पंजाब के किसान पिछले साल दिल्ली के किसान आंदोलन की तरह आंदोलन कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी किसान गेहूं पर 500 रुपये प्रति क्विंटल मुआवजे की मांग कर रहे हैं.
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केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल नवंबर में दिल्ली की सीमा पर तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ सालभर से चल रहे विरोध प्रदर्शन के खत्म होने के बाद अब पंजाब के सैकड़ों किसान मंगलवार को राज्य के बाहरी इलाके चंडीगढ़ बॉर्डर पर जुट गए. उनकी कई मांगों में से एक में समय से पहले गर्मी के कारण गेहूं की फसल की बर्बादी झेलने वाले किसानों को 500 रुपये प्रति क्विंटल मुआवजा व 10 जून से पहले धान की बुआई भी शामिल हैं. प्रदर्शनाकीर किसानों की अन्य प्रमुख मांगों में मक्का, बासमती और मूंग की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य शामिल है, जिसका सरकार ने आश्वासन दिया है. मगर उन्हें 18 जून से धान की रोपाई शुरू करने के चौंकाने वाले आदेश और प्रीपेड बिजली मीटर स्थापित नहीं किए जाने पर आपत्ति है.
मंगलवार को प्रदर्शनकारी किसानों ने पंजाब सरकार के खिलाफ मार्च निकाला और चंडीगढ़ की ओर जाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया. जिसके बाद किसान चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर ही धरना देकर बैठ गए.
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसानों को संयम बरतने को कहा है. उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन गैरजरूरी है. उन्होंने किसानों से धरना खत्म करने की अपील की है. मान ने कहा धान की बुवाई कार्यक्रम से किसानों के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि यह कोशिश राज्य के गिरते जल स्तर को बचाने में बहुत ही मददगार साबित हो सकती है.
खेतों में सौर ऊर्जा से हो रहा दोगुना मुनाफा
पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा की मदद से किसान दोगुना कमा रहे हैं. खेतों के ऊपर सौर ऊर्जा के पैनल लगा देने से नीचे फसलें उगती हैं और ऊपर बिजली पैदा होती है. पैनलों की छांव से पानी बचाने में मदद मिलती है और पैदावार भी बढ़ती है.
तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/R. Linke
फल भी उगाइए, बिजली भी बनाइए
फाबियान कार्टहाउस जर्मनी में फोटोवोल्टिक पैनलों के नीचे रसबेरी और ब्लूबेरी उगाने वाले पहले किसानों में से हैं. उत्तर-पश्चिमी जर्मनी के शहर पैडरबॉर्न में स्थित उनका सौर खेत करीब एक एकड़ में फैला है, लेकिन वो उसे 10 एकड़ का बनाना चाहते हैं. ऐसे करने से वो इतनी बिजली बना पाएंगे जो करीब 4,000 घरों के काम आएगी. इसके अलावा उन्हें बाजार में बेचने के लिए बेरियां भी मिल जाएंगी.
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प्लास्टिक की छत की जगह शीशे का पैनल
अभी तक कई किसान नाजुक फलों और सब्जियों को प्लास्टिक के पर्दों के नीचे उगाते थे. लेकिन प्लास्टिक के ये पर्दे सिर्फ कुछ ही साल चलते हैं, महंगे होते हैं और इनसे काफी प्लास्टिक कचरा भी उत्पन्न होता है. निदरलैंड में कई किसान फलों, सब्जियों को शीशे के पैनलों के नीचे उगा रहे हैं. ग्रोनलेवेन में ये पैनल फसल को तो बचाते हैं ही, ये 30 सालों तक चलते हैं. बिजली बेचने से अतिरिक्त कमाई होती है.
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चीन बढ़ावा दे रहा है एग्रीवोल्टिक को
चीन बड़े पैमाने पर फोटोवोल्टिक का विस्तार कर रहा है और पिछले कुछ सालों से कृषि संबंधित फोटोवोल्टिक या एग्रीवोल्टिक पर भी निर्भर कर रहा है. उत्तरी चीन के हेबेई में स्थित यह प्लांट 24 एकड़ से भी ज्यादा इलाके में फैला है. नीचे अनाज उगाया जाता है. सौर मॉड्यूल पास ही में बनाए जाते हैं. इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं और गरीबी कम करने में भी मदद मिलती है.
दुनिया के सबसे बड़े सौर पार्कों में से कुछ चीन के गोबी रेगिस्तान में हैं, जहां जगह की कोई कमी नहीं है. कुछ स्थानों पर मॉड्यूलों की छांव में फसलें उगाई जाती हैं. इससे मरुस्थलीकरण रुकता है और मिट्टी को फिर से खेती के योग्य बनने में मदद मिलती है.
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सूखे से मुकाबला
चिली के सैंतिआगो में स्थित यह छोटी से सौर छत दक्षिणी अमेरिका के सबसे पहले एग्रीवोल्टिक प्रणालियों में से है. शोधकर्ता यहां ब्रोकोली और गोभी का इस्तेमाल कर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रणाली को चलाने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा. इस इलाके में कड़ी धूप होती है और यह कम होती बारिश और बढ़ते सूखे से भी जूझ रहा है. सौर छांव के साथ शुरुआती तजुर्बा सकारात्मक रहा है.
तस्वीर: Fraunhofer Chile
सौर ऊर्जा से पानी
रवांडा की ये किसान सौर ऊर्जा से चलने वाले एक चलते फिरते जल पंप से अपनी जीविका चलाती हैं. एक छोटे से शुल्क के बदले वो अपने पंप को दूसरे किसानों के खेतों तक ले जाती हैं और आस पास के पानी के स्रोतों से उनकी सिंचाई करती हैं. पूरे अफ्रीका में कृषि में सौर ऊर्जा के उपयोग की संभावनाएं हैं.
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सौर ऊर्जा के साथ मछली पालन
यह अनोखा इंतजाम पूर्वी चीन में शंघाई से 150 किलोमीटर दक्षिण की तरफ स्थित है. इस तालाब में पीपे के पुलों पर सौर पैनल तैरते हैं और उनके नीचे मछली पालन होता है. पैनलों को इस तरह सजाया गया है कि मछलियों को भी पर्याप्त रोशनी मिले. लगभग 740 एकड़ में फैले ये पैनल 1,00,000 परिवारों के लिए बिजली बनाते हैं.
एक वैकल्पिक दृष्टिकोण
सौर पैनलों को खेतों में लंबवत रखने से उन्हें दोनों तरफ से रोशनी मिलती है. जर्मनी में इस तरह के ढांचे छतों पर लगे पैनलों के जितनी ही बिजली बना सकते हैं. साथ ही साथ ये एक तरह से बाड़ का भी काम करते हैं और हवा से बचाते हैं. खेती के दूसरे उपकरणों को रखने के लिए काफी जगह भी बच जाती है.
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जमीन को खाली रखना
बायोगैस और बायो ईंधन के लिए मक्का, गेहूं और गन्ने उगाने में पूरी दुनिया की कृषि योग्य भूमि का चार प्रतिशत इस्तेमाल में लग जाता है. इस ऊर्जा को सौर स्रोतों से बनाना कहीं ज्यादा सस्ता होगा और इसके लिए अभी जितनी जमीन की जरूरत है उसके सिर्फ दसवें भाग की जरूरत होगी. (गेरो रूटर)
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धरने में 23 किसान संगठनों से जुड़े किसान शामिल हैं. भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के प्रदेश अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल ने मीडिया को बताया कि उनके पास 15 मांगों का एक चार्टर है, जिसमें सरकार द्वारा तय किए गए 18 जून के बजाय 10 जून से किसानों को धान बुवाई करने की अनुमति देना शामिल है.
पंजाब के बिजली मंत्री हरभजन सिंह के साथ किसान यूनियन की बातचीत विफल होने के बाद यूनियन नेताओं ने पिछले हफ्ते धरने की घोषणा की थी. धरने पर बैठे किसान अपने साथ राशन, गैस सिलेंडर, खाना पकाने का सामान, बिस्तर और कूलर लेकर आए हैं.
वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार किसानों से बातचीत के लिए हमेशा तैयार है. किसानों ने मांगे नहीं पूरी होने पर आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है.
कैंसर से जूझता पंजाब का मालवा
मालवा को पंजाब के 'कैंसर बेल्ट' के नाम से भी जाना जाता है. हर साल यहां कैंसर के हजारों मामले सामने आते हैं. कैंसर बड़ी संख्या में लोगों की जान भी ले रहा है. इस त्रासदी का सबसे वीभत्स रूप चट्ठेवाला गांव में नजर आता है.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
पानी से कैंसर
पंजाब का मालवा क्षेत्र पिछले कई सालों से कैंसर से ग्रस्त है. दूषित भूजल और कीटनाशकों के बहुत ज्यादा इस्तेमाल की वजह से यहां कैंसर व अन्य बीमारियां फैली हुई हैं. चट्ठेवाला गांव इस दर्द भरी दास्तां का गवाह है.
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कैंसर से हर साल मौत
चट्ठेवाला गांव के घर घर में कैंसर की जड़ें पहुंच चुकी हैं. हर साल कैंसर इस गांव के कई लोगों की जान ले लेता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि 2021 में कैंसर से गांव में 12-15 लोगों की मौत हो गई है. इतना ही नहीं, उनका दावा है कि कई घरों में कैंसर के असर की वजह से अंगहीन बच्चे भी पैदा हुए हैं.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
खेती पर भी असर
दूषित पानी का असर आम लोगों के साथ-साथ मालवा के कई गांवों की खेती पर भी पड़ता है. दूषित पानी से मिट्टी खराब होती है और समय के साथ पैदावार भी कम होती जाती है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
अस्पतालों में हजारों मरीज
पहले बठिंडा से कैंसर का इलाज कराने के लिए मरीज 'कैंसर एक्सप्रेस' के नाम से भी जानी जाने वाली ट्रेन से राजस्थान के बीकानेर जाते थे. अब मालवा में ही बठिंडा, संगरूर, फरीदकोट और फजील्का में कैंसर अस्पताल हैं, जहां अभी भी हर साल हजारों नए मरीज आते हैं.
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नेता भूल जाते हैं वादे
लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि कैंसर के रोकथाम, जल्द पता लगने और उच्च कोटि के इलाज की व्यवस्था अभी भी नहीं है. चट्ठेवाला के लोगों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए आने वाले नेता कई वादे कर जाते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद वे उन वादों को भूल जाते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
विकास अभी दूर है
2200 के करीब आबादी वाले चट्ठेवाला गांव के ज्यादातर लोग किसानी करते हैं. गांव में पक्के मकान भी हैं, यहां के कुछ लोग अमेरिका और कनाडा में बेहतर जीवन की तलाश में वहां जा बसे. माझा और दोआबा के मुकाबले मालवा काफी पीछे है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
महत्वपूर्ण क्षेत्र है मालवा
मालवा क्षेत्र को पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है. पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से सबसे अधिक 69 इसी क्षेत्र में है. सभी पार्टियां इस क्षेत्र में पूरा दम लगाती हैं. मालवा में जिस पार्टी का प्रदर्शन अच्छा होता है राज्य में उसकी सरकार बनने की संभावना अधिक होती है.