भारत अपने चार बाघ कंबोडिया भेजेगा, ताकि वहां बाघों की संख्या बढ़ाई जा सके. भारत में कंबोडिया के राजदूत ने गुरुवार को बताया कि उनके देश में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए यह एक ऐतिहासिक कदम होगा.
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कंबोडिया के सूखे जंगलों में कभी इंडोनेशियाई बाघों की भरमार हुआ करती थी. पर्यावरणविद बताते हैं कि बाघों और उनके भोजन के लिए उपलब्ध जानवरों को शिकारियों ने बहुत हद तक खत्म कर दिया.
दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में पिछली बार 2007 में बाघ देखा गया था. 2016 में उन्हें विलुप्त घोषित कर दिया गया था. अब भारत से बाघ लाकर उनकी आबादी को दोबारा बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. यह समझौता 2022 में हुआ था.
भारत में 2023 में अब तक 26 बाघों की मौत
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2023 में जनवरी से लेकर फरवरी के बीच ही 26 बाघों की मौत हुई है. बाघों के मरने के कारण अलग-अलग बताए जा रहे हैं. सबसे अधिक मौत मध्य प्रदेश में हुई.
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औसतन हर दिन एक मौत
भारत में इस साल अब तक 26 बाघों की मौत हो गई है और यह साल 2023 के पहले दो महीनों का आंकड़ा है. इन मौतों को तीन साल में सबसे ज्यादा बताया जा रहा है.
अफ्रीकी चीते को लेकर चर्चा के केंद्र में रहे मध्य प्रदेश में सबसे अधिक नौ बाघ मारे गए हैं. भारत में बाघों को बचाने के लिए सालों से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
मध्य प्रदेश के बाद जिन राज्यों में बाघों की मौत हुईं हैं, उनमें महाराष्ट्र (7), राजस्थान (3), कर्नाटक (2), उत्तराखंड (3) और असम और केरल में एक-एक है.
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कहां और कैसे मरे बाघ
बाघों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) ने अपनी वेबसाइट पर बाघों की मौत का आंकड़ा 33 रखा, जिसमें 10 शिकार के कारण मारे गए. बाघों की मौत आवास सीमा के भीतर, इंसानों के साथ संघर्ष और बाघ अभयारण्यकी परिधि के बाहर हुई.
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हर साल मर रहे बाघ
2022 में भारत ने कुल 116 बाघ खो दिए, जबकि 2021 में यह आंकड़ा 127 था. साल 2019 में देश में 96 बाघों की मौत दर्ज की गई.
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इंसान और बाघ का संघर्ष
बाघों की मृत्यु के अलग-अलग कारण हैं, जिनमें प्राकृतिक कारण, क्षेत्र के झगड़े और मानव-जंगली जानवर के बीच संघर्ष अहम हैं. 2018 की गणना के मुताबिक देश में कुल 2967 बाघ हैं. सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में हैं.
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भारत से जो बाघ जाएंगे उन्हें जंगल में छोड़ने से पहले कार्डामम वर्षावन में 222 एकड़ के एक संरक्षित क्षेत्र में रखा जाएगा ताकि वे नए मौसम के अनुकूल ढल सकें. इसके लिए कई महीनों से तैयारी की जा रही है. फरवरी में वहां 400 कैमरे लगाए गए हैं, जिनका मकसद बाघ के शिकार के लिए उपलब्ध जानवरों की निगरानी करना है.
साल के आखिर तक आगमन
भारत से एक नर और तीन मादा बाघ भेजे जाएंगे. भारत की राजदूत देवयानी खोबरागड़े ने बताया कि बाघ भेजने से पहले भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बाघों के लिए समुचित शिकार उपलब्ध हो और उनके शिकार हो जाने की कोई संभावना ना हो.
कंबोडिया में मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया, "जैसे ही मॉनसून की बारिश कम होती है और उनके शिकार के लिए जानवर आ जाएंगे, ये बाघ यहां पहुंच जाएंगे. उम्मीद है कि नवंबर या दिसंबर से पहले ऐसा हो जाएगा.”
भारत में बाघों की दहाड़: संख्या बढ़कर हुई 3,682
भारत में अब दुनिया के 75 फीसदी बाघ रहते हैं. देश में 2018 से 2022 के बीच बाघों की आबादी में 24 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. भारत सरकार ने भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की है.
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भारत में कितने बाघ
साल 2018 और 2022 के बीच भारत में बाघों की आबादी में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अब देश में कुल 3,682 बाघ हैं.
भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे अधिक (785) बाघ मध्य प्रदेश में हैं. साल 2018 में यहां बाघों की संख्या 526 थी. इसके बाद कर्नाटक का नंबर है, जहां 2022 में बाघों की कुल संख्या 563 रही.
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जहां बाघों की संख्या शून्य
जहां एक ओर देश में बाघों की संख्या बढ़ी है वहीं मिजोरम और नागालैंड ऐसे राज्य हैं जहां एक भी बाघ नहीं है.
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इन राज्यों में घटी संख्या
देश के कुछ ऐसे भी राज्य हैं जहां 2018 के मुकाबले 2022 में बाघों की संख्या घट गई. अरुणाचल प्रदेश में जहां 2018 में 29 बाघ थे वहां 2022 में संख्या घटकर 9 रह गई. ओडिशा में 2018 में 28 के मुकाबले 2022 में 20 बाघ थे. झारखंड में 2022 में एक बाघ था, जबकि वहां साल 2018 में 5 थे.
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भारत के पांच शीर्ष टाइगर रिजर्व
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के कॉर्बेट रिजर्व में सबसे ज्यादा (260) बाघ हैं. इसके बाद कर्नाटक के बांदीपुर में 150, कर्नाटक के नागरहोल में 141, मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में 135 और तमिलनाडु के मुदुमलई में 114 बाघ हैं.
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बाघों के संरक्षण के लिए अब 53 टाइगर रिजर्व
भारत के 18 राज्यों में 75,796 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले 53 टाइगर रिजर्व का एक नेटवर्क है, जहां बाघ रहते हैं. भारत सरकार का कहना है कि उसने 2014 के बाद छह और नेटवर्क जोड़े हैं. भारत में बाघों की घटती आबादी को देखते हुए 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया था.
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अवैध शिकार अभी भी खतरा
अवैध शिकार अभी भी बाघों के संरक्षण के लिए खतरा बना हुआ है. इसके साथ ही इंसान और जंगली जानवरों का संघर्ष भी बढ़ा है. जंगल में गिरावट के कारण जंगली जानवरों के रहने वाले इलाके सिकुड़ रहे हैं.
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खोबरागड़े ने कहा कि अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो बाघों के स्थानांतरण का यह दुनिया में पहला मामला होगा. उन्होंने कहा, "यह एक ऐतिहासिक परियोजना है.”
कंबोडिया के पर्यावरण मंत्रालय और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था वाइल्डलाइफ अलायंस ने कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि क्षेत्र इन बाघों के आगमन के लिए तैयार है. संस्था की प्रमुख सुवाना गॉन्टलेट ने कहा, "मुख्य क्षेत्र में किसी तरह का खतरा नहीं है. यह पूरी तरह सुरक्षित है और ऐसा ही रहेगा.”
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बाघों की सुरक्षा के इंतजाम
बाघों की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई इंतजाम किए हैं. गॉन्टलेट ने बताया कि वहां 16 रेंजर तैनात किए गए हैं. इसके अलावा बाघों की निगरानी के लिए एक केंद्र, शिकार के लिए उपलब्ध जानवरों के लिए एक सुरंग और क्षेत्र के लिए पानी का स्रोत बनाया गया है. बाघों और आसपास के गांवों की सुरक्षा के लिए इन मेहमान जानवरों को मॉनिटरिंग टैग्स लगाए जाएंगे.
भारत में बढ़ रही है बाघों की आबादी
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पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि अगर इस परियोजना में कोई बाधा नहीं आती है तो आने वाले पांच साल में और बाघ लाए जाएंगे.
शिकार और जंगलों के खत्म होने के कारण कंबोडिया में ही नहीं, पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में बाघों की आबादी प्रभावित हुई है. लाओस और वियतनाम में भी बाघ पूरी तरह खत्म हो चुके हैं. म्यांमार के जंगलों में सिर्फ 23 बाघ बचे होने का अनुमान है.
इसके उलट पिछले कुछ सालों में भारत में बाघों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. पिछले साल हुई गणना के मुताबिक देश में 3,600 से ज्यादा बाघ हो गए हैं.