भारत ने तालिबान के साथ औपचारिक तौर पर बातचीत शुरू कर दी है. कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से भारतीय दूतावास में ही मुलाकात की.
विज्ञापन
अमेरिका के अफगानिस्तान में युद्ध समाप्ति के ऐलान के साथ ही भारत ने अफगानिस्तान के नए शासक तालिबान से बातचीत शुरू कर दी है. पहले भी ऐसी खबरें आई थीं कि भारतीय अधिकारी तालिबान के संपर्क में हैं लेकिन भारत सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की थी. 15 अगस्त को काबुल पर नियंत्रण के बाद यह भारत का तालिबान के साथ पहला आधिकारिक संपर्क है.
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "आज कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. तालिबान के आग्रह पर यह बैठक भारत के दूतावास में हुई.”
कई मुद्दों पर हुई बात
विदेश मंत्रालय के मुताबिक इस बैठक में भारतीयों की वापसी समेत कई मुद्दों पर बातचीत हुई. बयान में कहा गया, "बातचीत रक्षा, सुरक्षा और अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की जल्दी वापसी पर केंद्रित रही. भारत आना चाह रहे अफगान नागरिकों, खासकर अल्पसंख्यकों की यात्रा का मुद्दा भी उठा.”
तस्वीरों मेंः मिशन काबुल
तस्वीरों में मिशन काबुल
अगस्त के मध्य में तालिबान के नियंत्रण में आने के बाद से हजारों लोगों को अफगानिस्तान से निकाला गया है. लेकिन कई हजार लोग पीछे ही छूट जाएंगे. वे देश में रहेंगे और तालिबान के बदले के जोखिम से घिरे रहेंगे.
तस्वीर: U.S. Air Force/Getty Images
दूतावास कर्मियों को बचाते अमेरिकी हेलीकॉप्टर
जैसे ही तालिबान ने राजधानी काबुल में दाखिल किया, एक अमेरिकी चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टर 15 अगस्त, 2021 को काबुल में अमेरिकी दूतावास से अमेरिकी कर्मचारियों को निकालने के काम में लग जाता है. जर्मनी ने लोगों को निकालने की कोशिशों में मदद के लिए काबुल में छोटे हेलीकॉप्टर भेजे हैं.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचने की जद्दोजहद
काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 16 अगस्त और उसके बाद के दिनों में हजारों लोग अफगानिस्तान छोड़ने की उम्मीद में पहुंचे. लोग दीवार फांदते, कंटीली तारों को पार करते दिखे. वे किसी तरह से देश छोड़ने की कोशिश करते नजर आए.
तस्वीर: Reuters
तालिबान से बचने को बेताब
अफगानिस्तान से भागने की कोशिशों में सैकड़ों लोग अमेरिकी वायुसेना के विमान के साथ-साथ दौड़ने लगे. कुछ लोग विमान से लिपट गए. उन्हें नहीं पता था कि यह कितना खतरनाक हो सकता है. विमान से गिरकर कुछ लोगों की मौतें भी हुईं.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
दो दशक बाद तालिबान की वापसी
दो दशकों तक अफगानिस्तान से तालिबान एक तरह से गायब था. लेकिन जैसे ही अमेरिका, जर्मनी और अन्य देशों के सैनिकों की वापसी शुरू हुई तालिबान तेजी से प्रांतों पर कब्जा जमाने लगा. ये तालिबान लड़ाके अफगान राजधानी पर कब्जा करने के कुछ दिनों बाद काबुल के एक बाजार में गश्त करते दिखाई दे रहे हैं.
तस्वीर: Hoshang Hashimi/AFP
ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाने की कोशिश
लोग किसी तरह से अफगानिस्तान से बाहर जाना चाहते हैं. इस वायुसेना के विमान में क्षमता से अधिक लोग बैठे हैं. जर्मन वायु सेना के इस परिवहन विमान में लोगों ने उज्बेकिस्तान के ताशकंद के लिए उड़ान भरी. काबुल से निकलने वाले अधिकांश सैन्य विमान उज्बेकिस्तान, दोहा या इस्लामाबाद जाते हैं जहां से यात्रियों को अलग-अलग गंतव्यों के लिए भेजा जाता है.
तस्वीर: Marc Tessensohn/Bundeswehr/Reuters
तालिबानी शासन में जीवन
तालिबान के देश पर कब्जा करने के कुछ दिनों बाद 23 अगस्त को बुर्का पहने अफगान महिलाएं काबुल के एक बाजार में खरीदारी करती हुईं. महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों को देश में अब काफी दिक्कतें पेश आ रही हैं.
तस्वीर: Hoshang Hashimi/AFP
सुरक्षित हाथों में
24 अगस्त, 2021 को काबुल में हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर निकासी अभियान के दौरान एक अमेरिकी मरीन एक बच्चे को उसके परिवार के पास ले जाता हुआ. अमेरिका कह चुका है कि वह 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिकों को देश से हटा लेगा.
तस्वीर: Sgt. Samuel Ruiz/U.S. Marine Corps/Reuters
जब बचने में कामयाब हुए
अफगानिस्तान से भागने में कामयाब होने वालों में से कई ने मिलीजुली प्रतिक्रियाएं दी हैं. वे कहते हैं कि वे भाग्यशाली महसूस करते हैं कि वे सुरक्षित रूप से अफगानिस्तान से बाहर आ गए. लेकिन तालिबान शासन से बचने में असमर्थ हजारों लोग के भाग्य पर संकट के बादल मंडरा रहे है. इस परिवार को काबुल से निकाला गया है और एक अमेरिकी शरणार्थी केंद्र में ले जाया जा रहा है.
तस्वीर: Anna Moneymaker/AFP/Getty Images
8 तस्वीरें1 | 8
भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया. मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, "राजदूत मित्तल ने भारत की यह चिंता भी जाहिर की कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी सूरत में भारत के खिलाफ या आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए. तालिबान के प्रतिनिधि ने भारतीय राजदूत को भरोसा दिलाया कि इन चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा.”
दीपक मित्तल भारत के वरिष्ठ कूटनीतिज्ञ हैं. वह विदेश मंत्रालय में जॉइंट सेक्रटरी (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान) रह चुके हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार मुताबिक भारतीय विदेश मंत्रालय में मौजूदा जॉइंट सेक्रटरी (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान) जे पी सिंह के साथ मित्तल पहले भी दोहा में तालिबान नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मिले थे.
विज्ञापन
तालिबान का बयान
मित्तल से बैठक से पहले शनिवार को स्तानिकजई ने अपने बयान में भारत का जिक्र किया था. भारत को ‘इस उप महाद्वीप के लिए बेहद महत्वपूर्ण' बताते हुए स्तानिकजई ने कहा था कि तालिबान पहले की तरह ही भारत और अफगानिस्तान के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंध जारी रखना चाहता है.
स्तानिकजई का यह बयान सोशल मीडिया पर 46 मिनट के एक वीडियो के रूप में जारी किया गया था, जिसे अफगानिस्तान के मिल्ली टीवी पर भी प्रसारित किया गया था. बीते रविवार ही खबर आई थी कि भारत की अध्यक्षता वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने एक प्रस्ताव में तालिबान को आतंकवादी संगठन के रूप में नहीं लिखा था.
देखेंः अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
अफगानिस्तान कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की पृष्ठभूमि रहा है. देश को और करीब से जानने के लिए ये 10 फिल्में मददगार हो सकती हैं.
तस्वीर: 2007 Universal Studios
हवा, मरयम, आएशा (2019)
अफगान निदेशक सहरा करीमी की यह फिल्म वेनिस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी. इसमें काबुल में रहने वाली तीन महिलाओं की कहानी है, जो अपने-अपने तरीकों से गर्भावस्था के हालात से जूझती हैं. सहरा करीमी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक खुले खत में दुनियाभर से उनके देश की मदद का आग्रह किया था.
तस्वीर: http://hava.nooripictures.com
ओसामा (2003)
1996-2003 के दौरान अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. ज्यादातर क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने पर पाबंदी थी. ऐसे में जिन परिवारों के मर्द मारे जाते, उनके सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जातीं. ओसामा ऐसी किशोरी की कहानी है जो अपने परिवार की मदद के लिए लड़का बनकर काम करती है. 1996 के बाद यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसे पूरी तरह अफगानिस्तान में फिल्माया गया.
तस्वीर: United Archives/picture alliance
द ब्रैडविनर (2017)
आयरलैंड के स्टूडियो कार्टून सलून ने ‘ओसामा’ से मिलती जुलती कहानी पर एनिमेशन फिल्म बनाई थी. यह डेब्रा एलिस के मशहूर उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म को ऑस्कर में नामांकन मिला था.
खालिद हुसैनी के उपन्यास पर जर्मन-स्विस फिल्मकार मार्क फोरस्टर ने यह फिल्म बनाई थी जो अफगानिस्तानी जीवन के बहुत से पहलुओं का संवेदनशील चित्रण है.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
कंदहार (कंधार) (2001)
ईरान के महान फिल्मकारों में शुमार मोहसिन मखमलबाफ की यह फिल्म कनाडा में रहने वालीं एक ऐसी अफगान महिला की कहानी है जो अपनी बहन को खुदकुशी से रोकने के लिए घर लौटती है. फिल्म का प्रीमियर कान फिल्म महोत्सव में हुआ था.
तस्वीर: Mary Evans Arichive/imago images
एट फाइव इन द आफ्टरनून (2003)
मोहसिन मखमलबाफ की बेटी समीरा ने अफगान महिलाओं पर यह फिल्म बनाई जिसमें देश का राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देखती एक अफगान महिला की कहानी है.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture alliance
इन दिस वर्ल्ड (2002)
यह फिल्म एक अफगान शरणार्थी की पाकिस्तान होते हुए लंदन पहुंचने की अवैध यात्रा की कहानी कहती है. माइकल विंटरबॉटम ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री के अंदाज में फिल्माया था. फिल्म ने बर्लिन में गोल्डन बेयर और BAFTA का सर्वश्रेष्ठ गैर-अंग्रेजी भाषी फिल्म का पुरस्कार जीता था.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
लोन सर्वाइवर (2013)
यह फिल्म अमेरिकी नेवी सील मार्कस लटरेल की किताब पर आधारित है जिसमें 2005 में कुनार प्रांत में हुए ‘ऑपरेशन रेड विंग्स’ की कहानी बयान की गई है. उस अभियान में लटरेल के तीन साथी मारे गए थे और वह अकेले लौट पाए थे.
तस्वीर: Gregory E. Peters/SquareOne/Universum Film/dpa/picture alliance
रैंबो lll (1988)
सिल्वेस्टर स्टैलन की मशहूर सीरीज रैंबो की तीसरी फिल्म में नायक रैंबो अपने पूर्व कमांडर को बचाने के लिए अफगानिस्तान जाता है.
तस्वीर: United Archives/IFTN/picture alliance
चार्ली विल्सन्स वॉर (2007)
यह फिल्म तब की कहानी है जब अमेरिका ने रूस के खिलाफ मुजाहिद्दीन की मदद की थी, जिन्होंने बाद में तालिबान और अल कायदा जैसे संगठन बनाए. टॉम हैंक्स अभिनीत यह फिल्म माइक निकोलस ने निर्देशित की और अपने समय की बेहतरीन फिल्मों में गिनी गई.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
10 तस्वीरें1 | 10
तालिबान 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर राज कर चुका है. उस प्रशासन में स्तानिकजई कार्यवाहक सरकार के उप विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्त हुआ था. तब भी स्तानिकजई ने भारत के साथ इसी तरह के संबंध चाहे थे लेकिन भारत ने न तो उससे मुलाकात की थी और न तालिबान की सरकार को मान्यता दी थी. तालिबान की उस सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली थी.
भारत की उलझन
तालिबान के पिछले शासन के साथ भारत के अनुभव बहुत कड़वे रहे हैं. 1999 में भारत की इंडियन एयरलाइंस के विमान का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और वे उसे अफगानिस्तान ले गए थे. अपने लोगों को छुड़ाने के लिए भारत को तीन पाकिस्तानी आतंकी छोड़ने पड़े थे.
पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया है. देश के सभी 34 राज्यों में उसकी छोटी बड़ी कोई परियोजना चल रही है. इसमें काबुल में बना नया संसद भवन भी शामिल है, जिस पर पिछले महीने तालिबान ने कब्जा कर लिया.
दक्षिण एशिया पर तीन किताबें लिख चुकीं पूर्व रॉयटर्स पत्रकार मायरा मैकडॉनल्ड कहती हैं कि तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण हो जाना भले ही भारत के लिए धक्का था, लेकिन नई दिल्ली को अभी खेल से बाहर नहीं समझा जा सकता.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "यह इतिहास का दोहराव नहीं है. इस बार हर कोई बहुत सावधान रहेगा ताकि पिछली बार की तरह अफगानिस्तान में आतंकवाद का गढ़ स्थापित न हो जाए. और फिर, भारत पाकिस्तान से कहीं ज्यादा बड़ी आर्थिक ताकत है."
तालिबान भी इस बात को समझता है. उसके एक वरिष्ठ सदस्य ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि गरीब अफगानिस्तान को ईरान, अमेरिका और रूस के अलावा दक्षिण एशियाई देशों की मदद की भी जरूरत होगी.