पत्रकारों पर हिंसा भड़काने का मुकदमा दर्ज होने के बाद एडिटर्स गिल्ड ने इसकी निंदा की है. छह वरिष्ठ पत्रकारों पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है.
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गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा को भड़काने का आरोप लगाते हुए छह पत्रकारों और कांग्रेस के सांसद शशि थरूर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के नोएडा और मध्य प्रदेश के भोपाल में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया गया है. नोएडा में वरिष्ठ पत्रकारों और सांसद शशि थरूर के खिलाफ दर्ज मुकदमे में आंदोलन में हिंसा भड़काने, आपत्तिजनक और भ्रामक खबरें फैलाने का आरोप लगाया गया है. भोपाल के अलावा बैतूल जिले के मुल्ताई थाने में भी इसी संबंध एफआईआर दर्ज कराई गई है.
नोएडा के रहने वाले शिकायकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा है कि इन लोगों ने गलत सूचना सोशल मीडिया पर डाली और दंगा भड़काने की साजिश की. नोएडा के एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह के मुताबिक शिकायत के आधार पर सात नामजद और एक अज्ञात के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 295ए, 298, 504, 506, 505, 124ए, 34, 120बी और 66 आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है. जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है उनमें पत्रकार और एंकर राजदीप सरदेसाई, कांग्रेस के सांसद शशि थरूर, मृणाल पांडे, परेशनाथ, अनंतनाथ, विनोद के जोसेफ, जफर आगा और अज्ञात हैं.
इन मुकदमों के बीच एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर इन कार्रवाई की कड़ी निंदा की है. गिल्ड ने एफआईआर को "डराने-धमकाने, प्रताड़ित करने और दबाने" का प्रयास बताया है. साथ ही मांग की है कि एफआईआर तुरंत वापस ली जाएं और मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए.
मुकदमे की निंदा
बयान में आगे कहा गया है कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर और अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया है. एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि ट्वीट जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से किए गए. हालांकि एडिटर्स गिल्ड का कहना है, "यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन और कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीदों और पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं. पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें. यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था."
पत्रकारों पर राजद्रोह के मुकदमे पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा कहते हैं कि अगर कोई बेगुनाह है तो जांच एजेंसी के पास जाए और अपनी बेगुनाही साबित करें. वर्मा डीडब्ल्यू से कहते हैं कि दबाव की नीति काम नहीं आने वाली है और पत्रकार ने जमीन पर रहते हुए गलत सूचना दी और उसी के आधार मुकदमा दर्ज हुआ है. वे कहते हैं, "बतौर पत्रकार किसी को अतिरिक्त शक्तियां नहीं मिली हुई हैं. और उन्हें अपनी सफाई देनी होगी. यह पहली बार नहीं हुआ है कि इस तरह के ट्वीट किए गए हों. उन्हें (राजदीप सरदेसाई) घबराने की क्या जरूरत है. कोर्ट है वहां जाकर सफाई दें."
इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ट्वीट कर सवाल किया है कि अधिकतर मीडिया हाउस इस मुद्दे पर शांत क्यों हैं. उन्होंने राजदीप के बारे में लिखा कि मैं दंग हूं वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ क्या हो रहा है. हमें लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी आवाज जरूर उठानी चाहिए. मीडिया लोकतंत्र का अहम स्तंभ है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर डीडब्ल्यू से कहते हैं कि वरिष्ठ पत्रकारों पर जिस तरह से राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है वह देश में स्वतंत्र पत्रकारिता के खिलाफ हैं. उनके मुताबिक, "गणतंत्र दिवस के दिन जो हिंसा हुई, उस दिन काफी तरह की खबरें आ रही थी, उस माहौल में किसी पत्रकार ने अगर कोई ऐसा ट्वीट कर दिया जिससे सरकार इत्तिफाक नहीं करती है तो उसमें कोई खास साजिश नहीं समझा जाना चाहिए."
कपूर के मुताबिक अगर पुलिस इन पत्रकारों के खिलाफ बिना किसी पेशेवर जांच के कार्रवाई करती है तो हमारे लोकतंत्र को बहुत नुकसान होगा. जानकारों का कहना है कि यह दुर्भाग्य की बात है कि राजद्रोह से संबंधित कानून के इस लापरवाही से इस्तेमाल की सुप्रीम कोर्ट भी आलोचना कर चुका है लेकिन सरकारें इससे मुंह फेरती हैं. सिर्फ बीजेपी ही नहीं कांग्रेस की सरकार के वक्त भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं. कुछ साल पहले कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को राजद्रोह के आरोप में जेल तक जाना पड़ा था. उन्होंने अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान कुछ ऐसे कार्टून बनाए थे जिससे बवाल हुआ और एक शिकायत के बाद उन्हें जेल तक जाना पड़ा और राजद्रोह के मामले का सामना करना पड़ा था.
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
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1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
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2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
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4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
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5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
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6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
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7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
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8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
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9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
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10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
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11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
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भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
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अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
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पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.