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अपराधभारत

कंबोडिया में फंसे हजारों भारतीयों को वापस लाने की कोशिश

१ अप्रैल २०२४

भारत ने कहा है कि वह कंबोडिया से अपने उन नागरिकों को वापस लाने की कोशिश कर रहा है, जो नौकरी का झांसा देकर ले जाए गए और फिर साइबर स्कैम करने के काम में झोंक दिए गए.

कंबोडिया बन गया है साइबर क्राइम का गढ़
कंबोडिया बन गया है साइबर क्राइम का गढ़तस्वीर: Heng Sinith/AP Photo/picture alliance

भारत पिछले तीन महीनों में 75 ऐसे नागरिकों को कंबोडिया से वापस ला चुका है, जिन्हें वहां नौकरी का झांसा देकर ले जाया गया था और फिर उन्हें साइबर फ्रॉड करने के काम में झोंक दिया गया था. कंबोडिया में भारतीय दूतावास ने कहा है कि अब तक कुल 250 ऐसे भारतीयों को वापस भेजा जा चुका है.

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार कंबोडिया में अधिकारियों की मदद से इन लोगों को वापस लाने की कोशिश कर रही है. पिछले हफ्ते ही ऐसी खबरें आई थीं कि 5,000 से ज्यादा भारतीय कंबोडिया में फंसे हुए हैं और उनसे अपने ही देश के लोगों को साइबर फ्रॉड से ठगने का काम करवाया जा रहा है.

जायसवाल ने एक बयान जारी कर कहा, "हम कंबोडियाई अधिकारियों के सहयोग से उन लोगों की धरपकड़ की कोशिश भी कर रहे हैं जो इस धोखाधड़ी के लिए जिम्मेदार हैं.”

भारत सरकार और कंबोडिया में भारतीय दूतावास ने हाल के दिनों में ऐसी कई चेतावनियां जारी की हैं कि लोग ऐसे धोखेबाजों से सावधान रहें. साइबर क्राइम के ये जाल पूरे एशिया में फैले हुए हैं और हजारों की संख्या में भारतीय व अन्य दक्षिण एशियाई देशों के युवाओं को इनमें फांसा जा चुका है.

पूरे एशिया में जाल

साइबर अपराधों का यह गिरोह सबसे पहले कंबोडिया में नजर आया. उसके बाद ऐसे गिरोह अलग-अलग देशों में पनप चुके हैं और भारत व मलेशिया समेत एशियाई देशों के तकनीकी रूप से कुशल युवाओं को निशाना बना रहे हैं.

इन देशों के लोग व संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी कहते हैं कि ये गिरोह चीनी अपराधियों द्वारा चलाए जा रहे हैं जिनका पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में जुए के धंधे पर नियंत्रण है. वे लोग ठगी के इन गिरोहों के जरिए कोविड-19 महामारी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई कर रहे हैं.

विशेषज्ञ कहते हैं कि जिन लोगों को धोखाधड़ी के जरिए विदेश ले जाया जाता है उन्हें कंबोडिया, म्यांमार और लाओस के जुआघरों के बड़े-बड़े अहातों में रखा जाता है. एशिया ह्यूमन राइट्स वॉच के उप निदेशक फिल रॉबर्टसन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, "गिरोहों ने कुशल तकनीक पसंद लोगों को निशाना बनाया है जिनकी नौकरियां महामारी के दौरान चली गई थीं. ये लोग नई नौकरी पाने को बेकरार थे और ऐसे झांसों में आ गए.”

रॉबर्टसन कहते हैं कि अधिकारी इन गिराहों को लेकर तीव्र कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. वह बताते हैं, "अधिकारियों की प्रतिक्रिया धीमी रही है और बहुत से मामलों में तो पीड़ितों को मानव तस्करी का पीड़ित भी नहीं माना जाता बल्कि ठगी के धंधे में लगे अपराधी कहा जाता है.”

बढ़ता साइबर क्राइम

दुनियाभर में साइबर अपराध अलग-अलग रूपों में पनप रहा है. जिस धंधे में इन भारतीयों को झोंका गया उसे ‘पिग बुचरिंग' कहा जाता है. इस धंधे में स्कैमर सोशल मीडिया के जरिए ग्राहक का विश्वास जीतता है और फिर उन्हें फर्जी क्रिप्टो करंसी या अन्य ट्रेडिंग स्कीमों में निवेश को तैयार करता है.

इसे ‘पिग बुचरिंग' नाम अमेरिकी एजेंसी एफबीआई के अधिकारियों ने दिया था. उनके मुताबिक पहले ग्राहकों को प्यार और अमीर बनने के सपने दिखाए जाते हैं और फिर उनका धन लेकर उन्हें छोड़ दिया जाता है. हाल ही में अमेरिका में रहने वाली भारतीय मूल की एक महिला इसका शिकार बनी और करोड़ों रुपये खो बैठीं.

एफबीआई ने 2019 में ऐसे कुछ मामलों की जांच की तो पाया था कि उनकी जड़ें चीन तक पहुंची हुई थीं. भारत में अवांजो साइबर सिक्यॉरिटी सॉल्यूशंस की  निदेशक धन्या मेनन कहती हैं, "लोगों को अहसास नहीं होता लेकिन वे सोशल मीडिया पर बहुत सारी सूचनाएं साझा करते हैं. अगर आप 15 दिन तक किसी की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नजर रखें तो उसके बारे में बहुत कुछ जान जाएंगे.”

मेनन कहती हैं कि क्रिप्टो करंसी की ठगी के मामले बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं क्योंकि इस तकनीक के बारे में लोगों के पास बहुत कम जानकारी है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कई बार जारी अडवाइजरी में युवाओं को पूर्वी एशियाई देशों से मिलने वाले नौकरियों के मौकों को लेकर आगाह किया था. मंत्रालय ने कहा था कि कॉल सेंटर और क्रिप्टो स्कैम में लगीं संदिग्ध आईटी कंपनियां तकनीकी रूप से कुशल लोगों को फांस रही हैं.

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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