ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की दर घटाने में भारत को कामयाबी
९ अगस्त २०२३
भारत में ग्रीनहाउस उत्सर्जन की दर में पिछले 14 सालों में उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज गिरावट आई है. यानी 2005 से 2019 तक के दौर में उत्सर्जन की दर में 33 प्रतिशत की गिरावट आई.
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मूल्यांकन करने वाले दो अधिकारियों के हिसाब से इस गिरावट के लिए नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में बढ़ोत्तरी और वन क्षेत्र में वृद्धि को जिम्मेदार माना जा सकता है. थर्ड नेशनल कम्युनिकेशन (टीएनसी) नाम की ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र में पेश की गई है. इसमें यह भी पता चला है कि भारत उत्सर्जन को कम करने की सही राह पर है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भारत ने उत्सर्जन कम करने के लिए जलवायुपर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को जो प्रतिबद्धता दी थी, उसे वह सही समय से पूरा कर पाएगा.
उत्सर्जन में सालाना 3 फीसदी की कमी
इसके तहत 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत तक कम करना होगा. इसी तरह कई देश अपनी टीएनसी रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं. इसके जरिए यह देश यूएनएफसीसीसी को उत्सर्जन को काम करने के अपने प्रयासों पर अपडेट करेंगे. भारत की उत्सर्जन में कमी की औसत दर में 2016-2019 में 3 प्रतिशत सालाना की वृद्धि हुई. यह 2014-2016 की अवधि में केवल लगभग 1.5 प्रतिशत थी. यह अब तक की सबसे अधिक कमी है जिसकी वजह नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में सरकार के दबाव को माना जा सकता है. हालांकि ऊर्जा मिश्रण में जीवाश्म ईंधन का दबदबा अभी भी कायम है.
ये है दुनिया के सबसे ज्यादा नष्ट किए गए जंगलों में से एक
दक्षिण अमेरिका के ग्रान चाको जंगलों जितना खतरा शायद ही दुनिया के किसी दूसरे जंगल के ऊपर मंडरा रहा होगा. मवेशियों को पालने और सोयाबीन उगाने के लिए यहां रोजाना पेड़ों को काटा जाता है.
तस्वीर: AGUSTIN MARCARIAN/REUTERS
दक्षिण अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा जंगली इलाका
ग्रान चाको को चाको भी कहा जाता है. यह अर्जेंटीना, पैराग्वे, बोलीविया और ब्राजील के हिस्सों में फैला दक्षिण अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा जंगली इलाका है. यहां गर्मियों में काफी गर्मी और उमस होती है और सर्दियां कम ठंडी और कभी कभी काफी शुष्क होती हैं. यहां वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा झाड़ियां और पेड़ काटे जा रहे हैं ताकि बड़े सोयाबीन और मवेशियों के लिए फार्म बनाए जा सकें.
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प्राकृतिक लय का टूटना
नूले पिलागा मूल निवासी समुदाय की सदस्य हैं. वो और उनके भाई होसे रोलांदो फर्नांदेज उत्तरी अर्जेंटीना में तरबूज और आलू की खेती करते हैं. दोनों अक्सर ग्रान चाको के जंगलों में जाते हैं. उनके लिए इन पेड़ों का बहुत महत्व है. ये जंगल जीवन की प्राकृतिक लय तय करने में मदद करते हैं, खाना, पानी और ठंडक देते हैं. यह दक्षिण अमेरिका के कम आबादी वाले इलाकों में से है.
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नजदीकी संबंध
होसे रोलांदो फर्नांदेज खुद ही आलू उगाते हैं. वो कहते हैं कि यहां के पेड़ों से उनके परिवार का संबंध लगभग आध्यात्मिक है. उनकी बहन नूले कहती हैं, "इन जंगलों की भूमिका को हमें महत्व देना चाहिए. मूलनिवासी लोगों का मानना है कि यह जमीन हमारा घर है. धरती हमारी मां है क्योंकि हम उसी की मदद से उगाते हैं और खाते हैं."
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लोगों का विस्थापन
लेकिन इस जगह पर दबाव बढ़ता जा रहा है और कुछ मामलों में मूल निवासी और छोटे स्तर पर व्यापार करने वाले विस्थापित हो रहे हैं. मर्कोसुर देशों (अर्जेंटीना, ब्राजील, पैराग्वे और उरुग्वे) और यूरोपीय संघ के बीच होने वाले एक नए व्यापार समझौते के तहत ग्रान चाको से निर्यात बढ़ सकता है. इससे और पेड़ काटे जाएंगे, हालांकि पेड़ों की कटाई को सीमित रखने के लिए ईयू द्वारा कड़े नियम लागू किए जाने की संभावना है.
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आर्थिक दबाव
कई देशों ने पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए आयात नियम लागू किये हैं, जिनमें अर्जेंटीना का तथाकथित "2007 का वन कानून" भी शामिल है. लेकिन इलाके में सभी लोग पेड़ों की कटाई के खिलाफ नहीं हैं: कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि इलाके में रोजगार के सृजन के लिए कृषि निर्यात जरूरी हैं. यहां की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी में जिंदगी गुजार रही है.
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स्थानीय माइक्रोक्लाइमेट पर असर
ग्रान चाको में बकरियां चराने वाली किसान तेओफीला पाल्मा ने रॉयटर्स को बताया कि हाल में हुई पेड़ों की कटाई का स्थानीय माइक्रोक्लाइमेट पर काफी असर पड़ा है. वह कहती हैं, "पेड़ों के काटे जाने के बाद से तापमान और ज्यादा ही रहता है. और उत्तर से तेज हवाएं आती हैं और हम इस बारे में कुछ भी नहीं कर पाते हैं."
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चारागाह का नुकसान
किसानों की शिकायत है कि कई स्थानीय उत्पादों ने अपने मवेशी गंवा दिए हैं क्योंकि पेड़ों के काटे जाने से मिट्टी का कटाव हुआ है और चारागाहों का विकास रुका है. नूले कहती हैं, "समझौता आर्थिक और व्यापार की दुनिया वालों के लिए है, मूल निवासियों के लिए नहीं." वो कहती हैं, "उन्होंने हमारे बारे में कभी सोचा ही नहीं." (क्लाउडिया डेन, रॉयटर्स के साथ)
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भारत पर उत्सर्जन घटाने का दबाव
उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने में जो प्रगति हुई है, वह विकसित देशों की ओर से आ रहे कोयले के इस्तेमाल को बंद करने को लेकर दबाव को काम करने में भारत की मदद करेगा. एक अधिकारी ने कहा कि भारत की उत्सर्जन तीव्रता में भारी कमी के कई कारण हैं. इनमेंवन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि और गैर-जीवाश्म उत्पादन को बढ़ावा देने वाली योजनाएं शामिल हैं. साथ ही औद्योगिक, ऑटोमोटिव और ऊर्जा क्षेत्रों में उत्सर्जन को निशाना बनाना भी एक वजह है.
2019 तक भारत में जंगलों और पेड़ों का क्षेत्रफल 24.56 प्रतिशत या 80.73 मिलियन हेक्टेयर था. हाल ही में भारत भी ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है. यह हाइड्रोजन नवीकरणीय ऊर्जा को इस्तेमाल कर पानी के अणुओं को विभाजित करके बनाया जाता है. एक अन्य अधिकारी के हिसाब से रिपोर्ट को अभी तक संघीय कैबिनेट ने अनुमोदित नहीं किया गया है.
एचवी/एनआर (रॉयटर्स)
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