सेंट्रल अडॉप्शन रिसॉर्स अथॉरिटी (CARA) के मुताबिक साल 2020-21 में साल 2015-16 के बाद से सबसे कम बच्चों को गोद लिया गया. इस दौरान 3,142 बच्चों को ही अडॉप्ट किया गया, जबकि साल 2019-20 में 3,351 बच्चों को गोद लिया गया था.
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नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के मुताबिक 1 अप्रैल, 2020 से 5 जून, 2021 के बीच कोरोना महामारी के दौरान भारत में 3,621 बच्चे अनाथ हुए हैं जबकि लांसेट पत्रिका की एक स्टडी के मुताबिक यह आंकड़ा ए लाख से भी ज्यादा है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड की वजह से माता-पिता को खोने वाले बच्चों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थीं, इनसे जुड़ी पोस्ट में ऐसे बच्चों को गोद लेने की अपील की जा रही थी.
इस पर कई संस्थाओं ने चिंता भी जताई थी. उन्हें डर था कि ऐसी गतिविधियां भारत में बच्चों की तस्करी को बढ़ावा दे सकती हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया कि भारत के अलग-अलग राज्यों में कोरोना के दौरान बच्चों की तस्करी वाकई बढ़ गई है और वायरस के प्रकोप के चलते अनाथ हुए बच्चे 2-5 लाख रुपये में बेचे जा रहे हैं.
तस्वीरेंः कानून से अनाथ बच्चों की भलाई
कानून से अनाथ बच्चों की भलाई
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में कई अहम संशोधन किए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन संशोधनों से बच्चा गोद लेना आसान होगा और उनकी सुरक्षा भी बढ़ेगी. इस विधेयक में बाल संरक्षण को मजबूत करने के उपाय भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
गोद लेने की प्रक्रिया आसान
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन करने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित हो चुका है और यह जल्द ही कानून बन जाएगा. इस कानून के तहत बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है.
सरकार का कहना है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन से कानून मजबूत होगा और बच्चों की सुरक्षा बेहतर ढंग से होगी.
तस्वीर: IANS
अनाथ बच्चों का कल्याण
सरकार का कहना है कि यह एक बेहतर कानून है जिससे अनाथ बच्चों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना सुनिश्चित किया जा सकता है. कानून के प्रभावी तरीके से लागू होने से अनाथ बच्चों को शोषण से बचाया जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir
किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे
संशोधित कानून में एक अहम बदलाव ऐसे अपराध से जुड़ा है जिसमें भारतीय दंड संहिता में न्यूनतम सजा तय नहीं है. 2015 में पहली बार अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया-छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध. तब ऐसे केसों के बारे में कुछ नहीं बताया गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है. संशोधन प्रस्तावों के कानून बन जाने से किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे.
तस्वीर: DW/M. Kumar
बाल कल्याण समिति
संशोधन प्रस्तावों में बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) को ज्यादा ताकत दी गई है. इससे बच्चों का बेहतर संरक्षण करने में मदद मिलेगी. एक्ट में प्रावधान है कि अगर बाल कल्याण समिति यह निष्कर्ष देती है कि कोई बच्चा, देखरेख और संरक्षण की जरूरत वाला बच्चा नहीं है, तो समिति के इस आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती है. बिल इस प्रावधान को हटाता है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture-alliance
बढ़ेगी जवाबदेही, तेजी से होगा निस्तारण
संशोधन विधेयक में बच्चों से जुड़े मामलों का तेजी से निस्तारण सुनिश्चित करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट व अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को ज्यादा शक्तियां देकर सशक्त बनाया गया है. इन संशोधनों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट समेत जिला मजिस्ट्रेट को जेजे अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
और भी बदलाव
विधेयक में सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया गया है. सीडब्ल्यूसी सदस्यों की अयोग्यता के मानदंड भी यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किए गए हैं कि, केवल आवश्यक योग्यता और सत्यनिष्ठा के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवा देने वालों को ही सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किया जाए.
तस्वीर: Amarjeet Kumar Singh/SOPA Images via ZUMA Wire/picture alliance
बदलाव की जरूरत क्यों
बाल अधिकार सुरक्षा पर राष्ट्रीय आयोग ने देश भर के बाल संरक्षण गृहों का ऑडिट कर साल 2020 में रिपोर्ट दी थी. 2018-19 के इस ऑडिट में सात हजार के करीब बाल गृहों का सर्वेक्षण किया गया, ऑडिट में पाया गया कि 90 प्रतिशत संस्थानों को एनजीओ चलाते हैं और करीब 1.5 फीसदी कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहे थे.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
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मीडिया रिपोर्ट्स में बच्चों को गैरकानूनी तरीके से बेचने के लिए कुछ एनजीओ को भी जिम्मेदार ठहराया गया. रिपोर्ट में यह कहा गया था कि ये ट्रैफिकर सोशल मीडिया के माध्यम से ग्राहक जुटा रहे हैं. कुल मिलाकर बात यह कि कोरोना के दौरान अनाथ बच्चों की संख्या बढ़ने के बावजूद भारत में साल 2020-21 में कानूनी रूप से बच्चों को गोद लेने की दर कम हो गई है.
पांच साल के निचले स्तर पर
सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) के मुताबिक साल 2020-21 के आंकड़े पांच साल के सबसे निचले स्तर पर हैं. इस गिरावट के लिए महामारी को जिम्मेदार माना जा रहा है. 2019-20 में 3,351 बच्चों को गोद लिया गया था, जबकि 2020-21 में 3,142 बच्चों को ही अडॉप्ट किया गया. साल 2015-16 के बाद से यह आंकड़ा सबसे कम है. साल 2015-16 में सिर्फ 3,011 बच्चों को ही गोद लिया गया था.
महाराष्ट्र महिला और बाल विकास विभाग के मुताबिक राज्य में गोद लिए जाने वाले बच्चों की संख्या एक-तिहाई से भी ज्यादा घट गई है. अडॉप्शन एजेसियां, जानकार और कारा स्टीअरिंग कमेटी के सदस्य इसकी वजह लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध और सीमित प्रशासकीय प्रक्रिया को बता रहे हैं.
भारत में 3 करोड़ अनाथ बच्चे
कोरोना महामारी से बच्चों को गोद लेने और उनकी देखरेख पर पड़े प्रभाव के बारे में प्रोफेसर रत्ना वर्मा और रिंकू वर्मा ने एक रिसर्च पेपर लिखा है, जिसमें भारत में अनाथ और छोड़ दिए गए बच्चों की कुल संख्या करीब 3 करोड़ बताई गई है. इनमें से ज्यादातर बच्चों को उनके मां-बाप ने गरीबी के चलते छोड़ दिया है. ये बच्चे कई बार बालश्रम, ट्रैफिकिंग और यौन शोषण का शिकार बनते हैं. इतनी बड़ी संख्या में अनाथ बच्चे होने के बाद भी भारत का अडॉप्शन रेट बेहद कम है.
देखेंः महामारी का बच्चों पर असर
कोरोना महामारी का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर
कोरोना का असर सिर्फ बड़ों के मानसिक स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. पूरी दुनिया कोरोना काल में पाबंदियों में जी रही है, ऐसे में बच्चे भी घरों में कैद हैं.
तस्वीर: Colourbox/ldutko
चिंता का विषय
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का कहना है कि दक्षिण एशियाई देशों में कोरोना वायरस महामारी के बढ़ने से इसका असर यहां रहने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. यूनिसेफ का कहना है कि ऐसा संकट पहले कभी नहीं देखने में आया.
तस्वीर: Colourbox/ldutko
स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ
यूनिसेफ के मुताबिक दक्षिण एशियाई देशों में कोरोना वायरस के कारण पिछले साल मार्च से स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक बोझ बढ़ा है. उसके मुताबिक जिन देशों की स्वास्थ्य सेवा कमजोर है उनकी वक्त रहते मदद की जरूरत है.
तस्वीर: Getty Images/K. Frayer
अनाथ हुए बच्चे
कोरोना काल में कई बच्चे अपने अभिभावक या दोनों अभिभावकों को खो दिए. ऐसे में अचानक अनाथ हुए बच्चों के सामने इस हालत से निपटने में दुविधा दिख रही है. भारत में भी कई बच्चे अनाथ हुए हैं, जिनके कल्याण को लेकर केंद्र और राज्य की सरकारों ने योजनाओं की घोषणा की हैं.
तस्वीर: Nacho Doce/REUTERS
जोखिम के बीच बच्चे
दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय निदेशक जॉर्ज लारेया कहते हैं पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, और भूटान में कोरोना संक्रमण के हालात बिगड़ सकते हैं. उन्होंने दक्षिण एशिया के देशों की मदद के लिए अन्य देशों से अपील की है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. R. Malasig
पहली लहर में भी परेशान हुए बच्चे
यूनिसेफ का कहना है कि कोरोना की पहली लहर में दक्षिण एशिया के देशों में दो लाख बच्चे और हजारों मांओं को जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं में परेशानी का सामना करना पड़ा.
तस्वीर: UNFPA Bangladesh/Naymuzzaman Prince
भारत में पहल
कोविड-19 से प्रभावित बच्चों की मदद और सशक्तिकरण के लिए पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रेन योजना की शुरुआत हुई है. इस योजना के तहत बच्चों को मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा. अनाथ हुए बच्चों को 18 साल होने पर मासिक भत्ता दिया जाएगा और 23 वर्ष होने पर पीएम केयर्स फंड से 10 लाख रुपये दिए जाएंगे.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture-alliance
बढ़ता अवसाद
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का अध्ययन कहता है कि कोरोना की वजह से लोग मानसिक तौर पर भी बीमार हो सकते हैं. शोधकर्ताओं ने 2,36,000 से अधिक कोरोना से पीड़ित रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स की जांच की. इस जांच में यह बात सामने आई कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के छह महीने के भीतर 34 प्रतिशत रोगियों में किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी दिखी.
तस्वीर: Richard Brunel/PHOTOPQR/LA MONTAGNE/MAXPPP/picture alliance
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डॉ. रत्ना वर्मा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (IIHMR) के स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. कोरोना के प्रभाव के बारे में वह बताती हैं, "भारत में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया पहले भी आसान नहीं थी, कोरोना के बाद यह और भी मुश्किल हो चुकी है. गोद लेने वाले अभिभावकों को अपनी शादी के प्रमाण साथ ही कई डॉक्युमेंट्स देने होते हैं जिन्हें बाद में अडॉप्शन अथॉरिटी वैरिफाई भी करती है. इसमें काफी समय लगता है. अब कोरोना के चलते सरकारी कार्यालयों का काम बाधित हुआ है, जिससे इन डॉक्युमेंट्स के बनने और मिलने में काफी देर हो रही है."
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गोद लेने कीप्रक्रिया लंबी
डॉ. रत्ना वर्मा बताती हैं, "इन कागजात के वैरिफिकेशन के बाद माता-पिता को अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देनी होती हैं जिसके बाद एक कुशल काउंसलर अभिभावकों से मिलकर एक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसके आधार पर बच्चे को गोद लिए जाने की प्रक्रिया आगे बढ़ती है. कोरोना से जुड़े प्रतिबंधों के चलते इन काउंसिलरों का लोगों के घर जाना और उनसे मिलना संभव नहीं रह गया है."
वह कहती हैं, "कोरोना ने संभावित माता-पिता की स्थितियों में भी कई बदलाव किए हैं. लोग आर्थिक रूप से कमजोर हो गए हैं, जिससे वे एक और सदस्य की देख-रेख करने में खुद को समर्थ नहीं पा रहे. इसके अलावा कोरोना ने कई अनिश्चितताओं को बढ़ाया है और लोग मानसिक रूप से बच्चा अडॉप्ट करने के लिए आत्मविश्वास नहीं हासिल कर पा रहे हैं."
गोद लेने की स्वीकार्यता कम
हालांकि जानकार कहते हैं, सबसे बड़ी परेशानी कानूनी तौर पर गोद लेने के बारे में लोगों को जानकारी न होना है. सबसे पहले अडॉप्शन पॉलिसी के बारे में लोगों को जागरूक करने जरूरत है. भारत में बहुत सी सरकारी योजनाओं का प्रचार दिखता है, लेकिन अडॉप्शन पॉलिसी का नहीं. अन्य योजनाओं की तरह इसे भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
तस्वीरों मेंः अनाथ हो चुके कस्बे
अनाथ हो चुके कस्बे
कभी मोहनजोदाड़ो आबाद था तो कभी बेबीलोन. शहर बसते और उजड़ते रहते हैं. एक नजर हाल ही में उजड़े कस्बों पर.
तस्वीर: picture-alliance/Imaginechina
कावालेरिजो, इटली
2005 में भूस्खलन के बाद कावालेरिजो के ज्यादातर बाशिंदे दूसरी जगहों पर चले गये. तब से यह कस्बा सूना पड़ा है. वहां अब सिर्फ एक महिला अपने कुत्ते के साथ रहती है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/A.Di Vincenzo
क्राको, इटली
इस इतावली कस्बे में 1960 के दशक में आए भूकंप और बाढ़ ने सारे बाशिंदों को भागने पर मजबूर कर दिया. लोगों में ऐसा डर बैठा कि कोई वहां लौटा नहीं. अब वहां फिल्म के डरावने सीन शूट होते हैं.
तस्वीर: picture alliance /dpa/A.Gattino
प्रिपेत, यूक्रेन
चेर्नोबिल में हुए परमाणु रिएक्टर हादसे ने इस कस्बे को उजाड़ दिया. कभी वहां 43,000 लोग रहते थे. लेकिन 1986 के बाद से वहां सिर्फ खरगोश और लोमड़ी जैसे जंगली जीव ही दिखाई पड़ते हैं.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
ब्योलोलासिका, क्रोएशिया
कभी इसे स्की रिजॉर्ट बनाने की कोशिश की गई, लेकिन रिजॉर्ट प्रोजेक्ट अधूरा रह गया. पर्यटन में आई भारी गिरावट के चलते स्थानीय लोग वहां से चले गये. रोपवे पर लटके झूले आज भी विस्थापन की कहानी सुनाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/P.Glebov
होउटोवान, चीन
चीन के झेनजियांग प्रांत के इस गांव में अब कोई नहीं रहता है. द्वीप पर बसे इस गांव के लोग रोजगार की तलाश में बाहर गये और फिर कभी नहीं लौटे. अब तो वहां के घरों को भी प्रकृति ने अपनी गोद में ले लिया है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/H.Jiaoshi
कोलमनस्कोप, नामीबिया
19वीं सदी की शुरुआत में वहां सैकड़ों लोग वहां हीरे खोजकर अपनी किस्मत चमकाने की उम्मीद से गये. वहां कई जर्मन परिवार भी बसे. 1920 के दशक तक हीरों का कारोबार फला फूला, लेकिन फिर रेत के तूफान से इंसान को वहां से खदेड़ दिया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/R.Harding
ओरबिटा, यूक्रेन
यूक्रेन के बीचों बीच बसा ओरबिटा भी हिंसा की भेंट चढ़ गया. यूक्रेनी सेना और रूस समर्थक विद्रोहियों के संघर्ष के चलते सारे बाशिंदे ओरबिटा शहर छोड़ गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Filippov
गाउसनविले, फ्रांस
पेरिस के बाहर बसा यह कस्बा 40 साल पहले आबाद हुआ करता था. लेकिन विमानों के बढ़ते शोर के चलते धीरे धीरे लोग वहां से रुखसत कर गए. आज इक्का दुक्का लोग ही वहां रहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Saget
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दरअसल भारतीय समाज की सोच और मान्यताएं बच्चों को गोद लेने के पक्ष में नहीं हैं. यहां लोगों में वंश और परिवार की भावना मजबूत होती है, जिसके चलते अगर लोग बच्चों को अडॉप्ट करने के बारे में सोचते भी हैं, तो ज्यादातर वे अपने ही रिश्तेदारों के बच्चों को गोद लेते हैं. कई बार यह प्रक्रिया कानूनी नहीं होती. कई बार यह बात रिकॉर्ड में भी नहीं आती और बाद में कई विवादों की जड़ बनती है.
जानकार मानते हैं कि गोद लेने वाले माताओं-पिताओं की एक कम्युनिटी डेवलप करना सबसे जरूरी है ताकि यह कदम सामान्य बन सके और ऐसे लोग गोद लेने की प्रक्रिया में एक-दूसरे की मदद भी करें.
गोद लेने के लिए कई कानून
भारत में बच्चों को गोद लेने से जुड़े कानून हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट, 1956 (HAMA) और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 (JJ Act) हैं. JJ एक्ट आने से पहले गैर हिंदू सिर्फ गार्डियंस एंड वार्ड एक्ट, 1980 (GWA) के तहत ही बच्चों को गोद ले सकते थे. हिंदुओं पर लागू होने वाले कानून HAMA से अलग GWA व्यक्ति विशेष को बच्चे का सिर्फ कानूनी अभिभावक बनाता है, प्राकृतिक नहीं. ऐसे में बच्चे के 21 साल का होने पर अभिभावक का रोल खत्म हो जाता है.
गोद लेने की प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव 2015 में आया, जब चाइल्ड अडॉप्शन रिसॉर्स इन्फॉर्मेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (CARINGS) की शुरुआत की गई. यह गोद लेने योग्य बच्चों और संभावित माता-पिता के लिए एक केंद्रीय डेटाबेस है.
CARINGS का लक्ष्य देरी के बिना ज्यादा से ज्यादा बच्चों की गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करना है. फिर भी इस गोद लेने के सिस्टम में कई कमियां हैं. वेबसाइट पर गोद लेने वालों की संख्या कुल गोद लेने योग्य बच्चों के मुकाबले 10 गुना से भी ज्यादा है.
तस्वीरों मेंः गटर में रहते बच्चे
गटर में रहते बच्चे
रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में कई अनाथ और गरीब बच्चे शहर के मैन होल में, यानि जमीन के नीचे बिछाए गए पाइपों में रहते हैं. कैसा है उनका जीवन, देखते हैं तस्वीरों में.
तस्वीर: Jodi Hilton
अंडरग्राउंड जीवन
19 साल की क्रिस्टीना नशीली दवा ऑरोलैक का नशा करती है और उसका कोई घर नहीं. बुखारेस्ट में उसकी तरह 1,000 से 6,000 अनाथ बच्चे हैं. जिनके सिर पर छत नहीं. वो कहती है, "यहां हमारे पास पानी, कपड़े कुछ नहीं हैं और कभी कभी खाने को भी कुछ नहीं मिलता."
तस्वीर: Jodi Hilton
एक अदद घर?
कई किशोरों ने जमीन के नीचे अपना ड्रॉइंगरूम बसा लिया है. कारिना यहां बुखारेस्ट के बड़े से हीटिंग और जलनिकासी प्रणाली की संरचना में रहते हैं. रोशनी के लिए मोमबत्ती जलाते हैं. कई अनाथ बच्चे अनाथश्रमों में रहे और बड़े होने के बाद वहां से भाग कर यहां पहुंच गए.
तस्वीर: Jodi Hilton
अनाथ बच्चों की नई पीढ़ी
रोमेनियाई क्रांति के 25 साल बाद अनाथ, ड्रग्स की लत में पड़े बच्चों की एक नई पीढ़ी शहर के मैन होल में सुरक्षा ढूंढ रही है. छोटा, दुखी और परेशानियों से भरा जीवन. 19 साल की मोना दूसरी बार गर्भवती है और अपने जीवनसाथी और बेटी के साथ गटर में रहती है.
तस्वीर: Jodi Hilton
ठंडा और चिपचिपा
रेमुस 20 साल के हैं और शहर नीचे एक कोने में घर बनाए हैं. चूंकि उत्तरी स्टेशन के पास की नालियों में बहुत लोग रहते हैं इसलिए वो यहां पियाटा विक्टोरी के नीचे रहते हैं. शहर के हीटिंग सिस्टम के पास होने से यहां सर्दियों में थोड़ा गर्म रहता है और जगह भी काफी है.
तस्वीर: Jodi Hilton
पुराने अनाथ
रोमानिया का अनाथाश्रम सिस्टम तानाशाह निकोलाई चाउषेस्कू के दौर में शुरू किया गया क्योंकि उन्होंने गर्भपात पर रोक लगा दी थी. 1990 के दशक में इनकी हालत खराब हो गई क्योंकि देश में ही खाने पीने के सामान की भारी कमी थी. कई बच्चे इन अनाथाश्रमों से भाग गए.
तस्वीर: Jodi Hilton
नशेड़ियों का अड्डा
बुखारेस्ट के उत्तरी स्टेशन के पास पार्क से अंडरग्राउंड में थैली पहुंचाता एक व्यक्ति. ये पार्क ड्रग तस्करों और इनका सेवन करने वालों का अड्डा है. यहां बच्चों ने सबसे पहले शहर के नीचे जलनिकास प्रणाली में ठिकाना बनाया था.
तस्वीर: Jodi Hilton
गरीबी
बुखारेस्ट के मध्यम वर्गीय इलाके में एक ड्रग डीलर के यहां रह रहा जोड़ा. रोमानिया की राजधानी में करीब 6000 लोग बेघर हैं. इनमें से अधिकतर सर्दियों में जमीन के नीचे आसरा ढूंढते हैं.
तस्वीर: Jodi Hilton
स्प्रिट का नशा
चार साल की पेपिटा नाश्ता खा रही है जबकि उसकी बहन क्रिस्टीना प्लास्टिक की थैली से ऑरोलैक स्प्रिट सूंघ रही है, जिससे उसे नशा होता है. वह कहती है, "नालियों में रहना आसान नहीं. कभी कभी यहां इतने लोग होते हैं कि यहां सो ही नहीं सकते. मेरी इच्छा है कि मैं कभी किंडरगार्टन में जाऊं."
तस्वीर: Jodi Hilton
बच्चों की परवरिश
सभी बेघर जमीन के नीचे नहीं रहते. 32 साल की गर्भवती निकोलेटा अपने जीवनसाथी और दो बच्चों के साथ स्टेशन के पास रहती हैं. उनके पहले दो बच्चे सरकारी संरक्षण में रह रहे हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि तीसरे बच्चे को खुद पाल पाएंगी.
तस्वीर: Jodi Hilton
सड़क पर बसेरा
24 साल के सेरजियू अनाथाश्रम में बड़े हुए. वहां से भाग गए और नशा करने लगे. वो बताते हैं, "मैं नालियों में भी रहा. मैं नशा छोड़ना चाहता था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं तो मैं पुल के नीचे आकर रहने लगा."