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जोशीमठ में अब घरों को गिराने का फैसला

१० जनवरी २०२३

उत्तराखंड के जोशीमठ में उन इमारतों को गिरा दिया जाएगा, जिनमें दरारें आ गई हैं. हिमालय में बसे इस कस्बे से दर्जनों परिवारों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है.

जोशीमठ के सैकड़ों घर अब रहने लायक नहीं रहे
जोशीमठ के सैकड़ों घर अब रहने लायक नहीं रहेतस्वीर: AFP/Getty Images

जोशीमठ से लोगों को निकालने के बाद अब उन घरों को गिराने का फैसला लिया गया है, जिनमें दरारें आ गई हैं. विशेषज्ञ और जोशीमठ में रहने वाले लोग बहुत लंबे समय से इस खतरे की चेतावनी देते रहे हैं. शहर के आसपास कई बिजली परियोजनाएं चल रही हैं, जिन्हें इस समस्या के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है.

जिन कंपनियों की परियोजनाएं इस इलाके में सक्रिय हैं, उनमें सरकारी थर्मल पावर कंपनी एनटीपीसी भी शामिल है. देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी का कहना है कि उसके द्वारा बनाई जा रहीं सुरंगें और अन्य प्रॉजेक्ट जोशीमठ के संकट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.

उत्तराखंड में चमोली जिले के करीब 17 हजार लोगों का कस्बा जोशीमठ, हिंदू और सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. ये बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब जैसे तीर्थों के अलावा फूलों की घाटी और औली के स्कीइंग स्लोप्स तक पहुंचने के रास्ते में आखिरी बड़ा सीमावर्ती शहर है. माना जाता है कि जोशीमठ, आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए चार मठों में से एक है. लाखों श्रद्धालु और पर्यटक हर साल इस कस्बे की यात्रा करते हैं. धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से अहम होने के अलावा जोशीमठ का सामरिक महत्व भी है. यह हिमालयी क्षेत्र में भारत-चीन सीमा के पास बसे सबसे बड़े शहरों में है. 

तीर्थयात्राओं के ज्यादा प्रचलित होने और सहूलियत बढ़ने पर जोशीमठ, ब्रदीनाथ मार्ग पर एक बड़ा पड़ाव बनता गया. सर्दियों में बद्रीनाथ मंदिर के पट बंद हो जाने पर देवता की मूर्ति यहीं लाई जाती है. ऐसे में तकरीबन सालभर ही पर्यटन चालू रहता है. पर्यटकों की भारी आवाजाही को देखते हुए बीते दशकों में यहां होटल, रेस्तरां और धर्मशालाओं जैसे व्यावसायिक ढांचों का भी बड़े स्तर पर अनियोजित निर्माण हुआ. 

सैकड़ों घर असुरक्षित

पिछले कुछ समय से वहां के घरों और अन्य इमारतों में दरारें आनी शुरू हो गई थीं. करीब 700 घरों में दरारें पाई गईं, जिसके बाद 400 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. चमोली के जिलाधीश हिमांशु खुराना ने बताया कि कई इमारतों को रहने के लिए असुरक्षित पाया गया है.

कई अहम सड़कों में दरारें आ गई हैंतस्वीर: AP/dpa/picture alliance

खुराना ने कहा, "चार वार्डों में छह इमारतें ऐसी हैं, जिन्हें रहने के लिए बेहद असुरक्षित पाया गया है. केंद्रीय विशेषज्ञों की सिफारिशों के आधार हम इन असुरक्षित इमारतों को गिरा देंगे." उन्होंने कहा कि दो इमारतों को गिराने की इजाजत दी जा चुकी है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि इमारतों को गिराने का काम कब शुरू होगा.

खुराना ने कहा कि एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना और सीमा पर सड़क बनाने की कई योजनाओं को स्थगित कर दिया गया है.

50 वर्षीय स्थानीय निवासी प्रकाश भूटियाल ने कहा कि उनका 11 कमरों का घर है, जिसके सात कमरों में दरारें आ गई हैं. भूटियाल और उनका परिवार सुरक्षित स्थान पर ले जाए जाने का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "नौ लोगों का हमारा परिवार सिर्फ एक कमरे में रहने को विवश है. हमारा सारा सामान खुले में पड़ा है. हम इंतजार कर रहे हैं कि हमें कब सुरक्षित जगह ले जाया जाएगा.”

इस संकट का हल निकालने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी. सरकार ने विशेषज्ञों की एक समिति बनाने का ऐलान किया है, जो संकट के कारणों की खोज के लिए एक अध्ययन करेगी.

कई महीनों से जारी संकट

स्थानीय निवासी विनीता देवी ने बताया कि पिछले साल अक्टूबर में ही उनके घर में दरार आनी शुरू हो गई थी और अब यह इतनी चौड़ी हो चुकी है कि उनका घर गिरने के कगार पर है. उनके मुताबिक आसपास के 25 घरों की यही स्थिति है. उन्होंने कहा, "मेरे बच्चों का अब क्या होगा? वे कैसे पढ़ेंगे?”

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समुद्र तल से करीब 18,000 मीटर की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ हिमालय में कई महत्वपूर्ण जगहों पर पहुंचने के लिए दरवाजे जैसा है. यहां भारतीय सेना का एक अहम अड्डा और एक महत्वपूर्ण सड़कमार्ग भी है, जो पड़ोसी चीन की सीमा के नजदीक होने के कारण रणनीतिक रूप से बेहद जरूरी है. बताया जाता है कि इस सड़क में भी दरारें आ गई हैं.

एशिया के सबसे बड़े, करीब चार किलोमीटर लंबे केबल कार रोप-वे का आधार बने खंभों में भी दरारें देखी गई हैं. यह केबल कार रोप-वे ऑली के एक रिजॉर्ट तक जाता है.

जोशीमठ सेसिमिक जोन V में आता है. ऐसे में यह भूकंप के खतरे वाला संवेदनशील इलाका है. यहां बीते कुछ सालों में लगातार आपदाएं आती रही हैं. विशेषज्ञ इन आपदाओं के लिए बेतरतीब विकासकार्यों को भी जिम्मेदार बताते हैं. फरवरी 2021 में आई औचक बाढ़ में लगभग दो सौ लोग मारे गए थे.

जलवायु परिवर्तन का असर

विशेषज्ञ कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण इलाके के कई हिमखंड तेजी से सिकुड़ रहे हैं, जो बड़ी आपदाओं का एक और कारण है. ओस्लो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के रिवरिन राइट्स प्रोजेक्ट से जुड़ीं कविता उपाध्याय कहती हैं कि 2015 से 2021 के बीच इस इलाके में बादल फटने या अत्याधिक बारिश की कम-से कम 7,750 घटनाएं हो चुकी हैं.

जलवायु परिवर्तनः आल्प्स की सर्दी में भी गर्मी का अहसास

जल-नीति की विशेषज्ञ कविता उपाध्याय उत्तराखंड की ही रहने वाली हैं. वह बताती हैं, "जोशीमठ की ढलानें भूस्खलन से निकले मलबे से बनी हैं. लिहाजा कस्बा एक हद तक ही इमारतों का वजन सहन कर सकता है. और बांधों व इमारतें बनाने जैसी परियोजनाओं की भी एक सीमा है.”

उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजरमेंट अथॉरिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात कही गई है कि विस्फोट और अन्य तरीकों से बड़ी चट्टानों को हटाने से इलाके के पर्यावरण को भारी नुकसान होगा. पिछले साल मई में मीरा रावत ने अपने घर के नीचे से पानी बहने की आवाज सुनी थी. वह कहती हैं, "उसी दिन मुझे एहसास हो गया था कि हमारे जोशीमठ में कुछ बुरा होने वाला है. सितंबर में मैंने फर्श में छोटी सी दरार देखी. दिसंबर में यह चौड़ी हो गई और हमने घर खाली कर दिया.”

वीके/एसएम (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)

 

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