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गायब हो रही हैं अरावली की पहाड़ियां

२ अगस्त २०१९

अरावली पर्वत श्रंखला रेगिस्तान को फैलने से रोकने के साथ-साथ ताजे पानी का भी एक स्रोत है. इसके अलावा पहाड़ी के साथ फैले जंगल लाखों जीव-जंतुओं का घर बने हुए हैं. लेकिन धीरे-धीरे ये पहाड़ खत्म हो रहे हैं.

Indien Aravalligebirge bei Jaipur
तस्वीर: DW/J. Sehgal

दिल्ली से लेकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई अरावली पर्वत श्रंखला करीब 800 किलोमीटर लंबी है. ये पहाड़ियां करीब 35 करोड़ साल पुरानी हैं. अरावली की पहाड़ियां हिमालय पर्वत से भी पुरानी हैं. ये पहाड़ियां ना सिर्फ थार के मरुस्थल को फैलने से रोकती हैं बल्कि भूजल को फिर से जमीन में भेजती हैं. इसके अलावा यहां जैव विविधता का भंडार है. इन पहाड़ियों के जंगलों में 20 पशु अभ्यारण्य हैं. लेकिन अब ये पहाड़ियां खतरे में हैं.

राजधानी दिल्ली से महज 40 किलोमीटर दूरी पर ही अरावली में खनन का काम चल रहा है. स्टोन क्रशर, ट्रक, ट्रेक्टर-ट्रॉली और बड़ी-बड़ी मशीनें इन पहाड़ियों को छलनी कर रही हैं. इसकी वजह है निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की जरूरत. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में ही पहाड़ी के इस 10 किलोमीटर लंबे इलाके में खनन पर रोक लगा दी थी लेकिन यहां कई लोग अभी भी खनन का काम कर रहे हैं.

अपनी बकरियों के लिए खाना इकट्ठा कर रहे मुन्ना मेव कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की रोक का कोई असर नहीं है. वे खोदे जा चुके पहाड़ी के एक हिस्से को दिखाकर कहते हैं कि तीन-चार साल पहले यहां हरियाली से भरा पूरा एक पहाड़ हुआ करता था जिसका अब बस नामोनिशान ही बचा है, "ये भी एकदम बंजर हो चुका है."

स्थानीय पर्यावरणविद विजय धस्माना कहते हैं कि इस जगह पर बढ़ रही जनसंख्या और शहरीकरण का असर पड़ रहा है. डीडब्ल्यू से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हम वन्य जीवों, पौधों की प्रजातियों को खत्म करते जा रहे हैं. ग्रामीणों के लिए पशुओं को चराने के चारागाह गायब होते जा रहे हैं. पहाड़ियों का खत्म होना जैव विविधता के लिए एक बड़ा नुकसान है. यह देश के लिए बहुत हानिकारक है."

सच्चाई तो यह है कि पहाड़ियों की खुदाई करना दिल्ली के बाहर एक बड़ा व्यापार बन गया है. इसके बिना कुछ लोगों का काम ही नहीं चलेगा. दरअसल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत की वर्तमान स्थिति को जानने के लिए एक केंद्रीय समिति का गठन किया. समिति ने पाया कि अवैध खनन के चलते पिछले 50 सालों में 128 में से 31 पहाड़ियों का नामोनिशान खत्म हो चुका है.

तस्वीर: DW/J. Sehgal

क्रिएटिव प्रोजेक्ट्स एंड कॉन्ट्रेक्ट कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाने वाले गिरधारी सिंह का कहना है कि घर भी पहाड़ों की तरह ही जरूरी हैं, "विकास के लिए परिवर्तन की जरूरत होती है. अगर लोगों के लिए घर ही ना बनाए जाएं तो पहाड़ों का क्या इस्तेमाल होगा?"

आई एम गुड़गांव नाम के एनजीओ की संस्थापक प्रीति सवालका के मुताबिक अरावली की पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर के इलाके को रेगिस्तान से बचा रही हैं.  उनका एनजीओ इस इलाके में फिर से जंगल लगाने के लिए काम कर रहा है. वे कहती हैं," यहां यह ही एकमात्र जगह है जहां ताजा पानी मिलता है. मॉनसून में जब बारिश होती है तो पहाड़ी से पानी बहकर जमीन में चला जाता है जो भूजलस्तर को बढ़ा देता है. इस जगह की वजह से प्रदूषण में कमी आती है क्योंकि यह कार्बन डाय ऑक्साइड को सोख लेता है."

पहाड़ों के बचाकर रुकेगा प्रदूषण

ये पहाड़ियां दिल्ली की ओर आते प्रदूषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. दिल्ली में पहले से ही हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है. सेंटर फॉर इकोलॉजी में पिछले 10 साल से अरावली पर शोध कर रहे चेतन अग्रवाल का कहना है कि अरावली की पहाड़ियों में होने वाले अवैध खनन से वातावरण में धूल फैल जाती है. धूल के कण हवा को प्रदूषित कर देते हैं. वे कहते हैं, "अगर प्रदूषण के हिसाब से देखें तो दिल्ली और गुड़गांव दुनिया के सबसे प्रदूषित इलाके हैं. अरावली इन इलाकों के लिए फेंफड़ों का काम करती है और इन इलाकों की हवा से प्रदूषण को सोख लेती है."

तस्वीर: DW/J. Sehgal

2017 में छपी भारतीय लेखा परीक्षा संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में जनवरी 2015 से फरवरी 2017 के बीच राजस्थान में धूल की वजह से होने वाली फेंफड़ों की बीमारी सिलिकोसिस के 7,959 मामले सामने आए. राजस्थान में पांच जिलों में इस बीमारी की चपेट में आने से 449 लोगों की मौत हो गई. इसी रिपोर्ट में बताया गया कि 2,548 खदानें ऐसी हैं जहां काम करने वाले मजदूरों को सिलिकोसिस होने का खतरा है.

दलेर सिंह अरावली के इलाके में ही डॉक्टर हैं जहां अवैध खनन हो रहा है. वे कहते हैं," इस इलाके में फेंफड़ों से संबंधित रोग बढ़ रहे हैं. खनन से धूल का गुबार निकलता है जो वातावरण में मिल जाता है. यह बहुत ही खतरनाक है." अरावली आसपास के लाखों लोगों के लिए ताजे पानी का एक स्रोत है क्योंकि ये भूजलस्तर को बढ़ाता है. अरावली में हो रहे खनन से स्थानीय लोगों के लिए ताजे पानी पर भी संकट आ रहा है.

चेतन अग्रवाल कहते हैं," अरावली में बहुत सारी दरारें और दर्रे हैं जो भूजल को रीचार्ज करने का काम करते हैं. मैदान की तुलना में अरावली में भूजल के रीचार्ज की दर बहुत ज्यादा है. इससे रेगिस्तान की बढ़ोत्तरी भी रुकती है, जैव विविधता बनी रहती है, हवा की गुणवत्ता बनी रहती है और पर्यावरण का संतुलन भी बना रहता है. पर्यावरणविद विजय धस्माना इसे यहां रहने वाले लोगों की जीवन रेखा कहते हैं. वे कहते हैं कि अरावली को बचाना उनका काम है और इसे करने में वे गर्व महसूस करते हैं.

जसविंदर सेहगल

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