भारत में बुधवार से 12 से 14 साल के बच्चों के लिए कोरोना का टीकाकरण शुरू हो गया. केंद्र सरकार ने कहा है कि इस आयु वर्ग के बच्चों को बॉयलोजिकल ई लिमिटेड द्वारा विकसित कॉर्बेवैक्स टीके की दो खुराक दी जाएगी.
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कॉर्बेवैक्स टीके की दो खुराक के बीच 28 दिनों का अंतराल जरूरी है. यानी दोनों वैक्सीन के बीच 28 दिनों का गैप रहेगा. 12 से 14 साल के बच्चों के टीकाकरण को लेकर केंद्र सरकार ने मंगलवार को गाइडलाइंस जारी की. एक मार्च 2021 को देश में 12-13 साल के 4.7 करोड़ बच्चे थे.
बच्चों के टीकाकरण को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ एक वर्चुअल बैठक में कहा कि टीका लेने वाले बच्चों को कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा और बच्चों को सिर्फ तय की गई वैक्सीन ही दी जाएगी.
इसके अलावा 60 साल से अधिक उम्र वाले सभी बुजुर्गों को एहतियाती खुराक दी जा सकती है. एहतियाती खुराक को दूसरे टीके के लगाए जाने की तारीख के 9 महीने (39 सप्ताह) के पूरा होने के बाद बुजुर्गों को दी जानी है.
ओपन एयर स्कूल में पढ़ाई
लंबे समय तक बंद रहने के बाद पश्चिम बंगाल में स्कूल फिर से खुल गए हैं. पश्चिम बंगाल में बच्चों के लिए ओपन स्कूल शुरू हो गए हैं. देखिए. वहां बच्चे कैसे पढ़ रहे हैं.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
पढ़ाई है जरूरी
कोविड के कारण पिछले डेढ़ साल से स्कूल बंद हैं. अब पश्चिम बंगला में इसी महीने से स्कूल फिर से खुल गए हैं. बच्चे स्कूल पहुंचे और उन्होंने अपना हाथ सैनिटाइज किया.
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ओपन एयर स्कूल
ओपन एयर स्कूल में जूनियर क्लास के बच्चे पढ़ने आते हैं. आठवीं से बारहवीं के बच्चों के लिए स्कूल में क्लास लग रही है. छोटे बच्चे कुछ इसी तरह से पढ़ाई करते हैं.
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खेल-खेल में पढ़ाई
छोटे बच्चों को अभी तक कोविड का टीका नहीं लगा है. इसलिए उन्हें कक्षा में जाने की अनुमति नहीं है. खुले मैदान में स्कूल बनाए गए हैं.
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गांवों में क्यों नहीं ऐसे स्कूल
शहर के विभिन्न इलाकों में इस तरह के ओपन स्कूल बनाए गए हैं. लेकिन इसके बाद विवाद शुरू हो गया है कि गांव में ऐसे स्कूल बनाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों नहीं है.
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स्कूल में मिड डे मील
ओपन एयर स्कूल में दोपहर के भोजन की भी व्यवस्था की जा रही है. खुले आसमान के नीचे छात्रों को खाना खिलाया जाता है और उसके बाद थोड़ा खेलकूद भी होता है. (रिपोर्ट- सत्यजीत शॉ)
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बच्चों के लिए टीके का रजिस्ट्रेशन 16 मार्च से शुरू हो गया, और इसे ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से किया जा सकता है. रजिस्ट्रेशन कोविन ऐप पर मौजूद परिवार के किसी सदस्य के अकाउंट से या फिर पोर्टल पर एक नए मोबाइल नंबर से नया अकाउंट बनाकर किया जा सकता है. रजिस्ट्रेशन टीका केंद्रों पर भी कराया जा सकता है. वैक्सीनेशन की तारीख ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह बुक हो सकेगी.
इसके साथ राज्यों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है कि टीकाकरण की तारीख को 12 वर्ष की आयु प्राप्त करने वालों को ही कोविड 19 टीका लगाया जाए. अगर लाभार्थी पंजीकृत है, लेकिन टीकाकरण की तारीख को 12 वर्ष की आयु पूरी नहीं है, तो कोविड 19 वैक्सीन नहीं दी जानी चाहिए.
गाइडलाइंस में कहा गया है कि 12 से 14 साल के बच्चों का टीकाकरण उनके लिए तय टीका केंद्रों पर समर्पित टीकाकरण सत्रों में किया जाएगा, ताकि किसी भी अन्य टीके के इस्तेमाल की गुंजाइश न रहे. टीकाकरण दलों को यह सुनिश्चित करने के लिए ट्रेनिंग देने के लिए भी कहा गया है.
गौरतलब है 15-18 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों को पहले से ही 3 जनवरी, 2022 से कोवैक्सिन का टीका लगाया जा रहा है.
सर्वे: भारत में 80 प्रतिशत परिवारों में भोजन तक की समस्या
महामारी के आर्थिक असर पर किए गए एक सर्वे ने पाया है कि 2021 में करीब 80 प्रतिशत परिवार "खाद्य असुरक्षा" से जूझ रहे थे. सर्वे से संकेत मिल रहे हैं कि महामारी के आर्थिक असर दीर्घकालिक हो सकते हैं.
इस सर्वे के लिए 14 राज्यों में जितने लोगों से बात की गई उनमें से 79 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि 2021 में उन्हें किसी न किसी तरह की "खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. 25 प्रतिशत परिवारों को "भीषण खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. सर्वेक्षण भोजन का अधिकार अभियान समेत कई संगठनों ने मिल कर कराया था.
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भोजन तक नहीं मिला
सर्वे में पाया गया कि 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को या तो पर्याप्त खाना न हासिल होने की चिंता थी या वो पौष्टिक खाना नहीं खा पाए या वो सिर्फ गिनी चुनी चीजें खा पाए. 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घर में सर्वे के पहले के महीने में भोजन खत्म हो गया था. करीब 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें या उनके परिवार में किसी न किसी को एक वक्त का भोजन त्यागना पड़ा.
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भोजन मिला, लेकिन पोषण नहीं
सर्वेक्षण दिसंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच कराया गया और इसमें 6,697 लोगों को शामिल किया गया. इनमें से 41 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनके भोजन की पौष्टिक गुणवत्ता महामारी के पहले के समय की तुलना में गिर गई. 67 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वो रसोई गैस का खर्च नहीं उठा सकते थे.
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आय भी गिरी
65 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनकी आय महामारी के पहले की स्थिति के मुकाबले गिर गई. इनमें से 60 प्रतिशत परिवारों की मौजूदा आय उस समय के मुकाबले आधे से भी कम है. ये नतीजे दिखाते हैं कि महामारी के शुरू होने के दो साल बाद भी भारत में बड़ी संख्या में परिवारों की कमाई और सामान्य आर्थिक स्थिति संभल नहीं पाई है.
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नौकरी चली गई
32 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनके कम से कम एक सदस्य की या तो नौकरी चली गई या उन्हें वेतन का नुकसान हुआ.
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इलाज पर खर्च
23 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन्हें इलाज पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ी. इन परिवारों में 13 प्रतिशत परिवारों के 50,000 से ज्यादा रुपए खर्च हो गए और 35 प्रतिशत परिवारों के 10,000 से ज्यादा रुपए खर्च हुए.
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कर्ज में डूबे
लगभग 45 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन पर कर्ज बकाया है. इनमें से 21 प्रतिशत परिवारों के ऊपर 50,000 रुपयों से ज्यादा का कर्ज है.
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खोया बचपन
हर छह परिवारों पर कम से कम एक बच्चे का स्कूल जाना बंद हो गया. हर 16 परिवारों में से एक बच्चे को काम पर भी लगना पड़ा.
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महिलाओं पर ज्यादा असर
सर्वे में शामिल होने वालों में से 4,881 ग्रामीण इलाकों से थे और 1,816 शहरी इलाकों से. 31 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजातियों से थे, 25 प्रतिशत अनुसूचित जातियों से, 19% सामान्य श्रेणी से, 15% ओबीसी और छह प्रतिशत विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों से थे. भाग लेने वाले लोगों में कम से कम 71% महिलाएं थीं.