मिशनरीज ऑफ चैरिटी के चंदे के लाइसेंस को दोबारा अनुमति ना दिए जाने को ईसाइयों पर बढ़ते हमलों से जोड़ कर देखा जा रहा है. इससे पहले भी कई बार हिंदूवादी संगठन मदर टेरेसा और उनकी बनाई इस संस्था से नाराजगी दिखा चुके हैं.
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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी (एमओसी) को एफसीआरए लाइसेंस के नवीकरण की अनुमति नहीं दी गई है. लाइसेंस का नवीकरण 31 दिसंबर को होना था लेकिन मंत्रालय ने कहा कि संस्था के आवेदन पर विचार करते समय कुछ "प्रतिकूल जानकारी" मिली जिसकी वजह से अनुमति नहीं दी गई.
एमओसी ने नवीकरण की अनुमति न मिलने की पुष्टि की है लेकिन इस विषय में और कोई टिप्पणी नहीं की है. यह संस्था मूल रूप से अंतरराष्ट्रीय कैथोलिक चर्च के तहत चलने वाला एक धार्मिक और सेवा संस्थान है. इसकी स्थापना मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में की थी.
पुराने आरोप
धीरे धीरे यह दुनिया भर में फैल गई और आज कई देशों में इसकी शाखाएं हैं. संस्था में विशेष रूप से गरीबों, बुजुर्गों, शरणार्थियों, पूर्व यौनकर्मियों, मानसिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों, त्याग दिए गए बच्चों, कुष्ठरोगियों, एड्स पीड़ितों आदि की सेवा की जाती है.
मदर टेरेसा को उनके सेवा कार्यों के लिए 1962 में रमोन मैगसेसे पुरस्कार और फिर 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था. 2015 में कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस ने उन्हें संत घोषित किया था.
लेकिन भारत में हिंदूवादी संगठन मदर टेरेसा और एमओसी पर लंबे समय से कभी प्रलोभन देकर और कभी जबरन धर्मांतरण करने के आरोप लगाते रहे हैं. कुछ ही दिनों पहले गुजरात के वडोदरा में जिला प्रशासन के एक अधिकारी की शिकायत पर एमओसी के खिलाफ एक मामला दर्ज किया.
ईसाइयों पर हमले
संस्था के खिलाफ गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 के तहत "हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने" और "युवा लड़कियों को फुसला कर ईसाई धर्म में धर्मांतरण" करवाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई.
2015 में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था की मदर टेरेसा की सेवा का असली उद्देश्य लोगों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण करवाना था. पिछले कुछ दिनों में देश के कई कोनों से लगातार हिंदूवादी संगठन और असामाजिक तत्वों द्वारा ईसाई चर्चों, पादरियों और यहां तक की चर्च द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों पर हमलों की खबरें आ रही हैं.
क्रिसमस के ही मौके पर हरियाणा में एक चर्च में ईसा मसीह की एक मूर्ती तोड़ी गई, एक स्कूल में क्रिसमस उत्सव को बीच में रोका गया और असम के सिल्चर में लोगों को क्रिसमस मनाने से रोका गया. उत्तर प्रदेश के आगरा में तो कुछ हिंदूवादी संगठनों के लोगों ने सैंटा क्लॉज का पुतला जला दिया.
पाकिस्तान की मदर टेरेसा
जर्मनी में जन्मी मेडिकल मिशनरी डॉ रूथ फाउ का 19 अगस्त को पाकिस्तान के कराची में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. डॉ फाउ को उनके मानवीय सेवाओं के लिए पाकिस्तान की मदर टेरेसा कहा जाता है.
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एक युग का अंत
राजकीय सम्मान के साथ विदायी के साथ ही समाज के सभी वर्गों से डॉ रूथ फाउ के लिए श्रद्धांजलि के फूल अर्पित किये जा रहे हैं. हालांकि डॉ रूथ फाउ को ये सम्मान इसलिए मिला है क्योंकि उन्होंने आधी से ज्यादा वक्त इस दक्षिण एशियाई देश में बेदर कमजोर लोगों के लिए कुष्ठ रोग से लड़ते हुए बिताया है.
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जन्म और शुरुआती जीवन
रूथ कातरीना मार्था फाउ का जन्म एक प्रोटेस्टेंट परिवार में 9 सितंबर 1929 को जर्मनी के लाइपजिग शहर में हुआ. जंग के बाद पूर्वी जर्मनी में सोवियत उपनिवेश ने उन्हें पश्चिमी जर्मनी की ओर भागने के लिए विवश किया. उन्होंने माइंज की यूनिवर्सिटी से 1950 के दशक में मेडिसिन की पढ़ाई की. फाउ की मुलाकात एक ईसाई महिला से हुई जो कंसनट्रेशन कैंप से बच कर आई थीं और उनके संपर्क ने उन्हें आखिरकार कैथोलिक बना दिया.
तकदीर जहां ले जाये
फाउ मारबुर्ग चली गईें और वहीं अपनी पढ़ाई जारी रखी. 1957 में वो डॉटर्स ऑफ हर्ट ऑफ मेरी में शामिल हो गईं. यह एक कैथोलिक समुदाय है जिसने उन्हें दक्षिण भारत भेज दिया. 1960 में उनकी वीजा की एक दिक्कत के कारण वह पाकिस्तानी शहर कराची में फंस गईं. बाद में जब उन्होंने यहीं रहने का फैसला किया तो डॉ फाउ ने पूरे पाकिस्तान और अफगानिस्तान का दौरा कर मरीजों का इलाज किया.
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मिशन पर फाउ
डॉ फाउ कराची के मैरी एडिलेड लेप्रोसी सेंटर से जुड़ गईं और जल्दी ही इसे 157 केंद्रों के एक नेटवर्क में तब्दील कर दिया जहां कुष्ठ रोग से पीड़ित हजारों मरीजों का इलाज होता है. इसे जर्मन, ऑस्ट्रियाई और पाकिस्तानी दानदाताओं की मदद से शुरू किया गया. इस केंद्र और इसके दूर दराज के क्लिनिकों ने बलूचिस्तान में साल 2000 के अकाल, कश्मीर में 2005 की भूकंप और 2010 की बढ़ के समय भी लोगों की भारी मदद की.
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शीर्ष नागरिक सम्मान
डॉ फाउ की तुलना अकसर मदर टेरेसा से की जाती है. फाउ को 1988 में पाकिस्तान की नागरिकता दी गई इसके अलावा उन्हें उनकी सेवाओँ के लिए कई नागरिक सम्मानों से नवाजा गया. इनमें पाकिस्तान का शीर्ष नागरिक सम्मान हिलाल ए इम्तियाज और हिलाल ए पाकिस्तान भी शामिल है जो उन्हें 1989 और 2010 में मिला.
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बुझ गई रोशनी
डॉ रूथ फाउ की 10 अगस्त 2017 को एक कराची के एक अस्पताल में कुछ दिन की इलाज के बाद मौत हो गई. उन्हें कई बीमारियां थीं जिनमें किडनी और दिल के मर्ज भी शामिल थे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने राजकीय सम्मान के साथ उनके अंतिम स्स्कार का एलान किया. गहरे राजनतीतिक और जातीय दरारों वाले देश के हर तबके ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है.
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कराची में सुपुर्द ए खाक
डॉ फाउ को कराची में ही राजकीय सम्मान के साथ सुपुर्द ए खाक किया गया. वह बीते 29 सालों में यह सम्मान पाने वाली सिर्फ दूसरी शख्सियत हैं. इससे पहले अब्दुल सत्तार इदी का 2016 में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था. शनिवार सुबह कथीड्रल में वैटिकल सिटी का झंडा भी फरहाया गया जबकि पाकिस्तान का राष्ट्रध्वज आधा झुका रहा.