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भारतीय सड़कों पर कब सुरक्षित होंगी बेटियां?

आमिर अंसारी
२९ नवम्बर २०१९

तेलंगाना में महिला डॉक्टर के साथ जो हुआ उससे सवाल उठता है कि क्या निर्भया कांड के बाद भी देश में महिला सुरक्षा की बात सिर्फ कागजी है.

Indien Kaschmir Vergewaltigung und Tod einer Achtjährigen
फाइल तस्वीर: Reuters/

तेलंगाना के हैदराबाद में 27 साल की पशु चिकित्सक की बलात्कार के बाद जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई. महिला का शव गुरुवार सुबह एक पुल के नीचे जली हुई हालत में मिला. परिवार ने महिला की पहचान शरीर पर मिले लॉकेट से की. मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक महिला डॉक्टर गाचीबाउली के पशु अस्पताल में ड्यूटी के बाद घर लौट रही थीं.

साइबराबाद पुलिस कमिश्नर वी सी सज्जन ने अंग्रेजी अखबार दि हिंदू को बताया, "अस्पताल से घर लौटते वक्त महिला के साथ रात करीब 9.20 बजे वारदात को अंजाम दिया गया. सुबह अस्पताल जाते समय महिला ने अपनी स्कूटर टुंडुपल्ली टोल प्लाजा के गेट के पास पार्क की थी और उसके बाद कैब लेकर गाचीबाउली गई. जब शाम को वह लौटी तो उसने देखा कि स्कूटर पंक्चर है."

टोल प्लाजा के पास स्कूटर पंक्चर होने की बात महिला ने अपनी छोटी बहन को बताई और कहा कि उसे वहां खड़े रहने में डर लग रहा है क्योंकि सड़क बहुत सुनसान है. बहन ने पुलिस को बताया कि आखिरी कॉल में उसने दो अंजान शख्स का जिक्र किया, जो मदद की पेशकश कर रहे थे. मृतक की बहन ने पुलिस को बताया कि स्कूटी ले जाने वाले दो अनजान शख्स कुछ मिनट बाद लौट आए और कहा कि पंक्चर की दुकान बंद है. कुछ देर बाद एक और शख्स स्कूटी लेकर चला गया लेकिन वह वापस नहीं लौटा.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महिला डॉक्टर ने फोन काटने से पहले अपनी बहन से कहा, "मुझे डर लग रहा है, ट्रक में बैठे कुछ लोग मुझे घूर रहे हैं. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं, मैं गाड़ी यहां नहीं छोड़ सकती."

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

जब परिवार के सदस्यों ने महिला से संपर्क करना चाहा था तो उसका फोन बंद था, रात करीब एक बजे परिवार ने शमशाबाद ग्रामीण पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई.

गुरुवार सुबह महिला की लाश वहां से गुजर रहे एक शख्स ने देखी और उसकी सूचना पुलिस को दी. पुलिस ने हाल-फिलहाल में लापता हुई महिलाओं की रिपोर्ट के आधार पर पता लगाया कि महिला शमशाबाद की रहने वाली है.

स्थानीय पत्रकार मोहम्मद मुब्बशुरुद्दीन खुर्रम ने डीडब्ल्यू को बताया कि टोल प्लाजा शहर के पास ही है और ऐसी वारदात से लोगों में रोष हैं. उनके मुताबिक, "इस तरह की खौफनाक वारदात से लोग सहमे हुए हैं और उनके भीतर गुस्सा है."

खुर्रम के मुताबिक महिला का परिवार रात 10 बजे के करीब पुलिस के पास गया लेकिन रिपोर्ट बहुत देर बाद दर्ज की गई. खुर्रम कहते हैं, "अगर पुलिस तुरंत अलर्ट हो जाती तो महिला को बचाया जा सकता था. टोल प्लाजा के आस-पास पुलिस जरुर गश्त करती ही है, ऐसे में पुलिस अगर तत्काल कदम उठाती तो महिला की जान बच सकती थी."

निर्भया के बाद क्या सबक सीखा

दिसंबर 2012 में हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले ने देश ही नहीं दुनिया को थर्रा डाला था, केंद्र की सरकार तब उस कांड के बाद उबले रोष को संभाल नहीं पा रही थी. उस वक्त की मनमोहन सिंह की सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए समर्पित विशेष कोष की स्थापना की. साथ ही जनता के गुस्से को ठंडा करने के मकसद से सरकार ने जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जिसने कई कड़े उपायों की सिफारिशें की. जनवरी 2013 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने पुलिस संख्या, पुलिस सुधारों, आपराधिक मामलों पर दंड व्यवस्था और सामाजिक जागरूकता पर सिफारिशें कीं लेकिन बलात्कार की घटनाएं रुकी नहीं.

सख्त कानून के बावजूद बलात्कार के मामले रुकते नहीं तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Husssain

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं, "हम इसे बदइंतजामी की इंतेहा ही कह सकते हैं, हमारी बच्चियां कहां जाएंगी, वो टोल प्लाजा, स्कूटर, टैक्सी और बस में भी  भी सुरक्षित नहीं है. पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह गंभीरता से गश्त लगाए ताकि बच्चियां खासतौर पर सुरक्षा का अहसास कर पाए. हमारे बच्चे जब काम पर जाएं तो सुरक्षित घर वापस लौटे यह पुलिस की भी जिम्मेदारी है. तेलंगाना में जो हुआ उसे रोका जा सकता था लेकिन अफसोस पुलिस की लचर व्यवस्था के कारण एक बच्ची की इस तरह से मौत हो गई."

देश में बढ़ते अपराध

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आकंड़ों की बात करें तो देश भर में साल 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,59,849 मामले दर्ज किए गए. महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार तीसरे साल इजाफा हुआ है. 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,29,243 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2016 में 3,38,954 मामले दर्ज हुए थे. महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लेकर सख्त कानून तो है लेकिन उसका पालन कितना हो पा रहा है इन आकंड़ों को देख कर ही समझा जा सकता है.

विक्रम सिंह कहते हैं, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लेकर कानून सख्त है लेकिन उसका पालन कितना हो पाता है. पुलिस के पास पर्याप्त शक्ति है, कोष है लेकिन लगता है इच्छाशक्ति की कमी जरूर है."

विक्रम सिंह कहते हैं कि पुलिस को ऐसे कड़े कदम उठाकर उदाहरण पेश करने होंगे जिससे अभिभावकों और महिलाओं में यह भरोसा पैदा हो कि समाज के भीतर बदमाश नहीं हैं और वह सुरक्षित हैं.

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