केरल के इडुक्की जिले के चाय बागान में भूस्खलन में मरने वालों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है. एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है मलबे में अब भी कुछ लोग दबे हो सकते हैं. केंद्र और राज्य सरकार ने मुआवजे का ऐलान किया है.
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रविवार 9 अगस्त को भूस्खलन में तबाह हुए मकानों के मलबे से 17 और लोगों के शव निकाले गए. हादसे में मृतकों की संख्या बढ़कर अब तक 43 हो चुकी है. प्रशासन का कहना है कि कुछ शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. रविवार को केरल के वन मंत्री के राजू ने हादसे वाली जगह का दौरा किया. भूस्खलन के कारण चाय बागान कर्मियों के 20 मकान नष्ट हो गए. मलबे में दबे लोगों की तलाश के लिए खोजी कु्त्तों की मदद ली जा रही है. शुक्रवार को तड़के भारी बारिश के बाद भूस्खलन हुआ था. उस वक्त चाय बागान में काम करने वाले गहरी नींद में थे.
इडुक्की जिले के अधिकारी एच दिनेश ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हमने भारी बारिश की वजह से बचाव कार्य रोक दिया है...यह ऑपरेशन आखिरी शव के मिलने तक जारी रहेगा." लगातार हो रही बारिश के कारण केरल के विभिन्न निचले इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है. भारतीय मौसम विभाग ने राज्य के कासरगोड, कन्नूर, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पपुरम और अलापुझा जिलों में भारी बारिश का अनुमान जताया है. मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि इन जिलों में अगले 24 घंटों में 20 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होने की संभावना है. हालांकि उम्मीद है कि मंगलवार तक बारिश कम हो जाएगी.
वन मंत्री के राजू ने कहा, "राज्य की सभी एजेंसियां और एनडीआरएफ की 200 सदस्यीय टीमें तलाशी अभियान में शामिल हैं. लगातार बारिश और खराब दृश्यता के कारण सर्च ऑपरेशन में दिक्कत हो रही.'' केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने हादसे में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना जाहिर करते हुए मुआवजे का ऐलान किया है. केंद्र सरकार ने पीएमएनआरएफ से दो लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया है, तो वहीं केरल सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच लाख रुपये देने की घोषणा की है.
साल 2018 में केरल में सदी की सबसे भयानक बाढ़ आई थी और उस समय सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी. मरने वालों में कई लोग इडुक्की के भी थे.
जलवायु परिवर्तन से समुद्र तेजी से गर्म होते जा रहे हैं. इनका सिर्फ समुद्री जीवन पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसका मतलब भविष्य में मौसम में और तेज परिवर्तन, समुद्री तूफान का आना और जंगलों में आग लगना होगा.
तस्वीर: NGDC
दक्षिणी ध्रुव पर कैलिफोर्निया
अंटार्कटिका पर तैनात वैज्ञानिकों ने वहां का तापमान मापा तो लॉस एंजेलेस के बराबर निकला. फरवरी में रिकॉर्ड 18.3 डिग्री तापमान और वह भी उत्तरी अंटार्कटिक में अर्जेंटीना के रिसर्च स्टेशन पर. नासा के अनुसार यह वहां अब तक का सबसे ज्यादा तापमान था.
तस्वीर: Earth Observatory/ NASA
नियमित रूप से आता तूफान
समुद्रों के गर्म होने से ट्रॉपिकल तूफानों की तादाद बढ़ रही है. हरिकेन या टायफून का सीजन लंबा होने लगेगा और खासकर उत्तरी अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत में उनकी संख्या भी बढ़ेगी. मौसम बदलने का असर भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाने वाले तूफान के रूप में सामने आएगा.
तस्वीर: AFP/Rammb/Noaa/Ho
समुद्र का बढ़ता जलस्तर
धरती के वातावरण में तापमान बढ़ता है तो सागर भी गर्म होने लगते हैं. इसका नतीजा पानी के बढ़ने के रूप में दिखता है. पानी बढ़ेगा तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और बाढ़ आएगी या समुद्र तट पर स्थित इलाके डूबने लगेंगे.
पानी की सतह के गर्म होने से उसका वाष्पीकरण होगा और बरसात के बाद बाढ़ आएगी. कुछ इलाके डूब जाएंगे तो दूसरे इलाकों में सूखा पड़ेगा. नतीजा होगा फसल का न होना या जगलों में आग लगने से उसका नष्ट होना. भविष्य में आग का मौसम लंबा खिंचेगा और जंगलों पर खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
तस्वीर: Reuters/AAP Image/D.
इकोसिस्टम में बदलाव
गर्म सागर का मतलब होगा समुद्री जीव अपने पुराने घरों से भागने लगेंगे और आखिर में सारा समुद्रूी जलजीवन ठंडे इलाकों में चला जाएगा. मछलियां और समुद्री जानवर समतल से ध्रुवीय इलाकों की ओर चले जाएंगे. उत्तरी सागर में तो मछली का भंडार पहले से ही सिकुड़ने लगा है.
तस्वीर: by-nc-sa/Joachim S. Müller
समुद्रों का अम्लीकरण
गर्मी की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड पानी में घुल जाता है, समुद्री पानी का पीएच वैल्यू बढ़ जाता है और पानी का अम्लीकरण हो जाता है. पानी में अम्ल की मात्रा बढ़ने से स्टारफिश, शीप, कोरल और झींगों का बढ़ना रुक जाता है. नतीजा ये होगा कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा.
चारे की कमी
कार्बन डाय ऑक्साइड के समुद्री पानी में घुलने से पीएच वेल्यू घटेगी तो छोटे अल्गी आयरन को सोख नहीं पाते. अल्गी यदि आइरन को नहीं सोखेंगे तो उनका विकास नहीं होगा और समुद्री जीवों को चारा नहीं मिलेगा. इस तरह वे भी पानी के अम्लीकरण से प्रभावित होंगे.
तस्वीर: picture alliance / dpa
ऑक्सीजन की कमी
गर्म पानी कम ऑक्सीजन का संग्रह करते हैं. इस तरह गर्म होते समुद्र का मतलब ये भी है कि ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वाले इलाके कम होते जाएंगे. बहुत सी नदियों, झीलों और तालाबों में अभी ही कम ऑक्सीजन वाले मौत के कुएं मौजूद हैं. यहां कम ऑक्सीजन के कारण जीवों का रहना मुश्किल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt
अल्गी का बढ़ना
गर्म और कम ऑक्सीजन वाले पानी में जहरीले अल्गी तेजी से बढ़ते हैं. उनका जहर मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों को मार डालता है. पानी पर अल्गी या शैवाल के कालीन बहुत सारी जगहों पर मछली उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहीं चिली के तट की एक तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Marquez
सफेद कोरल का कंकाल
पानी के गर्म होने से समुद्री कोरल का सिर्फ रंग ही खत्म नहीं होता बल्कि ब्लीचिंग की वजह से बढ़ने की उसकी क्षमता भी खत्म हो जाती है. कोरल रीफ मरने लगते हैं और समुद्री जीवों को न तो सुरक्षा दे पाते हैं और न ही खाना. समुद्री जीवों के शिकार करने की जगह भी खत्म हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Naupold
बदलती समुद्री लहरें
यदि समुद्र के गर्म होने से उत्तरी अटलांटिक लहर की धारा बाधित होती है तो इसका मतलब पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में शीतलहर होगा. यही लहर समुद्री पानी के प्रवाह को निर्धारित करती है और इसी से सतह का घना पानी घूमकर गहरे ठंडे इलाके की ओर जाता है.