भारत में इस साल जनवरी से मार्च तिमाही के बीच स्मार्टफोन की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की गई. लेकिन कोरोना की दूसरी और सबसे घातक लहर ने स्मार्टफोन के बाजार को भी प्रभावित किया.स्मार्टफोन के जरिए बच्चे ऑनलाइन शिक्षा हासिल कर रहे.
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भारत इस वक्त कोरोना वायरस की दूसरी लहर से सबसे ज्यादा प्रभावित है. हर रोज हजारों लोगों की कोरोना के कारण मौत हो रही है और लाखों लोग संक्रमित हो रहे हैं. देश में बीते 24 घंटे में 3.19 लाख नए कोरोना संक्रमित मिले और 2,762 संक्रमितों की मौत हो गई. इस बीच राज्य सरकारें कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए तमाम कोशिशें कर रही हैं. स्कूल और कॉलेज जो कुछ महीने पहले तक खुलने की तैयारी में थे, उनके दोबारा खुलने की योजना हाल फिलहाल नजर नहीं आती. काउंटरप्वाइंट के शोध के मुताबिक साल 2020 में महामारी के दौरान भारत में स्मार्टफोन की रिकॉर्ड बिक्री हुई.
पिछले साल 3.8 करोड़ स्मार्टफोन बिके, जो कि इससे पहले साल के मुकाबले 23 फीसदी अधिक थी. काउंटरप्वाइंट के विश्लेषक प्रचीर सिंह के मुताबिक, "इन आंकड़ों को सावधानी के साथ लिया जाना चाहिए. देश में चल रही कोरोना की दूसरी लहर और लॉकडाउन के कारण मोबाइल की मांग में गिरावट आएगी." यह शोध ऐसे समय में आया है जब भारत में कोरोना के मामलों में तेज उछाल दर्ज की जा रही है और नए मामलों के कारण राज्यों को मजबूरन लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है.
शिक्षा पर असर
स्कूल में पढ़ाई पिछले साल से ही ऑनलाइन हो रही है, बच्चों को पढ़ाने के लिए परिवार को कर्ज या सेकंड हैंड फोन खरीदना तक पढ़ रहा है. कोरोना की ताजा लहर ने अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर डाला है और अर्थिक गतिविधि धीमी होती जा रही है. ऑनलाइन शिक्षा के लिए ना सिर्फ स्मार्टफोन की जरूरत होती है बल्कि तेज इंटरनेट की भी जरूरत होती है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है विश्व स्तर पर 2.4 करोड़ बच्चों का दोबारा स्कूल नहीं लौट पाने का गंभीर संकट है. ऐसा ही संकट भारत के लाखों गरीब परिवारों के बच्चों के साथ होने वाला है.
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला था कि कोरोना महामारी और स्कूलों के व्यापक तौर पर बंद होने से दुनिया में जितने बच्चे प्रभावित हुए हैं, उनमें से कम से कम एक-तिहाई बच्चों तक वर्चुअल शिक्षा पहुंच नहीं पा रही है. यूनिसेफ के इस अध्ययन से अनुमान लगाया जा रहा है कि पूरी दुनिया में करीब 46.3 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिनके पास दूर से शिक्षा ग्रहण करने के लिए या तो उपकरण नहीं है या इलेक्ट्रॉनिक पहुंच नहीं है.
इंटरनेट से लेकर चार्जिंग तक चुनौती
जानकारों का कहना है कि सिर्फ स्मार्टफोन ही नहीं बल्कि चार्जिंग और इंटरनेट कनेक्शन शिक्षा के लिए बड़ी चुनौती है. ग्रामीण भारत में फोन होने पर भी बहुत से माता-पिता बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को अहमियत नहीं दे रहे. स्कूल ना जाने की स्थिति में कई बच्चे घरेलू काम या खेती में हांथ बंटाने में लग गए हैं. लॉकडाउन और कर्फ्यू के कारण परिवार की आय कम हो रही है और इसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर भी देखने को मिल रहा है. कई मां-बाप फोन पर इंटरनेट पैकेज नहीं डाल पा रहे हैं.
आमिर अंसारी (रॉयटर्स)
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/TT/J. Gow
जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
तस्वीर: Reuters/P. Waydande
कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
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अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Newscom/P. C. James
ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.