दिल्ली में सितंबर की पहली तारीख को स्कूल खुल गए, बुधवार सुबह से ही दिल्ली में बारिश हो रही है और बच्चे बरसाती और छाता लेकर पुराने अंदाज में स्कूल पहुंचे. कई और राज्यों में भी आज से स्कूल खुल गए हैं.
विज्ञापन
कोरोना महामारी के कारण पिछले कई महीनों से बंद स्कूल एक सितंबर से खोल दिए गए. स्कूल खोलने के लिए राज्य सरकारों ने सख्त कोरोना प्रोटोकॉल तैयार किया है. दिल्ली, मध्य प्रदेश, यूपी, तमिलनाडु, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना, असम और पुद्दुचेरी समेत कई राज्यों में 50 फीसदी क्षमता के साथ स्कूल खुल गए हैं.
महीनों तक बच्चों ने पढ़ाई ऑनलाइन की और अब वे स्कूल जाने को लेकर काफी उत्साहित दिख रहे हैं. दिल्ली में बुधवार को सुबह से ही तेज बारिश हो रही है लेकिन बच्चों का स्कूल जाने का जोश बारिश की बूंदें कम नहीं कर पाई. बच्चे छाता और बरसाती के सहारे बारिश से बचते हुए स्कूल पहुंचे.
दिल्ली में स्कूल खोलने को लेकर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मीडिया से कहा, "सावधानी के साथ खुलने में दिक्कत नहीं है. स्कूल-कॉलेज का कोई विकल्प नहीं हो सकता है. ऑनलाइन पढ़ाई स्कूल का कारगर विकल्प नहीं है." उन्होंने कहा कि स्कूल खुलने से बच्चे उत्साह में हैं.
दिल्ली में बुधवार से 9वीं से 12वीं तक स्कूल खुले तो शिक्षकों ने बच्चों को कोरोना प्रोटोकॉल के बारे में सबसे पहले समझाया और उन्हें बताया गया कि स्कूल के दौरान उन्हें किस तरह से दिश-निर्देशों का पालन करना है.
और कहां-कहां खुले स्कूल
उत्तर प्रदेश में भी सख्त कोरोना दिशा-निर्देशों के साथ स्कूल खोल दिए गए हैं. उत्तर प्रदेश में कक्षा एक से पांचवीं तक के स्कूल खुल गए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्कूलों में कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दिए हैं. स्कूल खोलने से एक दिन पहले इस संदर्भ में बैठक भी की थी. योगी ने स्कूलों में स्वच्छता, सैनिटाइजेशन का काम हर दिन करने के निर्देश दिए हैं. यूपी में कक्षा 9वीं से 12वीं तक के बच्चों के लिए स्कूल 16 अगस्त को ही खोल दिए गए थे.
विज्ञापन
मध्य प्रदेश में छठी से 12वीं तक के स्कूल 50 फीसदी क्षमता के साथ खुल गए हैं. राजस्थान की बात की जाए तो वहां भी आज से ही 9वीं से 12वीं की कक्षा खोल दी गई हैं. वहीं हरियाणा में चौथी और पांचवीं कक्षा को दोबारा खोलने का फैसला किया गया है. छात्रों को माता-पिता की इजाजत के साथ स्कूल आने की इजाजत होगी.
कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां
कोविड के खिलाफ वैज्ञानिकों का संघर्ष जारी है. दुनिया भर के वैज्ञानिक अलग-अलग दिशाओं में शोध कर रहे हैं ताकि वायरस को बेहतर समझा जा सके और उससे लड़ा जा सके. जानिए, हाल की कुछ सफलताओं के बारे में.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Cubillos
स्मेल से कोविड टेस्ट
कोरोनावायरस से संक्रमित होने पर अक्सर मरीज की सूंघने की शक्ति चली जाती है. अब वैज्ञानिक इसे कोविड का पता लगाने की युक्ति बनाने पर काम कर रहे हैं. एक स्क्रैच-ऐंड-स्निफ कार्ड के जरिए कोविड का टेस्ट किया गया और शोध में सकारात्मक नतीजे मिले. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नाक से स्वॉब लेकर टेस्ट करने से बेहतर तरीका हो सकता है.
तस्वीर: Julja Sapic/YAY Images/imago images
मां के दूध में वैक्सीन नहीं
कोविड वैक्सीन के अंश मां के दूध में नहीं पाए गए हैं. टीका लगवा चुकीं सात महिलाओं से लिए गए दूध के 13 नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वैक्सीन किसी भी रूप में दूध के जरिए बच्चे तक नहीं पहुंचती.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Cubillos
नाक से दी जाने वाली वैक्सीन
कोविड-19 की एक ऐसी वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, जिसे नाक से दिया जा सकता है. इसे बूंदों या स्प्रे के जरिए दिया जा सकता है. बंदरों पर इस वैक्सीन के सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images
लक्षणों से पहले कोविड का पता चलेगा
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो कोविड के साथ ही मनुष्य के शरीर में सक्रिय हो जाता है. कोविड के लक्षण सामने आने से पहले ही यह जीन सक्रिय हो जाता है. यानी इसके जरिए गंभीर लक्षणों के उबरने से पहले भी कोविड का पता लगाया जा सकता है. छह महीने चले अध्ययन के बाद IF127 नामक इस जीन का पता चला है.
तस्वीर: Chadi/Xhinua/picture alliance
कैंसर मरीजों पर वैक्सीन का असर
एक शोध में पता चला है कि कैंसर का इलाज करवा रहे मरीजों पर वैक्सीन का अच्छा असर हो रहा है. हालांकि एंटिबॉडी के बनने में वक्त ज्यादा लग रहा था लेकिन दूसरी खुराक मिलने के बाद ज्यादातर कैंसर मरीजों में एंटिबॉडी वैसे ही बनने लगीं, जैसे सामान्य लोगों में.
तस्वीर: Darrin Zammit Lupi/REUTERS
कोविड के बाद की मुश्किलें
वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जिन लोगों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनमें से लगभग आधे ऐसे थे जिन्हें ठीक होने के बाद भी किसी न किसी तरह की सेहत संबंधी दिक्कत का सामना करना पड़ा. इनमें स्वस्थ और युवा लोग भी शामिल थे. 24 प्रतिशत को किडनी संबंधी समस्याएं हुईं जबकि 12 प्रतिशत को हृदय संबंधी.
तस्वीर: Yassine Gaidi/AApicture alliance
6 तस्वीरें1 | 6
दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में भी आज से 9वीं से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं खोलने का फैसला किया गया है. पुद्दुचेरी में भी कक्षा 9 से 12 तक 50 फीसदी क्षमता के साथ फिर से शुरू हो गईं.
कई विशेषज्ञ स्कूल खोलने को लेकर अलग-अलग राय दे रहे हैं. कुछ का कहना है कि इस समय स्कूल खोलना सही नहीं होगा तो वहीं कुछ विशेषज्ञ बच्चों के विकास के लिए स्कूल खोलना जरूरी बता रहे हैं. एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया का कहना है कि बच्चों के विकास के लिए स्कूलों का खुलना जरूरी है.
इस बीच देश में बीते 24 घंटे में कोरोना वायरस के 41,965 नए मामले सामने आए हैं और 460 मरीजों की मौत इस वायरस के कारण हुई है. वहीं मंगलवार को देश में रिकॉर्ड 1.25 करोड़ लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी गई.
कोविड काल में रूप बदलती बार्बी
1959 में दुनिया में आने के बाद से उसने दर्जनों रूप बदले हैं. आजकल वह कोविड से जूझती दुनिया के रूप अपना रही है. मिलिए, कोविड में बार्बी से...
तस्वीर: Andy Paradise/Mattel/PA Media/dpa/picture alliance
कोविड में बार्बी, एक वैज्ञानिक
दुनियाभर में मशहूर गुड़िया बार्बी के बनानेवालों ने इसे एक नए रूप में पेश किया है. कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे वैज्ञानिकों के सम्मान में बार्बी को एक ब्रिटिश वैज्ञानिक का रूप दिया गया है. यह वैज्ञानिक हैं सारा गिल्बर्ट जिन्होंने वैक्सीन बनाने में अहम भूमिका निभाई.
तस्वीर: Andy Paradise/Mattel/PA Media/dpa/picture alliance
पहली बार्बी
9 मार्च 1959 को पहली बार्बी गुड़िया बाजार में आई थी. मैटल कंपनी की यह गुड़िया सुनहरे बालों और पतली कमर वाली थी, जिसे यूरोपीय लड़कियों जैसा बनाया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
प्यारी यादें
बार्बी ने दशकों से अनगिनत बच्चों के बचपन को यादों से भरा है. जाने कितने ही बच्चों के कमरों का यह अहम हिस्सा रही है. बार्बी के साथ उसका बॉयफ्रेंड केन भी एक अहम किरदार रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/B. Pedersen
कोई मुकाबला नहीं
बार्बी और केन 1980 के दशक में बड़ी हुईं तमाम लड़कियों की जिंदगी का अहम हिस्सा रहे. कई कंपनियों ने बार्बी का मुकाबला करने की कोशिश की, जैसे जर्मनी में बनी पेट्रा जो काफी कोशिशों के बाद भी बार्बी की जगह नहीं ले पाई.
तस्वीर: imago/bonn-sequenz
बदलते रूप
1980 के दशक में ही बार्बी का मेकओवर भी हुआ. उसे बनाने वाली कंपनी मैटल ने करियर लाइन के रूप में बार्बी के कई अलग-अलग अवतार उतारे जैसे कि एस्ट्रोनॉट, डॉक्टर, टीचर, आर्किटेक्ट आदि.
तस्वीर: DW/D. Bryantseva
विविधता
साल 2000 के बाद बार्बी में बड़ा बदलाव आया. अब उसका रूप एक मॉडल जैसा ना होकर एक मध्यवर्गीय कामकाजी महिला जैसा हो गया. उसके कपड़े भी चकमदार नहीं बल्कि व्यवहारिक हो गए. 2016 में मैटल ने बार्बी को चार अलग-अलग आकारों में भी पेश किया जिनमें दुबले पतले से लेकर सामान्य तक शामिल थे.
तस्वीर: picture-alliance
बदलता वक्त
2017 में बार्बी ने पहली बार हिजाब पहना. वह रियो ओलंपिक में शामिल हुईं अमेरिका की तलवारबाज इब्तिहाज मुहम्मद के रूप पर बनाई गई थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Invision/E. Agostini
दुनियाभर में चाहने वाले
केन्या में बार्बी कोई शहरी आधुनिक लिबास वाली लड़की नहीं बल्कि अफ्रीका के पारंपरिक लिबास पहने एक लड़की थी.
तस्वीर: picture-alliance
विफल भी रही बार्बी
बार्बी के कई रूप विफल भी रहे. जैसे फ्रीडा काल्हो वाला रूप जिस कारण मैटल को अदालत भी जाना पड़ा, जब उस पर कॉपीराइट के उल्लंघन का आरोप लगा. मैटल को उसे वापस लेना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Barbie
2019 के बाद
बार्बी के विशेषांक भी लोकप्रिय रहे हैं. जैसे 2019 में बार्बी को व्हील चेयर पर या एक नकली टांग लगाए बनाया गया.