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क्या भारत के साथ रिश्ते सुधार पाएंगे शहबाज शरीफ?

१२ अप्रैल २०२२

पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीर का मुद्दा उठाया है तो वहीं भारत ने उन्हें आतंकवाद पर लगाम लगाने की नसीहत दी है. दोनों देशों के बीच लंबे समय से बातचीत ठप है. क्या आने वाले समय में बातचीत संभव है?

तस्वीर: National Assembly of Pakistan/AP/picture alliance

पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत से बेहतर रिश्तों की हिमायत की है, लेकिन साथ ही उन्होंने संसद में दिए अपने पहले भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, "हम भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन कश्मीर मुद्दे के हल के बिना इसे हासिल नहीं किया जा सकता है." उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हुए कहा, "आइए इस मुद्दे का हल खोजें और जनता को गरीबी, बेरोजगारी से बाहर निकालें. खुशहाली लेकर आएं."

नए प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने भी शहबाज शरीफ को बधाई देते हुए ट्वीट किया और आतंकवाद पर नसीहत भी दी. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "मोहम्मद शहबाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने पर बधाई. भारत क्षेत्र में शांति और स्थिरता चाहता है जो आतंकवाद से मुक्त हो, ऐसा होने पर हम विकास रूपी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे और अपने लोगों की भलाई और समृद्धि को सुनिश्चित कर सकेंगे."

मोदी ने अपने बधाई संदेश में आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया है जो कि भारत की तरफ से एक अहम सियासी संदेश माना जा रहा है. मोदी ने ट्वीट में स्पष्ट कर दिया है कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता तभी संभव है जब आतंकवाद पर काबू पाया जाएगा. भारत लगातार कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का आरोप लगाता आया है.

शहबाज ने अपने भाषण में कहा था, "हम कश्मीरी लोगों को उनके हाल पर नहीं छोड़ सकते. कूटनीतिक तौर पर हम कश्मीरी लोगों को अपना समर्थन देना जारी रखेंगे."

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"आतंकवाद पर लगाम लगाए पाकिस्तान"

इस बीच अमेरिका दौरे पर गए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए कहा कि अपने पड़ोसी देश के नए प्रधानमंत्री (शहबाज शरीफ) को यही संदेश देना चाहेंगे कि वे अपने यहां आतंकवाद पर लगाम लगाने में कामयाबी हासिल करें. राजनाथ ने कहा, "हमारी उनको शुभकामनाएं हैं." राजनाथ सिंह 2+2 वार्ता के लिए अमेरिका दौरे पर हैं.

वरिष्ठ पत्रकार और विदेश मामलों की जानकार स्मिता शर्मा कहती हैं कि भारत किसी भी कीमत पर आतंकवाद का मुद्दा नहीं छोड़ेगा. वे कहती हैं, "भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में कश्मीर और आतंकवाद का मसला केंद्रीय मसला बना रहेगा. उसमें बात तब तक आगे नहीं बनेगी जब तक पाकिस्तान की सेना उस तरीके से ना चाहे कि इस मसले पर एक पन्ने पर आकर भारत के साथ सहयोग कर सके. क्योंकि भारत के 2024 के चुनाव में वापस से पाकिस्तान का मुद्दा जोरशोर से जरूर उछाला जाएगा."

भारत की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी

जानकार कहते हैं भारत की प्रतिक्रिया वैसी ही रहेगी जो पहले से चली आ रही है. वे कहते हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि बातचीत शुरू होगी. हार्ड न्यूज के संपादक संजय कपूर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "वहां की पूरी राजनीति कश्मीर के मुद्दे पर काफी गंभीर है. ऐसी बात नहीं है कि शहबाज इसको नजरअंदाज करना चाहते हैं. एकाध बार ऐसी कोशिश हुई तो वहां काफी रोष पैदा हुआ और उसकी आलोचना की गई." वे साथ ही कहते हैं कि भारत कश्मीर के मुद्दे पर किसी तरह के समझौते को तैयार नहीं है. 2019 में भारत ने कश्मीर को लेकर जो कदम उठाए उससे दुनिया को संदेश दे दिया गया कि यह मुद्दा विवादित नहीं और इसपर कोई चर्चा मुमकिन नहीं है.

स्मिता शर्मा का कहना है कि इस्लामाबाद में जो नई सरकार आई है उसके पास इस वक्त रिश्तों में सुधार लाने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं. साथ ही वे कहती हैं, "लेकिन यह जरूर है कि नवाज शरीफ जो कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहते हुए ऐसे कदम उठाए थे, घोषणाएं की थीं, जिससे बीच में एक सकारात्मक माहौल बना था. नवाज, मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. अब उन्हीं के भाई शहबाज प्रधानमंत्री बने हैं, वे एक पुराने खिलाड़ी हैं. एक छोटी सी कोशिश हो सकती है कि कम से कम बैक चैनल वार्ता को गति और प्राथमिकता दी जाए."

वे कहती हैं विश्वास बहाली के लिए कुछ और मुद्दे जैसे नदी और कारोबार से जुड़े मसलों पर बातचीत आगे बढ़ाई जाए क्योंकि इस वक्त पाकिस्तान में नई सरकार है और सेना वहां की ताजा राजनीतिक स्थिति में अपने आपको न्यूट्रल दिखाने की कोशिश कर रही है.

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कपूर कहते हैं जब से भारत में मोदी की सरकार बनी है बातचीत को कमजोरी का सबूत माना जाता है. खासकर पाकिस्तान के साथ. वे कहते हैं उन्हें नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में रिश्तों में कोई खास बदलाव आएगा. कपूर कहते हैं, "उत्तर प्रदेश के चुनाव में खासी कामयाबी मिली और उनको समर्थन मिला है. उनके लिए कोई वजह नहीं कि किसी से भी बात करें या समझौता करें."

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कपूर याद दिलाते हैं कि जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और वह जब पाकिस्तान से वार्ता करती थी, तो बीजेपी केंद्र सरकार का माखौल उड़ाती थी.

वहीं शरीफ एक बिजनेस परिवार से आते हैं और उन्हें यह पता है कि भारत से रिश्ते बेहतर हुए तो वहां कि अर्थव्यवस्था को भी फायदा हो सकता है. शरीफ चाहेंगे कि जल्द दोनों देशों के बीच रिश्ते पटरी पर आए और दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़े.

शरीफ परिवार हमेशा से भारत के साथ बेहतर संबंधों का हिमायती रहा है.  शहबाज की आखिरी भारत यात्रा दिसंबर 2013 में हुई थी जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा से मुलाकात की थी. तब पत्रकारों से बातचीत करते हुए शहबाज शरीफ ने कहा था "युद्ध कोई विकल्प नहीं है" और उन्होंने "सर क्रीक, सियाचिन, पानी और कश्मीर" समेत सभी मुद्दों पर "शांतिपूर्ण बातचीत" की बहाली के लिए जोर दिया था.

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