क्या है डिजिटल रुपया जिसे शुरू करने वाला है आरबीआई
चारु कार्तिकेय
३० नवम्बर २०२२
आरबीआई एक दिसंबर से डिजिटल रुपये की सीमित शुरुआत कर रहा है. इसे एक पायलट के रूप में शुरू किया जाएगा. जानिए क्या है डिजिटल रुपया और यह कैसे काम करेगा.
विज्ञापन
रिजर्व बैंक ने घोषणा की है कि वो एक दिसंबर से डिजिटल रुपया या "ई रूपी" की शुरुआत एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में करने वाला है. पायलट चरण में डिजिटल रुपया सिर्फ चार शहरों में उपलब्ध होगा, जिनमें दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और भुवनेश्वर शामिल हैं.
इसके लिए शुरुआत में चार बैंकों को चुना गया है - स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई, यस बैंक और आईडीएफसी बैंक. धीरे धीरे इसमें और बैंकों को भी शामिल किया जाएगा और शहरों की संख्या को भी बढ़ाया जाएगा.
इसे कुछ विश्लेषक भारत का आधिकारिक क्रिप्टोकरेंसी भी कह रहे हैं. यह एक तरह से नकद का ही इलेक्ट्रॉनिक संस्करण होगा. डिजिटल रुपये का मूल्य आम नोटों और सिक्कों के जैसा ही होगा, बस इसके जरिए पैसों का लेनदेन डिजिटल माध्यम से संभव हो सकेगा.
कैसे काम करेगा डिजिटल रुपया
रिजर्व बैंक जैसे नोट और सिक्के जारी करता है और फिर वो बैंकों के जरिए लोगों की जेबों तक पहुंचते हैं, ठीक वैसे ही रिजर्व बैंक ई-रुपये को नोटों और सिक्कों के मूल्यवर्ग के ही डिजिटल टोकन के रूप में जारी करेगा. यह टोकन कानूनी रूप से वैध होंगे और आम उपभोक्ता, कंपनियां, सरकारी विभाग सभी इसका इस्तेमाल कर पाएंगे.
कैसे काम करती है क्रिप्टोकरेंसी
01:55
किसी भी तरह के भुगतान के लिए एक क्यूआर कोड को स्कैन करना होगा. स्कैन करने के बाद मोबाइल में डिजिटल वॉलेट के जरिए भुगतान हो जाएगा. मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल खुदरा लेनदेन के लिए ही किए जाने की योजना है.
आरबीआई के मुताबिक डिजिटल रुपये को लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य "फिजिकल नकद के प्रबंधन के खर्च को कम करना, वित्तीय समावेश को बढ़ाव देना और भुगतान प्रणाली में लचीलापन, कुशलता और नवीनता लाना" है.
विज्ञापन
इसके क्या फायदे हैं
इसे आरबीआई की भारतीय अर्थव्यवस्था को निजी क्रिप्टोकरेंसियों से दूर रखने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है. आरबीआई पूर्व में यह कह चुका है कि निजी क्रिप्टोकरेंसियों में कई तरह के जोखिम होते हैं इसलिए भारत में इनकी अनुमति नहीं दी जाएगी.
डिजिटल करेंसी की रेस में चीन सबसे आगे
02:59
This browser does not support the video element.
वहीं आरबीआई का यह भी मानना रहा है कि स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में भुगतान के एक आसान माध्यम के रूप में क्रिप्टोकरेंसी भारत में भी उपलब्ध हो. आरबीआई द्वारा नियंत्रित डिजिटल रुपये को लाने के पीछे यही सोच है.
रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि इससे नकद पर भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता में भी कमी आएगी. दुनिया भर में कई केंद्रीय बैंक अपनी अपनी मुद्राओं के डिजिटल संस्करण को जारी करने पर विचार कर रहे हैं. यूरोपीय संघ का केंद्रीय बैंक भी यूरो के डिजिटल रूप को शुरू करने पर विचार कर रहा है.
भारत में रिजर्व बैंक थोक स्तर पर डिजिटल रुपये की शुरुआत पहले ही कर चुका है. इसकी शुरुआत एक नवंबर 2022 को की गई थी. इसका इस्तेमाल सरकारों द्वारा उधारी उठाने के लिए जारी किए जाने वाले सरकारी सिक्योरिटी के भुगतान के लिए किया जा रहा है. इसमें अभी तक नौ बैंकों को शामिल किया गया है.
बिटकॉइन कैसे काम करता है और यह किस काम आता है
हाल में बिटकॉइन के मूल्य में काफी उतार चढ़ाव देखे गए हैं, जिसकी वजह से निवेशकों को संदेह हो गया है कि इसमें अपना पैसा डालें या नहीं. डीडब्ल्यू कोई सलाह नहीं देता लेकिन आइए आपको बताते हैं कि आखिर बिटकॉइन काम कैसे करता है.
डिजिटल मुद्रा
बिटकॉइन एक डिजिटल मुद्रा है क्योंकि यह सिर्फ वर्चुअल रूप में ही उपलब्ध है. यानी इसका कोई नोट या कोई सिक्का नहीं है. यह एन्क्रिप्ट किए हुए एक ऐसे नेटवर्क के अंदर होती है जो व्यावसायिक बैंकों या केंद्रीय बैंकों से स्वतंत्र होता है. इससे बिटकॉइन को पूरी दुनिया में एक जैसे स्तर पर एक्सचेंज किया जा सकता है. एन्क्रिप्शन की मदद से इसका इस्तेमाल करने वालों की पहचान और गतिविधियों को गुप्त रखा जाता है.
तस्वीर: STRF/STAR MAX/IPx/picture alliance
एक रहस्यमयी संस्थापक
बिटकॉइन को पहली बार 2008 में सातोशी नाकामोतो नाम के व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से जाहिर किया था. यह आज तक किसी को नहीं मालूम कि यह एक व्यक्ति का नाम है या कई व्यक्तियों के एक समूह का. 2009 में एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में जारी किए जाने के बाद यह मुद्रा लागू हो गई.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Lipinski
कैसे मिलता है बिटकॉइन
इसे हासिल करने के कई तरीके हैं. पहला, आप इसे कॉइनबेस या बिटफाइनेंस जैसे ऑनलाइन एक्सचेंजों से डॉलर, यूरो इत्यादि जैसी मुद्राओं में खरीद सकते हैं. दूसरा, आप इसे अपने उत्पाद या अपनी सेवा के बदले भुगतान के रूप में पा सकते हैं. तीसरा, आप खुद अपना बिटकॉइन बना भी सकते हैं. इस प्रक्रिया को माइनिंग कहा जाता है.
डिजिटल बटुए की जरूरत
बिटकॉइन खरीदने से पहले आपको अपने कंप्यूटर में वॉलेट सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना पड़ता है. इस वॉलेट में एक 'पब्लिक' चाभी होती है जो आपका पता होता है और एक निजी चाभी भी होती है जिसकी मदद से वॉलेट का मालिक क्रिप्टो मुद्रा को भेज सकता है या पा सकता है. स्मार्टफोन, यूएसबी स्टिक या किसी भी दूसरे डिजिटल हार्डवेयर का इस्तेमाल वॉलेट के रूप में किया जा सकता है.
अब बिटकॉइन से कुछ खरीदा जाए
आइए जानते हैं भुगतान के लिए बिटकॉइन का इस्तेमाल कैसे किया जाता है. मान लीजिए मिस्टर एक्स मिस वाई से एक टोपी खरीदना चाहते हैं. इसके लिए सबसे पहले मिस वाई को मिस्टर एक्स को अपना पब्लिक वॉलेट पता भेजना होगा, जो एक तरह से उनके बिटकॉइन बैंक खाते की तरह है.
ब्लॉकचेन
मिस वाई से उनके पब्लिक वॉलेट का पता पा लेने के बाद, मिस्टर एक्स को अपनी निजी चाभी से इस लेनदेन को पूरा करना होगा. इससे यह साबित हो जाता कि इस डिजिटल मुद्रा को भेजने वाले वही हैं. यह लेनदेन बिटकॉइन से रोजाना होने वाले हजारों लेनदेनों की तरह बिटकॉइन ब्लॉकचेन में जमा हो जाता है.
डिजिटल युग के खनिक
अब मिस्टर एक्स द्बारा किए हुए लेनदेन की जानकारी ब्लॉकचेन नेटवर्क में शामिल सभी लोगों को पहुंच जाती है. इन लोगों को नोड कहा जाता है. मूल रूप से ये निजी कम्प्यूटर होते हैं, जिन्हें 'माइनर' या खनिक भी कहा जाता है. ये इस लेनदेन की वैधता को सत्यापित करते हैं. इसके बाद बिटकॉइन मिस वाई के पब्लिक पते पर चला जाता है, जहां से वो अपनी निजी चाभी का इस्तेमाल कर इसे हासिल कर सकती हैं.
बिटकॉइन मशीन रूम
सैद्धांतिक तौर पर ब्लॉकचेन नेटवर्क में कोई भी खनिक बन सकता है. लेकिन अधिकतर यह प्रक्रिया बड़े कंप्यूटर फार्मों में की जाती है जहां इसका हिसाब रखने के लिए आवश्यक शक्ति हो. इस प्रक्रिया में लेनदेन को सुरक्षित रखने के लिए नए लेनदेनों को तारीख के हिसाब से जोड़ कर एक कतार में रखा जाता है.
एक विशाल सार्वजनिक बही-खाता
हर लेनदेन को एक विशाल सार्वजनिक बही-खाते में शामिल कर लिया जाता है. इसी को ब्लॉकचेन कहा जाता है क्योंकि इसमें सभी लेनदेन एक ब्लॉक की तरह जमा कर लिए जाते हैं. जैसे जैसे सिस्टम में नए ब्लॉक आते हैं, सभी इस्तेमाल करने वालों को इसकी जानकारी पहुंच जाती है. इसके बावजूद, किसने किसको कितने बिटकॉइन भेजे हैं, यह जानकारी गोपनीय रहती है. एक बार कोई लेनदेन सत्यापित हो जाए, तो फिर कोई भी उसे पलट नहीं सकता है.
बिटकॉइनों का विवादास्पद खनन
खनिक जब नए लेनदेन को प्रोसेस करते हैं तो इस प्रक्रिया में वे विशेष डिक्रिप्शन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर नए बिटकॉइन बनाते हैं. डिक्रिप्ट होते ही श्रृंखला में एक नया ब्लॉक जुड़ जाता है और उसके बाद खनिक को इसके लिए बिटकॉइन मिलते हैं. पूरे बिटकॉइन नेटवर्क में चीन सबसे बड़ा खनिक है. वहां कोयले से मिलने वाली सस्ती बिजली की वजह से वो अमेरिका, रूस, ईरान और मलेशिया के अपने प्रतिद्वंदी खनिकों से आगे रहता है.
बिजली की जबरदस्त खपत
क्रिप्टो माइनिंग और प्रोसेसिंग के लिए जो हिसाब रखने की शक्ति चाहिए, उसकी वजह से बिटकॉइन नेटवर्क ऊर्जा की काफी खपत करता है. यह प्रति घंटे लगभग 120 टेरावॉट ऊर्जा लेते है. कैंब्रिज विश्वविद्यालय के बिटकॉइन बिजली खपत सूचकांक के मुताबिक इस क्रिप्टो मुद्रा को इस नक्शे में नीले रंग में दिखाए गए हर देश से भी ज्यादा ऊर्जा चाहिए. - गुडरून हाउप्ट