विवादित खदान से पहली खेप भेजने को तैयार अडानी ग्रुप
२७ दिसम्बर २०२१कानूनी लड़ाइयों के चलते हुई करीब सात साल की देरी के बाद भारत का अडानी ग्रुप ऑस्ट्रेलिया स्थित विवादित कोयला खदान से पहली खेप रवाना करने की तैयारी कर रहा है. कंपनी की ऑस्ट्रेलियाई शाखा 'ब्रावुस माइनिंग एंड रिसोर्सेज' ने एक बयान जारी कर पहली खेप के निर्यात की जानकारी दी.
कंपनी ने बताया कि कारमाइकल खदान से निकाले गए उच्च गुणवत्ता वाले कोयले की पहली खेप उत्तरी क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल पर असेंबल की जा रही है. यहीं से इसे एक्सपोर्ट किया जाएगा. यह खेप कहां जाएगी, अभी कंपनी ने यह नहीं बताया है. उसने इतना जरूर कहा है कि कारमाइकल खदान से सालाना जो एक करोड़ टन कोयला निकाला जाएगा, उसके लिए पहले ही बाजार खोजा जा चुका है.
शुरुआती योजना क्या थी?
क्वींसलैंड स्टेट स्थित कारमाइकल खान संभावित तौर पर ऑस्ट्रेलिया में बनी आखिरी नई थर्मल कोयला खान है. ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निर्यातक है. माना जा रहा है कारमाइकल खदान से निकला कोयला भारतीय पावर प्लांट जैसे आयातकों के लिए कोयले की आपूर्ति का बड़ा स्रोत होगा.
अडानी ग्रुप ने 2010 में यह परियोजना खरीदी थी. यह परियोजना गैलिली बेसिन में प्रस्तावित कई प्रोजेक्टों में से एक थी. उस समय अडानी ग्रुप की योजना यहां छह करोड़ टन सालाना क्षमता वाली एक खदान बनाने की थी. साथ ही, इस परियोजना के लिए 400 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन बिछाने का भी प्रस्ताव था. इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत तब करीब 82 हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी.
खदान का विरोध
पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस परियोजना के विरोध में 'स्टॉप अडानी' नाम का एक अभियान शुरू कर दिया. इसके चलते निवेशकों, बीमा कंपनियों और बड़े इंजीनियरिंग फर्मों ने प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए. इसका असर परियोजना पर हुआ. 2018 में इसकी क्षमता घटाकर एक करोड़ टन सालाना कर दी गई.
इस कम क्षमता वाली खदान की लागत क्या है, इसका खुलासा कंपनी ने अभी नहीं किया है. ना ही कंपनी ने अपने द्वारा बिछाई गई 200 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन की ही लागत बताई है. मगर अनुमान है कि इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 11 हजार करोड़ रुपये है. कंसल्टिंग ग्रुप एएमई के मैनेजिंग डायरेक्टर लॉयड हेन ने कहा, "यह काफी खुशी की बात है. यह खदान ऑस्ट्रेलिया की आखिरी ग्रीनफील्ड थर्मल कोयला खदान होगी."
विवाद की वजह
अडानी ग्रुप की यह परियोजना विवादों में घिरी रही है. इसकी मुख्य वजह पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता खदान परियोजना के चलते होने वाले संभावित कार्बन उत्सर्जन पर चिंता जता रहे हैं. साथ ही, उन्हें ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है. इन आशंकाओं की वजह ग्लोबल वॉर्मिंग तो थी ही. साथ ही, ऐबट पॉइंट पोर्ट में ड्रेजिंग से भी खतरा था.
इसके चलते पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने खदान को दी गई सरकारी मंजूरी को चुनौती देते हुए कई मुकदमे दर्ज कर दिए. 2019 में हुए ऑस्ट्रेलियाई चुनाव के समय यह अभियान एक बड़ा मुद्दा बन गया. इस मुद्दे ने नौकरी बनाम पर्यावरण के संघर्ष की शक्ल ले ली. स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व वाला लिबरल-नेशनल गठबंधन वापस सत्ता में लौटा. जानकारों के मुताबिक, इसकी एक बड़ी वजह गठबंधन की कोयला-समर्थक नीतियां थीं.
क्या कह रहे हैं आलोचक?
पर्यावरण कार्यकर्ता सात सालों तक इस परियोजना को लटकाए रखने में सफल रहे. साथ ही, उनके विरोध के चलते अडानी ग्रुप को अपना नाम बदलकर ब्रावुस भी करना पड़ा. इसके बावजूद पर्यावरण कार्यकर्ता खुद को कामयाब नहीं मान रहे हैं.
परियोजना का विरोध करने वाले एक कार्यकर्ता ऐंडी पेने ने बताया, "यह खदान अभी भी काम कर रही है, यह शर्म की बात है. मगर खदान के शुरू होने का मतलब यह नहीं कि जमीन के नीचे दबा सारा कोयला बाहर निकाल लिया जाएगा. जितना अधिक-से-अधिक संभव हो सके, उतना कोयला जमीन में ही दबा रहने देने के लिए हम अभियान चलाते रहेंगे."
कोयला टर्मिनल बनाने में भी हुआ भारी निवेश
कारमाइकल खदान से निकाला गया कोयला ऐबट पॉइंट पोर्ट के एक टर्मिनल से निर्यात किया जाएगा. अडानी ने 2011 में इस टर्मिनल को लगभग 15 हजार करोड़ रुपये में खरीदा था. कंपनी ने इसका नया नाम रखा, नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल. जानकारों के मुताबिक, अडानी का खदान में खुदाई करने का फैसला तर्कसंगत लगता है. कोयला टर्मिनल बनाने में कंपनी ने काफी निवेश किया था. जब से यह टर्मिनल अडानी के पास आया है, तब से यह अपनी क्षमता से आधे पर काम कर रहा है.
ऐसे में खदान के भीतर काम शुरू होने से कंपनी को अपने निवेश पर रिटर्न मिलेगा. इस बारे में बात करते हुए इंस्टिट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनैंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के निदेशक टिम बकले ने बताया, "इसका मकसद रेलवे लाइन में किए गए निवेश पर रिटर्न पाना और ऐबट पॉइंट से आने वाले मुनाफे को बढ़ाना है." टिम के अनुसार कोयले की कीमतें गिरने पर कारमाइकल खदान मुनाफे का सौदा नहीं रहेगी. मगर जब टर्मिनल को आपूर्ति करने वाली बाकी खदानों में उत्पादन बंद होने पर शायद अडानी को यह फायदा मिले कि वह बंदरगाह से सामानों की आवाजाही बनाए रखने के लिए खदान का उत्पादन बढ़ाकर दो करोड़ टन सालान कर पाएं.
एसएम/एमजे (रॉयटर्स)