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पहली डिजिटल जनगणना: मोबाइल ऐप से जुटाया जाएगा डाटा

आमिर अंसारी एएफपी, रॉयटर्स
१४ नवम्बर २०२५

दुनिया की सबसे बड़ी जनगणना डिजिटल रूप में होगी. भारत 2027 की ऐतिहासिक जनगणना से पहले मोबाइल सॉफ्टवेयर सिस्टम का परीक्षण कर रहा है.

दिल्ली का चांदनी चौक इलाका
पिछली जनगणना 2011 में हुई थी और कोरोना वायरस के कारण 2021 में यह प्रक्रिया नहीं हो पाई थीतस्वीर: Kabir Jhangiani/ZUMA Press/picture alliance

भारत में आखिरी बार साल 2011 में जनगणना हुई थी और इस बार की जनगणना में मोबाइल सॉफ्टवेयर सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा. भारत सरकार का लक्ष्य है कि डाटा संग्रह प्रक्रिया को तेज, पारदर्शी और सटीक बनाया जाए, ताकि 1.4 अरब से अधिक लोगों की जानकारी को डिजिटल रूप से सुरक्षित किया जा सके.

देश की आजादी के बाद यह पहला मौका है जब लोगों की जाति का पंजीकरण भी किया जाएगा. यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील कदम माना जाता है. साल 1931 के बाद पहली बार ऐसा किया जाएगा. साल 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान अंतिम बार जाति आधारित जनगणना हुई थी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह डाटा सामाजिक नीतियों और संसाधन वितरण पर गहरा असर डाल सकता है.

मोबाइल ऐप आधारित डाटा संग्रह

डिजिटल प्रक्रिया का 20 दिन का ट्रायल 10 नवंबर से कर्नाटक के चुनिंदा इलाकों में शुरू हो गया. इस प्रक्रिया के तहत मोबाइल ऐप आधारित डाटा जमा करना और खुद से गणना में शामिल होने के विकल्पों की जांच की जाएगी.

गृह मंत्रालय ने कहा कि इस ट्रायल का उद्देश्य डिजिटल प्रणाली की कार्यक्षमता और दक्षता का मूल्यांकन करना है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मोबाइल नेटवर्क की पहुंच सीमित है. यह कदम पारंपरिक कागजी तरीकों की जगह डिजिटल तकनीक को अपनाने की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन है. जनगणना को एक ही समय में करना जरूरी होता है ताकि जनसंख्या की एक सटीक तस्वीर सामने आ सके और दोहराव से बचा जा सके.

सरकार के बयान के मुताबिक यह ट्रायल भारत की पहली पूरी तरह डिजिटल जनगणना की दिशा में एक अहम कदम है, जो पारंपरिक कागज-आधारित एंट्रियों की जगह ले लेगा.

भारत: समय पर ‘जनगणना’ क्यों जरूरी है

जाति डाटा क्यों महत्वपूर्ण है?

इस जनगणना में टेक्नोलॉजी के साथ ही बहुत से कर्मचारियों की जरूरत भी होगी. साल 2024 में हुए आम चुनावों में मतदान इलेट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के जरिए हुआ था और मतदान प्रक्रिया छह सप्ताह में सात चरणों में संपन्न हुई. इसी तरह, डिजिटल जनगणना के लिए भी व्यापक योजना और संसाधनों की जरूरत होगी ताकि देशभर में डाटा संग्रह सुचारू रूप से किया जा सके.

मुख्य जनगणना 1 मार्च 2027 को होगी लेकिन हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर जैसे हिमालयी क्षेत्रों में यह 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगी, ताकि बर्फबारी से पहले प्रक्रिया पूरी की जा सके. भारत की 1.4 अरब आबादी में से दो-तिहाई लोग ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों से आते हैं, जिन्हें लंबे समय से सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा है. जाति अब भी शिक्षा, संसाधनों और अवसरों तक पहुंच में एक अहम भूमिका निभाती है.

जाति गणना से चली जाएगी भारत से जाति?

1931 के बाद पहली बार जाति आधारित डाटा जुटाएगा भारत

भारत में सैकड़ों साल पुरानी जातीय संरचनाएं बनी हुई हैं. भारत में जाति हमेशा से मुख्य मुद्दा रही है और चुनाव में भी यह काफी अहम मुद्दा होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने पहले इस जाति आधारित जनगणना का विरोध किया था. उसका कहना था कि इससे सामाजिक विभाजन गहरा होगा, लेकिन इसी साल मई में पार्टी ने नए जातिगत सर्वेक्षण का समर्थन कर रुख बदल दिया.

बीजेपी के समर्थकों की दलील है कि विस्तृत जातिगत डाटा सामाजिक न्याय योजनाओं के लिए बेहद जरूरी है. इससे विश्वविद्यालयों में सीटों और सरकारी नौकरियों में वंचित समुदायों के लिए आरक्षण जैसी नीतियों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा. उनका कहना है कि बिना सटीक आंकड़ों के लक्षित कल्याणकारी कार्यक्रमों को प्रभावी बनाना मुश्किल है.

हालांकि, लगातार सरकारें जाति डाटा अपडेट करने से बचती रही हैं. प्रशासनिक जटिलताओं और सामाजिक अशांति के डर से यह कदम अब तक टाला जाता रहा है. 2011 की जनगणना के साथ किया गया जाति सर्वे भी सार्वजनिक नहीं किया गया था.

आमिर अंसारी डीडब्ल्यू के दिल्ली स्टूडियो में कार्यरत विदेशी संवाददाता.
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