सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, एक पेड़ की उपयोगिता कितनी?
१९ फ़रवरी २०२०
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब समय आ गया है कि ऑक्सीजन देने के आधार पर पेड़ की उपयोगिता जानी जाए. दरअसल पश्चिम बंगाल में पेड़ों की कटाई के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने एक समिति गठित की है जिससे पेड़ों को बचाने के विकल्प तलाशने को कहा गया है.
पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा पर पांच रेल ओवर ब्रिज निर्माण के लिए हेरिटेज पेड़ों की कटाई का मामला कलकत्ता हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कलकत्ता हाईकोर्ट की तरफ से पेड़ों की कटाई पर रोक नहीं लगने के बाद एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रैटिक्स राइट्स (एपीडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
इसी मुद्दे पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि हरियाली को संरक्षित करना जरूरी है. चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, "हम यह देखना चाहेंगे कि क्या हम कुछ सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं. हम कुछ सुझाव चाहेंगे. पेड़ों को काटे बिना रास्ता बनाने का कोई तरीका हो सकता है. यह थोड़ा अधिक खर्चीला हो सकता है, लेकिन अगर पेड़ों की महत्ता या उपयोगिता समझी जाए तो बेहतर होगा."
कोर्ट चाहता है कि वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों और पर्यावरणविदों की मदद से यह पता लगाया जाए कि एक पेड़ अपने जीवनकाल में कितनी ऑक्सीजन छोड़ता है, उसकी आर्थिक और प्राकृतिक उपयोगिता क्या है और इसका वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए. एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रैटिक्स राइट्स (एपीडीआर) के बप्पा भुइया कहते हैं, "जब से पेड़ काटने की बात हो रही है तभी से हमलोग पेड़ों को बचाने की मुहिम में लगे हुए हैं. हमने विधायक-सांसद और पीडब्ल्यूडी तक के अधिकारियों से पेड़ों को बचाने और वैकल्पिक रास्ता निकालने की गुहार लगाई है. जब हमारी बात नहीं सुनी गई तब हमने पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन चलाया और हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. लेकिन उस दौरान कुछ पेड़ भी काट दिए गए."
भुइया बताते हैं कि पेड़ों की कटाई का मामला हाईकोर्ट में गया और सुनवाई के बाद पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई. एपीडीआर का कहना है कि राज्य सरकार ने मामले को दूसरा पहलू देते हुए कहा कि सड़क चौड़ा करने के लिए पेड़ नहीं काटे जा रहे हैं बल्कि रेल ओवर ब्रिज बनाने के लिए 356 के करीब पेड़ काटे जा रहे हैं. राज्य सरकार की दलील थी कि रेलवे लाइन के पास 800 मौत के कारण वहां ओवर ब्रिज बनाने का फैसला लिया गया है.
भुइया कहते हैं, "हाईकोर्ट में हमने साबित किया कि रेल ओवर ब्रिज बनाना रास्ता चौड़ा करने का ही हिस्सा है. साथ ही हमने बताया कि सरकार पेड़ काटने के नियमों को तोड़ रही है. हाईकोर्ट ने दो अफसरों को वहां भेजकर रिपोर्ट मंगाई थी. अफसरों ने कोर्ट को 71 पन्नों की रिपोर्ट भी सौंपी थी जो हमारे पक्ष में थी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रिटायर होने के बाद नए चीफ जस्टिस ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला दिया. हालांकि हाईकोर्ट ने भी माना था कि सरकार ने नियमों को तोड़ा है लेकिन हाईकोर्ट ने चौंकाने वाला आदेश देते हुए कहा कि विकास के लिए पेड़ों का काटना जरूरी है. इसके बाद हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की."
जेस्सोर रोड के पेड़ों की अहमियत
दरअसल जेस्सोर रोड पर जो पेड़ हैं वह हेरिटेज की श्रेणी में आते हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग 112 पर करीब 4036 ऐसे पेड़ हैं जो सालों से वहां खड़े हैं और कुछ पेड़ ऐतिहासिक महत्व भी रखते हैं. राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर 59 किलोमीटर लंबे रास्ते को चार लेन में तब्दील करना चाहती है.
आलोचकों का कहना है उत्तर 24 परगना के गैर जंगल क्षेत्र के लिए ये पेड़ जीवनदायक से कम नहीं हैं. जानकार कहते हैं कि पहले रेल ओवर ब्रिज बनाने के लिए 356 पेड़ काटने की योजना है और उसके बाद दूसरे चरण में रास्ता चौड़ा करने के नाम पर आगे पेड़ों की कटाई होगी. वे कहते हैं कि सरकार और एजेंसियों दूसरे विकल्पों को नजरअंदाज कर रही है जिसमें समानांतर रेलवे लाइन का उचित उपयोग करना, रेलवे ट्रैक पर मौजूद 5 क्रॉसिंग को ऊंचा करना, लेन में आने वाले पेड़ों को डिवाइडर के रूप में इस्तेमाल करना या फिर नया बाइपास विकसित करना शामिल है. उनका कहना है कि सरकार जनसुनवाई और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन की मांग पर ध्यान नहीं दे रही है.
कोलकाता स्थित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सत्यकी हलदर कहते हैं, "देश की यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि जिन पर पेड़ों को बचाने की जिम्मेदारी वही पेड़ों को कटने में मदद दे रहे हैं. विकास के लिए वैकल्पिक रास्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह सभी पेड़ सदियों पुराने हैं."
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