धनी देशों पर सौ अरब डॉलर का वादा निभाने का दबाव बढ़ाएगा भारत
१ नवम्बर २०२२
भारत की कोशिश होगी कि अगले हफ्ते शुरू होने वाले कॉप27 जलवायु सम्मेलन में धनी देशों को अपना सौ अरब डॉलर सालाना देने का वादा निभाने को तैयार करेगा. 2009 में यह वादा किया गया था लेकिन अब तक पूरा नहीं हुआ है.
विज्ञापन
अगले हफ्ते से शुरू होने वाले जलवायु सम्मेलन में भारत अमीर देशों पर सौ अरब डॉलर सालाना देने का वादा निभाने के लिए दबाव बनाने की कोशिश करेगा. भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि इस सम्मेलन का इस्तेमाल भारत धनी देशों को विकासशील देशों के साथ किए गए उनके वादे पूरे करने के लिए करेगा. धनी देशों ने विकासशील और गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जरूरी तकनीकी विकास के वास्ते यह धन देने का वादा किया है.
अधिकारियों के मुताबिक भारत मिस्र में होने वाले इस सम्मेलन यानी कॉप27 में ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिए अपनी भूमिका निभाने की प्रतिबद्धता भी दोहराएगा. नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और कार्बन उत्सर्जन घटाने की कीमत अत्यधिक होगी, इसलिए जिन्होंने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में ज्यादा योगदान दिया है, उन्हें धन उपलब्ध कराने में देर नहीं करनी चाहिए. इसीलिए भारत अपने और दूसरे विकसित देशों की तरफ से बोलेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फंडिंग की तुरंत उपलब्धता के लिए एक स्पष्ट और पूर्ण योजना बने.”
दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण के खिलाफ कब क्या किया जाता है
दिल्ली एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए हर साल ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरपी) के तहत कई कदम उठाए जाते हैं. जानिए जीआरएपी के तहत कब क्या कदम उठाए जाते हैं.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
ग्रैप के चार चरण
वायु गुणवत्ता आयोग द्वारा जारी किए गए ग्रैप को 2021 के बाद से चार चरणों में लागू किया जाता है. पहला चरण तब लागू किया जाता है जब वायु गुणवत्ता 201 से 300 के बीच हो, दूसरे, तीसरे और चौथे चरण को वायु गुणवत्ता के तय मानकों तक पहुंचने के तीन दिन पहले लागू किया जाता है. दूसरे चरण के लिए वायु गुणवत्ता का स्तर 301 से 400 होना चाहिए, तीसरे के लिए 401-450 और चौथे के लिए 450 से ऊपर.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
पहला चरण
पहले चरण के तहत 24 अलग अलग कदम उठाए जाते हैं. इनमें शामिल हैं- निर्माण परियोजनाओं पर सीमित बैन, मशीन से सड़कों की सफाई और पानी का छिड़काव, निर्माण स्थलों पर एंटी-स्मॉग गन का इस्तेमाल, कचरे और बायोमास को खुले में जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध आदि.
तस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance
दूसरा चरण
दूसरे चरण के कदमों में शामिल हैं - पहले चरण के सभी कदमों के अलावा होटलों आदि में कोयले और लकड़ी को जलाने पर बैन, सिर्फ आवश्यक और आपात सेवाओं के लिए डीजल जनरेटर का प्रयोग, निजी यातायात के लिए लोगों को हतोत्साहित करने के लिए पार्किंग शुल्क में वृद्धि आदि.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP/picture alliance
तीसरा चरण
तीसरे चरण के कदमों में शामिल हैं - पिछले चरणों के सभी कदमों के अलावा पूरे एनसीआर में कुछ आवश्यक क्षेत्रों के अलावा पूरी तरह से निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध, ईंधन के हिसाब से फैक्टरियों पर सीमित प्रतिबंध, खनन गतिविधियों पर बैन आदि.
तस्वीर: Noemi Cassanelli/AFP/Getty Images
चौथा चरण
चौथे चरण के कदमों में शामिल हैं - पिछले चरणों के सभी कदमों के अलावा आवश्यक क्षेत्रों के लिए और सीएनजी से चलने वाले ट्रकों के अलावा सभी ट्रकों के दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबंध, बीएस छह उत्सर्जन मानक पूरे करने वाले वाहनों को छोड़ कर सभी तरह के चौपहिया वाहनों पर प्रतिबंध, बिना स्वीकृति प्राप्त ईंधनों पर चलने वाले सभी उद्योगों पर बैन आदि.
तस्वीर: Anshuman Akash/abaca/picture alliance
जनता के लिए अपील
इन सभी चरणों के उपायों में सरकारी विभागों के लिए अनिवार्य कदमों के साथ साथ आम लोगों के लिए कुछ सुझाव भी हैं, जैसे अपने वाहनों के इंजनों और पहियों में हवा के दबाव को ठीक रखना, लाल बत्ती पर इंजन बंद कर देना, खुले में कचरा न फेंकना, सार्वजनिक यातायात का ज्यादा इस्तेमाल करना, कोयले और लकड़ी को न जलाना और चौथे चरण तक पहुंचते पहुंचते जितना हो सके घर में रहना.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार विकासशील देशों ने 2009 में वादा किया था कि 2020 तक वे विकासशील देशों को सौ अरब डॉलर सालाना देने लगेंगे ताकि वे जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपट सकें. यह वादा अभी तक पूरा नहीं किया गया है, जिस वजह से विकासशाली देशों में संदेह की भावना पैदा हो गई है और कई देश तो अपने यहां कार्बन उत्सर्जन कम करने की रफ्तार बढ़ाने को लेकर भी झिझक रहे हैं.
भारत के लिए धन जरूरी
अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक है. हालांकि ‘अवर वर्ल्ड डाटा' नामक संस्था के आंकड़े कहते हैं कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को देखा जाए तो भारत का नंबर तीन नहीं बल्कि सूची में बहुत नीचे है.
भारत ने हाल के सालों में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन और इस्तेमाल बढ़ाया है लेकिन कोयला आज भी उसके लिए बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोतबना हुआ है. 1.4 अरब लोगों के देश में ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है और उसे पूरा करने के लिए भारत फिलहाल कोयले का प्रयोग बंद करने को तैयार नहीं है.
हालांकि सरकार का कहना है कि भारत ने पहले ही अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने के कदम उठा लिए हैं और इन कदमों की रफ्तार तेजी से बढ़ाई जा रही है. एक अधिकारी ने बताया किभारत ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा हासिल करन का लक्ष्य तय कियाहै और उसके लिए काम शुरू किया जा चुका है.
देखभाल और प्यार, ऐसे मना कुकुर तिहार
नेपाल का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार, कुकुर तिहार कुछ ऐसे मनाया गया. यह अनोखा उत्सव कुत्तों की पूजा का दिन है. पर ललितपुर में यह और विशेष है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
ऐसे मना कुकुर तिहार
नेपाल का विशेष उत्सव ‘कुकुर तिहार’ ‘स्नेहाज केयर’ नाम की इस संस्था के लिए बहुत खास है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
15,000 जानवरों का इलाज
ललितपुर की यह संस्था कुकुर तिहार को उन कुत्तों के साथ मनाती है, जिन्हें मरने से बचाया गया है. यह संस्था अब तक 15,000 से ज्यादा घायल जानवरों की जान बचा चुकी है और उनका इलाज कर चुकी है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
हर जानवर प्यारा है
संस्था में कुत्तों के अलावा भी कई जानवरों का इलाज होता है, जैसे बकरी और गाय आदि.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
170 से ज्यादा कुत्ते
2016 में कुत्तों के लिए विशेष शेल्टर शुरू किया गया था, जिसमें फिलहाल 170 से ज्यादा कुत्ते हैं.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
कुत्तों की पूजा
कुकुर तिहार नेपाल के हिंदुओं का प्रमुख उत्सव है जब यमराज को प्रसन्न करने के लिए कुत्तों की पूजा की जाती है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
अहम है कुकुर तिहार
दशहरे के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है, जो पांच दिन चलता है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
इस अधिकारी ने कहा, "इन लक्ष्यों के लिए बहुत से धन की जरूरत है और इसलिए विकसित देशों पर दबाव बनाना आवश्यक है. विकसित देशों को यह समझने की भी जरूरत है कि है कुल लागत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है और इसलिए सौ अरब डॉलर सालाना की राशि हमेशा इतनी ही नहीं रह सकती. इसमें भी वृद्धि की जरूरत है.”
विज्ञापन
कुछ प्रगति नजर आई
संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन इस बार मिस्र के शर्म अल शेख में हो रहा है. यह 27वां वार्षिक सम्मेलन है जिसमें जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए धन उपलब्ध कराना मुख्य मुद्दा रहने की संभावना है. सम्मेलन से पहले जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम होना शुरू हुआ है लेकिन तापमान को इस सदी के आखिर तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने के लिए और ज्यादा कोशिश करने की जरूरत होगी.
यह रिपोर्ट कहती है कि पेरिस समझौते के तहत 193 पक्षकारों ने जितने वादे किए थे, वे तापमान को सदी के आखिर तक 2.5 डिग्री सेल्सियस तक ही ले जा पाएंगे. पिछले हफ्ते जारी हुई यह रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि मौजूदा प्रतिबद्धताओं के चलते 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2010 के मुकाबले 10.6 प्रतिशत बढ़ा देगा.
20 साल कचरा जमाकर बनाई कलाकृति
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली एक मूर्तिकार 20 साल से समुद्र का कचरा जमा कर रही हैं. अमेरिका में जन्मी इस कलाकार का मकसद है, कचरे का सफाया. यही कोशिश वह अपनी कलाकृतियों में भी करती हैं.
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
20 साल से बीन रही हैं कचरा
ऑस्ट्रेलिया की एक कलाकार पिछले 20 से सिडनी के अपने घर के पास समुद्र तट पर कचरा बीन रही है. मरीना डिब्रिस ने अपना यह नाम DeBris (डिब्रिस यानी कचरा) इसीलिए रख लिया था.
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
रोज जाना है
मरीना कहती हैं कि वह रोज आती हैं, लेकिन कचरा रोज पहले से ज्यादा ही मिलता है. वह कहती हैं, “अगर किसी दिन मैं यहां ना आ पाऊं तो मुझे अपराध बोध होता है.”
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया
मरीना अमेरिका में जन्मी हैं. लॉस एंजेल्स में बढ़ते प्रदूषण से वह इतनी आजिज आ गई थीं कि 2009 में एक रोज उन्हें लगा कि इस कचरे का इस्तेमाल ही अपनी कला के लिए किया जाए.
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
जागरूकता की कोशिश
लोगों का गंदे होते समुद्रों के प्रति जागरूक करने के लिए उन्होंने तट पर से कचरा जमाकर उनसे कलाकृतियां बनाना शुरू किया.
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
7.8 अरब बूंदें
अपनी सबसे नई कलाकृति को उन्होंने नाम दिया है- 7.8 अरब लोगों ने कहा, समुद्र में बस एक बूंद भर. मरीना कहती हैं कि वह संदेश देना चाहती हैं कि हर व्यक्ति अगर रोज एक चीज भी हटाए, तो एक ही दिन में कचरे के 7.8 अरब टुकड़े साफ हो सकते हैं.
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
सिडनी में प्रदर्शनी
यह कलाकृति सिडनी में जारी ‘स्कल्पटर बाइ द सी’ नाम की सालाना प्रदर्शनी में दिखाई गई है.
तस्वीर: Cordelia Hsu/REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
पिछले साल का विश्लेषण दिखाता है कि 2030 तक उत्सर्जन का बढ़ना जारी रहेगा. हालांकि इस साल के विश्लेषण से बात सामने आई है कि 2030 के बाद उत्सर्जन बढ़ना बंद हो जाएगा लेकिन उनमें कमी आनी शुरू नहीं होगी, जबकि विज्ञान कहता है कि इस दशक में ही उत्सर्जन के स्तर का कम होना शुरू हो जाना चाहिए.