प्याज के बढ़े हुए दाम बीते समय में बड़े विरोध प्रदर्शन का कारण भी बन चुके हैं.

साल 1998 में प्याज की बेकाबू कीमतों ने दिल्ली में बीजेपी की सरकार गिरा दी थी. दिल्ली में प्याज के बढ़ते दाम दिल्ली में बीजेपी की सरकार के गिरने का प्रमुख कारण बने थे. अब जबकि प्रधानमंत्री मोदी के मौजूदा लोकसभा चुनावों में तीसरी बार जीत हासिल करने की उम्मीद जताई जा रही है, बीजेपी तब से राजधानी की सत्ता से बाहर है.

महाराष्ट्र के प्याज बेल्ट में मतदान शुरू होने से कुछ दिन पहले मोदी सरकार ने निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया, लेकिन विश्लेषक इसे एक राजनीतिक चाल बताते हैं. इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इकोनॉमिक रिलेशंस के अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी कहते हैं, "प्याज बाजार को खोलना महज जुमला है."

सरकार के मुताबिक प्याज का निर्यात 550 डॉलर प्रति टन से कम रेट पर नहीं होगा और निर्यात पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगेगीतस्वीर: AP

दर्द में प्याज के किसान

गुलाटी ध्यान दिलाते हैं "प्रतिबंध बने हुए हैं, जिनमें न्यूनतम निर्यात मूल्य और 40 प्रतिशत ड्यूटी शामिल हैं." उन्होंने कहा, "इससे निर्यात अव्यवहारिक हो गया है, जिससे किसानों की आंखें नम हो गई हैं."

30 साल के किसान अक्षय तारले कहते हैं, "हमारी सबसे अच्छी उम्मीद यह है कि हम उपज घाटे में न बेचें."

एक और किसान विकास बाबाजी तुषार कहते हैं, "जब मैं सुबह घर से निकलता हूं तो मुझे यह नहीं पता होता है कि मैं उचित दाम पर अपनी उपज बेच पाऊंगा या नहीं." 36 साल के इस किसान ने आगे कहा, "मेरे परिवार वाले मुझसे घर लौटते समय कुछ खरीदने के लिए कहते हैं, लेकिन कई दिन तो मेरे पास पैसे भी नहीं होते. मुझे यह भी नहीं पता कि मैं अपने बच्चों को क्या बताऊं."

गुलाटी चेतावनी देते हैं कि निर्यात प्रतिबंध और दाल जैसे अन्य उत्पादों के अनियंत्रित आयात से बाजार विकृत हो रहा है और उत्पादकों को नुकसान हो रहा है. दाल कई लोगों के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत है.

"महंगी प्याज से डरती है सरकार"

रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय दालों का आयात 2023-24 में छह साल के उच्च स्तर लगभग 3.75 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. गुलाटी कहते हैं, "दालों का ड्यूटी फ्री इंपोर्ट घरेलू उत्पादन में हुई प्रगति को नुकसान पहुंचाएगा."

नासिक में थोक प्याज बाजार के उपाध्यक्ष जगन्नाथ भीमाजी कुटे कहते हैं, "सरकार में बैठे लोगों को डर है कि अगर प्याज की कीमतें बढ़ीं तो सरकार गिर जाएगी." उन्होंने कहा, "जो कोई भी अगली बार सत्ता में आता है उसे हमारे मुद्दों पर ध्यान देना होगा."

कुटे ने कहा लोगों को किसानों के बारे में सोचना चाहिए. उन्होंने सवाल किया कि लोग पेट्रोल-डीजल और खाना पकाने के तेल की बढ़ती कीमतों को क्यों सहन कर लेते हैं, पर महंगे खाद्यान्न को नहीं.

उन्होंने कहा, "जब बाकी सब चीजें महंगी होती जा रही है, तो हम जो पैदा कर रहे हैं वह सस्ता क्यों रहना चाहिए?"

(एएफपी से जानकारी के साथ)

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