बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद पहली औपचारिक उच्च-स्तरीय बातचीत के लिए ढाका पहुंचे भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बांग्लादेश के साथ भारत के "बेहद महत्वपूर्ण" रिश्तों पर जोर दिया है.
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अपनी एक दिन की ढाका यात्रा के बाद जारी किए गए आधिकारिक बयान में मिस्री ने यह संकेत दिया कि उन्होंने भारत की चिंताओं को जाहिर करने और दोनों देशों के आपसी रिश्तों की अहमियत को रेखांकित करने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की.
बयान के मुताबिक मिस्री ने कहा कि वो ढाका उनके बांग्लादेशी समकक्ष मोहम्मद जशीम उद्दीन के निमंत्रण पर गए थे. इसके बाद उन्होंने जोर देकर कहा कि दोनों देशों के आपसी रिश्ते "बेहद महत्वपूर्ण" हैं और अगस्त में बांग्लादेश में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद भी दोनों देशों के नेताओं के बीच संपर्क रहा है.
"सृजनात्मक रवैये" की उम्मीद
मिस्री ने यह भी रेखांकित किया कि मोहम्मद यूनुस के मुख्य सलाहकार का पद संभालने के बाद उन्हें बधाई देने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय नेता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे. विदेश सचिव ने कहा कि "भारत बांग्लादेश के साथ एक सकारात्मक, सृजनात्मक और परस्पर रूप से लाभकारी संबंध चाहता है."
उन्होंने आगे कहा कि यह "परस्पर लाभकारी संबंध दोनों देशों के लोगों के हित में जारी ना रहें, इसका कोई कारण नहीं है" और भारत, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ करीब से काम करना चाहता है. हालांकि, मिस्री ने जोड़ा कि ढाका में उनकी बातचीत के दौरान उन्होंने भारत की चिंताएं भी जाहिर कीं, जिनमें "अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण" से जुड़े विषय भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में कुछ सांस्कृतिक, धार्मिक और कूटनीतिक सम्पत्तियों पर हमलों को लेकर भी चर्चा हुई और भारत कुल मिला कर इन सभी मुद्दों पर एक सृजनात्मक रवैये की उम्मीद कर रहा है.
उधर जशीम उद्दीन ने ढाका में पत्रकारों को बताया कि अल्पसंख्यकों के मुद्दे को समझने में थोड़ी कमी है और उन्होंने भारतीय अधिकारियों से निवेदन किया कि वो बांग्लादेश के बारे में फैलाई जा रही झूठी मीडिया रिपोर्टों के खिलाफ कदम उठाएं.
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अल्पंसख्यक बांग्लादेश का "आतंरिक मामला"
मिस्री अंतरिम सरकार के विदेशी मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन और उसके बाद मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से भी मिले. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यूनुस ने दोनों देशों के संबंधों को "बहुत ठोस" और "करीबी" बताया और भारत से कहा कि वो उन "बादलों" को हटाने में मदद करे जिन्होंने हाल में इन संबंधों पर अपनी छाया डाली है.
बांग्लादेश: शेख हसीना के हाथ से कैसे फिसल गई सत्ता
बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को भीषण हिंसा और छात्रों के आंदोलन के कारण इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ना. आखिर कैसे सत्ता उनके हाथों से फिसल गई. उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर.
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शेख हसीना ने कैसे गंवाई सत्ता
5 अगस्त, 2024 को शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सेना के विमान में सवार होकर भारत पहुंच गईं. जुलाई की शुरूआत से ही बांग्लादेश में हजारों छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूदा कोटा सिस्टम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
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कोटा सिस्टम का विरोध
साल 2018 तक बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 फीसदी सीटों में कोटा लागू था. इसमें 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और उनके बच्चों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं, 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लोगों, पांच फीसदी अल्पसंख्यकों और एक प्रतिशत कोटा विकलांगों के लिए था. इस तरह सभी भर्तियों में केवल 44 फीसदी सीटें ही बाकियों के लिए खाली थीं.
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क्यों सड़कों पर आए छात्र
2018 में सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कोटा सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. इसके अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारजनों के लिए आरक्षित 30 फीसदी कोटा को भी खत्म करने की बात कही गई. इसके खिलाफ 2021 में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह संबंधित सर्कुलर को रद्द करे और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चले आ रहे 30 फीसदी कोटा को कायम रखे.
इसके बाद देश के कई हिस्सों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 93 फीसदी नौकरियों में भर्तियां योग्यता के आधार पर की जाएं. कोर्ट ने कहा 1971 के आंदोलन में शामिल रहे सेनानियों के परिजनों को सिर्फ पांच फीसदी आरक्षण मिले.
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हिंसा और इस्तीफे की मांग
जुलाई से चल रहा छात्रों का आंदोलन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शांत नहीं हुआ और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा. छात्र संगठनों ने चार अगस्त को पूर्ण असहयोग आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी.
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हसीना के इस्तीफे के पहले क्या हुआ
4 अगस्त को हुई हिंसा में 94 लोग मारे गए. जिनमें 13 के करीब पुलिस वाले थे. सरकार ने प्रदर्शनों को रोकने के लिए सड़कों पर सेना को उतार दिया लेकिन छात्र पीछे नहीं हटे और हसीना के इस्तीफे की मांग की. 5 अगस्त को छात्र संगठनों ने ढाका में लॉन्ग मार्च का एलान किया. जब प्रदर्शनकारी पीएम आवास की ओर बढ़ने लगे तो हसीना ने सेना के विमान में सवार होकर देश छोड़ दिया.
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बांग्लादेश पर मजबूत पकड़
दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश में 76 साल की शेख हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वालीं सरकार प्रमुख थीं. शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी और 2008 में वापस लौटीं और 5 अगस्त, 2024 तक पद पर बनी रहीं.
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हसीना पर आरोप
शेख हसीना पर सत्ता में 15 साल रहने के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की आजादी पर दमन और असहमति पर दमन के आरोप लगे. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. लेकिन हसीना सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही.
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विरासत में मिली राजनीति
शेख हसीना को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए बांग्लादेश की लड़ाई का नेतृत्व किया था. 1975 में सैन्य तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश लोगों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी. हसीना भाग्यशाली थीं कि उस समय वह यूरोप की यात्रा पर थीं. 1947 में दक्षिण-पश्चिमी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में जन्मी हसीना पांच बच्चों में सबसे बड़ी हैं.
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भारत में निर्वासित जीवन
शेख हसीना वर्षों तक भारत में निर्वासन में रहीं. फिर बांग्लादेश वापस चली गईं और अवामी लीग की प्रमुख चुनी गईं. उन्होंने 1973 में ढाका विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में ग्रैजुएशन की और अपने पिता और उनके छात्र समर्थकों के बीच मध्यस्थ के रूप में राजनीतिक अनुभव हासिल किया.
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हसीना और आम चुनाव
शेख हसीना जनवरी, 2024 में लगातार चौथी बार चुनाव जीतीं. इस चुनाव का मुख्य विपक्षी दल और उनकी प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बहिष्कार किया था. इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे.
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निरंकुश शासन के आरोप
बीएनपी और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि हसीना की सरकार ने जनवरी, 2024 में हुए चुनाव से पहले 10,000 विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया था. इस चुनाव का विपक्ष ने बहिष्कार किया था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह निरंकुश होती गईं और उनके शासन में राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं की सामूहिक गिरफ्तारी, जबरन गायब होना और न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगे.
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शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच संघर्ष
हसीना ने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की प्रमुख खालिदा जिया के साथ हाथ मिला लिया और लोकतंत्र के लिए एक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसने 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से उखाड़ फेंका. लेकिन जिया के साथ गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला और दोनों महिलाओं के बीच तीखी प्रतिद्वंद्विता जारी रही.
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कमजोर हो चुकीं खालिदा जिया
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच कई सालों से राजनीतिक संघर्ष चला आ रहा है. 78 साल की जिया दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और फरवरी 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद से जेल में हैं. उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है और 2019 में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 5 अगस्त, 2024 को जिया को रिहा करने का आदेश दिया.
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हसीना के भारत के साथ संबंध
भारत और बांग्लादेश के बीच बेहद मजबूत संबंध हैं. जब कभी भी बांग्लादेश को जरूरत पड़ी तो भारत उसके साथ खड़ा नजर आया. दोनों देशों के बीच पिछले 53 सालों से द्विपक्षीय संबंध हैं. 2023 में भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था. हसीना के पीएम रहते हुए दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है.
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यूनुस ने कहा कि अंतरिम सरकार हर नागरिक की सुरक्षा करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे वो किसी भी धर्म, रंग, मूल या लिंग के हों. जशीम उद्दीन ने इस विषय पर कहा कि यह बांग्लादेश का "आंतरिक मामला है और किसी दूसरे देश का हमारे आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप ठीक नहीं है."
यूनुस के कार्यालय के प्रेस विभाग के मुताबिक उन्होंने हसीना द्वारा नई दिल्ली से दिए गए बयानों का मुद्दा भी उठाया और कहा कि इनकी वजह से तनाव होता है. जशीम उद्दीन ने बताया कि उन्होंने मिस्री से कहा कि बांग्लादेश सरकार को हसीना के बयान पसंद नहीं आ रहे हैं और भारत सरकार को यह बात उनसे कह देनी चाहिए.
उनके मुताबिक इस पर मिस्री ने उनसे कहा कि यह एक गलत धारणा है कि भारत के बांग्लादेश में एक खास पार्टी के साथ संबंध हैं. मिस्री ने यह भी कहा कि हसीना की भारत में उपस्थिति का दोनों देशों के संबंधों से कोई लेना देना नहीं है और भारत सरकार बांग्लादेश की मौजूदा सरकार के साथ व्यवहार करेगी. इसके अलावा दोनों देशों के बीच सीमा पर होने वाली हत्याएं, नदियों के पानी, वीजा आदि विषयों पर भी बातचीत हुई.