यूक्रेन युद्ध के कारण चांदी कूट रहे हैं ये भारतीय व्यापारी
९ मार्च २०२२
यूक्रेन युद्ध के व्यापक आर्थिक असर नजर आने लगे हैं. हालांकि यूरोप और अमेरिका में व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है लेकिन भारत के कम से कम गेहूं व्यापारियों को खासा फायदा हुआ है.
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भारत ने पिछले कुछ दिनों में पांच लाख टन गेहूं निर्यात के समझौते किए हैं. व्यापारियों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के कारण कीमतों में बहुत तेजी आई है, जिसका फायदा दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश भारत को हो रहा है.
कुछ व्यापारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि पिछले कुछ दिनों में उन्हें विदेशों से बहुत सारे खरीदारों ने संपर्क किया है जो काला सागर के रास्ते आने वाले गेहूं का विकल्प खोज रहे हैं क्योंकि रूस के यूक्रेन पर हमले ने इस सप्लाई रूट को प्रभावित किया है. रूस और यूक्रेन को गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र हासिल है. दुनिया के कुल गेहूं निर्यात का 30 फीसदी इन्हीं दोनों देशों से आता है.
भारत में पिछली पांच फसलों से रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन हुआ है. इसके चलते उसके गेहूं भंडार भरे हुए हैं और व्यापारी निर्यात की संभावनाओं को लेकर खासे उत्सुक हैं. चूंकि भारत में सरकारी न्यूनतम मूल्य ऊंचा है इसलिए भारत को गेहूं निर्यात का फायदा तभी ज्यादा होता है जबकि वैश्विक बाजार में दाम ऊंचे हों. एक ग्लोबल ट्रेडिंग फर्म में काम करने वाले डीलर ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, "वैश्विक बाजार में ऊंचे दामों ने भारतीय निर्यातकों के लिए गेहूं की मांग पूरी करना आसान बना दिया है.”
गेहूं की कीमतें आसमान पर
सोमवार को यूरोपीय गेहूं की कीमत 400 यूरो प्रति टन यानी लगभग 33 हजार रुपये पर पहुंच गई थी जो कि पिछले 14 साल में सबसे ज्यादा है. इसके उलट भारत में गेहूं उत्पादकों को लगभग 19,700 रुपये प्रति टन का न्यूनतम मूल्य मिलता है.
यूक्रेन में बर्बादी का हाल बयां करती हैं ये तस्वीरें
यूक्रेन पर रूस के हमले से करोड़ों लोगों की जिंदगी उलट पुलट हो गई. घर नष्ट हो गए हैं, रसद की कमी हो गई है और कई दुकानें भी तेजी से खाली हो रही हैं. कई लोग हताशा में बस वहां से भाग जाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Emilio Morenatti/AP/picture alliance
मदद के लिए
यूक्रेनी सैनिक राजधानी कीव में इरपिन नदी पार करने में छोटे बच्चों वाले एक परिवार की मदद कर रहे हैं. इस इलाके में अधिकांश पुल ध्वस्त हो चुके हैं. इस तरह के दृश्य अब यूक्रेन में आम हो गए हैं. रूसी सेना कई शहरों पर हमला कर रही है.
तस्वीर: Emilio Morenatti/AP/picture alliance
गोलाबारी से बचाव
कीव से कुछ ही किलोमीटर दूर इरपिन शहर भी है जहां पांच मार्च को रूसी सेना ने पूरे दिन बमबारी की. बम के गोलों से बचने के लिए स्थानीय लोगों ने एक टूटे हुए पुल के नीचे शरण ली. बाद में लोगों ने इस शहर को भी छोड़ कर जाना शुरू कर दिया.
तस्वीर: Emilio Morenatti/AP/picture alliance
जोखिम भरा अभियान
कुछ स्थानीय लोग बस में बैठ कर इरपिन से बच कर निकलने में सफल रहे. लेकिन कई लोगों को पैदल ही नदी पार करना पड़ा. उन्होंने लकड़ी के फट्टों से बने एक कामचलाऊ पुल का इस्तेमाल किया. इसमें यूक्रेनी सिपाहियों ने भी उनकी मदद की. पूरा अभियान बेहद जोखिम भरा रहा क्योंकि इस दौरान रूसी सेना की बमबारी लगातार जारी रही.
तस्वीर: Aris Messinis/AFP/Getty Images
भागने की हताशा
कई लोगों ने भाग निकलने के लिए ट्रेनों को भी जरिया बनाया. यह तस्वीर इरपिन स्टेशन की है जहां बड़ी संख्या में लोगों को कीव जाने वाली ट्रेनों में सवार होने की कोशिश करते देखा जा सकता है. इन लोगों को उम्मीद है कि कीव पहुंचने के बाद उन्हें देश से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाएगा.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
आखिरी बार मुड़ कर देखना
जाने वालों को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं है कि वो कभी अपने शहर, अपने घर वापस लौट भी पाएंगे या नहीं और जब लौटेंगे तब वहां क्या मंजर होगा. ट्रेनों में भारी भीड़ है, जिसका मतलब है भागने वाले लोग अपने साथ ज्यादा सामान भी नहीं ले जा सकते हैं.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
जलते घर
इस मकान पर बम का गोला गिरा था और इस तस्वीर में घर के लोग जलते हुए मकान से जो सामान बचा सकें उसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अभी तक 15 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन छोड़ कर जा चुके हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना कि यह संख्या एक करोड़ तक जा सकती है.
तस्वीर: Aris Messinis/AFP/Getty Images
बमबारी का असर
इरपिन में इस आवासीय इमारत पर इतनी बमबारी हुई कि यह मिट्टी में मिल जाने के कगार पर पहुंच गई थी. रूसी सेना ने रिहायशी इमारतों और दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर हमले बढ़ा दिए हैं और माना जा रहा है कि शरणार्थियों की संख्या में भारी उछाल आने की यह एक बड़ी वजह बन सकती है.
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भोजन का संकट
यहां बस कुछ ही दिनों पहले एक आम, चहल पहल वाला सुपरमार्केट था. लेकिन अब इसकी जल्दी जल्दी खाली होती अलमारियां युद्ध कालीन अभाव की स्थिति का चिन्ह बन गई हैं. यूक्रेनी सैनिक बचेखुचे खाने और पानी को लोगों में बांटने के लिए इकट्ठा कर रहे हैं.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
सिनेमा घर में बंदूक चलाने की प्रैक्टिस
जो लोग सेना की मदद के लिए पीछे रह गए उन्हें लड़ाई का बुनियादी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यह लवीव का एक सिनेमा घर है जहां आम लोगों को हथियार दिए गए और उन्हें चलाने के बारे में संक्षेप में बताया गया. कई लोगों ने अपनी जिंदगी में पहली बार हाथों में हथियार उठाए हैं. रिपोर्ट- ग्रेटा हामन
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यूक्रेन युद्ध को लेकर एक चिंता यह भी है कि रूस खाद के भी सबसे बड़े निर्यातकों में से है. रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों के चलते वहां से फर्टिलाइजर आने बंद होंगे तो घरेलू बाजारों में खाद के दाम बढ़ जाएंगे. जिसका असर फसलों की कीमतों पर भी पड़ेगा.
फर्टिलाइजर की कीमत पिछले साल से लगभग दोगुनी हो चुकी है. नाइट्रोजन आधारित यूरिया और दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला फासफोरस आधारित डायमोनियम फास्फेट पिछले साल के मुकाबले क्रमशः 98 प्रतिशत और 68 प्रतिशत महंगा हो चुका है. यह महंगाई किसानों को चिंतित कर रही है और इसका असर उनकी खरीद पर दिखने लगा है.
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भारत का रिकॉर्ड निर्यात
इस साल भारत रिकॉर्ड 70 लाख टन गेहूं का निर्यात करेगा. एक डीलर के मुताबिक, "जो खरीदार यूक्रेन और रूस से सप्लाई बाधित होने के लेकर चिंतित हैं, वे जानते हैं कि इस वक्त सिर्फ भारत इतना बड़ा और स्थिर सप्लायर हो सकता है. इसलिए वे भारत की ओर रुख कर रहे हैं.” इस डीलर ने बताया कि कुछ ही दिन में पांच लाख टन गेहूं के निर्यात के सौदे हो चुके हैं.
यूनिकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड में काम करने वाले ट्रेडर राजेश पहाड़िया जैन कहते हैं, "ज्यादातर सप्लायर 340 से 350 डॉलर प्रति टन के भाव पर सौदा कर चुके हैं.” इससे पहले 305-310 डॉलर प्रति टन के भाव पर भी गेहूं निर्यात हुआ है.
इस बारे में भारत सरकार के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि सरकार निर्यात को प्रोत्साहित करेगी. इस अधिकारी ने कहा, "हमारा रुख निर्यात के प्रति समर्थक है और हम निजी क्षेत्र के जरिए गेहूं की सप्लाई की सुविधा उपलब्ध कराएंगे.”