यूएन सदस्यों की भारत से अपील, मानवाधिकारों की रक्षा हो
११ नवम्बर २०२२
गुरुवार को भारत को संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपने यहां मानवाधिकारों की स्थिति को बेहतर करने के लिए नसीहतें दीं. यूएपीए के इस्तेमाल से लेकर मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई और यौन हिंसा पर यूएन में चर्चा हुई.
विज्ञापन
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने भारत से आग्रह किया है कि अपने यहां धार्मिक आधार पर उत्पीड़न और यौन हिंसा के मामलों को नियंत्रित करे. गुरुवार को भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर चर्चा के दौरान यह अपील की गई कि भारत यातना संधि को प्रमाणित करे. भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किए हैं लेकिन इसे रेटिफाई नहीं किया है.
जवाब में, भारत ने मानवाधिकार कार्याकर्ताओं के काम की तारीफ तो की लेकिन मौत की सजा को खत्म करने से इनकार कर दिया और कहा कि दुर्लभ से दुर्लभ मामलों में ही ऐसी सजा दी जाएगी. भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "भारत किसी भी तरीके की यातना की निंदा करता है और अन्यायपूर्ण हिरासत, यातना या किसी भी द्वारा बलात्कार के विरोध के अपने रुख पर कायम है.”
जला दिए हिजाब
सीरिया में सैकड़ों महिलाओं ने अपने हिजाब जला दिए. अपना गुस्सा जाहिर करतीं कुछ महिलाओं ने बाल भी काटे.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
गुस्से में महिलाएं
उत्तरी सीरिया के कुर्द-नियंत्रित इलाके में महिलाओं ने कुछ इस तरह अपना गुस्सा जाहिर किया.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
महसा अमीनी के लिए
ये महिलाएं ईरान में महसा अमीनी की मौत पर क्रोधित हैं. महसा अमीनी भी कुर्द थीं.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
हक की बात
सीरिया में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था कोंगरा स्टार की सदस्य अरवा अल-सालेह ने कहा कि वे ईरान में विरोध कर रहीं महिलाओं के समर्थन में सड़क पर उतरी हैं.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
कैसे हुई अमीनी की मौत?
22 साल की महसा अमीनी की हाल ही में नैतिक-पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद मौत हो गई थी. हालांकि ईरानी अधिकारियों का कहना है कि अमीनी के साथ कोई ज्यादती नहीं की गई थी.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
दुनियाभर में विरोध
दुनियाभर की महिलाओं में अमीनी की मौत पर गुस्सा है. ईरान में भी इस घटना के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY via REUTERS
ईरान में भारी विरोध
अमीनी को नैतिक पुलिस ने इसलिए पकड़ा था क्योंकि उन्होंने हिजाब नहीं पहना था. अब विरोधस्वरूप ईरान और दुनिया के अन्य हिस्सों में महिलाएं हिजाब जलाकर विरोध जता रही हैं.
तस्वीर: Andre Penner/AP/picture alliance
6 तस्वीरें1 | 6
गुरुवार को जेनेवा में हुई यह चर्चा उस चार वर्षीय समीक्षा का हिस्सा थी, जिससे यूएन के सभी 193 सदस्य देशों को हर चार साल में एक बार गुजरना होता है. यूएन की मानवाधिकार परिषद में अमेरिकी दूत मिशेल टेलर ने कहा कि भारत को यूएपीए का इस्तेमाल कम करना चाहिए.
उन्होंने कहा, "हम सिफारिश करते हैं कि भारत यूएपीए और ऐसे ही कानूनों का मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ विस्तृत इस्तेमाल कम करे. कानूनी सुरक्षा हासिल होने के बावजूद लैंगिक और धार्मिक आधार पर भेदभाव और हिंसा जारी है. आतंकवाद-रोधि कानूनों के प्रयोग के कारण मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लंबे समय तक हिरासत में रखा जा रहा है.”
यूएपीए को लेकर भारत में भी लगातार विरोध होता रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इस कानून का इस्तेमाल विभिन्न सरकारें और पुलिस उत्पीड़न के लिए कर रही हैं. इसी साल अगस्त में भारत के गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया था कि 2018 से 2020 के बीच 4,690 लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया जबकि सजा सिर्फ 149 लोगों को हुई. 2020 में ही 1,321 लोगों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था और 80 लोगों को दोषी पाया गया था. सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुई थीं.
विज्ञापन
भारत को मिलीं नसीहतें
कनाडा ने भारत से अपील की कि यौन हिंसा के सभी मामलों की जांच करे और धार्मिक हिंसा के मामलों की जांच करते हुए "मुसलमानों समेत” सभी के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करे. नेपाल ने भी भारत को नसीहत करते हुए कहा कि उसे "महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ भेदभाव से लड़ाई की कोशिशों को मजबूत करना चाहिए.”
पांच करोड़ लोग आज भी हैं आधुनिक गुलामी की गिरफ्त में
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट ने दावा किया है कि दुनिया भर में पांच करोड़ लोग आज भी गुलामी के किसी ना किसी रूप में कैद हैं. इनमें जबरन मजदूरी से लेकर जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी महिलाएं भी शामिल हैं.
तस्वीर: Cindy Miller Hopkins/Danita Delimont/Imago Images
मिटती नहीं गुलामी
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक आधुनिक गुलामी को जड़ से मिटा देने का लक्ष्य बनाया था, लेकिन एक नई रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2021 के बीच जबरन मजदूरी और जबरदस्ती कराई गए शादियों में फंसे लोगों की संख्या में एक करोड़ की बढ़ोतरी हो गई. अध्ययन संयुक्त राष्ट्र की श्रम और आप्रवासन से जुड़ी संस्थाओं ने वॉक फ्री फाउंडेशन के साथ मिल कर कराया.
तस्वीर: John Angelillo/UPI/newscom/picture alliance
हर 150 में से एक गुलाम
अध्ययन में पाया गया कि 2021 के अंत में दुनिया में 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे और 2.2 करोड़ लोग ऐसी शादियों में जी रहे थे जो उन पर जबरदस्ती थोपी गई थीं. इसका मतलब दुनिया में हर 150 लोगों में से एक व्यक्ति गुलामी के किसी आधुनिक रूप में फंसा है.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
कोविड-19 ने बढ़ाई गुलामी
जलवायु परिवर्तन और हिंसक संघर्षों के असर के साथ साथ कोविड-19 ने "अभूतपूर्व रूप से रोजगार और शिक्षा को प्रभावित किया, चरम गरीबी को और जबरन, असुरक्षित आप्रवासन को बढ़ाया." इस तरह महामारी ने भी गुलामी में पड़ने के जोखिम को बढ़ा दिया है.
तस्वीर: YURI KORSUNTSEV/AFP/Getty Images
प्रवासी श्रमिक भी खतरे में
रिपोर्ट के मुताबिक आम श्रमिकों के मुकाबले प्रवासी श्रमिकों की जबरन मजदूरी में होने की तीन गुना ज्यादा संभावना है. इसलिए आप्रवासन को सुरक्षित बनाने की जरूरत है.
तस्वीर: Aline Deschamps/Getty Images
दीर्घकालिक समस्या
रिपोर्ट के मुताबिक यह एक दीर्घकालिक समस्या है. अनुमान है कि जबरन मजदूरी में लोग सालों तक फंसे रहते हैं और जबरदस्ती कराई गई शादियां तो अक्सर "आजीवन कारावास" की सजा जैसी होती हैं.
तस्वीर: Daniel Berehulak/Getty Images
महिलाएं और बच्चे सबसे असुरक्षित
रिपोर्ट में कहा गया है कि जबरन मजदूरी में फंसे हर पांच लोगों में से एक बच्चा होता है. आधे से ज्यादा बच्चे तो व्यावसायिक यौन शोषण में फंसे हुए हैं. मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां ही जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी हुई हैं. 2016 के बाद से ऐसी महिलाओं और लड़कियों की संख्या में पूरे 66 लाख की बढ़ोतरी हुई है.
तस्वीर: Marco Ugarte/AP Photo/picture alliance
अमीर देशों में भी है गुलामी
आधुनिक गुलामी हर देश में मौजूद है. जबरन मजदूरी के आधे से ज्यादा मामले और जबरदस्ती कराई गयउ शादियों के एक चौथाई से ज्यादा मामले ऊपरी-मध्यम आय वाले और ऊंची-आय वाले देशों में हैं.
रिपोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था द्वारा उठाई गई चिंताओं की तरफ भी इशारा किया, कि उत्तर कोरिया में "बेहद कड़े हालात में जबरन मजदूरी के विश्वसनीय रिपोर्ट है." चीन में शिनजियांग समेत कई इलाकों में जबरन मजदूरी कराए जाने की संभावना है. (सीके/एए (एएफपी))
तस्वीर: Stephen Shaver/UPI Photo/Newscom/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
ब्रिटेन के दूत साइमन मैनली ने भारत से आग्रह किया कि "सुनिश्चित किया जाए कि बाल मजदूरी, मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ मौजूदा कानूनों का पूरी तरह पालन हो.” इसी तरह चीन ने कहा कि भारत को मानव तस्करी रोकने के लिए उपाय करने चाहिए और लैंगिक समानता सुनिश्चित करनी चाहिए.
भूटान ने कहा कि भारत को बच्चों व महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध रोकने के लिए और ज्यादा कदम उठाने की जरूरत है, जबकि जर्मनी ने "हाशिये पर मौजूद तबकों के अधिकारों को लेकर” चिंता जताई. सऊदी अरब ने भारत से शिशु मृत्युदर कम करने पर काम करने को कहा तो ऑस्ट्रेलिया ने मृत्यु दंड को औपचारिक तौर पर समाप्त करने की अपील की.
स्विट्जरलैंड ने भारत में इंटरनेट पर पाबंदी को लेकर चिंता जाहिर की और कहा कि उसे सुनिश्चित करना चाहिए कि "सभी के पास सोशल नेटवर्क की पहुंच हो और इंटरनेट को बंद करने या धीमा करने की कार्रवाइयां” ना हों.
भारत ने दिया जवाब
अपने जवाब में मेहता ने कहा कि भारत का संविधान सभी को अभिव्यक्ति की आजादी देता है. लेकिन उन्होंने कहा कि "बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी संपूर्ण नहीं हो सकती” और भारत की संप्रभुता, एकता, सुरक्षा, विदेशी संबंध की खातिर "उस पर तार्किक पाबंदियां लगाई जा सकती हैं.”
आखिर आजादी की सांस मिली
हफ्तों तक यूक्रेन के मारियोपोल में एवोज्स्ताल स्टील फैक्ट्री में फंसे रहने के बाद आखिर लोगों को निकाला गया है. आजाद होने के बाद इन लोगों की तस्वीरें कई कहानियां कहती हैं.
तस्वीर: Andre Luis Alves/AA/picture alliance
आजादी का काफिला
जापोरिज्जिया प्रांत की ओर बढ़ता वाहनों का यह लंबा काफिला यूएन और रेड क्रॉस की मध्यस्थता के बाद आजाद हुए उन लोगों को लेकर जा रहा है जो हफ्तों से स्टील प्लांट में फंसे थे. मारियोपोल पर अब रूसी सेनाओं का कब्जा है.
जापोरिज्जिया पहुंचे लोग हताश और थके हुए नजर आ रहे थे. स्टील प्लांट में फंसे इन सैकड़ों लोगों के पास हफ्तों तक खाने के लिए बहुत कम खाना था और बाहर लगातार बमबारी हो रही थी.
तस्वीर: Andre Luis Alves/AA/picture alliance
फिर जुटानी होगी हिम्मत
जापोरिज्जिया पर यूक्रेन का कब्जा है, जहां इन लोगों को ले जाया गया है. कई लोगों ने हफ्तों बाद पेट भरकर खाना खाया. वे बताते हैं कि जहां वे फंसे थे वहां बस अधेरा था, भूख थी और बेबसी थी.
तस्वीर: Andre Luis Alves/AA/picture alliance
दुखों का अंत नहीं
युद्ध ने इन लोगों पर गहरा असर छोड़ा है. देखने में ये लोग राहत में नजर आ रहे थे लेकिन युद्ध के निशान देखे जा सकते थे.
तस्वीर: Diego Herrera Carcedo/AA/picture alliance
अपने पालतुओं के साथ
बहुत से लोग अपने पालतू जानवरों को साथ लेकर आए हैं. किसी के पास कुत्ता है तो किसी के पास बिल्लियां. इस महिला के पास अपने दो नन्हे कछुए थे जिन्हें वह बचा लाईं.
तस्वीर: Ukrinform/dpa/picture alliance
बस नींद चाहिए
इस महिला को यह कहने की जरूरत नहीं पड़ी कि फिलहाल वह बस सोना चाहती हैं. लगातार भारी बमबारी झेलने के बाद हफ्तों से चैन की नींद नसीब नहीं हुई थी.
तस्वीर: Andre Luis Alves/AA/picture alliance
जो बचे हैं उनके लिए उम्मीद
यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री इरीना वेरेश्चुंक को उम्मीद है कि जो लोग बचे हुए हैं उन्हें भी सुरक्षित निकाला जा सकेगा और इसमें संयुक्त राष्ट्र की मदद मिल पाएगी.
तस्वीर: Andre Luis Alves/AA/picture alliance
ताकि सनद रहे
जापोरिज्जिया में लोगों के स्वागत में आए कुछ लोगों ने उन सैनिकों को भी याद किया जो या स्टील प्लांट में फंसे हैं या फिर लड़ाई में मारे गए हैं. वे भी इंसान हैं, पोस्टर कहता है.
तस्वीर: Andre Luis Alves/AA/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
उन्होंने कहा, "तार्किक आधार पर पाबंदियां लगाना यह सुनिश्चित करता है कि जहां बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी ‘हेट स्पीच' में बदल जाए, वहां सरकार उसे काबू कर सके.”
बहस के जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के सचिव संजय वर्मा ने कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को सरकार के सामने पेश करेंगे. उन्होंने कहा, "भारत सरकार अपने लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा और बचाव के लिए प्रतिबद्ध है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत मानवाधिकारों के सर्वोच्च मानकों को लेकर प्रतिबद्ध है.”