पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीर का मुद्दा उठाया है तो वहीं भारत ने उन्हें आतंकवाद पर लगाम लगाने की नसीहत दी है. दोनों देशों के बीच लंबे समय से बातचीत ठप है. क्या आने वाले समय में बातचीत संभव है?
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पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत से बेहतर रिश्तों की हिमायत की है, लेकिन साथ ही उन्होंने संसद में दिए अपने पहले भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, "हम भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन कश्मीर मुद्दे के हल के बिना इसे हासिल नहीं किया जा सकता है." उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हुए कहा, "आइए इस मुद्दे का हल खोजें और जनता को गरीबी, बेरोजगारी से बाहर निकालें. खुशहाली लेकर आएं."
नए प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने भी शहबाज शरीफ को बधाई देते हुए ट्वीट किया और आतंकवाद पर नसीहत भी दी. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "मोहम्मद शहबाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने पर बधाई. भारत क्षेत्र में शांति और स्थिरता चाहता है जो आतंकवाद से मुक्त हो, ऐसा होने पर हम विकास रूपी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे और अपने लोगों की भलाई और समृद्धि को सुनिश्चित कर सकेंगे."
मोदी ने अपने बधाई संदेश में आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया है जो कि भारत की तरफ से एक अहम सियासी संदेश माना जा रहा है. मोदी ने ट्वीट में स्पष्ट कर दिया है कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता तभी संभव है जब आतंकवाद पर काबू पाया जाएगा. भारत लगातार कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का आरोप लगाता आया है.
शहबाज ने अपने भाषण में कहा था, "हम कश्मीरी लोगों को उनके हाल पर नहीं छोड़ सकते. कूटनीतिक तौर पर हम कश्मीरी लोगों को अपना समर्थन देना जारी रखेंगे."
पाकिस्तान के नए पीएम कितने बेहतर साबित होंगे?
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"आतंकवाद पर लगाम लगाए पाकिस्तान"
इस बीच अमेरिका दौरे पर गए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए कहा कि अपने पड़ोसी देश के नए प्रधानमंत्री (शहबाज शरीफ) को यही संदेश देना चाहेंगे कि वे अपने यहां आतंकवाद पर लगाम लगाने में कामयाबी हासिल करें. राजनाथ ने कहा, "हमारी उनको शुभकामनाएं हैं." राजनाथ सिंह 2+2 वार्ता के लिए अमेरिका दौरे पर हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और विदेश मामलों की जानकार स्मिता शर्मा कहती हैं कि भारत किसी भी कीमत पर आतंकवाद का मुद्दा नहीं छोड़ेगा. वे कहती हैं, "भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में कश्मीर और आतंकवाद का मसला केंद्रीय मसला बना रहेगा. उसमें बात तब तक आगे नहीं बनेगी जब तक पाकिस्तान की सेना उस तरीके से ना चाहे कि इस मसले पर एक पन्ने पर आकर भारत के साथ सहयोग कर सके. क्योंकि भारत के 2024 के चुनाव में वापस से पाकिस्तान का मुद्दा जोरशोर से जरूर उछाला जाएगा."
भारत की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी
जानकार कहते हैं भारत की प्रतिक्रिया वैसी ही रहेगी जो पहले से चली आ रही है. वे कहते हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि बातचीत शुरू होगी. हार्ड न्यूज के संपादक संजय कपूर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "वहां की पूरी राजनीति कश्मीर के मुद्दे पर काफी गंभीर है. ऐसी बात नहीं है कि शहबाज इसको नजरअंदाज करना चाहते हैं. एकाध बार ऐसी कोशिश हुई तो वहां काफी रोष पैदा हुआ और उसकी आलोचना की गई." वे साथ ही कहते हैं कि भारत कश्मीर के मुद्दे पर किसी तरह के समझौते को तैयार नहीं है. 2019 में भारत ने कश्मीर को लेकर जो कदम उठाए उससे दुनिया को संदेश दे दिया गया कि यह मुद्दा विवादित नहीं और इसपर कोई चर्चा मुमकिन नहीं है.
स्मिता शर्मा का कहना है कि इस्लामाबाद में जो नई सरकार आई है उसके पास इस वक्त रिश्तों में सुधार लाने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं. साथ ही वे कहती हैं, "लेकिन यह जरूर है कि नवाज शरीफ जो कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहते हुए ऐसे कदम उठाए थे, घोषणाएं की थीं, जिससे बीच में एक सकारात्मक माहौल बना था. नवाज, मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. अब उन्हीं के भाई शहबाज प्रधानमंत्री बने हैं, वे एक पुराने खिलाड़ी हैं. एक छोटी सी कोशिश हो सकती है कि कम से कम बैक चैनल वार्ता को गति और प्राथमिकता दी जाए."
वे कहती हैं विश्वास बहाली के लिए कुछ और मुद्दे जैसे नदी और कारोबार से जुड़े मसलों पर बातचीत आगे बढ़ाई जाए क्योंकि इस वक्त पाकिस्तान में नई सरकार है और सेना वहां की ताजा राजनीतिक स्थिति में अपने आपको न्यूट्रल दिखाने की कोशिश कर रही है.
कपूर कहते हैं जब से भारत में मोदी की सरकार बनी है बातचीत को कमजोरी का सबूत माना जाता है. खासकर पाकिस्तान के साथ. वे कहते हैं उन्हें नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में रिश्तों में कोई खास बदलाव आएगा. कपूर कहते हैं, "उत्तर प्रदेश के चुनाव में खासी कामयाबी मिली और उनको समर्थन मिला है. उनके लिए कोई वजह नहीं कि किसी से भी बात करें या समझौता करें."
कपूर याद दिलाते हैं कि जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और वह जब पाकिस्तान से वार्ता करती थी, तो बीजेपी केंद्र सरकार का माखौल उड़ाती थी.
वहीं शरीफ एक बिजनेस परिवार से आते हैं और उन्हें यह पता है कि भारत से रिश्ते बेहतर हुए तो वहां कि अर्थव्यवस्था को भी फायदा हो सकता है. शरीफ चाहेंगे कि जल्द दोनों देशों के बीच रिश्ते पटरी पर आए और दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़े.
शरीफ परिवार हमेशा से भारत के साथ बेहतर संबंधों का हिमायती रहा है. शहबाज की आखिरी भारत यात्रा दिसंबर 2013 में हुई थी जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा से मुलाकात की थी. तब पत्रकारों से बातचीत करते हुए शहबाज शरीफ ने कहा था "युद्ध कोई विकल्प नहीं है" और उन्होंने "सर क्रीक, सियाचिन, पानी और कश्मीर" समेत सभी मुद्दों पर "शांतिपूर्ण बातचीत" की बहाली के लिए जोर दिया था.
पाकिस्तान में कितने लंबे टिके सारे प्रधानमंत्री
पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री आज तक अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. एक नजर 1947 से अब तक पाकिस्तान में प्रधानमंत्री बनने वालों और उनके कार्यकाल पर.
तस्वीर: STF/AFP/GettyImages
लियाकत अली खान: 4 साल दो महीने
15 अगस्त, 1947 को लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने, लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा न कर सके. 16 अक्टूबर, 1951 को रावलपिंडी में लियाकत अली खान की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
तस्वीर: Wikipedia/US Department of State
ख्वाजा नजीमुद्दीन: डेढ़ साल
लियाकत अली खान की हत्या के बाद अक्टूबर 1951 में ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. वह पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) से ताल्लुक रखते थे. 17 अप्रैल, 1953 को गवर्नर जनरल ने नजीमुद्दीन को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया.
तस्वीर: Douglas Miller/Keystone/Hulton Archive/Getty Images
मोहम्मद अली बोगरा: 2 साल 4 महीने
पूर्वी पाकिस्तान में पैदा हुए मोहम्मद अली बोगरा को देश का तीसरा पीएम नियुक्त किया गया. 17 अप्रैल, 1953 को ख्वाजा नजीमुद्दीन की छुट्टी के साथ बांग्ला भाषी बोगरा पीएम नियुक्त किए गए. लेकिन 12 अगस्त, 1955 को उन्हें भी पीएम पद से हटा दिया गया.
तस्वीर: gemeinfrei/wikipedia
चौधरी मोहम्मद अली: 13 महीने
12 अगस्त, 1955 को बोगरा की छुट्टी के साथ ही चौधरी मोहम्मद अली को पाकिस्तान का चौथा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. 1956 के संविधान में उनकी भूमिका अहम मानी जाती है. लेकिन पार्टी के सदस्यों के साथ मतभेदों के कारण 12 सितंबर, 1956 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: akg images/picture alliance
हुसैन शहीद सुहरावर्दी: 13 महीने
सुहरावर्दी 12 सितंबर, 1956 को प्रधानमंत्री बने. सुहरावर्दी की मातृभाषा बांग्ला थी. उनका 13 महीने का कार्यकाल पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के साथ अनबन में गुजरा. आखिरकार सुहरावर्दी ने 16 अक्टूबर, 1956 को इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: gemeinfrei/Wikipedia
इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर: 55 दिन
गुजरात के गोधरा में पैदा हुए और मुंबई में कानून की पढ़ाई करने वाले चुंदरीगर 16 अक्टूबर, 1956 को पाकिस्तान के छठे प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए. लेकिन जल्द ही उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया. 16 दिसंबर, 1956 को चुंदरीगर इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: gemeinfrei/wikimedia
फिरोज खान नून: 10 महीने से कम
16 दिसंबर, 1958 को फिरोज खान नून को राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री नियुक्त किया. उनके कार्यकाल में ही ग्वादर पाकिस्तान का हिस्सा बना. 6 अक्टूबर, 1956 को आर्मी चीफ जनरल अयूब खान ने मार्शल लॉ लागू करने के साथ ही सरकार को बर्खास्त कर दिया.
तस्वीर: Fox Photos/Hulton Archive/Getty Images
नूरुल अमीन: 13 दिन
पाकिस्तान के अंतिम बंगाली प्रधानमंत्री नूरुल अमीन सिर्फ 13 दिन प्रधानमंत्री रहे. वे पाकिस्तान के इतिहास में सबसे कम समय तक पीएम बनने वाले नेता है. दूसरे नंबर पर चुंदरीगर (55 दिन) आते हैं. अमीन 7 दिसंबर, 1971 से 20 दिसंबर, 1971 तक सत्ता में रहे, उसी दौरान पूर्वी पाकिस्तान में युद्ध हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ.
तस्वीर: gemeinfrei/wikipedia
जुल्फिकार अली भुट्टो: 3 साल 11 माह
जुल्फिकार अली भुट्टो 14 अगस्त, 1973 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के संस्थापक जुल्फिकार अली भुट्टो 5 जुलाई, 1977 तक प्रधानमंत्री रहे. 5 जुलाई, 1977 को आर्मी चीफ जिया उल हक ने सैन्य तख्तापलट कर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया. 24 मार्च, 1979 को रावलिपिंडी के जेल में भुट्टो को फांसी दे दी गई.
तस्वीर: imago/ZUMA/Keystone
मुहम्मद खान जुनेजो: 3 साल 2 महीने
सिंध के कद्दावर नेता मुहम्मद खान जुनेजो को 1985 में चुनाव जीतने के बाद जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान का 10वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया. रावलपिंडी कैंट में भीषण विस्फोट में 100 लोगों की मौत के बाद उन्होंने जांच का आदेश दिया. राष्ट्रपति और जनरल जिया को यह बात पसंद नहीं आई और संविधान संशोधन कर संसद को भंग कर दिया गया.
तस्वीर: Sven Simon/IMAGO
बेनजीर भुट्टो: दो अधूरे कार्यकाल
जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो 2 दिसंबर, 1988 को पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. लेकिन 6 दिसंबर, 1990 को राष्ट्रपति ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया.
तस्वीर: ZUMA Wire/IMAGO
नवाज शरीफ: तीन अधूरे कार्यकाल
पंजाब के दिग्गज नेता नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के पीएम बने. उनका पहला कार्यकाल नवंबर 1990 से अप्रैल 1993 तक रहा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. M. Chaudary
नवाज शरीफ: पार्ट 2
पंजाब के दिग्गज नेता नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के पीएम बने. उनके दूसरे कार्यकाल (फरवरी 1997 से अक्टूबर 1999) का अंत जनरल परवेज मुशर्रफ ने इमरजेंसी लगा कर किया.
तस्वीर: K.M. Chaudary/AP/dpa/picture alliance
जफरुल्लाह खान जमाली: 1 साल 6 महीने
नवंबर 2002 में जफरुल्लाह खान जमाली को सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. यह पारी 26 जून, 2004 को खत्म हो गई.
तस्वीर: Aamir Qureschi/AFP
चौधरी सुजात हुसैन: दो महीने
शौकत अजीज के अगला प्रधानमंत्री बनने तक चौधरी सुजात हुसैन को पाकिस्तान का 16वां पीएम बनाया गया. उनका कार्यकाल 30 जून, 2004 को शुरू हुआ 26 अगस्त, 2004 को खत्म.
तस्वीर: Bilawal Arbab/dpa/picture alliance
शौकत अजीज: 3 साल दो महीने
शौकत अजीज को 26 अगस्त, 2004 को प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया. संसद का कार्यकाल पूरा होने के कारण 15 नवंबर, 2006 को अजीज ने इस्तीफा दे दिया. अजीज पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने संसद का कार्यकाल पूरा होने के कारण इस्तीफा दिया.
तस्वीर: Yu Jie/HPIC/picture alliance
यूसुफ रजा गिलानी: 4 साल 1 माह
दिसंबर 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद फरवरी 2008 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. इन चुनावों में बेनजीर की पार्टी, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बहुमत मिला. पार्टी के नेता यूसुफ रजा गिलानी पीएम बने. बाद में अदालत की अवमानना के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण 2012 में उन्हें पीएम पद छोड़ना पड़ा.
तस्वीर: AP
राजा परवेज अशरफ: 9 महीने
गिलानी के पद से हटने के बाद सरकार के मंत्री राजा परवेज अशरफ ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सरकार के पीएम के रूप में कार्यकाल संभाला. वह 22 जून, 2012 से 24 मार्च, 2013 तक इस पद पर रहे.
तस्वीर: dapd
नवाज शरीफ: पार्ट 3
नवाज शरीफ तीसरी बार जून 2013 से अगस्त 2017 तक पीएम रहे. इस बार मुकदमे का कारण उन्हें पद के लिए अयोग्य करार दिया गया.
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood
शाहिद खाकान अब्बासी: एक साल
2013 के चुनावों में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) की जीत हुई और नवाज शरीफ तीसरी बार 4 साल 53 दिन तक पीएम बने. कोर्ट केस के कारण नवाज को पद छोड़ना पड़ा, लेकिन संसद के शेष कार्यकाल के दौरान उन्हीं की पार्टी शाहिद खाकान अब्बासी प्रधानमंत्री रहे.
तस्वीर: Reuters/J. Moon
इमरान खान: 3 साल 6 महीने
नया पाकिस्तान बनाने का नारा देकर 2018 के चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने सबसे ज्यादा सीटें जीती. गठबंधन ने इमरान खान को पीएम चुना. लेकिन 9 और 10 अप्रैल की रात इमरान अविश्वास प्रस्ताव हार गए.