फर्जी ऑनलाइन रिव्यू देने के खिलाफ भारत ने सख्ती बरतने की शुरुआत की है. सरकार की कोशिश है कि किसी फर्जी रिव्यू या रेटिंग के कारण लोगों को ऑनलाइन उपलब्ध उत्पादों के बारे में भ्रामक जानकारियां ना मिलें.
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गूगल और फेसबुक से लेकर एमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइटों, ट्रैवल व फूड डिलीवरी वेबसाइटों के लिए भारत सरकार ने दिशा-निर्देश तैयार किए हैं. ये वेबसाइट अपने व्यापार के लिए बहुत हद तक ऑनलाइन रिव्यू और टिप्पणियों पर निर्भर रहती हैं क्योंकि अक्सर उसी के आधार पर नए उपभोक्ता तय करते हैं कि वे कहां से सेवाएं या उत्पाद लेना चाहेंगे. रिव्यू जितने सकारात्मक होते हैं, नए उपभोक्ताओं द्वारा उन सेवाओं को खरीदने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है.
कुछ कंपनियों की इस कारण आलोचना होती है कि वे खराब रिव्यू और टिप्पणियों को नीचे कर देती हैं ताकि उपभोक्ता उन्हें देख ना पाएं. इसके अलावा ऐसे भी आरोप लगते हैं कि वे फर्जी रिव्यू खरीदती हैं जिनसे रेटिंग बेहतर रहती है.
इन निर्देशों पर ज्यादातर कंपनियों ने फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. जोमैटो के एक प्रवक्ता ने कहा, "रिव्यू आदि के रूप में फीडबैक का मिलना उपभोक्ताओं के हित में है. हम सरकार द्वारा ऐसे कदम उठाने का स्वागत करते हैं और बनाई गई समिति का सदस्य बनाए जाने पर आभारी हैं.”
कैसे काम करेगी व्यवस्था?
उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने कहा है कि जून में एक समिति बनाई गई थी, जिसने ई-कॉमर्स में फर्जी टिप्पणियों और भ्रामक रिव्यू की जांच करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया है. यह कदम एक सामुदायिक ऑनलाइन मंच लोकल सर्कल्स की पहल पर उठाया गया है. इसी मंच ने सबसे पहले सरकार को ऐसे दिशा-निर्देशों की जरूरत बताते हुए पत्र लिखा था.
लोकल सर्कल्स के संस्थापक और समिति के सदस्य रहे सचिन टपारिया ने इस कदम को अहम बताया है. उन्होंने कहा, "ऑनलाइन रिव्यू के बारे में नए दिशा-निर्देश उपभोक्ताओं और ब्रांड दोनों के लिए पारदर्शिता लाने और सूचना की सटीकता को बढ़ाने के लिए हैं.”
भविष्य में ये 10 बदलाव चाहते हैं युवा
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने 187 देशों के लगभग 20 हजार युवाओं से पूछा कि वे भविष्य में क्या चाहते हैं. जानिए वे 10 चीजें जो युवा बदलना चाहते हैं.
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समझदारी भरा उपभोक्तावाद
सर्वे में शामिल ज्यादातर युवाओं ने कहा कि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले उपभोग को फायदेमंद बनाया जाए. कंपनियों की जिम्मेदारी तय की जाए और बड़े कॉरपोरेट जगत में बदलाव के लिए निवेशकों को जनता के साथ मिलकर काम करना चाहिए. भविष्य में खाने के उत्पादन और कुदरत को बचाने के लिए सभी को फौरन कदम उठाने चाहिए.
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डिजिटल पहुंच
88.9 फीसदी युवाओं ने कहा कि इंटरनेट की पहुंच को एक मूलभूत अधिकार बना देना चाहिए. लगभग 26 फीसदी मानते हैं कि उनका देश अगले दस साल में भी सभी को इंटरनेट देने की स्थिति में नहीं है. युवाओं की मांग है कि इंटरनेट ब्लैकआउट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
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मिथ्या सूचनाओं की रोकथाम
सर्वे में शामिल 38.4 प्रतिशत लोगों ने फेक न्यूज यानी फर्जी खबरों के प्रसार को सोशल मीडिया का सबसे बड़ा नुकसान बताया. 19.5 प्रतिशत युवा निजता का हनन और 11.4 फीसदी हेट स्पीच को सबसे बड़ा नुकसान मानते हैं. युवा चाहते हैं कि टेक कंपनियों को ज्यादा पारदर्शी होना चाहिए और सरकारों को ऐसी नीतियां लानी चाहिए जिनसे खतरनाक सामग्री से लोगों को बचाया जा सके.
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भविष्य का लोकतंत्र
युवा चाहते हैं कि मानवतावादी दानी लोग युवा और प्रगतिशील आवाजों को सरकारों में लाने के लिए उनका साथ दें. मीडिया की मोनोपॉली के खिलाफ कानून बनें और राजनीति ज्यादा समावेशी हो.
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सामाजिक सुरक्षा और समावेशी नौकरियां
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक असमानता से लड़ने के लिए पांच करोड़ डॉलर से अधिक की संपत्ति पर ग्लोबल टैक्स लगना चाहिए. अपने कर्मचारियों को अधिक स्किल सिखाने वाली कंपनियों को टैक्स का लाभ मिलना चाहिए. यूनिवर्सिटी की बेहद महंगी फीस कम होनी चाहिए और सिलेबस आज के जॉब मॉर्किट के हिसाब से होना चाहिए.
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ग्लोबल वॉर्मिंग
सरकारों को उन समुदायों पर निवेश करना होगा जिन्हें ग्लोबल वॉर्मिंग से खतरा ज्यादा है. ऐसी कंपनियों को धन न दिया जाए जो नए जीवाश्म ईंधन खोज रहे हैं. कंपनियों को ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. 70 प्रतिशत से ज्यादा युवा मानते हैं कि वे ऐसे नेता को वोट देंगे जो ग्लोबल वॉर्मिंग को मुद्दा मानता है और उसके लिए कदम उठाएगा.
युवाओं ने इच्छा जताई है कि सरकारें हरेक को मानिसक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएं. इन समस्याओं के बारे में जागरूकता के लिए निवेश हो और यूनिवर्सिटी के सिलेबस का हिस्सा बनाया जाए.
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लोगों की सुरक्षा
कानून के दायरे में कुछ लोगों को मिलने वाला गलत लाभ खत्म किया जाना चाहिए. बंदूकों पर प्रतिबंध होना चाहिए और ऐसी हिंसा के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. घरेलू और यौन हिंसा के बारे में कदम उठाए जाने की जरूरत है. और न्याय व्यवस्था को इस तरह काम करना चाहिए कि कमजोर तबकों को सुरक्षा मिले.
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अगली पीढ़ी का पूंजीवाद
सरकारों को टेक कंपनियों के लिए नीतियां बनानी चाहिए जो लोगों के हित में हों. यूनिवर्सिटी में ईएसजी यानी एनवायर्नमेंट, सोशल ऐंड कॉरपोरेट गवर्नेंस को सिलेबस का हिस्सा बनाना चाहिए. कंपनियों में टेक-एथिक्स जरूरी होने चाहिए.
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स्वास्थ्य सेवाएं
ज्यादातर युवा मानते हैं कि कोविड-19 वैक्सीन, टेस्ट और इलाज सबके लिए उपलब्ध होने चाहिए. सरकार को स्वास्थ्यकर्मियों और उनके परिजनों को प्राथमिकताएं देनी चाहिए. स्वास्थ्य सेवाओं का डिजिटाजेशन होना चाहिए.
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अभी दिशा-निर्देशों को सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन टपारिया बताते हैं कि नए दिशा-निर्देशों के तहत गूगल या फेसबुक जैसे मंचों को यह सुनिश्चित करना होगा कि रिव्यू करने वाला व्यक्ति वास्तविक है. उन्होंने कहा, "सत्यापन इसके लिए 6-8 तरीके दिए गए हैं. इससे सिर्फ रिव्यू करने के लिए बनाए गए फर्जी खाते या तो खत्म हो जाएंगे या फिर वे रिव्यू ही नहीं कर पाएंगे.”
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फिलहाल अनिवार्य नहीं
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय में सचिव रोहित कुमार सिंह ने पत्रकारों को बताया कि ये दिशा-निर्देश किसी पर थोपे नहीं जाएंगे. उन्होंने कहा, "हम इन्हें किसी पर थोपना नहीं चाहते. पहले तो हम देखेंगे कि स्वेच्छा से इन निर्देशों को कितना अपनाया जाता है. यदि फिर भी यह खतरा बढ़ता जाता है तो हम इसे अनिवार्य कर देंगे.” उन्होंने कहा कि भारतीय मानक ब्यूरो यह देखने के लिए जिम्मेदार होगा कि दिशा-निर्देशों का पालन किया जा रहा है या नहीं.
2021 के सबसे बड़े बदलावों में से एक भारत के किराना मार्केट में
भारत में घर पर बैठ कर खरीदारी करने के तरीकों में 2021 में कई बदलाव आए. अब आप नहाते-नहाते साबुन मंगवा सकते हैं और खाते-खाते नमक. लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ेगा?
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घर से खरीदारी
भारत में घर बैठे बैठे किराने का सामान मंगवा लेने का चलन कुछ साल पहले शुरू तो हो गया था लेकिन महामारी और तालाबंदी की वजह से 2020 और 2021 में यह चलन बहुत बढ़ गया. कंपनियों को भी किराना सामान बेचकर करोड़ों नए ग्राहकों को जोड़ने का अवसर मिला.
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बढ़ता चलन
अब कई कंपनियों को इसमें उज्ज्वल भविष्य नजर आ रहा है. रेडसियर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 में भारत का किराना बाजार बढ़ कर 850 अरब डॉलर का हो जाएगा. इसमें ई-ग्रोसरी की हिस्सेदारी करीब तीन प्रतिशत यानी 25 अरब डॉलर से भी ज्यादा की हो जाएगी.
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बाजार में कई खिलाड़ी
स्टैटिस्टा के मुताबिक ई-ग्रोसरी बाजार में बिग बास्केट की 35 प्रतिशत हिस्सेदारी है, अमेजन पैंट्री/फ्रेश की 31 प्रतिशत, ब्लिंकिट (जो पहले ग्रोफर्स था) की 31 प्रतिशत और बाकियों की कुल मिला कर 2.5 प्रतिशत के आस पास. इन डिलीवरी कंपनियों के सामने साल 2020 में जो चुनौतियां आई थीं, वो भी साल 2021 में दूर की गईं. इससे डिलीवरी और तेज हुई.
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ग्राहक को लुभाने की होड़
ग्राहकों को और ज्यादा सुविधा देने की होड़ में कंपनियां व्यापार के मॉडल को बदलती जा रही हैं. पहले सामान ऐप पर आर्डर करने के बाद घर पहुंचने में कुछ दिन लगते थे, फिर कंपनियों ने उसी दिन डिलीवरी का मॉडल शुरू किया और अब तो सामान 10 मिनट में आपके घर पहुंचाने का वादा कर रही हैं. ई-कॉमर्स अब क्यू-कॉमर्स यानी क्विक कॉमर्स हो गया है.
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रोजगार का क्या
लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे एक तरफ तो व्हाइट कॉलर नौकरियों में वेतन बढ़ता जा रहा है, ज्यादा संख्या में नौकरियां सिर्फ डिलीवरी जैसे कम वेतन वाले और अस्थायी कामों में बन रही हैं. इसलिए यह सेक्टर भारत की बढ़ती बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं दे पा रहा है.
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एकाधिकार का खतरा
इसके साथ ही ये कंपनियां स्थानीय दुकानदारों और डिस्ट्रीब्यूटरों का धंधा भी बंद करवा रही हैं जिससे बेरोजगारी और बढ़ रही है. ऊपर से कंपनियों के एकाधिकार का खतरा अलग है. देखना होगा 2022 में इस क्षेत्र में किस तरह के बदलाव आते हैं.
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वैसे ऑनलाइन कंपनियों का कहना है कि उन्होंने आंतरिक रूप से ऐसी व्यवस्थाएं बना रखी हैं जो फर्जी टिप्पणियों या रिव्यू आदि को हतोत्साहित करते हैं. हालांकि फिलहाल ऐसी कोई प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है जिसके तहत इस तरह की व्यवस्था बनाना अनिवार्य हो. इसलिए, यदि किसी कंपनी ने ऐसा नहीं भी किया है तो उसके ऊपर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो सकती.
टपारिया ने कहा कि यदि ये दिशा-निर्देश अनिवार्य हो जाते हैं तो फिर कंपनियों पर कार्रवाई की जा सकेगी. उन पर अनैतिक तौर-तरीके अपनाने के लिए, नकारात्मक टिप्पणियों को पीछे भेजने के लिए या फर्जी रिव्यू करवाने आदि के लिए भी कार्रवाई की जा सकेगी.