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मालदीव में बढ़ता जा रहा है भारत विरोधी 'इंडिया आउट' अभियान

२१ दिसम्बर २०२१

मालदीव में एक भारत-विरोधी आंदोलन खड़ा हो रहा है जो बीते कुछ हफ्तों में बड़ा रूप धारण कर चुका है. 'इंडिया आउट' नाम के इस अभियान में कुछ लोग मांग कर रहे हैं कि भारत की सेना को वहां से बाहर निकाला जाए.

Big Picture "Traumurlaub für Geimpfte" | Maldives
तस्वीर: LAKRUWAN WANNIARACHCHI/AFP/Getty Images

मालदीव के 'इंडिया आउट' आंदोलन का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन कर रहे हैं जिन्हें चीन का करीबी माना जाता है. 2018 में वह चुनाव हार गए थे. बाद में उन्हें हवालेबाजी और एक अरब डॉलर के सरकारी धन का दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया. इसके लिए 2019 में यामीन को पांच साल की सजा हुई थी. कोविड-19 के कारण उनकी जेल की सजा को घर में नजरबंदी में तब्दील कर दिया गया.

बीते नवंबर में यामीन के खिलाफ लगे सारे आरोप खारिज कर दिए गए और 30 तारीख को उन्हें रिहा कर दिया गया. इससे उनका दोबारा राजनीति करने का रास्ता भी साफ हो गया.

यामीन के रिहा होने के कुछ ही दिन बाद 'इंडिया आउट' आंदोलन ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है. यामीन की ‘प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम)' इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही है.

अब यह अभियान सोशल मीडिया पर भी खासी चर्चा बटोर रहा है. लाल टीशर्ट पहने यामीन के समर्थकों की तस्वीरें कई प्लैटफॉर्म पर वायरल हो रही हैं. इन टीशर्ट पर ‘इंडिया आउट' लिखा हुआ है.

इस महीने की शुरुआत में पीपीएम ने कहा था कि यामीन इस अभियान को ताकत देने के लिए देशभर की यात्रा करेंगे ताकि ‘हिंद माहासागर से घिरे द्वीपसमूह में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी' का विरोध किया जाए.

सरकार भारत के साथ

मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह इस बात से इनकार करते हैं कि देश में भारतीय सेना मौजूद है. उन्होंने भारत को अपना "सबसे करीबी सहयोगी और विश्वसनीय पड़ोसी” बताया. भारत के राजदूत मुनू महावर के एक कार्यक्रम में सोलिह के साथ नजर आने के बाद राष्ट्रपति की ओर से यह बयान जारी किया गया.

19 दिसंबर को मालदीव की सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि कुछ लोग भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं. सरकार ने कहा, "हम इस बात को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं कि मालदीव के सबसे करीबी द्विपक्षीय सहयोगियों में से एक भारत के खिलाफ नफरत फैलाने के मकसद से व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह और कुछ नेतागण दिग्भ्रमित और बेसिरपैर की सूचनाएं फैला रहे हैं.”

सरकार ने लोगों से कहा कि वे अभिव्यक्ति की अपनी आजादी के अधिकार का इस्तेमाल जिम्मेदाराना तरीके से करें. बयान में कहा गया, "पड़ोसी देशों के खिलाफ नफरत फैलाना ना सिर्फ उन पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को खराब करता है जो मालदीव के लोगों की मदद करते रहे हैं बल्कि यहां रहने वाले उनके नागरिकों और विदेशों में बसे मालदीव के लोगों की सुरक्षा को भी खतरा पैदा करता है.”

सरकार ने सभी राजनीतिक दलों, खासकर नेतागण से जिम्मेदारी से व्यवहार करने और गलत सूचनाएं फैलाने से बचने का आग्रह किया है. हालिया हफ्तों में यह दूसरी बार है जब सरकार ने इस तरह का बयान जारी किया है. दो दिन पहले भी ऐसा ही बयान जारी कर ‘गलत सूचनाएं फैलाने की कोशिशों की कड़ी निंदा' की गई थी.

क्यों है विवाद?

मालदीव में भारत को लेकर प्रमुख विवाद भारतीय नौसेना के बेड़ों की मौजूदगी को लेकर है. वहां भारतीय नौसेना का एक डोर्नियर विमान और दो हेलीकॉप्टर हैं जो 200 यहां-वहां फैले छोटे द्वीपों से मुख्यतया मरीजों को इलाज के लिए अस्पतालों तक पहुंचाने का काम करते हैं.

इसके अलावा ये विमान मालदीव के विशाल इकॉनमिक जोन को अवैध मछली पकड़ने से भी बचाने के लिए इस्तेमाल होते हैं. लेकिन विपक्षी नेताओं का कहना है कि विदेशी सेना की मौजूदगी मालदीव की संप्रभुता का अपमान है.

2013-2018 में अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान भारत और मालदीव के संबंधों में दूरियां बढ़ी थीं. तनाव तब अपने चरम पर पहुंच गया था जब यामीन ने लामू और अड्डू द्वीपों से भारत को अपने हेलिकॉप्टर हटाने का आदेश दे दिया.

क्यों अहम है मालदीव ?

मालदीव भारत के लिए हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकाना है. यह एक छोटा देश है लेकिन यहां के लोग राष्ट्रीय गौरव को बहुत अहमियत देते हैं. ब्रिटेन भी इस देश पर कभी कब्जा नहीं कर पाया था और यहां के लोगों के साथ उसने सुरक्षा का समझौता किया था.

मालदीव सार्क का भी सदस्य है और खाड़ी देशों से ऊर्जा संसाधनों की सारी सप्लाई इसी के आसपास से होकर गुजरती है. इसलिए अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश मालदीव को खासी अहमियत देते हैं.

2020 में अमेरिका ने मालदीव के साथ बड़ा रक्षा समझौता किया था जिसका भारत ने भी स्वागत किया था. दक्षिण एशिया में चीन का मुकाबला करने के लिए भारत और अन्य पश्चिमी देश मालदीव में मौजूदगी को जरूरी मानते रहे हैं.

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