भारत में सख्त कानून के बावजूद बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले कम नहीं हो रहे हैं. 2021 में बच्चों के खिलाफ हिंसा के कुल 1,49,404 मामले दर्ज किए गए थे.
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साल 2020 की तुलना में 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में बच्चों के खिलाफ हिंसा के दर्ज मामले 1,28,531 थे, जो कि 2021 में 16.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 1,49,404 हो गए.
देश में छोटे बच्चे ही नहीं बल्कि नाबालिग लड़कियां भी हिंसक अपराध की शिकार हो रही हैं. स्कूल या ट्यूशन जाते-आते वक्त भी उनके साथ अपराध की वारदात को अंजाम दिया जाता है. खासकर लड़कियों को अपने ही मोहल्ले या स्कूल जाते समय छेड़खानी का सामना करना पड़ता है. कई बार छात्राएं घर पर इस तरह की घटनाओं को बताने से कतराती हैं, उन्हें इस बात का डर होता है कि अगर वह इसकी शिकायत परिवार से करेगी तो उनका स्कूल जाना बंद हो जाएगा.
भारत में 89 प्रतिशत छोटे बच्चों को नहीं मिलता है पर्याप्त भोजन
2021 में आरटीआई से पता चला था कि भारत में 33 लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं. अब राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) से पता चला है कि करीब 90 प्रतिशत छोटे बच्चों को पर्याप्त खाना नहीं मिल पाता है.
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बच्चों के पोषण में बड़ी कमी
एनएफएचएस के ताजा आंकड़ों में सामने आया है कि छह से 23 महीनों की शुरूआती उम्र के करीब 89 प्रतिशत बच्चों को 'न्यूनतम स्वीकार्य भोजन' भी नहीं मिल पाता है. यह बच्चों के पोषण की व्यवस्था में एक बड़ी कमी का सबूत है.
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चार साल में बहुत कम बदले हालात
चार साल पहले एनएफएचएस के पिछले दौर में यह आंकड़ा 90.4 प्रतिशत था. यानी चार सालों में स्थिति में लगभग ना के बराबर बदलाव आया है.
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स्तनपान करने वाले बच्चे ज्यादा प्रभावित
एनएफएचएस रिपोर्ट ने स्तनपान करने वाले और नहीं करने वाले, दोनों श्रेणी के बच्चों के भोजन की जानकारी इकट्ठी की. स्तनपान करने वाले इस उम्र के 88.9 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिला. चार साल पहले यह आंकड़ा 91.3 प्रतिशत था.
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स्तनपान ना करने वाले बच्चों को लेकर भी चिंता
स्तनपान ना करने वाले इस उम्र के 87.3 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिला. यह आंकड़ा स्तनपान करने वाले बच्चों से तो कम है, लेकिन चार साल पहले की स्थिति के मुकाबले इसमें करीब दो प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 2015-16 में यह प्रतिशत 85.7 था.
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यूपी और गुजरात में सबसे बुरा हाल
देश के सभी राज्यों में उत्तर प्रदेश और गुजरात में सबसे कम (5.9 प्रतिशत) बच्चों को न्यूनतम स्वीकार्य भोजन मिला. मेघालय में सबसे ज्यादा (28.5 प्रतिशत) बच्चों को पर्याप्त भोजन मिला.
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शहरों और गांवों में अंतर
गांवों के मुकाबले शहरों में पर्याप्त भोजन पाने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा पाई गई. शहरी इलाकों में 12.1 प्रतिशत के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में इस उम्र के 10.7 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त भोजन मिल पाता है.
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पर्याप्त भोजन ना मिलने का नतीजा
छह से 59 महीनों के 67 प्रतिशत बच्चों में एनीमिया पाया गया, पांच साल से कम उम्र के 36 प्रतिशत बच्चों को शारीरिक रूप से अपनी उम्र के हिसाब से छोटा पाया गया, 19 प्रतिशत को अपनी लंबाई के हिसाब से पतला और 32 प्रतिशत बच्चों को अपनी उम्र के हिसाब से पतला पाया गया.
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बेटियों को कैसे बचाएं
बीते दिनों दिल्ली के संगम विहार में एक छात्रा की तीन युवकों ने गोली मार दी थी, बताया जा रहा है कि आरोपियों में से एक छात्रा के साथ पिछले दो साल से सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में था, लेकिन पिछले चार-पांच महीने से छात्रा उससे बात नहीं कर रही थी. पुलिस का कहना है कि उसने पीछा करने वाले आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. इसी तरह से नाबालिग लड़कियों के साथ अपराध के कुछ और गंभीर मामले हाल के दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आए हैं. झारखंड के दुमका में एक 15 साल की लड़की को एकतरफा प्यार करने वाले ने पेट्रोल छिड़क कर जिंदा जला दिया था. पांच दिनों तक पीड़ित लड़की का इलाज अस्पताल में चला लेकिन उसकी जान नहीं बच पाई.
इस तरह की एक और घटना झारखंड में अगस्त के शुरुआती दिनों में हुई थी. आरोप है कि चतरा में एक घर में जब पीड़ित लड़की सो रही थी तब एक लड़के ने उस पर एसिड अटैक किया. 12 दिनों बाद में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था.
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अपराध नहीं घट रहे
एनसीआरबी 2021 के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों के खिलाफ यौन अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, क्योंकि बच्चों के खिलाफ हर तीन अपराधों में से एक पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किया जाता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध बहुत मजबूत लिंग झुकाव दिखाते हैं, क्योंकि 12 से 16 साल के भीतर किशोर लड़कियों के साथ हुए यौन अपराध पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किए गए 99 प्रतिशत से अधिक मामलों में हैं.
चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) की सीईओ पूजा मारवाह ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे देश में कई मामले अक्सर रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं, खासकर दूरदराज के इलाकों में, इसलिए बच्चों के खिलाफ किए गए अपराधों का वास्तविक पैमाना स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली संख्या से अधिक हो सकता है."
उन्होंने कहा, "कई सरकारी उपायों के बावजूद, हमारे बच्चे कहीं भी सुरक्षित और संरक्षित बचपन के करीब नहीं हैं."
CRY का कहना है कि कोविड महामारी ने बच्चों को और अधिक असुरक्षित बनाया है और जब बात बाल संरक्षण से संबंधित मुद्दों की आती है तो और कई स्तरों पर बच्चों के लिए जोखिम कई गुना बढ़ सकता है.
बच्चों को यौन दुर्व्यवहार से बचाएं
बाल दिवस यानि 14 नवंबर 2012 को भारत में लागू हुए पॉक्सो (POCSO) कानून में बच्चों से यौन अपराधों के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान है. बच्चों को पहले से सिखाएं कुछ ऐसी बातें जिनसे वे खुद समझ पाएं कि उनके साथ कुछ गलत हुआ.
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सबसे ज्यादा शिकार बच्चे
भारत में हुए कई सर्वे में पाया गया कि देश के आधे से भी अधिक बच्चे कभी ना कभी यौन दुर्व्यवहार का शिकार हुए हैं. इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इनमें से केवल 3 फीसदी मामलों में ही शिकायत दर्ज की जाती है.
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बच्चों को समझाएं
बच्चों को समझाना चाहिए कि उनका शरीर केवल उनका है. कोई भी उन्हें या उनके किसी प्राइवेट हिस्से को बिना उनकी मर्जी के नहीं छू सकता. उन्हें बताएं कि अगर किसी पारिवारिक दोस्त या रिश्तेदार का चूमना या छूना उन्हें अजीब लगे तो वे फौरन ना बोलें.
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बच्चों से बात करें
बच्चों को नहलाते समय या कपड़े पहनाते समय अगर वे उत्सुकतावश बड़ों से शरीर के अंगों और जननांगों के बारे में सवाल करें तो उन्हें सीधे सीधे बताएं. अंगों के सही नाम बताएं और ये भी कि वे उनके प्राइवेट पार्ट हैं.
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क्या सही, क्या गलत
ना तो बच्चों को और लोगों के सामने नंगा करें और ना ही खुद उनके सामने निर्वस्त्र हों. बच्चों को नहलाते या शौच करवाते समय हल्की फुल्की बातचीत के दौरान ही ऐसी कई बातें सिखाई जा सकती हैं जो उन्हें जानना जरूरी है.
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बात करें
बच्चों के साथ बातचीत के रास्ते हमेशा खुले रखें. उन्हें भरोसा दिलाएं कि वे आपसे कुछ भी कह सकते हैं और उनकी कही बातों को आप गंभीरता से ही लेंगे. मां बाप से संकोच हो तो बच्चे अपनी उलझन किसी से नहीं कह पाएंगे.
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चुप्पी में छिपा है राज
बच्चों का काफी समय परिवार से दूर स्कूलों में बीतता है. बच्चों से स्कूल की सारी बातें सुनें. अगर बच्चा बेवजह गुमसुम रहने लगा हो, या पढ़ाई से अचानक मन उचट गया हो, तो एक बार इस संभावना की ओर भी ध्यान दें कि कहीं उसे ऐसी कोई बात अंदर ही अंदर सता तो नहीं रही है.
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सही गलत की सीख दें
बच्चों को बताएं कि ना तो उन्हें अपने प्राइवेट पार्ट्स किसी को दिखाने चाहिए और ना ही किसी और को उनके साथ ऐसा करने का हक है. अगर कोई बड़ा उनके सामने नग्नता या किसी और तरह की अश्लीलता करता है तो बच्चे माता पिता को बताएं.