कोरोना वायरस को लेकर इस वक्त सोशल मीडिया पर भ्रामक और फर्जी खबरों की बाढ़ सी आ गई है. चैटिंग एप व्हॉट्सएप पर तो लोग बिना पुष्टि किए ही संदेश को आगे बढ़ा दे रहे हैं. हालांकि बाद में वह संदेश झूठे साबित होते हैं.
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पिछले दिनों भारत में जारी तालाबंदी को लेकर एक पोस्ट सोशल मीडिया और व्हॉट्सएप पर बहुत तेजी से वायरल हुई. जिसमें दावा किया गया कि भारत में तालाबंदी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के लॉकडाउन प्रोटोकॉल के मुताबिक की गई है. मेसेज में कहा गया कि 20 अप्रैल से 18 मई के बीच तीसरा चरण लागू होगा. इस मैसेज में दावा किया गया कि डब्ल्यूएचओ ने लॉकडाउन की अवधि को चार चरणों में बांटा है और भारत भी इसका अनुसरण कर रहा है. चार चरणों में लॉकडाउन की बात झूठी थी और यह सिर्फ लोगों में भय पैदा करने के इरादे से फैलाई गई थी. डब्ल्यूएचओ के साथ साथ भारत सरकार ने भी इस मेसेज को झूठा करार दिया.
व्हॉट्सएप पर एक और मेसेज तेजी से वायरल हुआ कि व्हॉट्सएप ग्रुप में कोरोना वायरस को लेकर कोई मजाक या जोक साझा किया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी. मैसेज में लिखा हुआ था कि मजाक या जोक साझा करने पर ग्रुप एडमिन के खिलाफ धारा 68, 140 और 188 के उल्लंघन की ही तरह कार्रवाई की जाएगी. प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने इस संदेश को भी फर्जी करार दिया.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा है कि सरकार ने फेसबुक और चीनी वीडियो एप टिकटॉक से ऐसे वीडियो हटाने को कहा है जो गलत जानकारी को बढ़ावा दे रहे हैं. दिल्ली स्थित डिजिटल एनालिटिक्स कंपनी ने कुछ वीडियो के विश्लेषण के बाद सरकार को रिपोर्ट सौंपी है. कंपनी ने एक वीडियो में खास पैटर्न की पहचान की है. सोशल मीडिया वीडियो कुछ धार्मिक मान्यताओं का इस्तेमाल करते हुए मुसलमानों को लक्षय में रखते हुए बनाए गए है. इन वीडियो में धार्मिक मान्यताओं का उपयोग करते हुए, वायरस पर स्वास्थ्य सलाह की अवहेलना को उचित ठहराया जा रहा है.
क्या मलेरिया की दवा से ठीक होता है कोरोना?
डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मंगाई थी. लेकिन क्या यह दवा वाकई कोविड-19 का इलाज कर सकती है?
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किस दवा की बात हो रही है?
डॉनल्ड ट्रंप भारत से जो दवा मंगाना चाहते हैं उसका नाम है हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन. 1940 के दशक से इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया का इलाज करने के लिए होता रहा है.
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मलेरिया और कोरोना का क्या नाता है?
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है और कोविड-19 वायरस से. इसलिए दोनों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है उन्हें कोविड-19 का खतरा भी होगा.
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कोरोना के लिए मलेरिया की दवा क्यों?
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया के अलावा ऑटो-इम्यून बीमारियों को ठीक करने के लिए भी होता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. इसलिए इस दवा से इम्यून सिस्टम को बचाने की बात हो रही है.
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क्या अमेरिका के पास नहीं है यह दवा?
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका में यह दवा पहले से ही भारी मात्रा में मौजूद है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप इसे स्टॉक करना चाह रहे हैं. अमेरिका में बिना डॉक्टर की पर्ची के भी यह दवा खरीदी जा सकती है लेकिन इस बीच आम लोग इसे नहीं खरीद पा रहे हैं.
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डॉक्टरों का क्या कहना है?
खुद अमेरिका में ही डॉक्टरों की राय इस पर बंटी हुई है. ट्रंप के समर्थक इसे आजमाने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष का कहना है कि वे इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं देंगी.
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रिस्क क्या है?
इस दवा का साइड इफेक्ट होने पर दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है. सीने में दर्द के साथ साथ धड़कनें कम हो सकती हैं.
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क्या पहले कभी इस्तेमाल हुई है?
राजस्थान में डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू, मलेरिया और एचआईवी की दवाओं को मिला कर इस्तेमाल किया और उन्हें सफलता मिली. हालांकि इस मिश्रण के बाकी मरीजों पर इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
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कहां से आया दवा के इस्तेमाल का आइडिया?
किसी भी दवा को मरीजों पर तब ही इस्तेमाल किया जाता है जब लैब में उस पर टेस्ट हो चुके हों. इस दवा के मामले में भी ऐसा ही है. कुछ ऐसे टेस्ट हुए जिनके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए.
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रिसर्च क्या कहती है?
एक रिसर्च ने दिखाया कि इस दवा के सेवन से कोरोना वायरस का शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है. एक अन्य रिसर्च के अनुसार इस दवा लेने से मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन यह रिसर्च सिर्फ 11 लोगों पर की गई.
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क्या ज्यादा लोगों पर भी हुई रिसर्च?
चीन में हुई एक रिसर्च ने दिखाया कि 10 अस्पतालों में कुल 100 मरीजों को जब यह दवा दी गई तो उनकी तबियत में सुधार आया. लेकिन तुलना करने के लिए इस रिसर्च में ऐसे मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं था जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
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ट्रंप ने कौन सी रिसर्च पढ़ी?
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है, "फ्रांस में उन्होंने (रिसर्चरों ने) एक बहुत अच्छा टेस्ट किया है." इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने अमेरिका में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
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कितनी विश्वसनीय है फ्रांस की रिसर्च?
मार्च में जब फ्रांस में कोरोना वायरस फैलने लगा तब वहां कुछ रिसर्चरों ने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन पर शोध शुरू किया. इस शोध पर अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज पर हुई चर्चा के तुरंत बाद ट्रंप ने इसकी तारीफ शुरू कर दी.
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WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वक्त कोरोना वायरस पर छह अलग अलग दवाओं को टेस्ट कर रहा है. इस वायरस को ले कर जल्दी प्रतिक्रिया ना देने को लेकर WHO की काफी आलोचना हो रही है.
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अब आगे क्या?
कोरोना स्थिति को देखते हुए अमेरिका समेत कई देश लैब टेस्टिंग का इंतजार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मौजूदा मरीजों पर ही ट्रायल एंड एरर किया जाएगा और शायद उसके बाद ही पता चलेगा कि दवा कारगर है या नहीं.
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एक सूत्र का कहना है कि इन चिंताओं को लेकर भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टिकटॉक और फेसबुक को पत्र लिखा है. पत्र में कहा है गया कि ऐसे यूजर्स को वे अपने मंच से हटा दें जो गलत जानकारी फैला रहे हैं और साथ ही उनकी जानकारी रखने को कहा है ताकि बाद में जरूरत पड़ने पर पुलिस और प्रशासन से साझा की जा सके.
टिकटॉक ने एक बयान में कहा कि वह सरकार के साथ सक्रियता से काम कर रहा है. फेसबुक ने फर्जी खबरों के बारे में कहा, "हम अपने मंच पर गलत सूचना और हानिकारक सामग्री को फैलने से रोकने के लिए आक्रामक कदम उठा रहे हैं."
व्हॉट्सएप ने मंगलवार 7 अप्रैल को मैसेज फॉरवडिंग को सीमित कर दिया था. दरअसल लोग व्हॉट्सएप के जरिए बड़े पैमाने पर फर्जी और भ्रामक संदेश फॉरवर्ड कर रहे थे. कंपनी के नए नियम के मुताबिक फॉरवर्ड मैसेज को सिर्फ एक चैट के साथ ही साझा किया जा सकेगा. यानी अब मैसेज फॉरवर्ड करने वाला एक बार में एक ही यूजर को मैसेज फॉरवर्ड कर पाएगा.
आपने चुने अपने कोरोना नायक
जब भी संकट की घड़ी आती है तो कुछ लोग मदद के लिए आगे आते हैं. डीडब्ल्यू हिन्दी ने अपनी यूट्यूब कम्युनिटी से पूछा कि कौन हैं आपके आसपास मौजूद कोरोना नायक. ये रही उनकी सूची.
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डॉक्टर, नर्स और अन्य मेडिकल पेशेवर
भारत ही नहीं पूरे विश्व में सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रहे मेडिकल पेशेवरों को ही आपमें से सबसे ज्यादा लोगों ने कोरोना के दौर का नायक बताया है. हालत ये है कि देश के तमाम हिस्सों में कई डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्वास्थ्यकर्मी मरीजों को बचाते बचाते खुद संक्रमित हो रहे हैं. कई लोगों ने इस मौके पर संकल्प लेने का आह्वान किया है कि भविष्य में इनसे मारपीट और हिंसा की हरकतें फिर कभी न की जाएं.
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सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने वाले सभी लोग
अजय माने ने मराठी में लिखे अपने संदेश में आशा जताई है कि अगर विदेश से आए लोग खुद को कुछ दिनों के लिए कैद कर लेते तो शायद बाद में ऐसी नौबत नहीं आती. धर्मेंद्र राम ने उन लोगों को चुना है जो सोशल डिस्टेंसिंग कर कोरोना संक्रमण के चक्र से बाहर रह रहे हैं. ज्ञानेन्द्र सिंह कहते हैं कि इस समय का प्रयोग वह पौधों की सेवा और योग में कर रहे हैं और दूसरे लोगों को भी लॉकडाउन का पालन करने के लिए समझा रहे हैं.
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पुलिसकर्मी
दीपक जायसवाल मानते हैं कि इस कठिन दौर में पुलिस वाले सच्चे नायक बन कर उभरे हैं. वहीं कुछ लोगों ने अस्पतालों में सेक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वालों को अपना कोरोना नायक बताया है जिनका आने वाले मरीजों से सामना होता है. पावर प्लांट में टेक्नीशियन का काम करने वाले सत्यजीत परीजा अपने काम को बेहद अहम बताते हैं क्योंकि बिना पावर के कुछ भी नहीं हो पाएगा.
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लोकल किराना स्टोर और सब्जी वाले
जावेद टायरवाला स्थानीय किराना की दुकान चलाने वालों और सब्जी बेचने वालों के काम से खासे प्रभावित हैं. उमा सिंह ने अपना अनुभव लिख भेजा है कि उनके एरिया का दुकानदार राहुल अग्रवाल सही रेट पर अपनी कार में लाद कर उनके घर तक राशन पहुंचा गया. जाहिर है हर जगह ऐसा नहीं हो रहा है जैसा कि इलाहाबाद से एक पाठक ने लिखा है कि वहां कुछ दुकानदार स्टूडेंट्स को भी चार गुना दाम में समान बेच रहे हैं.
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बैंक कर्मी
बीआर रतूड़ी कहते हैं कि महामारी के इस दौर में बैंक कर्मी भी नायक हैं जो जान जोखिम में डाल कर भी लोगों के कैश चेक ले रहे हैं. मनीष जायसवाल ने लिखा है इस दौर में उनके लिए कोरोना नायक गांव के पड़ोस की दुर्गा जनरल स्टोर दुकान है जो जरूरत के सामान के साथ जरूरी बैंकिंग सेवाएं भी प्रदान करती है. बैंकिंग की सुविधा प्राथमिकता सेवाओं में शामिल है इसलिए मेडिकल, पुलिस की तरह ही बैंककर्मी भी सेवा दे रहे हैं.
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नागरिक समूह, एनजीओ
बिहार राज्य के दरभंगा जिले में मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय का एक संगठन चलाने वाले रोहित कुमार सिंह के बारे में बिहारी बाबू ने लिखा है कि लॉकडाउन के बाद से वे रिक्शा और ठेला चालकों, मजदूरी करने वाले ऐसे 40 से 45 घरों में रोजाना राशन पहुंचा रहे हैं जिनकी रोजी रोटी छिन गई है. बिहार से ही सविता ने लिखा है कि उनके क्षेत्र में ‘मानस’ संस्था अच्छा काम कर रही है इसलिए उनके लिए यही असली कोरोना नायक हैं.