कंबोडिया में फंसे हजारों भारतीयों को वापस लाने की कोशिश
१ अप्रैल २०२४
भारत ने कहा है कि वह कंबोडिया से अपने उन नागरिकों को वापस लाने की कोशिश कर रहा है, जो नौकरी का झांसा देकर ले जाए गए और फिर साइबर स्कैम करने के काम में झोंक दिए गए.
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भारत पिछले तीन महीनों में 75 ऐसे नागरिकों को कंबोडिया से वापस ला चुका है, जिन्हें वहां नौकरी का झांसा देकर ले जाया गया था और फिर उन्हें साइबर फ्रॉड करने के काम में झोंक दिया गया था. कंबोडिया में भारतीय दूतावास ने कहा है कि अब तक कुल 250 ऐसे भारतीयों को वापस भेजा जा चुका है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार कंबोडिया में अधिकारियों की मदद से इन लोगों को वापस लाने की कोशिश कर रही है. पिछले हफ्ते ही ऐसी खबरें आई थीं कि 5,000 से ज्यादा भारतीय कंबोडिया में फंसे हुए हैं और उनसे अपने ही देश के लोगों को साइबर फ्रॉड से ठगने का काम करवाया जा रहा है.
सर्वे: 24 फीसदी लोग मोबाइल में रखते हैं पासवर्ड
भारत में इंटरनेट की पहुंच बहुत तेजी से बढ़ी है और लोग भुगतान के लिए मोबाइल बैंकिंग से लेकर यूपीआई तक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसी के साथ लोगों के साथ साइबर अपराध के मामले भी बढ़े हैं.
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कहां रखते हैं पासवर्ड
लोकल्स सर्वे ने देशभर में एक सर्वे कर यह जानने की कोशिश की कि 2021 के बाद से वित्तीय डेटा की सुरक्षा के मोर्चे पर क्या बदला है. सर्वे में पाया गया कि 24 प्रतिशत लोग मोबाइल में पासवर्ड रखते हैं.
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परिवार और दोस्तों के साथ साझा करते हैं पासवर्ड
लोकल्स सर्वे के मुताबिक 30 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि वे दोस्तों, परिवार और कर्मचारियों के साथ वित्तीय पासवर्ड जैसी महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हैं. 88 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने कई आवेदनों, सबूतों और बुकिंग के लिए अपना आधार कार्ड साझा किया है.
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मोबाइल में अहम जानकारियां
सर्वेक्षण में शामिल 8 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मोबाइल फोन नोट्स में संवेदनशील जानकारी रखते हैं जबकि 9 फीसदी मोबाइल कॉन्टैक्ट लिस्ट में जानकारी रखते हैं.
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याद कर लेते हैं पासवर्ड
सर्वे में शामिल 14 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने अपने पासवर्ड को याद कर लिया है. जबकि 18 प्रतिशत लोगों के पास ऐसे विवरण उनके कंप्यूटर या लैपटॉप में रखे हुए हैं. 39 प्रतिशत लोग ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा "कहीं और दूसरे तरीके से रखते हैं."
बढ़ते डेटा चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी के बावजूद नए सर्वेक्षण से पता चलता है कि संवेदनशील वित्तीय जानकारी सेव करने के लिए अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है. सर्वे में शामिल 17 प्रतिशत लोगों ने ऐसा करने की बात स्वीकार की है.
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बढ़ रहे वित्तीय अपराध
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अप्रैल-सितंबर 2022 के लिए जारी एक रिपोर्ट में वित्तीय धोखाधड़ी के 5,406 मामले आने की बात कही थी. उसी रिपोर्ट के मुताबिक उससे पिछले साल की समान अवधि में ऐसे 4,069 मामले सामने आए थे.
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जायसवाल ने एक बयान जारी कर कहा, "हम कंबोडियाई अधिकारियों के सहयोग से उन लोगों की धरपकड़ की कोशिश भी कर रहे हैं जो इस धोखाधड़ी के लिए जिम्मेदार हैं.”
भारत सरकार और कंबोडिया में भारतीय दूतावास ने हाल के दिनों में ऐसी कई चेतावनियां जारी की हैं कि लोग ऐसे धोखेबाजों से सावधान रहें. साइबर क्राइम के ये जाल पूरे एशिया में फैले हुए हैं और हजारों की संख्या में भारतीय व अन्य दक्षिण एशियाई देशों के युवाओं को इनमें फांसा जा चुका है.
पूरे एशिया में जाल
साइबर अपराधों का यह गिरोह सबसे पहले कंबोडिया में नजर आया. उसके बाद ऐसे गिरोह अलग-अलग देशों में पनप चुके हैं और भारत व मलेशिया समेत एशियाई देशों के तकनीकी रूप से कुशल युवाओं को निशाना बना रहे हैं.
इन देशों के लोग व संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी कहते हैं कि ये गिरोह चीनी अपराधियों द्वारा चलाए जा रहे हैं जिनका पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में जुए के धंधे पर नियंत्रण है. वे लोग ठगी के इन गिरोहों के जरिए कोविड-19 महामारी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई कर रहे हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं कि जिन लोगों को धोखाधड़ी के जरिए विदेश ले जाया जाता है उन्हें कंबोडिया, म्यांमार और लाओस के जुआघरों के बड़े-बड़े अहातों में रखा जाता है. एशिया ह्यूमन राइट्स वॉच के उप निदेशक फिल रॉबर्टसन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, "गिरोहों ने कुशल तकनीक पसंद लोगों को निशाना बनाया है जिनकी नौकरियां महामारी के दौरान चली गई थीं. ये लोग नई नौकरी पाने को बेकरार थे और ऐसे झांसों में आ गए.”
घर में हैक हो सकने वाली चीजें
यूरोकंस्यूजमर्स नामक संस्था ने एक जांच के बाद पाया है कि घरों में इस्तेमाल होने वाली कौन-कौन सी स्मार्ट डिवाइस हैं जिन्हें सबसे आसानी से हैक किया जा सकता है. नतीजेत हैरतअंगेज हैं.
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स्मार्ट टीवी
संस्था ने 16 स्मार्ट डिवाइस टेस्ट किए थे.
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वीडियो डोरबेल
10 डिवाइस ऐसे मिले जिन्हें हैक करना बहुत आसान है.
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रोबोट वैक्यूम क्लीनर
इन उपकरणों में 54 ऐसे लीक मिले हैं जो हैकिंग को आसान बनाते हैं.
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गराज डोर ओपनर
आमतौर पर सस्ते ब्रैंड के उपकरणों में सुरक्षा कम होती है.
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बेबी मॉनिटर्स
जानकारों का कहना है कि हैकिंग के कारण घरों और लोगों की सुरक्षा को खतरा बढ़ रहा है.
इन उपकरणों में घुसकर हैकर आसानी से घर की दूसरी चीजों को काबू कर सकते हैं.
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रॉबर्टसन कहते हैं कि अधिकारी इन गिराहों को लेकर तीव्र कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. वह बताते हैं, "अधिकारियों की प्रतिक्रिया धीमी रही है और बहुत से मामलों में तो पीड़ितों को मानव तस्करी का पीड़ित भी नहीं माना जाता बल्कि ठगी के धंधे में लगे अपराधी कहा जाता है.”
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बढ़ता साइबर क्राइम
दुनियाभर में साइबर अपराध अलग-अलग रूपों में पनप रहा है. जिस धंधे में इन भारतीयों को झोंका गया उसे ‘पिग बुचरिंग' कहा जाता है. इस धंधे में स्कैमर सोशल मीडिया के जरिए ग्राहक का विश्वास जीतता है और फिर उन्हें फर्जी क्रिप्टो करंसी या अन्य ट्रेडिंग स्कीमों में निवेश को तैयार करता है.
इसे ‘पिग बुचरिंग' नाम अमेरिकी एजेंसी एफबीआई के अधिकारियों ने दिया था. उनके मुताबिक पहले ग्राहकों को प्यार और अमीर बनने के सपने दिखाए जाते हैं और फिर उनका धन लेकर उन्हें छोड़ दिया जाता है. हाल ही में अमेरिका में रहने वाली भारतीय मूल की एक महिला इसका शिकार बनी और करोड़ों रुपये खो बैठीं.
आप अपना पासवर्ड कहां रखते हैं?
एटीएम पिन, बैंक खाता नंबर, डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड डिटेल्स हो या आधार और पैन कार्ड जैसी संवेदनशील निजी जानकारी, भारतीय बेहद लापरवाह तरीके से इन्हें रखते हैं. एक सर्वे में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.
तस्वीर: BR
33 प्रतिशत भारतीय रखते हैं असुरक्षित तरीके से डेटा
लोकल सर्किल के सर्वे में यह पता चला है कि करीब 33 प्रतिशत भारतीय संवेदनशील डेटा असुरक्षित तरीके से ईमेल या कंप्यूटर में रखते हैं.
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ईमेल और फोन में रखते हैं पासवर्ड
सर्वे में शामिल लोगों ने बताया कि वे संवेदनशील डेटा जैसे कि कंप्यूटर पासवर्ड, बैंक अकाउंट से जुड़ी जानकारी, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के साथ ही साथ आधार और पैन कार्ड जैसी निजी जानकारी भी ईमेल और फोन के कॉन्टैक्ट लिस्ट में रखते हैं. 11 फीसदी लोग फोन कॉन्टैक्ट लिस्ट में ऐसी जानकारी रखते हैं.
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याद भी करते हैं और लिखते भी हैं
लोकल सर्किल ने देश के 393 जिलों के 24,000 लोगों से प्रतिक्रिया ली, सर्वे में शामिल 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपनी जानकारियां कागज पर लिखते हैं, वहीं 21 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अहम जानकारियों को याद कर लेते हैं.
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डेबिट कार्ड पिन साझा करते हैं
लोकल सर्किल के सर्वे में शामिल 29 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने डेबिट कार्ड पिन को अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझा करते हैं. वहीं सर्वे में शामिल चार फीसदी लोगों ने कहा कि वे पिन को घरेलू कर्मचारी या दफ्तर के कर्मचारी के साथ साझा करते हैं.
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बड़ा वर्ग साझा नहीं करता एटीएम पिन
सर्वे में शामिल एक बड़ा वर्ग यानी 65 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्होंने एटीएम और डेबिट कार्ड पिन को किसी के साथ साझा नहीं किया. दो फीसदी लोगों ने ही अपने दोस्तों के साथ डेबिट कार्ड पिन साझा किया.
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फोन में अहम जानकारी
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बैंक खातों से जुड़ी जानकारी, आधार या पैन कार्ड जैसी जानकारी फोन में रखते हैं. सर्वे में शामिल सात फीसदी लोगों ने इसको माना है. 15 प्रतिशत ने कहा कि उनकी संवेदनशील जानकारियां ईमेल या कंप्यूटर में है.
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डेटा के बारे में पता नहीं
इस सर्वे में शामिल सात फीसदी लोगों ने कहा है कि उन्हें नहीं मालूम है कि उनका डेटा कहां हो सकता है. मतलब उन्हें अपने डेटा के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है.
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बढ़ रहे साइबर अपराध
ओटीपी, सीवीवी, एटीएम, क्रेडिट या डेबिट कार्ड क्लोनिंग कर अपराधी वित्तीय अपराध को अंजाम दे रहे हैं. ईमेल के जरिए भी लोगों को निशाना बनाया जाता है और संवेदनशील जानकारियों चुराई जाती हैं.
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डेटा सुरक्षा में जागरूकता की कमी
लोकल सर्किल का कहना है कि देश के लोगों में अहम डेटा के संरक्षण को लेकर जागरूकता की कमी है. कई ऐप ऐसे हैं जो कॉन्टैक्ट लिस्ट की पहुंच की इजाजत मांगते हैं ऐसे में डेटा के लीक होने का खतरा अधिक है. लोकल सर्किल के मुताबिक वह इन नतीजों को सरकार और आरबीआई के साथ साझा करेगा ताकि वित्तीय साक्षरता की दिशा में ठोस कदम उठाया जा सके.
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एफबीआई ने 2019 में ऐसे कुछ मामलों की जांच की तो पाया था कि उनकी जड़ें चीन तक पहुंची हुई थीं. भारत में अवांजो साइबर सिक्यॉरिटी सॉल्यूशंस की निदेशक धन्या मेनन कहती हैं, "लोगों को अहसास नहीं होता लेकिन वे सोशल मीडिया पर बहुत सारी सूचनाएं साझा करते हैं. अगर आप 15 दिन तक किसी की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नजर रखें तो उसके बारे में बहुत कुछ जान जाएंगे.”
मेनन कहती हैं कि क्रिप्टो करंसी की ठगी के मामले बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं क्योंकि इस तकनीक के बारे में लोगों के पास बहुत कम जानकारी है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कई बार जारी अडवाइजरी में युवाओं को पूर्वी एशियाई देशों से मिलने वाले नौकरियों के मौकों को लेकर आगाह किया था. मंत्रालय ने कहा था कि कॉल सेंटर और क्रिप्टो स्कैम में लगीं संदिग्ध आईटी कंपनियां तकनीकी रूप से कुशल लोगों को फांस रही हैं.