अल जजीरा ने खबर दी है कि भारत हिंद महासागर में मॉरिशस के पास निर्माण कर रहा है, जिसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए हो सकता है.
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उपग्रह से मिली तस्वीरें कहती हैं कि मॉरिशस के द्वीप अगालेगा में दो नौसैनिक जेटी और एक बड़ी हवाई पट्टी बनाई जा रही हैं. अल जजीरा को कुछ सैन्य विशेषज्ञों ने बताया है कि लगभग तय है कि ये निर्माण सैन्य प्रयोग के लिए हैं.
वैसे ऐसी ही खबरें 2018 में भी आई थीं और तब भारत और मॉरिशस दोनों ने इस निर्माण को सैन्य इस्तेमाल से जुड़ा होने का खंडन किया और कहा कि यह द्वीप पर रहने वाले लोगों की जरूरतों के लिए है. मॉरिशस की मुख्य भूमि से करीब 1,100 किलोमीटर दूर स्थित इस द्वीप पर 300 लोग रहते हैं.
भारत ने हाल के दिनों में हिंद और प्रशांत महासागर में अपनी गतिविधियां और पहुंच बढ़ाई हैं. एक दिन पहले ही खबर आई थी कि भारत दक्षिण चीन सागर में अपना नौसैनिक टास्क फोर्स भेज रहा है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के साथ उसका सैन्य संपर्क भी लगातार बढ़ रहा है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि हिंद और प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों को लेकर प्रशांत क्षेत्र के देशों में चिंता बढ़ रही है इसलिए वे उसे संकेत भेजना चाहते हैं.
तस्वीरों मेंः भारत से कितना डरते हैं चीनी
भारत से कितना डरते हैं चीनी
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के सर्वे से पता चला है कि चीनी लोगों को भारत की सैन्य या आर्थिक कार्रवाई से कितना डर लगता है. देखिए चीन के दस बड़े शहरों के लगभग 2,000 लोगों की सोच के आधार पर क्या सामने आया.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press/I. Abbas
क्या चीन पर आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा निर्भर है भारत?
सर्वे में शामिल लगभग आधे लोगों को लगता है कि भारत की चीन पर बहुत अधिक आर्थिक निर्भरता है. वहीं 27 फीसदी को लगता है कि ऐसा नहीं है.
तस्वीर: REUTERS/Anindito Mukherjee
क्या भारतीय सेना चीन के लिए खतरा पैदा कर सकती है?
एक तिहाई से भी कम लोगों को लगता है कि भारतीय सेना चीन के लिए खतरा बन सकती है. वहीं 57 फीसदी से भी अधिक का मानना है कि कोई खतरा नहीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
क्या जरूरत से ज्यादा चीन-विरोधी भावनाएं फैली हैं?
लगभग 71 फीसदी चीनी लोगों का मानना है कि भारत में फिलहाल चीन को लेकर कुछ ज्यादा ही विरोध है. वहीं 15 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें यह ठीक लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki
चीनी उत्पादों के बहिष्कार वाले अभियान को कैसे देखते हैं?
35 फीसदी से अधिक चीनी इस पर बहुत गुस्सा हुए. वहीं लगभग 30 फीसदी को लगा कि भारत इसे लेकर गंभीर नहीं है और इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool
चीन और भारत के संबंधों में सबसे बड़ी रुकावट क्या है?
30 फीसदी का मानना है कि ऐसा देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर है. वहीं लगभग एक चौथाई का मानना है कि भारत अमेरिका के असर में आकर ऐसा कर रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa
अगर फिर से भारत के साथ सीमा विवाद छिड़े तो?
लगभग 90 फीसदी लोग आत्मरक्षा में चीनी सेना की भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हैं. 7 फीसदी से भी कम लोग बलप्रयोग के खिलाफ हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Zhengju
भविष्य में किस तरफ जा सकते हैं चीन-भारत संबंध?
25 फीसदी को लगता है कि कभी अच्छे तो कभी बुरे दौर आएंगे. वहीं 25 फीसदी का मानना है कि लंबे समय में सुधार दिखेगा. 20 फीसदी को जल्दी सुधार की उम्मीद नहीं है.
तस्वीर: Reuters
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चीन मामलों के विशेषज्ञ मेलबर्न यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले डॉ. प्रदीप तनेजा कहते हैं, "इसका मतलब यह है कि चीन की गतिविधियां अगर बढ़ती रहेंगी और चीन भारत के पड़ोसी देशों, खासकर दक्षिण एशियाई देशों के नजदीक अगर चीन के जहाज और पनडुब्बियां आएंगी, तो भारत को यह सोचना होगा कि चीन क्यों इन देशों के साथ अपने सैनिक संबंध इतने बढ़ा रहा है.”
भारत भी बढ़ा रहा है संबंध
पिछले कुछ सालों में प्रशांत क्षेत्र में भारत ने कई देशों से अपने सैन्य संबंध बढ़ाए हैं. इनमें सबसे प्रमुख ऑस्ट्रेलिया है, जिसके साथ भारत के सैन्य अभ्यास और अन्य आदान-प्रदान में काफी तेजी आई है.
इसी साल ऑस्ट्रेलिया के बेहद प्रतिष्ठित सैन्य अभ्यास तालिस्मान साबर में अन्य देशों के अलावा भारत को भी बतौर पर्यवेक्षक बुलाया गया है. ऑस्ट्रेलिया ने ऐसी इच्छा भी जताई है कि 2023 के तलिस्मान साबर अभ्यास में भारत भी हिस्सा ले.
पिछले साल भारत ने ऑस्ट्रेलिया को अपने सैन्य अभ्यास मालाबार में आमंत्रित किया था, जो लगभग दो दशक बाद हुआ था. पिछले साल सितंबर में भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों के बीच एक रणनीतिक वार्ता हुई थी जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया इंडिया स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप संधि हुई थी जिसमें सैन्य संबंधों को अहम जगह दी गई थी.
देखिएः आकाश से लद्दाख
आकाश से लद्दाख
भारत-चीन सीमा पर कई दशक बाद हुई हिंसा के चलते पूरी दुनिया की नजर अब लद्दाख पर है. आइए जानते हैं कि इसके दुर्गम पहाड़ों पर जमीन को लेकर कितना संघर्ष है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
बर्फ ही बर्फ
दिल्ली से लेह की उड़ान के 15 मिनट के भीतर ही हिमालय पर्वत श्रृंखला दिखनी शुरू हो जाती है.अपने अनछुए पहाड़ी सौंदर्य, खास संस्कृति और भौगोलिक स्थिति के कारण रणनीतिक महत्व वाले लद्दाख को 31 अक्टूबर 2019 को भारत के एक केंद्र शासित क्षेत्र का दर्जा मिला.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
शिवालिक और पीरपंजाल
सबसे पहले दिखाई देते हैं शिवालिक और पीरपंजाल पर्वत. इस तस्वीर में आप जहां तक देख सकते हैं, यह सब भारतीय हिमालय का हिस्सा है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
हिमालय का दृश्य
यहां विमान दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे पहाड़ों के ऊपर से उड़ता है. जहां तक दिखता है एक के बाद एक कई ज्ञात और अज्ञात चोटियां दिखती हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
जितना दुर्गम, उतना ही संवेदनशील
हिमालय के इस सुदूर क्षेत्र को लेकर पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष रहा है. इस घाटी के तमाम हिस्सों में भारत, चीन और पाकिस्तान की सीमाएं हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
युद्ध वहीं है, जहां लोग नहीं हैं
यहां दिख रहे काराकोरम रेंज में स्थित है सियाचिन ग्लेशियर. यहीं से नुब्रा नदी निकलती है जो आगे चलकर सिंधु नदी से मिलती है. चीन और पाकिस्तान दोनों तरफ से कश्मीर में सियाचिन के रास्ते घुसा जा सकता है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
नीली झील
करीब 15,000 फीट पर खारे पानी की झील, जिसे लद्दाखी में मुरारी कहते हैं. इसके आगे पैंगोंग सो झील दिखती है, जो 1962 के भारत-चीन युद्ध की धुरी बनी थी.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
लद्दाख-तिब्बत का पठार
लद्दाख-तिब्बत के ठंडे रेगिस्तान में प्रवेश करते हुए ऐसा नजारा दिखता है. चारों ओर स्लेटी रंग है. कहीं-कहीं थोड़ा हरा भी दिख जाता है. इन्हीं हिस्सों में लोग रहते हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
केवल सेना है
इस निर्जन इलाके में कोई पेड़ नहीं हैं, बहुत कम ऑक्सीजन है. लेकिन इलाके की अहमियत इतनी है कि यहां जिस देश की जितनी अधिक सेना होगी, युद्ध की स्थिति में उसे उतना ही फायदा होगा.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
लद्दाख का अर्थ है शांति
विमान लेह के आकाश में प्रवेश कर चुका है. तनाव के समय में यहां के आकाश में लड़ाकू विमान घंटों उड़ान भर रहे हैं. लेकिन यह लेह की आम तस्वीर नहीं है. लेह का अर्थ है शांति और सभी धर्मों का सह-अस्तित्व.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
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पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच नियमित सैन्य आदान-प्रदान भी बढ़ा है. दोनों देशों के जहाज और अधिकारी नियमित रूप से आते जाते हैं. हाल ही में भारतीय सेना के कई बड़े अधिकारी ऑस्ट्रेलिया का दौरा कर चुके हैं.
क्वॉड की बढ़ती ताकत
भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के संगठन क्वॉड्रिलैटरल सिक्यॉरिटी डायलॉग (क्वॉड) का मजबूत होता आधार भी इसी दिशा में एक कदम माना जा रहा है. क्वॉड में शामिल चार देश लगातार अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर चर्चा कर रहे हैं. हाल ही में भारत की यात्रा पर गए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने भी क्वॉड पर खासा जोर दिया और इसी साल संगठन की एक बैठक कराने का प्रस्ताव भी रखा.
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के नजरिए से यह एक सकारात्मक कदम है क्योंकि वह अकेला चीन का सामना नहीं कर सकता.
डॉ. तनेजा कहते हैं, "भारत का रक्षा बजट, चीन के रक्षा बजट के एक चौथाई से भी कम है. तो भारत के पास अकेले इतनी शक्ति नहीं है कि चीन की जो बढ़ती हुई ताकत है, उसका मुकाबला कर सके. तो भारत ने यही नीति अपनाई है कि जो दूसरे समदर्शी देश हैं, उनके साथ मिलकर इंटेलिजेंस शेयरिंग और बातचीत के जरिए यह आंका जा सके कि चीन के इरादे क्या हैं और अगर इरादे ठीक नहीं हैं तो उसका कैसे जवाब दिया जाए.”
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चीन को घेरने की कोशिश?
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत ने ही नहीं बल्कि अन्य कई देशों ने भी अपनी गतिविधियां तेज की हैं. ब्रिटेन का का विमानवाहक युद्धतपोत क्वीन एलिजाबेथ और उसके सहयोगी जहाज सितंबर में जापान पहुंच रहे हैं. जापान के टोक्यो में एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद ब्रिटेन ने ऐलान किया है कि उसके दो पोत स्थायी तौर पर एशिया में तैनात रहेंगे.
टोक्यो और लंदन के बीच मजबूत होते रणनीतिक संबंधों के बीच यह ऐलान हुआ है. हाल ही में जापान ने चीन के अपनी सीमाओं के प्रसार के मंसूबों को लेकर चिंता जताई थी. इसमें ताईवान को लेकर चीन के इरादों की ओर भी इशारा किया गया था.
जानेंः भारत और चीन की सेना में अंतर
भारत और चीन की सेना में कितना अंतर है?
चीन और भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेनाएं हैं, इन दोनों ने आपस में एक युद्ध भी लड़ा है. अकसर इनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता में यह सवाल भी उठता है कि इन देशों की सैन्य ताकत में कितना फर्क है. देखिये फर्क इन तस्वीरों में.
जापान, दक्षिण कोरिया और इस क्षेत्र के अन्य कई देश भी न सिर्फ अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहे हैं बल्कि विभिन्न देशों के साथ मिलकर ऐसे कदम भी उठा रहे हैं जिन्हें चीन के खिलाफ देखा जा सकता है.
हालांकि डॉ. तनेजा इसे चीन को घेरने की कोशिश नहीं मानते. वह कहते हैं, "यह घेरने वाली बात नहीं है. इन देशों को लगता है कि हमें मिल जुलकर एक संकेत देना चाहिए कि चीन अगर अपनी ताकत का प्रदर्शन करेगा तो उसे सहन नहीं किया जाएगा.”
चीन दक्षिणी चीन सागर के बड़े हिस्से पर अपने अधिकार का दावा करता है. यह दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में तनाव और विवाद की बड़ी वजह है क्योंकि कई अन्य देश भी इन इलाकों पर दावा करते हैं, जिन्हें अमेरिका और यूरोप का भी समर्थन मिलता है. कथित ‘नाईन डैश लाइन' पर उसके अधिकार का दावा द हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में भी खारिज हो चुका है.