सुप्रीम कोर्ट से आई यौनकर्मियों के लिए उम्मीद की किरण
२३ दिसम्बर २०२१
भारत के सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला देश की हजारों यौनकर्मियों के लिए मुस्कुराहट लेकर आया है. इस फैसले के चलते वे लोग ना सिर्फ वोट दे सकेंगी बल्कि उन्हें सरकारी मदद भी मिल पाएगी.
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मानव तस्करी की शिकार के संध्या करीब पांच साल पहले इस पेशे में धकेल दी गईं. 28 साल की संध्या दो बच्चों की मां हैं और पेशा छोड़कर कोई और काम खोजने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन पहचान पत्र ना होने के कारण उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है. वह बताती हैं, "मजदूरी ही मिल पाती है. लॉकडाउन में तो हमें बहुत मुश्किल हुई. मदद भी नहीं मिल पाई. अगर पहचान पत्र मिल जाएगा तो हमारी मुश्किल थोड़ी तो कम होगी.”
सुप्रीम कोर्ट का पिछले हफ्ते आया एक फैसला संध्या जैसी लाखों महिलाओं की जिंदगी बदल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि पंजीकृत यौनकर्मियों को राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ट जारी किए जाएं और उनका आधार पंजीकरण भी किया जाए.
तस्वीरेंः यौनकर्मियों के बच्चों की जिंदगी
फिलीपींस की यौनकर्मियों के बच्चों की बदतर जिंदगी
ये बच्चे अन्य बच्चों से अलग हैं, क्यूंकि इनका जीवन इसी गरीबी में माता पिता के बिना कटना है. लोग फिलीपींस घूमने आते हैं और यौनकर्मियों की कोख में इन बच्चों को छोड़ जाते हैं.
तस्वीर: DW/R. I. Duerr
यौनकर्म पर निर्भरता
फिलीपींस के ओलोनागापो शहर के इस इलाके में ये लड़कियां गरीबी से जूझते जिंदगी गुजारती हैं. ये लड़कियां बारों में काम करती हैं. हर साल सेक्स टूरिज्म के कारण हजारों बच्चों का जन्म होता है.
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बगैर पिता की नस्ल
डेनियल का पिता एक अमेरिकी था. डेनियल की मां बार में काम करती है और कोशिश करती है कि सभी बच्चों को बराबरी का एहसास हो.
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मजबूर हालात
रयान (मध्य में) को बास्केटबॉल खेलना पसंद है. उसका पिता जापानी था. रयान के चार भाई बहन हैं, उनके पिता अलग हैं.
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करियर के अवसर
सबरीना गोरी है, इलाके में माना जाता है कि उसके लिए बेहतर अवसर मौजूद हैं. वह मॉडल या अभिनेत्री बन सकती है. उसके पिता जर्मन हैं लेकिन उनका सबरीना के परिवार से कोई संबंध नहीं है.
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पढ़ाई लिखाई
लैला की दिलचस्पी स्कूल जाने में है, वह दिन भर पीठ पर बस्ता बांध कर घूमती रहती है. लैला की मां बताती हैं कि उसके पिता अमेरिकी हैं.
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पहचान की तलाश
अफ्रीकी या अफ्रीकी अमेरिकी पिता के बच्चे इस समाज में 'निगर' कह कर पुकारे जाते हैं.
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नया परिवार
एंजेला सैमुएल के पिता स्विस थे. लेकिन उसके जन्म के पहले ही उसके पिता उन्हें छोड़ कर चले गए. एंजेला ने अब एक फिलीपीनी परिवार का लड़के से शादी की है. शादी के बाद उसने बार में काम करना छोड़ दिया.
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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक डॉक्टर समरजीत जना की याचिका पर आया है, जिनकी इसी साल मई में कोविड के कारण मौत हो गई थी. इस याचिका की वकील तृप्ति टंडन कहती हैं, "सालों से यौनकर्मियों को सरकारों की तरफ से पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता रहा है. यह आदेश उन्हें अपने फैसले लेने की सुविधा दे पाएगा.”
सही संख्या का नहीं पता
अधिकारियों का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 लाख यौनकर्मी हैं. उनमें से ज्यादातर अब तक वोट नहीं डाल सकतीं. उनके पास बैंक खाते नहीं हैं और सरकार खाने पर जो सब्सिडी देती हैं, उन्हें मिल ही नहीं पाती क्योंकि उनके पास सही दस्तावेज नहीं हैं.
लेकिन यह संख्या और ज्यादा हो सकती है. इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि देश की आधी से ज्यादा यौनकर्मी, जो बेहद गरीब पृष्ठभूमि से हैं, अब तक रजिस्टर्ड नहीं हैं और सरकारी आंकड़ों में शामिल ही नहीं हैं.
इसी कारण आंध्र प्रदेश में कुछ संस्थाओं ने राज्य सरकार से यौनकर्मियों की दोबारा गणना का अनुरोध किया है. आंध्र प्रदेश में काम करने वाली संस्था हेल्प (HELP) के संस्थापक राममोहन नीमाराजू कहते हैं, "आधिकारिक दस्तावेजों में लगभग एक लाख यौनकर्मी हैं जबकि राज्य में दो लाख से ज्यादा यौनकर्मी हैं. इसीलिए हमने दोबारा गणना का अनुरोध किया है.”
सुप्रीम कोर्ट के पिछले हफ्ते आए फैसले के कारण यह गणना और अहम हो जाती है. नीमाराजू कहते हैं, "राशन कार्ड मिल जाने से उन्हें दो रुपये किलो चावल मिल सकेगा. वे जमीन खरीद सकेंगी और अगर उनके बच्चे होते हैं तो स्कूल में बिना परेशानी दाखिला दिला सकेंगी. इसके फायदों का कोई अंत नहीं है.”
सेक्स वर्करों के बनाए चित्रों से सजी दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है. कोलकाता में इस बार एक आयोजन पूजा समिति ने एशिया की सबसे बड़ी देहमंडी सोनागाछी की यौनकर्मियों के संघर्ष और सफर को ही अपनी थीम बनाया है.
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नई पहल
दुर्गा पूजा पर पश्चिम बंगाल में बनने वाले पंडालों में पूरे साल की प्रमुख घटनाओं का चित्रण साज-सज्जा और बिजली की सजावट के जरिए किया जाता है. लेकिन इस बार अहिरिटोला युवकवृंद नाम पूजा आयोजन समिति ने कुछ खास करने की सोची.
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यौन कर्मियों का संघर्ष
समिति ने सोनागाछी की यौन कर्मियों के संघर्ष को अपनी थीम बनाया. इसके लिए पंडाल तक जाने वाली सड़क पर लगभग साढ़े तीन सौ फीट लंबी कलाकृति बनाई गई है. आसपास की दीवारों पर बने चित्र भी इन लोगों के संघर्ष को दर्शाते हैं.
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पूजा में भागीदारी
दुर्गा पूजा में वेश्यालय से मिट्टी लिए बिना देवी की प्रतिमा नहीं बनाई जा सकती. बंगाल में यह परंपरा सदियों पुरानी है. लेकिन इस बार यौन कर्मियों के बनाए चित्र और रंगोली पूजा का हिस्सा बन रहे हैं. इन्हें बनाने में कई जाने-माने कलाकारों की मदद भी ली गई.
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यौन कर्मियों का योगदान
कुछ तस्वीरों में समाज के प्रति इन यौनकर्मियों के योगदान को भी दर्शाया गया है. इस आयोजन में अहिरिटोला युवकवृंद ने यौन कर्मियों के हितों के लिए काम करने वाले सबसे बड़े संगठन दुर्बार महिला समन्वय समिति की भी सहायता ली है.
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अनूठी पहल
दुर्बार महिला समन्वय समिति का कहना है कि बंगाल के इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई दुर्गा पूजा समिति यौन कर्मियों के संघर्ष और जीवन की कहानी आम लोगों के सामने रख रही है. इससे शायद उनके प्रति लोगों का नजरिया बदले.
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समाज का हिस्सा
आयोजकों का कहना है कि यौन कर्मी भी हमारे समाज का हिस्सा हैं, लेकिन हम कभी उनके जीवन या संघर्ष के बारे में जानने का प्रयास नहीं करते. त्योहारों में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता जबकि वे भी समाज के दूसरे लोगों की तरह सम्मान और गरिमा के हकदार हैं.
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अहम योगदान
आयोजकों का कहना है कि ज्यादातर यौन कर्मी मानव तस्करों के चंगुल में फंस कर इस पेशे में आती हैं. या फिर उनके सामने घर-परिवार को चलाने की मजबूरी होती है. वे एक मां की भूमिका भी निभाती हैं. ऐसे में, उनकी अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
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सियासत
दुर्गा पूजा के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी पंडालों के उद्घाटन में व्यस्त रहती हैं. दरअसल बंगाल में राजनीतिक दलों के लिए भी यह आयोजन जनसंपर्क का सबसे बड़ा मौका होता है. अगले साल होने वाले आम चुनाव ने इस बार की पूजा को और अहम बढ़ा दिया है.
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भारत में यौनकर्म वैध है. लेकिन ज्यादातर यौनकर्मी गरीब हैं और उनका हर तरह से शोषण होता है. ज्यादातर मामलों में परिवार उन्हें त्याग देता है और उनके पास कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं होता जिसके जरिए वे पहचान पत्र के लिए आवेदन कर सकें. वे आमतौर पर जगह बदलती रहती हैं या अवैध ठिकानों पर रहती हैं जहां से घर के पते का कोई प्रमाण पत्र बनवाना भी असंभव हो जाता है.
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कोविड की मार
2019 में कोविड-19 महामारी के प्रकोप का दुनियाभर की यौनकर्मियों पर बुरा असर हुआ. उनकी आय के साधन रातोरात खत्म हो गए. बहुत सी यौनकर्मियों को वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार बताकर मारा-पीटा भी गया.
महामारी के दौरान भारत में असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सरकार की तरफ से नकद और खाद्य सामग्री की मदद की योजना चलाई गई थी. लेकिन अधिकतर यौनकर्मी इस मदद से महरूम रहीं क्योंकि उनके पास पहचान पत्र या कोई अन्य आधिकारिक दस्तावेज नहीं था.
सरकारी संस्था नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेन (NACO) यौनकर्मियों की स्वास्थ्य जांच करती है और उन्हें मुफ्त कंडोम मुहैया कराती है. लेकिन ये सुविधाएं भी रजिस्टर्ड यौनकर्मियों को ही मिल पाती हैं. संस्था का कहना है कि यौनकर्मियों की सटीक गणना की कोशिश की जा रही है.
नाको की उप महानिदेशक शोबीनी राजन कहती हैं, "हमारे पास लगभग दस लाख यौनकर्मी पंजीकृत हैं. मैं ये तो नहीं कह सकती कि और यौनकर्मी हैं ही नहीं लेकिन हम इनके साथ शुरुआत कर सकते हैं.” राजन कहती हैं कि नाको ने पिछले एक साल में करीब पांच लाख ऐसी यौनकर्मियों को खाना उपलब्ध करवाया है जिनके पास पहचान पत्र नहीं थे.
अधिकारी कहते हैं कि अब इन यौनकर्मियों का भी पंजीकरण हो गया है और उन्हें सरकारी मदद नियमित रूप से मिल रही है. राजन बताती हैं, "हमने अपनी सभी राज्य इकाइयों को निर्देश दिया कि स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करें ताकि सभी यौनकर्मियों की सही पहचान हो सके.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
यौनकर्म की अंधेरी दुनिया में नाबालिग
सामाजिक संस्थाओं का अनुमान है कि जर्मनी में चार लाख यौनकर्मियों में से 10 फीसदी नाबालिग हैं. कई बार अंजाने में तो कई बार जिद में वे अंधेरी दुनिया में प्रवेश कर जाती हैं.
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यौनकर्मियों की संख्या
जर्मनी में यौनकर्मियों की सही संख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है. यौनकर्मियों के लिए काम करने वाली बर्लिन की हाइड्रा संस्था के मुताबिक करीब चार लाख महिलाएं यौनकर्म से रोजी रोटी कमा रही हैं.
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उत्पत्ति
जर्मनी में पूर्वी यूरोप और अफ्रीका से आई कई महिलाएं इस काम में लिप्त हैं. लेकिन यौनकर्म में शामिल नाबालिग लड़कियां ज्यादातर जर्मन ही हैं. डॉर्टमुंड की राहत संस्था मिडनाइट मिशन के मुताबिक यौनकर्म करने वाली दो तिहाई नाबालिग लड़कियां जर्मन मूल की हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नशे की लत
इन लड़कियों में कई स्कूली छात्राएं हैं. ये नशे की लती हैं. नशे की जरूरत को पूरा करने के लिए ही ज्यादातर वे यह रास्ता अपनाती हैं. इनमें से ज्यादातर अपने घरों से भागी हुई हैं और उनके पास रहने का ठिकाना नहीं है.
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अंधेरी दुनिया
यौनकर्म को कमाई के लिए अपनाने के कई कारण हैं. कभी वे दोस्तों या रिश्तेदारों के बहकावे में आकर यह काम करने लगती हैं तो कभी वे धोखे का शिकार हो जाती हैं. कई बार पुरुष उनके बॉयफ्रेंड बनकर उन्हें इस काम में बहला फुसलाकर घसीट लेते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ANP XTRA
सख्त सजा
जर्मनी में लड़कियों को जबरन वैश्यावृति में धकेले जाने को रोकने के लिए कानून में सख्ती लाई जा रही है. भविष्य में लड़कियों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें सेक्स वर्क में धकेलने वालों को 10 साल तक कैद की सजा होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Vennenbernd
बचाने की कोशिश
बंधुआ सेक्स वर्करों से सेवा लेने वाले लोगों को भी भविष्य में जर्मनी में तीन महीने से पांच साल तक कैद हो सकती है. सजा से बचने के लिए जरूरी होगा कि वह बंधुआ सेक्स वर्करों के बारे में अधिकारियों को फौरन सूचना दे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
छोड़ना मुश्किल
यौनकर्म की दुनिया में प्रवेश के बाद इनका बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. अक्सर वे यह समझ ही नहीं पाती हैं कि वे अपने साथ क्या कर रही हैं. कम उम्र में उनमें लोगों के खिलाफ जाने की प्रवृत्ति होती है. वे यौनकर्म को सामाजिक मान्यताओं को तोड़ने के कदम की नजर से देखती हैं.