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भारतीय सेना के 30 जवानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज

१३ जून २०२२

अंधाधुंध गोलीबारी कर 6 मजदूरों की जान लेने के मामले में नागालैंड पुलिस ने भारतीय सेना के 30 जवानों और अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. दिसंबर में यह घटना हुई थी.

नागालैंड में दिसंबर में जबरदस्त हिंसा हुई थी
नागालैंड में दिसंबर में जबरदस्त हिंसा हुई थीतस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

नागालैंड पुलिस ने भारतीय सेना के 30 जवानों पर मुकदमा दर्ज किया है. इन जवानों पर पिछले साल छह आदिवासी मजदूरों की हत्या का आरोप लगाया गया है. राज्य पुलिस प्रमुख टीजे लोंग्कुमेर ने दीमापुर में पत्रकारों से बातचीत में यह जानकारी दी.

टीजे लोंग्कुमेर ने बताया कि जांच में पता चला है कि मुठभेड़ के दौरान सही प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "जांच में यह बात सामने आई है कि अभियान दल ने मानक प्रक्रिया और नियमों का पालन नहीं किया था." उन्होंने कहा किसेना के जवानों ने ‘अंधाधुंध गोलीबारी' की और इस मामले में आरोपपत्र दाखिल कर दिया गया है.

क्या है मामला?

सेना के जवानों के खिलाफ पुलिस जांच पिछले साल दिसंबर में हुई एक घटना के बाद शुरू हुई थी. आतंकवादी समझकर भारतीय सेना द्वारा उत्तरपूर्वी राज्य नागालैंड में 6 नागरिकों की हत्या कर देने के बाद विरोध के लिए जमा भीड़ पर गोलियां चलाकर और जानें ले ली थीं. घटना तब हुई जब म्यांमार सीमा के पास भारतीय सैनिकों ने एक ट्रक पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. इस ट्रक में मजदूर सवार थे जो काम के बाद घर लौट रहे थे. इस गोलीबारी में छह लोगों की मौत हो गई. जब इन मजदूरों के परिवार इन्हें खोजने निकले और शव मिलने पर सेना से सवाल जवाब किए तो उन्होंने फिर से गोलीबारी की.

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नागालैंड के पुलिस अधिकारी संदीप एम तामागाड़े ने कहा, "दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी जिसमें सात और लोग मारे गए.” 

भारतीय सेना ने कहा है कि विरोध कर रहे नागरिकों के साथ विवाद में एक सैनिक की मौत हो गई है और कई जवान घायल हैं. सेना ने कहा कि सैनिक ‘भरोसेमंद सूचना के आधार पर' कार्रवाई कर रहे थे कि इलाके में विद्रोही सक्रिय हैं और उन पर हमला करने की तैयारी में हैं.

इस बारे में भारतीय सेना ने कहा था कि "जानों के दुर्भाग्यपूर्ण नुकसान की घटना के कारणों की जांच उच्च स्तर पर की जा रही है और कानून के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी.” मोन जिला नागालैंड की राजधानी कोहिमा से लगभग 350 किलोमीटर दूर है. खराब सड़कों के कारण वहां पहुंचने में एक दिन से ज्यादा का समय लग जाता है.

धीरे-धीरे खत्म हो रहा है आफ्स्पा

इस घटना के बाद भारत सरकार ने नगालैंड के कई इलाकों में भारतीय सेना को असीमित शक्तियां देने वाले कानून आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स ऐक्ट (AFSPA) का दायरा कम कर दिया था. दिसंबर की घटना के बाद ही केंद्र ने इस मुद्दे पर फैसले के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया गया था. उसकी सिफारिशों के आधार पर इसका दायरा सीमित करने का फैसला किया गया.

इस फैसले के तहत बीतीएक अप्रैल से असम के 33 जिलों में से 23 से यह कानून खत्महो गया जबकि एक जिले में इसे आंशिक रूप से हटाया गया. इंफाल नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर पूरा मणिपुर वर्ष 2004 से ही अशांत क्षेत्र घोषित था. अब छह जिलों के 15 पुलिस स्टेशन इलाकों को अशांत क्षेत्रों की सूची से बाहर कर दिया गया है.

अरुणाचल प्रदेश में 2015 से तीन जिलों, असम सीमा से लगे 20 किलोमीटर लंबे इलाके और नौ अन्य जिलों के 16 पुलिस स्टेशन इलाकों में अफस्पा लागू था. अब सिर्फ तीन जिलों और 1 अन्य जिले के 2 पुलिस स्टेशन इलाके में ही यह लागू रहेगा. राज्य के इन तीन जिलों में इस कानून की मियाद अगले छह महीने तक के लिए बढ़ा दी गई है.

वर्ष 1995 से पूरे नागालैंड में यह कानून लागू था. केंद्र सरकार ने इस मामले में गठित कमिटी की चरणबद्ध तरीके से अफस्पा हटाने की सिफारिश को माना औरप राज्य के सात जिलों के 15 पुलिस स्टेशन इलाकों को अशांत क्षेत्र की सूची से बाहर कर दिया गया है. लेकिन उस मोन जिले में आफ्स्पा अब भी लागू है जहां उपरोक्त घटना हुई थी.

रिपोर्टः विवेक कुमार

 

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