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कानून और न्यायभारत

बेल के बावजूद रिहाई नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

३० नवम्बर २०२२

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से ऐसे विचाराधीन कैदियों की सूची मांगी है जिन्हें जमानत तो मिल गई है लेकिन वे बेल बॉन्ड नहीं भर पाने के कारण जेलों में बंद हैं.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्टतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

विचाराधीन कैदियों की शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे कैदियों पर डेटा एकत्र करने का निर्देश दिया, जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे इसकी शर्तों का पालन करने में असमर्थता के कारण जेल से बाहर नहीं आ सकते हैं.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ए एस ओका की बेंच ने मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य ऐसे कैदियों का डेटा 15 दिन के भीतर कोर्ट को दे.

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गृह मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021 के अनुसार 2016-2021 के बीच जेलों में बंदियों की संख्या में 9.5 प्रतिशत की कमी आई है जबकि विचाराधीन कैदियों की संख्या में 45.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं. 31 दिसंबर 2021 तक लगभग 80 प्रतिशत कैदियों को एक वर्ष तक की अवधि के लिए जेलों में बंद रखा गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में रिहा किए गए 95 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों को अदालतों ने जमानत दे दी थी, जबकि अदालत द्वारा बरी किए जाने पर केवल 1.6 प्रतिशत को रिहा किया गया था.

दरअसल 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपने पहले संविधान दिवस संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गरीब आदिवासियों के जेलों में बंद रहने का मुद्दा उठाया था. उन्होंने आदिवासी इलाकों में उनकी दुर्दशा पर रोशनी डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं. राष्ट्रपति ने न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था.

मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि 15 दिनों की अवधि के भीतर जेल अधिकारियों द्वारा जरूरी जानकारी उन्हें उपलब्ध कराई जाए. इसके बाद एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकारों को नालसा को डेटा भेजना है. कोर्ट ने कहा, "नालसा तब इस मुद्दे पर आवश्यक विचार-विमर्श करेगा और स्पष्ट रूप से आवश्यक सहायता प्रदान करेगा."

जस्टिस कौल ने माना कि ऐसे कई मामले हैं जहां जमानत दिए जाने के बाद भी कैदी सिर्फ इसलिए जेलों में सड़ रहे हैं क्योंकि वे जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं. जस्टिस कौल ने कहा, "समस्या उन राज्यों में अधिक है जहां वित्त साधन एक चुनौती है."

जस्टिस कौल ने पिछले शुक्रवार को नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है. उन्होंने पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में संविधान दिवस समारोह में बोलते हुए विचाराधीन कैदियों की समस्याओं के बारे में बात की थी.

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मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने कहा, "हम जानते हैं कि लंबे समय तक जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की एक बड़ी समस्या है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर हमें तत्काल ध्यान देना चाहिए."

इसी साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा था, "कई कैदी ऐसे हैं जो वर्षों से जेलों में कानूनी सहायता के इंतजार में पड़े हैं. हमारे जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण इन कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं."

मोदी ने अप्रैल में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन में भी विचाराधीन कैदियों का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था, "आज देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन हैं और जेल में हैं. इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं. प्रत्येक जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, ताकि इन मामलों की समीक्षा की जा सके और जहां भी संभव हो ऐसे कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है." उन्होंने कहा था, "मैं सभी मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से मानवीय संवेदनशीलता और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता देने की अपील करूंगा."

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