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भारत:सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन पर अंबानी बनाम मस्क की स्थिति

१६ अक्टूबर २०२४

भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर अरबपति इलॉन मस्क और भारतीय कंपनियों के बीच टकराव की स्थिति को देखते हुए सरकार ने कहा है कि स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक तरीके से आवंटित किया जाएगा.

इलॉन मस्क
इलॉन मस्क तस्वीर: Gonzalo Fuentes/REUTERS

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति इलॉन मस्क भारत में अपनी कंपनी स्टारलिंक के साथ भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में प्रवेश के लिए तैयार हैं. खबरों के मुताबिक, मस्क भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के स्पेक्ट्रम आवंटन पर बेहद करीब से नजर बनाए हुए हैं. भारत में उनका मुकाबला भारतीय अरबपति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के मालिक सुनील मित्तल से है.

मुकेश अंबानी चाहते थे कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी हो. रिपोर्टों के मुताबिक, वह इसके लिए पैरवी भी कर रहे थे. वहीं, मस्क की कंपनी स्टारलिंक का तर्क है कि स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाए. मस्क ने नीलामी प्रक्रिया की आलोचना की थी और इसे "अभूतपूर्व" करार दिया था.

स्पेक्ट्रम के आवंटन को लेकर अरबपतियों के बीच टकराव की स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने फैसला किया है कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम के लिए कोई नीलामी नहीं होगी. दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 15 अक्टूबर को एक कार्यक्रम में कहा, "स्पेक्ट्रम को भारतीय कानूनों के मुताबिक प्रशासकीय रूप से आवंटित किया जाएगा और इसकी कीमत टेलीकॉम नियामक द्वारा तय की जाएगी."

मुकेश अंबानी चाहते थे कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी हो. रिपोर्टों के मुताबिक, वह इसके लिए पैरवी भी कर रहे थे.तस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP/Getty Images

स्पेक्ट्रम को लेकर अरबपतियों की "लड़ाई"

अरबपतियों के बीच विवाद के रूप में देखे जा रहे इस मामले में सैटेलाइट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित करने की पद्धति शामिल है. भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित करने की प्रक्रिया ऐसा मुद्दा है, जो पिछले साल से ही विवादास्पद बना हुआ है. सैटेलाइट इंटरनेट के इस क्षेत्र में सालाना 36 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है. अनुमान के मुताबिक, इस सेक्टर के 2030 तक 1.9 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

मस्क की कंपनी स्टारलिंक की दलील है कि लाइसेंसों का प्रशासनिक आवंटन ग्लोबल ट्रेंड के अनुरूप है. वहीं, अरबपति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो का कहना है कि समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए नीलामी की जरूरत है. जियो का कहना है कि भारतीय कानून में इस बारे में कोई प्रावधान नहीं है कि व्यक्तियों को सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं कैसे दी जा सकती हैं. रिलायंस जियो भारत में सबसे बड़ा टेलीकॉम ऑपरेटर है. अनुमानों के मुताबिक, इसके पास 48 करोड़ यूजर्स हैं.

स्पेक्ट्रम आवंटन के मुद्दे पर सिंधिया ने कहा, "अगर आप इसे नीलाम करने का फैसला करते हैं, तो आप कुछ ऐसा कर रहे होंगे जो बाकी दुनिया से अलग है."

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भारत के फैसले पर मस्क ने क्या कहा

मस्क ने भारत सरकार के फैसले की सराहना की है. उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "हम स्टारलिंक के जरिए भारत के लोगों की सेवा करने की पूरी कोशिश करेंगे." 13 अक्टूबर को रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि रिलायंस ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राय) की परामर्श प्रक्रिया को चुनौती दी है. उसने घरेलू सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम को नीलाम करने की मांग की थी और आवंटित नहीं करने को कहा था. साथ ही, परामर्श प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने की अपील की थी.

वहीं, मस्क ने ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी पर आपत्ति जताते हुए कहा था संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को साझा करने के रूप में नामित करता है. ऐसे में इस प्रक्रिया का पालन करते हुए नीलामी नहीं की जानी चाहिए.

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स्पेक्ट्रम नीलामी को लेकर उठे थे सवाल

भारत आईटीयू का सदस्य है और इसकी संधि पर उसने भी हस्ताक्षर किए हैं. संधि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के आवंटन को "तर्कसंगत, कुशलता और आर्थिक रूप" से करने की वकालत करता है, क्योंकि यह एक "सीमित संसाधन" है.

ग्लोबल सैटेलाइट ग्रुप यूटेलसैट के सह-अध्यक्ष और भारती एयरटेल के प्रमुख सुनील मित्तल ने भी 15 अक्टूबर को नीलामी के तरीके का समर्थन किया था. मित्तल ने एक कार्यक्रम में कहा, "जो सैटेलाइट कंपनियां शहरी क्षेत्रों में आने की महत्वाकांक्षा रखती हैं, उन्हें भी बाकी सभी की तरह दूरसंचार लाइसेंस लेने की जरूरत है... उन्हें दूसरी टेलीकॉम कंपनियों की तरह स्पेक्ट्रम खरीदने की जरूरत है."

इससे पहले 2023 में यूटेलसैट की इकाई वनवेब और एयरटेल दोनों ने भारत सरकार को दिए अपने ज्ञापन में स्पेक्ट्रम की नीलामी को लेकर चिंता जताई थी. मस्क की स्टारलिंक और अमेजन डॉट कॉम की कुइपर जैसे अन्य ग्लोबल प्लेयर्स प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में हैं. उनका कहना है कि स्पेक्ट्रम एक प्राकृतिक संसाधन है, जिसे कंपनियों द्वारा साझा किया जाना चाहिए.

एए/एसएम (रॉयटर्स)

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