दूसरी लहर में वैक्सीन निर्यात रोकने का घाटा हो रहा है?
१५ दिसम्बर २०२१
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत ने कोरोना वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगा दी थी. इसके चलते वैक्सीन की वैश्विक आपूर्ति को झटका लगा था. सीरम इंस्टीट्यूट भी विदेशों से किए अपने करार समय पर पूरे नहीं कर पा रहा था.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP
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भारत कोविड-19 वैक्सीन के अपने अतिरिक्त स्टॉक को निर्यात करने के लिए संघर्ष कर रहा है. उसके पास घरेलू मांग से कहीं ज्यादा मात्रा में कोविड वैक्सीन उपलब्ध है. मगर लॉजिस्टिक्स से जुड़ी दिक्कतों के कारण भारत के लिए इसे निर्यात कर पाना मुश्किल हो रहा है.
भारत के पुणे शहर स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन उत्पादक कंपनी है. एस्ट्राजेनेका के अलावा वह नोवावैक्स और स्पूतनिक के शॉट्स का भी उत्पादन कर रही है. एसआईआई ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह एस्ट्राजेनेका के उत्पादन को आधा कर रहा है. उत्पादन में लाई गई यह कमी तब तक जारी रहेगी, जब तक नए ऑर्डर नहीं आ जाते.
खपत से ज्यादा हुई आपूर्ति
एसआईआई के प्रमुख आदार पूनावाला ने कंफेडेरेशन ऑफ इंडिया इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सम्मेलन में कहा, "पूरी दुनिया में वैक्सीन की आपूर्ति पर्याप्त है, लेकिन टीका लगाने में समय लग रहा है." पूनावाला ने आगे कहा, "कुछ देशों ने अबतक अपनी 10 से 15 फीसदी आबादी को ही टीका लगवाया है. उन्हें यह मात्रा 60 से 70 प्रतिशत तक ले जाने की जरूरत है. मांग अभी भी है, लेकिन मासिक खपत के मुकाबले आपूर्ति ज्यादा हो गई है."
इसी कार्यक्रम में भारत के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी विनोद कुमार पॉल ने कहा, "भारत वैक्सीन देने की स्थिति में है, लेकिन सवाल है कि क्या इसकी मांग है? बहस होनी चाहिए कि आपूर्ति की रफ्तार बढ़ाने के लिए क्या किया जाए. कुछ देशों, खासतौर पर अफ्रीकी मुल्कों के टीकाकरण कार्यक्रम में कैसे तेजी लाई जाए."
महीनों तक आपूर्ति बाधित रही
अफ्रीका में बीमारियों की रोकथाम के लिए काम कर रही संस्था ने नवंबर 2021 में कहा कि वैक्सीन आपूर्ति महीनों तक बाधित रही. इसके बाद एकाएक आपूर्ति बढ़ गई. इसके चलते अफ्रीका के कई देश लॉजिस्टिक्स की समस्या से जूझ रहे हैं, जबकि अफ्रीका में टीकाकरण अभियान अभी बहुत धीमा है.
भारत की टीका यात्रा
भारत ने 21 अक्टूबर को 100 करोड़ कोरोना टीकों की यात्रा पार कर ली. 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. हालांकि इन 100 करोड़ में से अधिकतर वो लोग हैं जिन्हें सिर्फ एक टीका लगा है.
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एक अरब टीके
भारत ने 100 करोड़ टीके लगाने का मुकाम 21 अक्टूबर, 2021 को हासिल कर लिया. कोरोना के खिलाफ 279 दिनों में 100 करोड़ टीके का अहम पड़ाव हासिल किया.
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"टीम इंडिया की कामयाबी"
100 करोड़ से अधिक टीके लग जाने के अगले दिन यानी 22 अक्टूबर 2021 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सभी प्रमुख हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में आलेख लिखा. उन्होंने लिखा 100 करोड़ टीके टीम इंडिया की सफलता है. मोदी ने अपने आलेख में लिखा, "भारत ने टीकाकरण की शुरुआत के मात्र 9 महीने बाद ही 21 अक्टूबर, 2021 को टीके की 100 करोड़ खुराक का लक्ष्य हासिल कर लिया है."
22 अक्टूबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "मेड इन इंडिया की ताकत बहुत बड़ी होती है. हमारे लिए लोकतंत्र का मतलब सबका साथ है." उन्होंने कहा नई सफलता से नया आत्मविश्वास जागा है.
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ऐतिहासिक पल
100 करोड़ डोज पूरे होने पर देश की 100 ऐतिहासिक इमारतों को विशेष लाइटिंग के जरिए सजाया गया.
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सजा लालकिला
ऐतिहासिक लाल किले को भी तिरंगे वाली रोशनी से सजाया गया. इस मौके पर खादी का सबसे बड़ा तिरंगा फहराया गया.
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खास फ्लाइट
स्पाइस जेट ने देश के 100 करोड़ टीके पूरे होने पर एक खास फ्लाइट को उतारा. इस पर मोदी की तस्वीर के साथ कोरोना वॉरियर्स की भी तस्वीरें लगीं हैं.
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बीजेपी समर्थकों का जश्न
सत्ताधारी दल बीजेपी के समर्थकों ने गुजरात के अहमदाबाद में कुछ इस तरह से 100 करोड़ डोज पूरे होने का जश्न मनाया.
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राज्यों की भूमिका
नौ राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपनी पूरी 18 प्लस आबादी को टीके की एक खुराक लगा दी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार देश की 31 फीसदी वयस्क आबादी को दोनों खुराक दी जा चुकी हैं.
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चुनौती अभी बाकी
देश में लगभग तीन-चौथाई वयस्कों को अब एक टीका लग चुका है और लगभग 31 प्रतिशत को पूरी तरह से टीका लगाया गया है. हालांकि 18 साल से कम उम्र के करोड़ों भारतीयों - जो आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हैं उन्हें अभी तक टीका नहीं लगाया गया है.
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कोवैक्सीन को मान्यता का इंतजार
विश्व स्वास्थ्य संगठन से भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को अब तक मान्यता नहीं मिली है. कंपनी ने संगठन को जरूरी डेटा सौंपे हैं लेकिन अब तक कौवैक्सीन को मंजूरी का इंतजार है. भारत को उम्मीद है कि जल्द ही डब्ल्यूएचओ इसको मंजूरी दे देगा.
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अफ्रीका की कुल आबादी करीब 1.3 अरब है. इनमें से केवल आठ फीसदी आबादी को ही वैक्सीन की दोनों खुराक लगी हैं. भारत की आबादी भी लगभग इतनी ही है. लेकिन उसने 37 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण पूरा कर लिया है. भारत ने जनवरी 2022 तक अपनी समूची वयस्क आबादी को टीके की दोनों खुराक लगाने का लक्ष्य रखा है.
सीरम इंस्टीट्यूट पर निर्भरता घटी
भारत के पास बचे अतिरिक्त कोविड वैक्सीन की एक वजह कोवैक्स भी है. कोवैक्स के पास कोविशील्ड की करीब 55 करोड़ खुराक खरीदने का विकल्प है. लेकिन वह इस खरीद के लिए अब एसआईआई पर निर्भर नहीं रहा. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत ने अप्रैल 2021 में एकाएक वैक्सीन निर्यात पर रोक लगा दी थी, ताकि वह अपनी ज्यादा से ज्यादा आबादी को टीका लगा सके.
कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां
कोविड के खिलाफ वैज्ञानिकों का संघर्ष जारी है. दुनिया भर के वैज्ञानिक अलग-अलग दिशाओं में शोध कर रहे हैं ताकि वायरस को बेहतर समझा जा सके और उससे लड़ा जा सके. जानिए, हाल की कुछ सफलताओं के बारे में.
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स्मेल से कोविड टेस्ट
कोरोनावायरस से संक्रमित होने पर अक्सर मरीज की सूंघने की शक्ति चली जाती है. अब वैज्ञानिक इसे कोविड का पता लगाने की युक्ति बनाने पर काम कर रहे हैं. एक स्क्रैच-ऐंड-स्निफ कार्ड के जरिए कोविड का टेस्ट किया गया और शोध में सकारात्मक नतीजे मिले. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नाक से स्वॉब लेकर टेस्ट करने से बेहतर तरीका हो सकता है.
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मां के दूध में वैक्सीन नहीं
कोविड वैक्सीन के अंश मां के दूध में नहीं पाए गए हैं. टीका लगवा चुकीं सात महिलाओं से लिए गए दूध के 13 नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वैक्सीन किसी भी रूप में दूध के जरिए बच्चे तक नहीं पहुंचती.
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नाक से दी जाने वाली वैक्सीन
कोविड-19 की एक ऐसी वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, जिसे नाक से दिया जा सकता है. इसे बूंदों या स्प्रे के जरिए दिया जा सकता है. बंदरों पर इस वैक्सीन के सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
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लक्षणों से पहले कोविड का पता चलेगा
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो कोविड के साथ ही मनुष्य के शरीर में सक्रिय हो जाता है. कोविड के लक्षण सामने आने से पहले ही यह जीन सक्रिय हो जाता है. यानी इसके जरिए गंभीर लक्षणों के उबरने से पहले भी कोविड का पता लगाया जा सकता है. छह महीने चले अध्ययन के बाद IF127 नामक इस जीन का पता चला है.
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कैंसर मरीजों पर वैक्सीन का असर
एक शोध में पता चला है कि कैंसर का इलाज करवा रहे मरीजों पर वैक्सीन का अच्छा असर हो रहा है. हालांकि एंटिबॉडी के बनने में वक्त ज्यादा लग रहा था लेकिन दूसरी खुराक मिलने के बाद ज्यादातर कैंसर मरीजों में एंटिबॉडी वैसे ही बनने लगीं, जैसे सामान्य लोगों में.
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कोविड के बाद की मुश्किलें
वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जिन लोगों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनमें से लगभग आधे ऐसे थे जिन्हें ठीक होने के बाद भी किसी न किसी तरह की सेहत संबंधी दिक्कत का सामना करना पड़ा. इनमें स्वस्थ और युवा लोग भी शामिल थे. 24 प्रतिशत को किडनी संबंधी समस्याएं हुईं जबकि 12 प्रतिशत को हृदय संबंधी.
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भारत स्थित एसआईआई एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का बड़ा उत्पादक था. सरकार की ओर से वैक्सीन निर्यात पर लगाई गई रोक के चलते वहां से विदेश जाने वाली खेप प्रभावित हुई. उस समय कोवैक्स प्रोग्राम वैक्सीन की वैश्विक आपूर्ति के लिए बहुत हद तक एसआईआई पर निर्भर था. मगर अब हालात बदल चुके हैं. कई वैक्सीनों को मंजूरी मिल चुकी है.
इसके चलते कोवैक्स को एसआईआई के अलावा और भी कई विकल्प मिल गए हैं. इस बारे में गावी के सीईओ सेद बर्कली ने कहा, "अगर भारत चाहता है कि वह दुनिया में अग्रणी दवा निर्यातक बना रहे, तो जरूरी है कि वह मुश्किल हालात में भी आपूर्ति जारी रखे. वरना बाकी देशों को वैकल्पिक निर्यातकों की तलाश करने की जरूरत पड़ेगी."