केंद्र सरकार का अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का फैसला अवैध करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस को सत्ता दे दी. उत्तराखंड के बाद यह केंद्र सरकार की दूसरी बड़ी हार है.
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भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी सरकार दोनों के लिए यह करारा झटका है. ऐसा झटका जो पहले एक बार धीरे से लगा था, इस बार जोर से लगा है. अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने को अवैध और असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की सरकार को बहाल कर दिया है. मोदी सरकार ने दो कांग्रेस शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया और दोनों में उसे मुंह की खानी पड़ी. इससे पहले उत्तराखंड में भी यही हुआ था और तब भी सुप्रीम कोर्ट ने यही फैसला दिया था. कांग्रेस के लिए यह सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरी जीत है.
अरुणाचल प्रदेश में इस साल 26 जनवरी को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर 2015 वाली स्थिति बहाल कर दी है जबकि राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. नाबम टुकी की राज्य सरकार को राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया था क्योंकि उसके 47 में से 21 विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद टुकी ने कहा कि यह लोकतंत्र की जीत है. उन्होंने कहा, "यह लोकतंत्र की जीत है. कानून ने हमारी रक्षा की है. इस देश की रक्षा की है."
क्या हुआ था
बीते दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने बगावत कर दी थी. इसके बाद राज्यपाल जेपी राजखोवा ने खुद ही विधानसभा का सत्र बुलाया. होटल में हुए इस आयोजन में विपक्षी विधायकों ने बागियों के साथ मिलकर मुख्यमंत्री टुकी और विधानसभा अध्यक्ष नाबम रेबिया को ही बर्खास्त कर दिया था. यह आयोजन एक होटल में हुआ क्योंकि विधानसभा को स्पीकर ने बंद करने का आदेश दिया था.
राज्यपाल ने अपनी कार्रवाई को सही बताया और तर्क दिया कि स्पीकर पक्षपात कर रहे थे. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अपना बहुमत खो चुके हैं इसलिए सरकार को बर्खास्त कर दिया जाए. केंद्र सरकार ने उनकी बात मानते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी.
19 फरवरी को कांग्रेस के बागी विधायकों के नेता कालिखो पुल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई. उनके समर्थन में 20 कांग्रेसी बागियों के अलावा बीजेपी के 11 विधायक भी थे.
और कहां-कहां चूकी है सरकार, जानिए तस्वीरों में
कहां-कहां चूके मोदी
पहले दो साल में मोदी सरकार ने जमकर सुर्खियां बटोरी हैं. लेकिन ये सुर्खियां विवादों की वजह से ज्यादा रहीं. गिनती में तो ये विवाद बहुत ज्यादा हैं, लेकिन अभी जिक्र 10 सबसे बड़े विवादों का.
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आईआईटी में संस्कृत
इसी साल अप्रैल में शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में कहा कि आईआईटी से संस्कृत पढ़ाने को कहा गया है. इस प्रस्ताव का देशभर में विरोध हुआ. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि एचआरडी मिनिस्ट्री का नाम बदलकर हिंदू राष्ट्र डेवलपमेंट मिनिस्ट्री कर दिया जाना चाहिए.
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प्रधानमंत्री की डिग्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए और एमए की डिग्रियों को लेकर देश में जमकर विवाद हुआ. प्रधानमंत्री की शिक्षा पर एक आरटीआई का जवाब न मिलने से यह विवाद शुरू हुआ. आम आदमी पार्टी का दावा है कि उनकी डिग्री फर्जी है. अरुण जेटली और अमित शाह को सामने आकर सफाई देनी पड़ी.
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उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन
9 कांग्रेसी विधायकों के बागी होने पर इसी साल मार्च में केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार के इस फैसले को गलत करार दिया. मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बहुमत साबित करके फिर से सरकार बना ली.
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कन्हैया विवाद
फरवरी 2016 में जेएनयू छात्र संगठन के अध्यक्ष कन्हैया को राजद्रोह का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया. इसके विरोध में देशभर में प्रदर्शन शुरू हो गए. दो और छात्रों को गिरफ्तार किया गया. शिक्षा मंत्री ने दखल देने से इनकार कर दिया. बाद में तीनों छात्र जमानत पर रिहा हुए.
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हैदराबाद यूनिवर्सिटी विवाद
शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी की पांच चिट्ठियों के बाद दलित छात्रों पर हैदराबाद यूनिवर्सिटी ने कार्रवाई की और पांच छात्रों को सस्पेंड कर दिया. उनमें से एक रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली. दलित स्कॉलर वेमुला की मौत ने देशभर में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला छेड़ दिया.
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अरुणाचल संकट
बीते साल दिसंबर में अरुणाचल की कांग्रेस सरकार से कुछ बागी विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया. सरकार गिर गई. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राज्यपाल की मदद से केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को अस्थिर किया. बाद में बागी विधायकों ने बीजेपी की मदद से सरकार बना ली.
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असहिष्णुता और सम्मान वापसी
देश में बढ़ती असहिष्णुता का आरोप लगाकर देश के कई जानेमाने लेखकों, कलाकारों, कवियों, वैज्ञानिकों और फिल्मकारों ने अपने-अपने सम्मान लौटा दिए. जिसके बाद देश में ऐसा विवाद खड़ा हुआ कि बंटवारा स्पष्ट नजर आने लगा.
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ललित मोदी के संबंध
केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के भगोड़े ललित मोदी की मदद करने की बात सामने आने के बाद केंद्र सरकार विवादों में घिर गई. सुषमा स्वराज ने कहा कि उन्होंने मानवीय आधार पर मदद की. इसके बाद कई हफ्तों तक संसद ठप रही.
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गोमांस पर बैन
बीते साल हरियाणा और महाराष्ट्र में गोहत्या को लेकर कड़े कानूनों के लागू होने का काफी विरोध हुआ. यहां तक कि यह मुद्दा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित रहा. बीजेपी के कई नेताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों के भी बयान आए.
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10 लाख का सूट
बीते साल जनवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सूट पहना उस पर उनका नाम लिखा था. ऐसे आरोप लगे कि यह सूट 10 लाख रुपये में बना है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और सूट-बूट की सरकार कहकर तीखे बाण चलाए.
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सुप्रीम कोर्ट का दखल
विधानसभा अध्यक्ष रेबिया ने राज्यपाल के विधानसभा सत्र बुलाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने उनका पक्ष सही ठहराते हुए कहा कि राज्यपाल का फैसला अवैध और असंवैधानिक था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 9 दिसंबर 2015 के बाद विधानसभा ने जो भी फैसले किए वे सभी रद्द समझे जाएं.
उत्तराखंड जैसा हाल
उत्तराखंड में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने सरकार का साथ छोड़ दिया था. बजट से जुड़े एक प्रस्ताव पर 18 मार्च को 9 कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी के साथ वोटिंग की थी. इसके बाद 27 मार्च को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. लेकिन स्पीकर ने बागी विधायकों को अयोग्य करार दे दिया. हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पीकर के इस फैसले को सही ठहराया. इसके बाद ही विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग संभव हो पाई जिसे जीतकर कांग्रेस की हरीश रावत सरकार वापस सत्ता में आ गई.
प्रधानमंत्रियों की छवियां
नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के बतौर दो छवियां हैं. 'मेक इन इंडिया' वाले 'दूरदृष्टा' की और अपने ही नाम का सूट पहने वाले 'दिखावटी' की. मोदी के बहाने एक नजर कुछ पुराने प्रधानमंत्रियों पर.
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जवाहरलाल नेहरू
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है. उनकी छवि एक पढ़े लिखे और दूरदृष्टा प्रधानमंत्री की रही है. भारतीय राजनीति में पिछले कुछ दशकों में नेहरू विरोधी विचारधारा के उभार के बाद उनकी एक नकारात्मक छवि को भी काफी प्रचार मिला है.
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लाल बहादुर शास्त्री
नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री की सादी, जमीन से जुड़े, मजबूत इरादों वाली छवि थी. 1965 के पहले भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके राजनीतिक निर्णयों ने उनकी नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता को परवान चढ़ा दिया. हालांकि ताशकंद समझौते के चलते उनकी आलोचना भी हुई.
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इंदिरा गांधी
भारत की एक मात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दो बार प्रधानमंत्री बनीं. नेहरू की इस इकलौती संतान को आइरन लेडी के नाम से जाना जाता था. दूसरी तरफ 1975 में लगे आपातकाल और उस दौर के कठोर दमन ने इंदिरा गांधी की छवि में नकारात्मक पक्ष भी जोड़ा.
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राजीव गांधी
राजीव गांधी अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद महज 40 साल की उम्र में देश के प्रधानमंत्री बने. उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों में 542 में से 411 सीटों की एतिहासिक जीत दर्ज की. लेकिन बोफोर्स घोटाले, भोपाल गैस कांड आदि ने उनकी छवि पर नकारात्मक असर डाला और अगले चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
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नरसिम्हा राव
गैर हिंदी भाषी दक्षिण भारत से आने वाले पहले प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भारत में 'आर्थिक सुधारों का पितामह' कहा जाता है. लेकिन इन्हीं सुधारों के लिए उनकी आलोचना भी होती है. साथ ही उनके शासन काल में हिंदू चरमपंथियों की ओर से ढहा दी गई बाबरी मस्जिद भी एक बढ़ा विवाद रहा.
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अटल बिहारी वाजपेयी
वाजपेयी की छवि एक गंभीर वक्ता और कुशल राजनीतिज्ञ की रही है. वह काफी लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे. वह पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. कारगिल युद्ध के दौरान हुए कफन घोटाले ने उनकी छवि में नकारात्मक आयाम जोड़ा.
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मनमोहन सिंह
सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद से इनकार के बाद यूपीए सरकार के नेतृत्व के लिए जिस नाम को चुना गया उसकी छवि देश के सबसे उच्चशिक्षित अर्थशास्त्री की थी. लेकिन 10 साल बाद जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद छोड़ रहे थे, उनकी छवि चुप्पी साधे इशारों पर चलने वाली कठपुतली की थी, जिसकी सरकार पर भ्रष्टाचार के सबसे बड़े आरोप थे.