भारत में स्थानीय भाषाओं में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को लेकर बड़े पैमाने पर कोशिशें हो रही हैं. आम लोग इस काम में मदद कर रहे हैं.
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कर्नाटक के एक गांव में पिछले कुछ हफ्तों से ग्रामीण स्थानीय कन्नड़ भाषा में वाक्य रिकॉर्ड कर रहे हैं. एक ऐप के जरिए इस भाषा को रिकॉर्ड किया जा रहा है, ताकि टीबी के लिए देश का पहला एआई-आधारित चैटबॉट बनाया जा सके.
भारत में चार करोड़ से ज्यादा कन्नड़ भाषी लोग हैं और यह भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है. साथ ही, यह भारत की उन 121 भाषाओं में से एक है, जिसे 10 हजार या उससे ज्यादा लोग बोलते हैं. लेकिन इनमें से चंद भाषाएं ही ऐसी हैं, जो नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) के तहत आती हैं.
डाटा जुटाने की कोशिश
एनएलपी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एक शाखा है. यह कंप्यूटरों को विभिन्न भाषाएं समझने के लिए तैयार करती है. चूंकि देश की 121 भाषाओं में से अधिकतर एनएलपी के तहत नहीं आतीं, इसलिए देश के करोड़ों लोग कंप्यूटर का फायदा उठाने से महरूम हैं.
एआई पर कैसे कानून बनाएंगी सरकारें?
एआई में हो रही तरक्की से कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं. दुनियाभर में सरकारें तकनीक के इस्तेमाल को लेकर कानून बनाने की कोशिश कर रही हैं. जानिए कि एआई टूल्स को रेगुलेट करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.
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अमेरिका
अप्रैल 2023 में सेनेटर माइकल बेनेट ने एक बिल पेश किया, जिसमें एआई पर नीतियां बनाने के लिए एक टास्क फोर्स के गठन का प्रस्ताव था. साथ ही, इसमें यह भी देखे जाने की बात कही गई कि निजता, नागरिक अधिकार और यथोचित प्रक्रिया पर संभावित खतरों को कैसे घटाया जाए. बाइडेन प्रशासन ने भी कहा है कि वह एआई सिस्टमों की जिम्मेदारी तय करने पर जनता की भी राय लेगी.
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ऑस्ट्रेलिया
यहां "दी साइंस एडवाइजरी कमेटी" (एसएसी) विज्ञान से जुड़े मामलों में परामर्श देने वाली मुख्य समिति है. सरकार इससे सलाह लेकर अगले कदमों पर विचार कर रही है.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन ने मार्च में बताया था कि एआई के नियमन के लिए नया विभाग बनाने की जगह मानवाधिकार, स्वास्थ्य-सुरक्षा जैसे पक्षों को देखने वाले मौजूदा रेगुलेटरों में ही जिम्मेदारी बांटी जा रही है. फाइनैंशल कंडक्ट अथॉरिटी समेत कई सरकारी विभागों को एआई से जुड़ी नई गाइडलाइनों की रूपरेखा बनाने का जिम्मा सौंपा गया है. तस्वीर में: एआई की बनाई ब्लैक होल की एक तस्वीर.
तस्वीर: ingimage/IMAGO
चीन
चीन, एआई के इस्तेमाल और संभावित खतरों से भी चिंतित है. कारोबारी ईलॉन मस्क ने अपनी हालिया चीन यात्रा में अधिकारियों से हुई मुलाकात के बाद बताया कि चीन की सरकार अपने यहां एआई से जुड़े नियम बनाएगी. इससे पहले अप्रैल में साइबरस्पेस अडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) ने जेनरेटिव एआई सेवाओं के प्रबंधन से जुड़े मापदंडों का मसौदा पेश किया था.
तस्वीर: Omar Marques/SOPA/ZUMA/picture alliance
यूरोपीय संघ
यूरोपीय संसद इसी महीने ईयू के एआई ऐक्ट का मसौदा बनाने पर वोट करने वाला है. यूरोपियन कंज्यूमर ऑर्गनाइजेशन ने भी चैटजीपीटी और अन्य एआई चैटबोट्स पर चिंता जताई है. उसने ईयू की कंज्यूमर प्रोटेक्शन एजेंसियों से इस तकनीक से लोगों को होने वाले संभावित नुकसान की पड़ताल करने की भी अपील की है.
तस्वीर: Andreas Franke/picture alliance
फ्रांस
अप्रैल 2023 में फ्रांस की डेटा प्रोटेक्शन एजेंसी सीएनआईएल ने बताया कि वह चैटजीपीटी से जुड़ी कई शिकायतों की जांच कर रहा है. इसका संदर्भ निजता से जुड़े कानूनों के संभावित उल्लंघन की आशंका के मद्देनजर इटली में चैटबॉक्स पर लगे अस्थायी बैन से जुड़ा है.
तस्वीर: Knut Niehus/CHROMORANGE/picture alliance
इस्राएल
इस्राएल इनोवेशन अथॉरिटी में नेशनल एआई प्लानिंग के निदेशक जिव कत्सिर ने बीते दिनों बताया कि पिछले करीब 18 महीनों से एआई रेगुलेशन्स पर काम हो रहा है. मकसद है नई खोज, मानवाधिकार की सुरक्षा और नागरिक हितों के बीच सही संतुलन बनाना. अक्टूबर 2022 में इस्राएल ने 115 पन्नों की एआई पॉलिसी का मसौदा जारी किया था. आखिरी फैसला लेने से पहले जनता से भी फीडबैक लिया जा रहा है.
तस्वीर: JOSEP LAGO/AFP/Getty Images
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माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च इंडिया में मुख्य शोधकर्ता कलिका बाली कहती हैं, "एआई टूल हर एक के लिए तभी फायदेमंद साबित हो पाएंगे, जब वे अंग्रेजी, फ्रेंच या स्पैनिश ना बोलने वाले लोगों के भी काम आएं. लेकिन चैटजीपीटी जैसे बड़े एआई टूल के लिए जितना डाटा चाहिए, अगर उतना हमें भारतीय भाषाओं में जुटाना हो तो दस साल तक इंतजार करना पड़ेगा. इसलिए हम ऐसा कर सकते हैं कि चैटजीपीटी या लामा जैसे बड़े एआई टूल के ऊपर एक और परत बनाई जाए.”
कर्नाटक के इस गांव के लोगों की तरह ही अलग-अलग भाषाओं के हजारों लोगों के जरिए इस तरह का डाटा जमा किया जा रहा है. तकनीकी कंपनी कार्य (KARYA) अलग-अलग भाषाओं में डाटा जुटा रही है, जिसके इस्तेमाल से माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं के लिए एआई मॉडल बनाने में मदद मिले.
सरकार भी प्रयासरत
भारत सरकार अधिक-से-अधिक सेवाओं को डिजिटल माध्यमों से उपलब्ध कराना चाहती है. वह भी ऐसे स्थानीय डाटा सेट तैयार कर रही है. इसे भाषीनी नामक एक एआई आधारित अनुवाद व्यवस्था के जरिए तैयार किया जा रहा है. स्थानीय भाषाओं में एआई टूल तैयार करने के लिए यह एक ओपनसोर्स सिस्टम है.
क्या हुआ जब क्लास में पहुंचा चैटजीपीटी रोबोट
साइप्रस के एक हाई स्कूल में छात्रों और शिक्षकों ने एक रोबोट बनाया है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर चैटजीपीटी पर आधारित है. इस तकनीक ने क्लासरूम को चौंका दिया.
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क्लास में चैटजीपीटी
साइप्रस के निकोसिया शहर के इस हाई स्कूल में छात्रों और शिक्षकों ने मिलकर यह चैट जीपीटी रोबोट तैयार किया है, जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित है.
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बेहतर क्लासरूम के लिए
छात्रों की कोशिश है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग करके पढ़ाई के अनुभव को आधुनिक व बेहतर बनाया जाए.
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इंटरेक्टिव अनुभव
प्रोजेक्ट लीडर कहते हैं कि यह एक इंटरेक्टिव अनुभव है. छात्र सवाल पूछते हैं और रोबोट तुरंत जवाब देता है. वह बेहतर तरीके से पढ़ाने में शिक्षकों की मदद भी कर सकता है.
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मजाक भी करता है
एक छात्र ने पूछा, मैथ्स की किताब उदास क्यों थी? रोबोट ने जवाब दिया – क्योंकि उसमें बहुत सारी प्रॉब्लम्स थीं.
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काम आया अनुभव
प्रोजेक्ट लीडर एल्पीडोफोरस बताते हैं कि चैटजीपीटी का यह अनुभव शिक्षकों और छात्रों समेत पूरे स्कूल के लिए फायदेमंद रहा है क्योंकि अब वे तकनीक को समझ रहे हैं और इससे डर नहीं रहे हैं.
तस्वीर: Yiannis Kourtoglou/REUTERS
दुनियाभर में चर्चा
चैटजीपीटी एक ऑनलाइन सॉफ्टवेयर है जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए किसी ऐसे इंसान की तरह जवाब देता है जिसे सारी दुनिया की सारी बातों का पता है. इसकी अत्याधुनिक तकनीक पूरी दुनिया को चौंका रही है.
तस्वीर: Yiannis Kourtoglou/REUTERS
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भाषीनी एक ऐसा प्लैटफॉर्म है, जो आम लोगों की मदद से डाटा जमा करता है. इसमें स्थानीय लोग अपनी इच्छा से अलग-अलग भाषाओं में ऑडियो रिकॉर्ड करते हैं. यही लोग ऑडियो की जांच करते हैं, दूसरे लोगों द्वारा लिखे गए वाक्यों और उनके अनुवादों की जांच करते हैं. भाषीनी के जरिए दसियों हजार लोग इस काम में अपना योगदान दे चुके हैं.
मुंबई स्थित कंप्यूटेशन फॉर इंडियन लैंग्वेज टेक्नोलॉजी लैब के प्रमुख पुष्पक भट्टाचार्य बताते हैं, "बड़े लैंग्वेज मॉडलों को भारतीय भाषाओं में प्रशिक्षित करने के लिए भारत सरकार काफी बड़े पैमाने पर कोशिश कर रही है. ये टूल शिक्षा, पर्यटन और अदालतों समेत बहुत से क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. लेकिन बहुत चुनौतियां भी हैं. भारतीय भाषाएं मुख्यतया बोलचाल में उपलब्ध हैं. उनके समुचित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं. कोड मिक्सिंग भी बहुत ज्यादा है. कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं में डाटा जमा करना भी एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत है.”
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अंग्रेजी का दबदबा
दुनिया में लगभग सात हजार भाषाएं हैं, जिनमें से 100 से भी कम हैं जो एनएलपी के तहत उपलब्ध हैं. इनमें अंग्रेजी सबसे आगे है. पूरी दुनिया में हलचल पैदा करने वाले चैटजीपीटी को मुख्यतया अंग्रेजी में ही तैयार किया गया है. गूगल का बोर्ड भी अंग्रेजी तक ही सीमित है. एमेजॉन का एलेक्सा जिन नौ भाषाओं में जवाब देता है, उनमें से तीन ही- अरबी, हिंदी और जापानी, गैर-यूरोपीय भाषाएं हैं.
क्या इंसानों जैसी हो जाएंगी एआई मशीनें
02:41
भारत की 1.4 अरब की आबादी में से 11 फीसदी ही अंग्रेजी बोलती, समझती है. इसलिए स्थानीय भाषाओं में एआई टूल उपलब्ध कराने की जरूरत बहुत बड़ी है. अब सरकारें और निजी कंपनियां इस अंतर को पाटने की कोशिश कर रही हैं.
बाली कहती हैं कि भारत जैसे देश में क्राउडसोर्सिंग भाषायी डाटा जुटाने का एक प्रभावशाली तरीका है. वह कहती हैं, "क्राउडसोर्सिंग से भाषा, संस्कृति और सामाजिक आर्थिक पहलुओं की छोटी-छोटी बातें भी शामिल हो जाती हैं. लेकिन लैंगिक, नस्लीय और सामाजिक-आर्थिक भेदभाव के बारे में जागरूकता की जरूरत है. ऐसा पूरी नैतिकता के साथ किया जाना चाहिए. इसके लिए काम करने वालों को तैयार करना, उन्हें काम का भुगतान देना और छोटी भाषाओं में डाटा जमा करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना भी बड़ी चुनौतियां हैं.”